Comments - राह देखी सूर्य की भर रात हमने - ( गजल ) - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’ - Open Books Online2024-03-29T10:24:11Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A570333&xn_auth=noआदरणीय भाई, सन्तलाल जी, गजल क…tag:openbooks.ning.com,2014-09-06:5170231:Comment:5732352014-09-06T05:37:01.008Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आदरणीय भाई, सन्तलाल जी, गजल की प्रशंसा और स्नेहाशीष के लिए हार्दिक आभार ।</p>
<p>आदरणीय भाई, सन्तलाल जी, गजल की प्रशंसा और स्नेहाशीष के लिए हार्दिक आभार ।</p> आदरणीय भाई गिरिराज जी सर्वप्र…tag:openbooks.ning.com,2014-09-06:5170231:Comment:5732342014-09-06T05:30:23.215Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p><br></br>आदरणीय भाई गिरिराज जी सर्वप्रथम गजल पर अपनी प्रतिक्रिया द्वारा उत्साहवर्धन करने हेतु धन्यवाद स्वीकारें । आपने अपनी टिप्पणी में जिस बात का स्पष्टीकरण चाहा है वह यही है कि दोष देवताओं ने मढ़ा उन लोगों पर जिनके हाथों में सिंधु मथते हुए छाला पड़ गया । शायद मेरे सम्प्रेषण में कोई कमी रह गयी है उससे आपको दुविधा हो गयी । <br></br>क्या यहां पर इसे इस प्रकार करने से भाव स्पष्ट हो रहा है या नहीं मार्गदर्शन करें ।</p>
<p><br></br>देवताओं ! दोष मढ़ डाला हमारे // देवता ने दोष मढ़ डाला …</p>
<p><br/>आदरणीय भाई गिरिराज जी सर्वप्रथम गजल पर अपनी प्रतिक्रिया द्वारा उत्साहवर्धन करने हेतु धन्यवाद स्वीकारें । आपने अपनी टिप्पणी में जिस बात का स्पष्टीकरण चाहा है वह यही है कि दोष देवताओं ने मढ़ा उन लोगों पर जिनके हाथों में सिंधु मथते हुए छाला पड़ गया । शायद मेरे सम्प्रेषण में कोई कमी रह गयी है उससे आपको दुविधा हो गयी । <br/>क्या यहां पर इसे इस प्रकार करने से भाव स्पष्ट हो रहा है या नहीं मार्गदर्शन करें ।</p>
<p><br/>देवताओं ! दोष मढ़ डाला हमारे // देवता ने दोष मढ़ डाला हमारे</p> आदरणीय भाई जितंेद्र जी , गजल…tag:openbooks.ning.com,2014-09-06:5170231:Comment:5733262014-09-06T05:29:22.212Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p><br/>आदरणीय भाई जितंेद्र जी , गजल पर आपकी उपस्थिति से जो उत्साहवर्धन हुआ उसके हार्दिक धन्यवाद ।</p>
<p><br/>आदरणीय भाई जितंेद्र जी , गजल पर आपकी उपस्थिति से जो उत्साहवर्धन हुआ उसके हार्दिक धन्यवाद ।</p> आदरणीय भाई गोपाल नारणन जी निर…tag:openbooks.ning.com,2014-09-06:5170231:Comment:5733252014-09-06T05:29:06.067Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p><br/>आदरणीय भाई गोपाल नारणन जी निरंतर उत्साह वर्धन और स्नेहाशीष के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद ।</p>
<p><br/>आदरणीय भाई गोपाल नारणन जी निरंतर उत्साह वर्धन और स्नेहाशीष के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद ।</p> आदरणीय भाई श्याम नारायन जी गज…tag:openbooks.ning.com,2014-09-06:5170231:Comment:5731362014-09-06T05:28:53.778Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आदरणीय भाई श्याम नारायन जी गजल का अनुमोदन करने हेतु हार्दिक धन्यवाद ।</p>
<p>आदरणीय भाई श्याम नारायन जी गजल का अनुमोदन करने हेतु हार्दिक धन्यवाद ।</p> आदरणीय लक्षमण धामी जी,
