Comments - नवगीत : दिन में दिखते तारे - Open Books Online2024-03-29T12:07:00Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A601550&xn_auth=noआदरणीय Saurabh Pandey जी निर्…tag:openbooks.ning.com,2015-01-07:5170231:Comment:6031932015-01-07T10:16:16.411Zharivallabh sharmahttps://openbooks.ning.com/profile/harivallabhsharma
<p>आदरणीय Saurabh Pandey जी निर्देशानुसार "यक्ष प्रश्न थमाकर" ..की जगह .."उलझे प्रश्न थमाकर" किया जाकर मात्रा दोष समन किया है...आपके सुयोग्य परामर्श का ह्रदय से ऋणी हूँ..सादर.</p>
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<p>आदरणीय Saurabh Pandey जी निर्देशानुसार "यक्ष प्रश्न थमाकर" ..की जगह .."उलझे प्रश्न थमाकर" किया जाकर मात्रा दोष समन किया है...आपके सुयोग्य परामर्श का ह्रदय से ऋणी हूँ..सादर.</p>
<p></p> //आपके निर्देशानुसार त्रिकलों…tag:openbooks.ning.com,2015-01-04:5170231:Comment:6027392015-01-04T17:11:19.437ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>//आपके निर्देशानुसार त्रिकलों के योग से षठकल और 7 मात्रिकता का लाभ समझा..और दुरुस्त भी कर दिया है. //<br></br><br></br>नहीं भाईजी, दुरुस्त कहाँ हुआ है ? आपने तो आभासी मात्रा को ही यथार्थ की मात्रा बना दिया है. <br></br>मैंने अपनी उस टिप्पणी में आगे यह भी कहा है - <em>लेकिन इस चरण को साधना ही होगा. मात्राओं को ऐसे आपरूप पैदा न होने दें.</em> <br></br><br></br>अर्थात, यदि उक्त चरण के सभी शब्दों की कुल मात्रा १२ हो तो ही सही ढंग का सुधार होगा. <br></br>सादर…<br></br><br></br></p>
<p>//आपके निर्देशानुसार त्रिकलों के योग से षठकल और 7 मात्रिकता का लाभ समझा..और दुरुस्त भी कर दिया है. //<br/><br/>नहीं भाईजी, दुरुस्त कहाँ हुआ है ? आपने तो आभासी मात्रा को ही यथार्थ की मात्रा बना दिया है. <br/>मैंने अपनी उस टिप्पणी में आगे यह भी कहा है - <em>लेकिन इस चरण को साधना ही होगा. मात्राओं को ऐसे आपरूप पैदा न होने दें.</em> <br/><br/>अर्थात, यदि उक्त चरण के सभी शब्दों की कुल मात्रा १२ हो तो ही सही ढंग का सुधार होगा. <br/>सादर<br/><br/></p>
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<div style="display: none;" id="__if72ru4rkjahiuyi_once"></div> आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपका…tag:openbooks.ning.com,2015-01-04:5170231:Comment:6024642015-01-04T13:40:35.083Zharivallabh sharmahttps://openbooks.ning.com/profile/harivallabhsharma
<p>आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपका सतत प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन लेखन को बल देता है..अनुकूल प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार..सादर.</p>
<p>आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपका सतत प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन लेखन को बल देता है..अनुकूल प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार..सादर.</p> आदरणीय Saurabh Pandey जी आपने…tag:openbooks.ning.com,2015-01-04:5170231:Comment:6026802015-01-04T13:38:19.343Zharivallabh sharmahttps://openbooks.ning.com/profile/harivallabhsharma
