Comments - है रावण नाम तेरा गर चरित को राम जैसा कर -लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’ - Open Books Online2024-03-29T10:59:35Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A638512&xn_auth=noअच्छे अश’आर हुए हैं आ. धामी ज…tag:openbooks.ning.com,2015-04-07:5170231:Comment:6391142015-04-07T04:20:15.793Zधर्मेन्द्र कुमार सिंहhttps://openbooks.ning.com/profile/249pje3yd1r3m
<p>अच्छे अश’आर हुए हैं आ. धामी जी, दाद कुबूलें</p>
<p>अच्छे अश’आर हुए हैं आ. धामी जी, दाद कुबूलें</p> आ० भाई गिरिराज जी गजल पर उपस्…tag:openbooks.ning.com,2015-04-06:5170231:Comment:6386422015-04-06T05:06:49.705Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ० भाई गिरिराज जी गजल पर उपस्थिति से मान बढ़ने के लिए हार्दिक धन्यवाद .साथ ही आपकी पारखी नज़र को कोटि कोटि सलाम . दरअसल मतले की तरफ तो रो में बहते हुए ध्यान ही नहीं गया .इस और ध्यान दिलाने के लिए आभार . इसे शीघ्र परमशानुसार सुधार लूँगा . कृपा बनाये रहें .</p>
<p>आ० भाई गिरिराज जी गजल पर उपस्थिति से मान बढ़ने के लिए हार्दिक धन्यवाद .साथ ही आपकी पारखी नज़र को कोटि कोटि सलाम . दरअसल मतले की तरफ तो रो में बहते हुए ध्यान ही नहीं गया .इस और ध्यान दिलाने के लिए आभार . इसे शीघ्र परमशानुसार सुधार लूँगा . कृपा बनाये रहें .</p> ग़ज़ल पर उपस्थिति और उत्साहवर्ध…tag:openbooks.ning.com,2015-04-06:5170231:Comment:6386402015-04-06T05:00:11.304Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>ग़ज़ल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आदरणीय मिथिलेश भाई , भाई विजय जी, भाई कृष्णा मिश्रा जी , भाई गोपाल नारायण जी , भाई हरी प्रकाश जी , और भाई समर कबीर जी बहुत बहुत आभार . आशा है स्नेह बनाये रक्खेंगे .</p>
<p>ग़ज़ल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आदरणीय मिथिलेश भाई , भाई विजय जी, भाई कृष्णा मिश्रा जी , भाई गोपाल नारायण जी , भाई हरी प्रकाश जी , और भाई समर कबीर जी बहुत बहुत आभार . आशा है स्नेह बनाये रक्खेंगे .</p> आदरणीय गिरिराज सर, कमाल की नज़…tag:openbooks.ning.com,2015-04-05:5170231:Comment:6387112015-04-05T18:18:33.779Zमिथिलेश वामनकरhttps://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>आदरणीय गिरिराज सर, कमाल की नज़र है आपकी ..... इधर तो ध्यान ही नहीं गया था.</p>
<p>आदरणीय गिरिराज सर, कमाल की नज़र है आपकी ..... इधर तो ध्यान ही नहीं गया था.</p> आदरणीय लक्ष्मण भाई , गज़ल अच्छ…tag:openbooks.ning.com,2015-04-05:5170231:Comment:6387092015-04-05T18:07:54.251Zगिरिराज भंडारीhttps://openbooks.ning.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरणीय लक्ष्मण भाई , गज़ल अच्छी हुई है , पर गज़ल के बहुत से अश आर मे काफिया दोषपूर्ण है --</p>
<p>मतले में आपने घराना , तराना ले कर काफिया अ राना तय किया है , जो बाक़ी के अश आर में नही निभा पाये हैं । बाक़ी मे आप , आना काफिया निभा रहे हैं , सुधार लीजियेगा ॥</p>
<p>आदरणीय लक्ष्मण भाई , गज़ल अच्छी हुई है , पर गज़ल के बहुत से अश आर मे काफिया दोषपूर्ण है --</p>