इस सुन…tag:openbooks.ning.com,2014-09-01:5170231:Comment:5722642014-09-01T11:56:09.876ZSantlal Karunhttps://openbooks.ning.com/profile/SantlalKarun
<p>आदरणीय लक्षमण धामी जी,</p>
<p>इस सुन्दर हिन्दी ग़ज़ल के लिए हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ ! </p>
<p>आदरणीय लक्षमण धामी जी,</p>
<p>इस सुन्दर हिन्दी ग़ज़ल के लिए हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ ! </p> आदरणीय लक्ष्मण भाई , एक और बढ़…tag:openbooks.ning.com,2014-09-01:5170231:Comment:5723232014-09-01T11:03:42.377Zगिरिराज भंडारीhttps://openbooks.ning.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरणीय लक्ष्मण भाई , एक और बढ़िया ग़ज़ल की रचना के लिए बधाइयाँ |</p>
<p>आदरणीय - देवताओं दोष मढ़ डाला हमारे , इस मिसरे में आप क्या कहना चाहते हैं , समझ नहीं पाया --</p>
<p>१-- हमारे देवताओं पर दोष मढे गए , २ - देवताओं ने हम पर दोष मढ़ दिए , ३ , हमारे शब्द किस के लिए उपयोग हुआ है , जिसके हाथ में छाला पडा</p>
<p>इन तीनो बातों का केवल अंदाजा कगाना पड़ रहा है | हो सकता है मेरी समझ में नहीं आ रही हो , पर औरों को आ रही हो | अगर ऐसा है तो क्षमा करेंगे |</p>
<p>आदरणीय लक्ष्मण भाई , एक और बढ़िया ग़ज़ल की रचना के लिए बधाइयाँ |</p>
<p>आदरणीय - देवताओं दोष मढ़ डाला हमारे , इस मिसरे में आप क्या कहना चाहते हैं , समझ नहीं पाया --</p>
<p>१-- हमारे देवताओं पर दोष मढे गए , २ - देवताओं ने हम पर दोष मढ़ दिए , ३ , हमारे शब्द किस के लिए उपयोग हुआ है , जिसके हाथ में छाला पडा</p>
<p>इन तीनो बातों का केवल अंदाजा कगाना पड़ रहा है | हो सकता है मेरी समझ में नहीं आ रही हो , पर औरों को आ रही हो | अगर ऐसा है तो क्षमा करेंगे |</p> वाह! क्या खूब गजल कही है आपने…tag:openbooks.ning.com,2014-08-31:5170231:Comment:5718432014-08-31T06:42:58.481Zजितेन्द्र पस्टारियाhttps://openbooks.ning.com/profile/JitendraPastariya
<p>वाह! क्या खूब गजल कही है आपने आदरणीय लक्ष्मण जी. हर एक शेर तारीफ़ के काबिल हुआ है. तहे दिल से बधाई आपको</p>
<p>वाह! क्या खूब गजल कही है आपने आदरणीय लक्ष्मण जी. हर एक शेर तारीफ़ के काबिल हुआ है. तहे दिल से बधाई आपको</p> धामी जी
अच्छी गजल कही आपने …tag:openbooks.ning.com,2014-08-29:5170231:Comment:5707292014-08-29T06:55:41.105Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>धामी जी</p>
<p>अच्छी गजल कही आपने i</p>
<p>धूर्तता अपनी छिपाने के लिए क्यों<br/>देवताओं दोष मढ़ डाला हमारे</p>
<p>धामी जी</p>
<p>अच्छी गजल कही आपने i</p>
<p>धूर्तता अपनी छिपाने के लिए क्यों<br/>देवताओं दोष मढ़ डाला हमारे</p> सुन्दर गज़ल .... सादर बधाई..…tag:openbooks.ning.com,2014-08-27:5170231:Comment:5704252014-08-27T11:01:36.192ZShyam Narain Vermahttps://openbooks.ning.com/profile/ShyamNarainVerma
<table cellspacing="0" border="0">
<colgroup width="408"></colgroup><tbody><tr><td height="20" align="left" valign="bottom"><font color="#000000">सुन्दर गज़ल .... सादर बधाई.....</font></td>
</tr>
</tbody>
</table>
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<colgroup width="408"></colgroup><tbody><tr><td height="20" align="left" valign="bottom"><font color="#000000">सुन्दर गज़ल .... सादर बधाई.....</font></td>
</tr>
</tbody>
</table>