<p>आदरणीय Saurabh Pandey जी आपने कुशल मार्गदर्शन करते हुए रचना की उत्तम समालोचना की...वास्तव में आप जैसे गुणीजन ही काव्य को परिष्कृत करने हेतु कृत संकल्पित हैं..आपके निर्देशानुसार त्रिकलों के योग से षठकल और 7 मात्रिकता का लाभ समझा..और दुरुस्त भी कर दिया है..आपका यही अनुग्रह बना रहे..हार्दिक आभार..सादर ..</p>
<p>आदरणीय Saurabh Pandey जी आपने कुशल मार्गदर्शन करते हुए रचना की उत्तम समालोचना की...वास्तव में आप जैसे गुणीजन ही काव्य को परिष्कृत करने हेतु कृत संकल्पित हैं..आपके निर्देशानुसार त्रिकलों के योग से षठकल और 7 मात्रिकता का लाभ समझा..और दुरुस्त भी कर दिया है..आपका यही अनुग्रह बना रहे..हार्दिक आभार..सादर ..</p> आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया ज…tag:openbooks.ning.com,2015-01-04:5170231:Comment:6027222015-01-04T13:31:18.026Zharivallabh sharmahttps://openbooks.ning.com/profile/harivallabhsharma
<p>आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी आपका ह्रदय से आभार ,आपने सुन्दर व्याख्या कर रचना की सराहना की ..सादर.</p>
<p>आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी आपका ह्रदय से आभार ,आपने सुन्दर व्याख्या कर रचना की सराहना की ..सादर.</p> आदरणीय हरिवल्लभ भाई , बहुत सु…tag:openbooks.ning.com,2015-01-03:5170231:Comment:6023182015-01-03T13:30:58.647Zगिरिराज भंडारीhttps://openbooks.ning.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरणीय हरिवल्लभ भाई , बहुत सुन्दर नवगीत रचना की है , दिली बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>आदरणीय हरिवल्लभ भाई , बहुत सुन्दर नवगीत रचना की है , दिली बधाई स्वीकार करें ।</p> मजा आ गया, आदरणीय हरिभाईजी !…tag:openbooks.ning.com,2015-01-02:5170231:Comment:6020272015-01-02T18:52:04.517ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>मजा आ गया, आदरणीय हरिभाईजी ! .. ’सार छन्द’ का नवगीत में बहुत ही सुन्दर प्रयोग हुआ है.</p>
<p><br></br>शिल्प तो शिल्प, इस गीत का कथ्य, कथ्य के लिए प्रयुक्त इंगित, सबकुछ मनोहारी बन पड़ा है. यह बताने के लिए काफी है कि आपने नवगीत के मर्म को समझ लिया है. यही तो सार्थक रचनाकर्म का 'हेतु' है !<br></br>इस रचनाकर्म पर हृदयतल से बधाई स्वीकारें, आदरणीय.. <br></br><br></br>अलबत्ता, इस प्रस्तुति के शिल्प पर एक दो बातें अवश्य साझा करना चाहूँगा. अन्यथा आपके प्रयास का सुगढ़ परिमार्जन होने से रह जायेगा.<br></br><br></br><em>प्रश्न…</em></p>
<p>मजा आ गया, आदरणीय हरिभाईजी ! .. ’सार छन्द’ का नवगीत में बहुत ही सुन्दर प्रयोग हुआ है.</p>
<p><br/>शिल्प तो शिल्प, इस गीत का कथ्य, कथ्य के लिए प्रयुक्त इंगित, सबकुछ मनोहारी बन पड़ा है. यह बताने के लिए काफी है कि आपने नवगीत के मर्म को समझ लिया है. यही तो सार्थक रचनाकर्म का 'हेतु' है !<br/>इस रचनाकर्म पर हृदयतल से बधाई स्वीकारें, आदरणीय.. <br/><br/>अलबत्ता, इस प्रस्तुति के शिल्प पर एक दो बातें अवश्य साझा करना चाहूँगा. अन्यथा आपके प्रयास का सुगढ़ परिमार्जन होने से रह जायेगा.<br/><br/><em>प्रश्न यक्ष थमाकर.