Comments - ग़ज़ल - बोलिये किसको सुनायें.. // -- --सौरभ - Open Books Online2024-03-29T02:28:39Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A598711&xn_auth=noवाह ! काव्य सौन्दर्य का अनुपम…tag:openbooks.ning.com,2015-01-31:5170231:Comment:6131092015-01-31T09:46:02.173ZChhaya Shuklahttps://openbooks.ning.com/profile/ChhayaShukla
<p>वाह ! <br/>काव्य सौन्दर्य का अनुपम उदाहरण बधाई आपको आ. सौरभ जी <br/>सादर नमन !</p>
<p>वाह ! <br/>काव्य सौन्दर्य का अनुपम उदाहरण बधाई आपको आ. सौरभ जी <br/>सादर नमन !</p> आदरणीय सौरभ भईया, मतला इतना भ…tag:openbooks.ning.com,2014-12-28:5170231:Comment:6000482014-12-28T14:28:54.654ZEr. Ganesh Jee "Bagi"https://openbooks.ning.com/profile/GaneshJee
<p>आदरणीय सौरभ भईया, मतला इतना भारी है कि वो पूरी ग़ज़ल को अपने साथ आराम से बहा सकता है, यह कोई साधारण सोच नहीं है, माँ की गोद में एक भविष्य निश्चिन्त, सुरक्षित सोयी हुई है ..... आहा ! एक दृश्य आखों के सामने उत्पन्न हो जाता है, बहुत बहुत बधाई इस मतला पर .</p>
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<p>//<span>अब नहीं छिड़ता महाभारत कुटिल की चाल पर</span><span> </span><br></br><span>अब लिये पासे स्वयं है द्रौपदी सोयी हुई//<br></br><br></br>क्या कहने, कितना बदल गया इतिहास, वाह वाह, जबरदस्त . </span></p>
<p>अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय . दाद देता…</p>
<p>आदरणीय सौरभ भईया, मतला इतना भारी है कि वो पूरी ग़ज़ल को अपने साथ आराम से बहा सकता है, यह कोई साधारण सोच नहीं है, माँ की गोद में एक भविष्य निश्चिन्त, सुरक्षित सोयी हुई है ..... आहा ! एक दृश्य आखों के सामने उत्पन्न हो जाता है, बहुत बहुत बधाई इस मतला पर .</p>
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<p>//<span>अब नहीं छिड़ता महाभारत कुटिल की चाल पर</span><span> </span><br/><span>अब लिये पासे स्वयं है द्रौपदी सोयी हुई//<br/><br/>क्या कहने, कितना बदल गया इतिहास, वाह वाह, जबरदस्त . </span></p>
<p>अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय . दाद देता हूँ इस ग़ज़ल के होने पर .</p>
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<div style="display: none;" id="__hggasdgjhsagd_once"></div> आदरणीय दिनेशजी, आपको मतले पर…tag:openbooks.ning.com,2014-12-28:5170231:Comment:6002462014-12-28T14:25:10.498ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय दिनेशजी, आपको मतले पर हुआ प्रयास पसंद आया है तो यह मेरे लिए भी तोषदायी है. हार्दिक धन्यवाद, भाईजी. <br/><br/>एक अनुरोध :<br/>व्यक्तिगत बातें या कोई अन्य सुझाव-सलाह आदि आप किसी प्रस्तुति के थ्रेड पर न पूछा करें. अन्यथा आपका सदा स्वागत है. <br/>सादर<br/><br/></p>
<p>आदरणीय दिनेशजी, आपको मतले पर हुआ प्रयास पसंद आया है तो यह मेरे लिए भी तोषदायी है. हार्दिक धन्यवाद, भाईजी. <br/><br/>एक अनुरोध :<br/>व्यक्तिगत बातें या कोई अन्य सुझाव-सलाह आदि आप किसी प्रस्तुति के थ्रेड पर न पूछा करें. अन्यथा आपका सदा स्वागत है. <br/>सादर<br/><br/></p> भाई राहुल डांगीजी, आपको मेरा…tag:openbooks.ning.com,2014-12-28:5170231:Comment:6002412014-12-28T14:19:51.616ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>भाई राहुल डांगीजी, आपको मेरा प्रयास रुचिकर लगा यह मेरे लिए भी संतोष का कारण है. <br/>हार्दिक धन्यवाद.<br/><br/></p>
