Comments - रेत की दीवार वो कुछ ही पलों में ढह गया | - Open Books Online2024-03-29T10:43:07Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A636380&xn_auth=noआदरणीय मिथिलेश जी और आदरणीय ज…tag:openbooks.ning.com,2015-04-02:5170231:Comment:6371752015-04-02T04:24:52.822ZShyam Narain Vermahttps://openbooks.ning.com/profile/ShyamNarainVerma
<p>आदरणीय मिथिलेश जी और आदरणीय जीतेन्द्र जी रचना की सराहना के लिए मैं आप का तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूँ |<br/>सादर</p>
<p>आदरणीय मिथिलेश जी और आदरणीय जीतेन्द्र जी रचना की सराहना के लिए मैं आप का तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूँ |<br/>सादर</p> बहुत सुंदर गजल प्रस्तुति ,आदर…tag:openbooks.ning.com,2015-04-02:5170231:Comment:6373372015-04-02T04:18:45.545Zजितेन्द्र पस्टारियाhttps://openbooks.ning.com/profile/JitendraPastariya
<p>बहुत सुंदर गजल प्रस्तुति ,आदरणीय श्याम जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें</p>
<p>बहुत सुंदर गजल प्रस्तुति ,आदरणीय श्याम जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें</p> आदरणीय श्याम जी सुन्दर प्रस्त…tag:openbooks.ning.com,2015-04-01:5170231:Comment:6370742015-04-01T18:13:40.584Zमिथिलेश वामनकरhttps://openbooks.ning.com/profile/mw
<p>आदरणीय श्याम जी सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई </p>
<p>आदरणीय श्याम जी सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई </p> आदरणीय डा. विजय शंकर जी और…tag:openbooks.ning.com,2015-04-01:5170231:Comment:6369022015-04-01T11:02:02.376ZShyam Narain Vermahttps://openbooks.ning.com/profile/ShyamNarainVerma
<p>आदरणीय डा. विजय शंकर जी और डा. गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी रचना भाव पसंद करने के लिए आप लोगों का बहुत बहुत आभार |</p>
<p>आदरणीय डा. विजय शंकर जी और डा. गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी रचना भाव पसंद करने के लिए आप लोगों का बहुत बहुत आभार |</p> आ० वर्मा जी
बेहतरीन गजल . सा…tag:openbooks.ning.com,2015-04-01:5170231:Comment:6369762015-04-01T07:49:33.353Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आ० वर्मा जी</p>
<p>बेहतरीन गजल . सादर .</p>
<p>आ० वर्मा जी</p>
<p>बेहतरीन गजल . सादर .</p> राह चलते दिल मिला फिर याद बनक…tag:openbooks.ning.com,2015-04-01:5170231:Comment:6368562015-04-01T05:17:09.928ZDr. Vijai Shankerhttps://openbooks.ning.com/profile/DrVijaiShanker
राह चलते दिल मिला फिर याद बनकर रह गया |<br />
ख़्वाब जो देखा कभी वो अश्क बनकर बह गया |<br />
बहुत खूब , बधाई , आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी , सादर।
राह चलते दिल मिला फिर याद बनकर रह गया |<br />
ख़्वाब जो देखा कभी वो अश्क बनकर बह गया |<br />
बहुत खूब , बधाई , आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी , सादर।