Comments - ये कैसी धुन है ! - Open Books Online2024-03-28T10:20:57Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A572247&xn_auth=noबहुत सुंदर .बेह्तरीन अभिव्यक्…tag:openbooks.ning.com,2014-12-03:5170231:Comment:5924402014-12-03T09:44:38.631ZMadan Mohan saxenahttps://openbooks.ning.com/profile/MadanMohansaxena
<p>बहुत सुंदर .बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.</p>
<p>बहुत सुंदर .बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.</p> //आप की प्रतिक्रिया के बाद मै…tag:openbooks.ning.com,2014-09-09:5170231:Comment:5740082014-09-09T15:47:43.672ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>//आप की प्रतिक्रिया के बाद मैंने गीत के शिल्प पर पुन: गौर किया और एक स्थान पर किंचित परिवर्तन कर पाया हूँ, पर अब और कुछ नहीं हो सकता //</p>
<p></p>
<p>आपकी रचना १६-१४ की यति पर मात्रिक छन्द की तरह चल रही है. इसीको प्रत्येक बन्द में निभाना है.</p>
<p>संशोधन के बाद इसे बहुत हद तक निभाया गया है. मुखड़े के दोनों पदों या पंक्तियों में १६-१४ की यति है जबकि बन्द में १६-१६ यति के बाद अगले पद में आपने १६-१४ को बना रखा है. यह मात्रिक प्रबन्ध एक स्वीकार्य स्थिति बनाता है.</p>
<p>सादर धन्यवाद…</p>
<p>//आप की प्रतिक्रिया के बाद मैंने गीत के शिल्प पर पुन: गौर किया और एक स्थान पर किंचित परिवर्तन कर पाया हूँ, पर अब और कुछ नहीं हो सकता //</p>
<p></p>
<p>आपकी रचना १६-१४ की यति पर मात्रिक छन्द की तरह चल रही है. इसीको प्रत्येक बन्द में निभाना है.</p>
<p>संशोधन के बाद इसे बहुत हद तक निभाया गया है. मुखड़े के दोनों पदों या पंक्तियों में १६-१४ की यति है जबकि बन्द में १६-१६ यति के बाद अगले पद में आपने १६-१४ को बना रखा है. यह मात्रिक प्रबन्ध एक स्वीकार्य स्थिति बनाता है.</p>
<p>सादर धन्यवाद आदरणीय</p>
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<p></p> आदरणीया अनुपमा जी,
गीत की सरा…tag:openbooks.ning.com,2014-09-09:5170231:Comment:5739182014-09-09T13:46:32.782ZSantlal Karunhttps://openbooks.ning.com/profile/SantlalKarun
<p>आदरणीया अनुपमा जी,</p>
<p>गीत की सराहना के लिए हार्दिक आभार !</p>
<p>आदरणीया अनुपमा जी,</p>
<p>गीत की सराहना के लिए हार्दिक आभार !</p> अति सुंदर गीत , सुंदर भावों क…tag:openbooks.ning.com,2014-09-07:5170231:Comment:5734732014-09-07T12:13:22.522Zannapurna bajpaihttps://openbooks.ning.com/profile/annapurnabajpai
<p>अति सुंदर गीत , सुंदर भावों को समेटे हुये , आपको बहुत बधाई आ0 संत लाल जी </p>
<p>अति सुंदर गीत , सुंदर भावों को समेटे हुये , आपको बहुत बधाई आ0 संत लाल जी </p> आदरणीय महिमा श्री जी,
गीत पर…tag:openbooks.ning.com,2014-09-07:5170231:Comment:5734532014-09-07T09:52:04.292ZSantlal Karunhttps://openbooks.ning.com/profile/SantlalKarun
<p>आदरणीय महिमा श्री जी,</p>
<p>गीत पर प्रशंसात्मक भावों के प्रति हार्दिक आभार !</p>
<p>आदरणीय महिमा श्री जी,</p>
<p>गीत पर प्रशंसात्मक भावों के प्रति हार्दिक आभार !</p> आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी,
गीत…tag:openbooks.ning.com,2014-09-07:5170231:Comment:5734502014-09-07T09:49:45.938ZSantlal Karunhttps://openbooks.ning.com/profile/SantlalKarun
<p>आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी,</p>
<p>गीत पर श्लाघात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार !</p>
<p>आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी,</p>
<p>गीत पर श्लाघात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार !</p> आदरणीय नरेन्द्र सिंह चौहान जी…tag:openbooks.ning.com,2014-09-07:5170231:Comment:5733032014-09-07T09:48:16.968ZSantlal Karunhttps://openbooks.ning.com/profile/SantlalKarun
<p>आदरणीय नरेन्द्र सिंह चौहान जी,</p>
<p>गीत की सराहना के लिए हार्दिक आभार !</p>
<p>आदरणीय नरेन्द्र सिंह चौहान जी,</p>
<p>गीत की सराहना के लिए हार्दिक आभार !</p> आदरणीय गिरिराज भंडारी जी,
गीत…tag:openbooks.ning.com,2014-09-07:5170231:Comment:5734492014-09-07T09:46:43.903ZSantlal Karunhttps://openbooks.ning.com/profile/SantlalKarun
<p>आदरणीय गिरिराज भंडारी जी,</p>
<p>गीत को लेकर आप के प्रेरक उद्गार के प्रति हार्दिक आभार !</p>
<p>आदरणीय गिरिराज भंडारी जी,</p>
<p>गीत को लेकर आप के प्रेरक उद्गार के प्रति हार्दिक आभार !</p> आदरणीया वन्दना जी,
गीत की प्र…tag:openbooks.ning.com,2014-09-07:5170231:Comment:5734482014-09-07T09:44:35.734ZSantlal Karunhttps://openbooks.ning.com/profile/SantlalKarun
<p>आदरणीया वन्दना जी,</p>
<p>गीत की प्रशंसा के लिए सहृदय आभार !</p>
<p>आदरणीया वन्दना जी,</p>
<p>गीत की प्रशंसा के लिए सहृदय आभार !</p> आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी,
गीतपर…tag:openbooks.ning.com,2014-09-07:5170231:Comment:5734452014-09-07T09:42:38.925ZSantlal Karunhttps://openbooks.ning.com/profile/SantlalKarun
<p>आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी,</p>
<p>गीतपरक भावभूमि, संदर्भगत तथ्य और उसके के मर्म की आनुभूतिक प्रतिक्रिया के लिए हृदयपूर्वक आभार ! आप की प्रतिक्रिया के बाद मैंने गीत के शिल्प पर पुन: गौर किया और एक स्थान पर किंचित परिवर्तन कर पाया हूँ, पर अब और कुछ नहीं हो सकता | </p>
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<p>सादर !</p>
<p>आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी,</p>
<p>गीतपरक भावभूमि, संदर्भगत तथ्य और उसके के मर्म की आनुभूतिक प्रतिक्रिया के लिए हृदयपूर्वक आभार ! आप की प्रतिक्रिया के बाद मैंने गीत के शिल्प पर पुन: गौर किया और एक स्थान पर किंचित परिवर्तन कर पाया हूँ, पर अब और कुछ नहीं हो सकता | </p>
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<p>सादर !</p>