<p>भाई राहुल डांगीजी, आपको मेरा प्रयास रुचिकर लगा यह मेरे लिए भी संतोष का कारण है. <br/>हार्दिक धन्यवाद.<br/><br/></p> आदरणीय गिरिराजभाई, वस्तुतः इस…tag:openbooks.ning.com,2014-12-28:5170231:Comment:6003312014-12-28T14:17:11.579ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय गिरिराजभाई, वस्तुतः इस ग़ज़ल के काफ़िये का निर्धारण मैंने नहीं किया है. यह वस्तुतः एक तरही ग़ज़ल है. इस ग़ज़ल के शेर आपको रुचिकर लगे तो यह मेरे प्रयास को मिला अनुमोदन है. <br/>आदरणीय, प्रस्तुतियों पर आपकी उपस्थिति उत्साहित करती है. <br/>सादर धन्यवाद<br/><br/></p>
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<p>आदरणीय गिरिराजभाई, वस्तुतः इस ग़ज़ल के काफ़िये का निर्धारण मैंने नहीं किया है. यह वस्तुतः एक तरही ग़ज़ल है. इस ग़ज़ल के शेर आपको रुचिकर लगे तो यह मेरे प्रयास को मिला अनुमोदन है. <br/>आदरणीय, प्रस्तुतियों पर आपकी उपस्थिति उत्साहित करती है. <br/>सादर धन्यवाद<br/><br/></p>
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<div style="display: none;" id="__hggasdgjhsagd_once"></div> आदरणीय श्याम नारायणजी, हार्दि…tag:openbooks.ning.com,2014-12-28:5170231:Comment:6002382014-12-28T14:13:11.332ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय श्याम नारायणजी, हार्दिक धन्यवाद<br/><br/></p>
<p>आदरणीय श्याम नारायणजी, हार्दिक धन्यवाद<br/><br/></p> भाई जितेन्द्रजी, आपको प्रस्तु…tag:openbooks.ning.com,2014-12-28:5170231:Comment:6001712014-12-28T14:12:42.794ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>भाई जितेन्द्रजी, आपको प्रस्तुति तोषदायी लगी, यह रचनाकर्म का सहज होना जताता है.</p>
<p>मैं धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ.<br/><br/></p>
<p>भाई जितेन्द्रजी, आपको प्रस्तुति तोषदायी लगी, यह रचनाकर्म का सहज होना जताता है.</p>
<p>मैं धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ.<br/><br/></p> आदरणीया वन्दनाजी, आप जैसी वैच…tag:openbooks.ning.com,2014-12-28:5170231:Comment:6000452014-12-28T14:10:37.424ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीया वन्दनाजी, आप जैसी वैचारिक रचनाकर्मियों द्वारा किसी प्रस्तुति पर सराहना पाना सदा ही संतुष्ट करता है. <br/>हार्दिक धन्यवाद<br/><br/></p>
<p>आदरणीया वन्दनाजी, आप जैसी वैचारिक रचनाकर्मियों द्वारा किसी प्रस्तुति पर सराहना पाना सदा ही संतुष्ट करता है. <br/>हार्दिक धन्यवाद<br/><br/></p> भाई अजय जी, इस ग़ज़ल के परिप्रे…tag:openbooks.ning.com,2014-12-28:5170231:Comment:6000432014-12-28T14:08:34.280ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>भाई अजय जी, इस ग़ज़ल के परिप्रेक्ष्य में भाषा व्याकरण को सीखने की अपेक्षा क्या अनुचित नहीं होगी ?</p>
<p>आपने जिस शेर को उद्धृत किया है, आप आश्वस्त हों, उसमें भाषायी तौर पर कोई गलती नहीं है. <br/>शुभ-शुभ<br/><br/></p>
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<p>भाई अजय जी, इस ग़ज़ल के परिप्रेक्ष्य में भाषा व्याकरण को सीखने की अपेक्षा क्या अनुचित नहीं होगी ?</p>
<p>आपने जिस शेर को उद्धृत किया है, आप आश्वस्त हों, उसमें भाषायी तौर पर कोई गलती नहीं है. <br/>शुभ-शुभ<br/><br/></p>
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<div style="display: none;" id="__hggasdgjhsagd_once"></div> इस प्रस्तुति पर नये सदस्य भाई…tag:openbooks.ning.com,2014-12-28:5170231:Comment:6002372014-12-28T13:59:08.915ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>इस प्रस्तुति पर नये सदस्य भाई अनुराग प्रतीक तथा भाई शिज्जू के बीच की बातचीत अभिभूत कर गयी.</p>