<p>मतले में आपने घराना , तराना ले कर काफिया अ राना तय किया है , जो बाक़ी के अश आर में नही निभा पाये हैं । बाक़ी मे आप , आना काफिया निभा रहे हैं , सुधार लीजियेगा ॥</p> जनाब लक्ष्मण धामी "मुसाफिर" ज…tag:openbooks.ning.com,2015-04-05:5170231:Comment:6384902015-04-05T17:43:35.477ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
जनाब लक्ष्मण धामी "मुसाफिर" जी,आदाब,वाह वाह वाह,क्या ही अच्छे जज़बात से भरपूर अशआर निकाले हैं आपने,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |
जनाब लक्ष्मण धामी "मुसाफिर" जी,आदाब,वाह वाह वाह,क्या ही अच्छे जज़बात से भरपूर अशआर निकाले हैं आपने,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं | आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, इस मं…tag:openbooks.ning.com,2015-04-05:5170231:Comment:6382912015-04-05T16:01:05.138ZHari Prakash Dubeyhttps://openbooks.ning.com/profile/HariPrakashDubey
<p><span>आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, इस मंच की सुन्दर ग़ज़लों में एक और सुन्दर प्रस्तुति , बहुत बधाई आपको ! सादर </span></p>
<p><span>आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, इस मंच की सुन्दर ग़ज़लों में एक और सुन्दर प्रस्तुति , बहुत बधाई आपको ! सादर </span></p> धामी जी
बहुत उम्दा . क्या बात…tag:openbooks.ning.com,2015-04-05:5170231:Comment:6382872015-04-05T15:29:07.646Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>धामी जी</p>
<p>बहुत उम्दा . क्या बात है .सादर .</p>
<p>धामी जी</p>
<p>बहुत उम्दा . क्या बात है .सादर .</p> है भोलापन बहुत अच्छा मगर छ…tag:openbooks.ning.com,2015-04-05:5170231:Comment:6383752015-04-05T13:45:31.399ZKrish mishra 'jaan' gorakhpurihttps://openbooks.ning.com/profile/krishnamishrajaangorakhpuri
<p>है भोलापन बहुत अच्छा मगर छल भी समझ पाए<br/>रचो जग तुम जहाँ बचपन भी इतना तो सयाना हो<br/>*****<br/>खुशी हो बाँटनी जब भी न सोचो गैर अपनों की<br/>मगर सौ बार तुम सोचो किसी का दिल दुखाना हो</p>
<p></p>
<p>ये दो शेर बहुत पसंद आये! सुन्दर गजल पर ढेरों बधाईयां आदरणीय!</p>
<p>है भोलापन बहुत अच्छा मगर छल भी समझ पाए<br/>रचो जग तुम जहाँ बचपन भी इतना तो सयाना हो<br/>*****<br/>खुशी हो बाँटनी जब भी न सोचो गैर अपनों की<br/>मगर सौ बार तुम सोचो किसी का दिल दुखाना हो</p>
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<p>ये दो शेर बहुत पसंद आये! सुन्दर गजल पर ढेरों बधाईयां आदरणीय!</p> लिखा था जब सफर किस्मत में फिर…tag:openbooks.ning.com,2015-04-05:5170231:Comment:6382682015-04-05T12:57:07.413ZDr. Vijai Shankerhttps://openbooks.ning.com/profile/DrVijaiShanker
लिखा था जब सफर किस्मत में फिर कैसे ठहर जाता<br />
भले ही दिल किसी का फिर ‘मुसाफिर’ को ठिकाना हो<br />
बहुत खूब, बधाई। आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सादर
लिखा था जब सफर किस्मत में फिर कैसे ठहर जाता<br />
भले ही दिल किसी का फिर ‘मुसाफिर’ को ठिकाना हो<br />
बहुत खूब, बधाई। आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सादर