</em> .... ११ मात्राएँ, जबकि होनी थीं १२ मात्राएँ<br/>भाईजी, इतनी ही मात्राओं में आपने इस नवगीत के अन्य ’समचरणों’ को बाँधा है. कहना न होगा, ११ मात्राओं के कारण इस चरण की गेयता अवश्य अटपटी है. <br/><br/>यदि इस चरण को <strong>यक्ष प्रश्न थमा कर</strong> किया जाय तो गेयता सधी हुई दिखती है. जबकि मात्राएँ उतनी ही हैं. क्या कारण हो सक्ता है ? कारण है, शब्दों का ऐसा juxtaposition आभासी रूप से इस चरण को आवश्यक १२ मात्राएँ उपलब्ध करा दे रहा है. कैसे ? <strong>यक्ष प्रश्न</strong> यानि एक त्रिकल (यक्ष) पर एक और त्रिकल (प्रश्न) एक साथ जुड़कर षटकल ही नहीं बनाते, बल्कि एक मात्रा अधिक भी पैदा करते हैं भले आभासी रूप से ! और पूरे चरण के लिए आवश्यक १२ मात्राएँ मिल जाती हैं. तथा, गेयता सधी हुई प्रतीत होती है. देखिये -<br/><strong>यक्षप्रश्न</strong> = यक् (२) + षप् (२) + रश् (२) + न (१) = ७ मात्राएँ !<br/>जबकि, <strong>प्रश्न यक्ष</strong> से ऐसा सम्भव नहीं है. देखिये - <br/>प्रश्नयक्ष = प्रश् (२) + न (१) + यक् (२) + ष (१) = ६ मात्राएँ !<br/>लेकिन इस चरण को साधना ही होगा. मात्राओं को ऐसे आपरूप पैदा न होने दें.. .. :-))<br/><br/>दूसरी बात, <strong>बिन जल के क्या मीन जी रही.</strong> को क्या <strong>मीन जी रही क्या बिन जल के</strong> क्यों न कर दिया जाय ? इस चरण का चरणान्त सार छन्द के नियम को संतुष्ट करता दिखेगा, गेयता सहज भी हो जायेगी.</p>
<p>प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणं ? आप स्वयं देख लीजिये. <br/><br/>बहरहाल, आपकी इस प्रस्तुति ने मन मोह लिया है. <br/>पुनः बधाइयाँ व शुभकामनाएँ <br/><br/></p>
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<p>नवगीत के</p> दर्पण हमको रोज दिखाता,
एक फिल…tag:openbooks.ning.com,2015-01-02:5170231:Comment:6021292015-01-02T14:43:06.089Zजितेन्द्र पस्टारियाhttps://openbooks.ning.com/profile/JitendraPastariya
<p>दर्पण हमको रोज दिखाता,</p>
<p>एक फिल्म आँखों से,</p>
<p>पत्तों जैसे दिवस झर गए,</p>
<p>इन सूखी शाखों से.</p>
<p>पल क्षण कटे साल भी बीते.</p>
<p>सब कारे अँधियारे,</p>
<p>कैसे कटें विपत्ति के दिन..</p>
<p>दिन में दिखते तारे............बहुत ही मर्मस्पशी पंक्ति. सच ही कहा है विपत्तियों में भी यही हाल होते है. बधाई आपको आदरणीय हरि शर्मा जी</p>
<p>दर्पण हमको रोज दिखाता,</p>
<p>एक फिल्म आँखों से,</p>
<p>पत्तों जैसे दिवस झर गए,</p>
<p>इन सूखी शाखों से.</p>
<p>पल क्षण कटे साल भी बीते.</p>
<p>सब कारे अँधियारे,</p>
<p>कैसे कटें विपत्ति के दिन..</p>
<p>दिन में दिखते तारे............बहुत ही मर्मस्पशी पंक्ति. सच ही कहा है विपत्तियों में भी यही हाल होते है. बधाई आपको आदरणीय हरि शर्मा जी</p> आदरणीय khursheed khairadi साह…tag:openbooks.ning.com,2015-01-02:5170231:Comment:6021122015-01-02T14:04:13.818Zharivallabh sharmahttps://openbooks.ning.com/profile/harivallabhsharma
<p>आदरणीय khursheed khairadi साहब आप की कुशल समीक्षा एवं उत्साहवर्धन का ह्रदयतल से आभार..सादर </p>
<p>आदरणीय khursheed khairadi साहब आप की कुशल समीक्षा एवं उत्साहवर्धन का ह्रदयतल से आभार..सादर </p> आदरणीय somesh kumar जी आपकी स…tag:openbooks.ning.com,2015-01-02:5170231:Comment:6019052015-01-02T14:02:12.109Zharivallabh sharmahttps://openbooks.ning.com/profile/harivallabhsharma
<p>आदरणीय somesh kumar जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार..</p>
<p>आदरणीय somesh kumar जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार..</p>