<p></p>
<p>ऐसी चर्चाएँ इस मंच की प्रासंगिकता का स्वयं बखान कर रही हैं. मैं भाई अनुराग प्रतीक के प्रश्नों पर भाई शिज्जू के कहे का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ. <br></br><br></br>इस क्रम में प्रथम दृष्ट्या मुझे जो कुछ समझ में आया है उस बिना पर कुछ बातें कहनी हैं -- <br></br>१. भाई अनुराग प्रतीक ग़ज़ल के संदर्भ में जितने भोले प्रतीत हो रहे हैं, वस्तुतः आपकी शैली इसके विपरीत लग रही है. <br></br><br></br>२. भाई शिज्जू जी, जो…</p>
<p>इस प्रस्तुति पर नये सदस्य भाई अनुराग प्रतीक तथा भाई शिज्जू के बीच की बातचीत अभिभूत कर गयी.</p>
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<p>ऐसी चर्चाएँ इस मंच की प्रासंगिकता का स्वयं बखान कर रही हैं. मैं भाई अनुराग प्रतीक के प्रश्नों पर भाई शिज्जू के कहे का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ. <br/><br/>इस क्रम में प्रथम दृष्ट्या मुझे जो कुछ समझ में आया है उस बिना पर कुछ बातें कहनी हैं -- <br/>१. भाई अनुराग प्रतीक ग़ज़ल के संदर्भ में जितने भोले प्रतीत हो रहे हैं, वस्तुतः आपकी शैली इसके विपरीत लग रही है. <br/><br/>२. भाई शिज्जू जी, जो कि एक अत्यंत संयत रचनाकर्मी हैं, ने पद्य विधा की परम्परा के अनुरूप भाई अनुराग प्रतीक के प्रश्नों का समाधान करने का प्रयास किया है, जिसमें वे अवश्य सफल हुए हैं. किन्तु, जैसा मैंने ऊपर कहा है, उनका सामना भाई अनुराग प्रतीक की तथाकथित ’यथार्थवादी’ सोच से पड़ा है जो या तो पद्य रचनाओं के गहन जानकार हैं, या, इसके उलट पद्य रचनाओं के प्रतीकों के अर्थ सपाट शब्दों में परिभाषित होते देखना चाहते है. <br/><br/>३. भाई अनुराग अपने इंजीनियर होने या मूलतः विज्ञान के विद्यार्थी होने की ओट में पद्य विधाओं (यहाँ ग़ज़ल) में इंगितों के प्रयोग पर ’दो जमा दो बराबर चार’ के हिसाब से भावार्थ की चाहना रखते हैं. इसी संदर्भ में ’सूरज और सोनहिरनी’ वाले शेर को फेंटा गया है. <br/><br/>४. ’भोर’ शब्द वस्तुतः उन शब्दों की तरह है, जो पुल्लिंग और स्त्रीलिंग दोनों रूपों में प्रयुक्त होते हैं. यथा, चर्चा, किताब, आत्मा, पवन आदि. ऐसे शब्दों के प्रयोगों में प्रयुक्त भाषा का परिप्रेक्ष्य और उसकी परम्परा अवश्य प्रभावी रहती है. <br/><br/>५. भाई अनुराग प्रतीक के कथ्य ’<em>मैं अरूज़ नहीं जनता .लोगों ने बताया कि गज़ल में सरल वाक्य हो तो रवानी आती है</em>’ का मैं हर तरह से अनुमोदन करूँगा. इसके साथ ही, यदि वे वस्तुतः ’ग़ज़ल सीखने के क्रम’ में हैं तो उन्हें पूरी गंभीरता से सलाह देना चाहूँगा, कि वे जितना बन सके उतने ग़ज़ल-संग्रहों और उपलब्ध विशिष्ट शेरों के संकलनों को पढ़ने की कोशिश करें. ऐसी पुस्तकों और ऐसे ग़ज़ल-संग्रहों की कमी नहीं है. <br/><br/>६. बिना पूरी जानकारी के ऐसी प्रतिक्रियाएँ न केवल व्यक्तिगत आरोप की तरह लगती हैं. बल्कि किसी मंच पर हड़बोंग मचाने जैसी लगती हैं. यदि जानकारी प्राप्त करने की वस्तुतः <strong>सात्विक इच्छा</strong> है तो इस मंच पर सभी का सदा स्वागत है. लेकिन ऐसे प्रश्नों की भाषा ’चुटीली’ नहीं होती. भाई अनुराग प्रतीक की टिप्पणी में अंतर्निहित इसी ’चुटीलेपन’ को महसूस कर संभवतः भाई शिज्जू ने प्रत्युत्तर हेतु अपनी उपस्थिति बनायी है. <br/><br/>किन्तु, इन सारी कवायद में शुद्ध लाभ पाठकों और सदस्यों का हुआ है. यही तो ऐसी चर्चाओं का सकारात्मक पहलू हुआ करता है. <br/><br/>सादर<br/><br/></p>