Comments - प्रेम पारावार - Open Books Online2024-03-28T13:50:53Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A566348&xn_auth=noपवन जी
आपका आभार itag:openbooks.ning.com,2014-08-22:5170231:Comment:5693512014-08-22T16:13:13.340Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
पवन जी<br />
आपका आभार i
पवन जी<br />
आपका आभार i प्रणाम सर..... बहुत सुन्दर प…tag:openbooks.ning.com,2014-08-22:5170231:Comment:5692702014-08-22T09:38:20.919ZPawan Kumarhttps://openbooks.ning.com/profile/PawanKumar
<p> प्रणाम सर..... बहुत सुन्दर पंक्तियां हैं , और चुनिन्दा शब्दों का मेल कितना है...बधाई स्वीकार करें।</p>
<p> प्रणाम सर..... बहुत सुन्दर पंक्तियां हैं , और चुनिन्दा शब्दों का मेल कितना है...बधाई स्वीकार करें।</p> विजय जी
आपका ह्रदय से आभार् प…tag:openbooks.ning.com,2014-08-13:5170231:Comment:5673202014-08-13T14:49:24.979Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>विजय जी</p>
<p>आपका ह्रदय से आभार् प्रकट करता हूँ</p>
<p>विजय जी</p>
<p>आपका ह्रदय से आभार् प्रकट करता हूँ</p> इतनी मनमोहक रचनावली में इतने…tag:openbooks.ning.com,2014-08-13:5170231:Comment:5670042014-08-13T08:52:38.451Zविजय मिश्रhttps://openbooks.ning.com/profile/37jicf27kggmy
इतनी मनमोहक रचनावली में इतने सुंदर शब्द चयन के साथ इतने हृदयस्पर्शी भाव व्यक्त किये हैं कि मन पढकर गदगद हो गया |<br />
"अगम है प्रेम पारावार फिर भी प्रिये पतवार लेकर आ गया हूँ |"<br />
ईश्वर के समक्ष स्वेम को व्यक्त करने केलिए इससे सुंदर और क्या अभिव्यक्त हो सकता है ! हार्दिक आभार श्रीगोपालजी |
इतनी मनमोहक रचनावली में इतने सुंदर शब्द चयन के साथ इतने हृदयस्पर्शी भाव व्यक्त किये हैं कि मन पढकर गदगद हो गया |<br />
"अगम है प्रेम पारावार फिर भी प्रिये पतवार लेकर आ गया हूँ |"<br />
ईश्वर के समक्ष स्वेम को व्यक्त करने केलिए इससे सुंदर और क्या अभिव्यक्त हो सकता है ! हार्दिक आभार श्रीगोपालजी | जवाहर जी
आपका आभार प्रकट करता…tag:openbooks.ning.com,2014-08-13:5170231:Comment:5670232014-08-13T05:07:28.237Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>जवाहर जी</p>
<p>आपका आभार प्रकट करता हूँ i</p>
<p>जवाहर जी</p>
<p>आपका आभार प्रकट करता हूँ i</p> नयन ने काव्य करुणा के …tag:openbooks.ning.com,2014-08-13:5170231:Comment:5670182014-08-13T04:05:54.088ZJAWAHAR LAL SINGHhttps://openbooks.ning.com/profile/JAWAHARLALSINGH
<p>नयन ने काव्य करुणा के रचे हैं</p>
<p>कौन से पाठ्यक्रम इससे बचे हैं</p>
<p>किसी कवि ने इन्हें जब गुनगुनाया</p>
<p>लाज ने तोड़ डाले सींकचे हैं</p>
<p>गीत संसार को ऐसे न भाते तरह जैसे कि मै सरसा गया हूँ I</p>
<p>पंक्तियाँ मुझे बेहतर लगी. सादर!</p>
<p>नयन ने काव्य करुणा के रचे हैं</p>
<p>कौन से पाठ्यक्रम इससे बचे हैं</p>
<p>किसी कवि ने इन्हें जब गुनगुनाया</p>
<p>लाज ने तोड़ डाले सींकचे हैं</p>
<p>गीत संसार को ऐसे न भाते तरह जैसे कि मै सरसा गया हूँ I</p>
<p>पंक्तियाँ मुझे बेहतर लगी. सादर!</p> धामी जी
यहाँ हम सब मिलकर सीखत…tag:openbooks.ning.com,2014-08-12:5170231:Comment:5668042014-08-12T14:56:36.009Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>धामी जी</p>
<p>यहाँ हम सब मिलकर सीखते है i आपका बहुत बहुत आभार i</p>
<p>धामी जी</p>
<p>यहाँ हम सब मिलकर सीखते है i आपका बहुत बहुत आभार i</p> जीतू भाई i
आभारtag:openbooks.ning.com,2014-08-12:5170231:Comment:5668632014-08-12T06:20:31.706Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>जीतू भाई i</p>
<p>आभार</p>
<p>जीतू भाई i</p>
<p>आभार</p> आ० भाई गोपाल नारायण जी , इस स…tag:openbooks.ning.com,2014-08-12:5170231:Comment:5666872014-08-12T06:20:14.883Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ० भाई गोपाल नारायण जी , इस सुन्दर भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई . मैं भी अनेकों शब्द के विषय में भ्रमित था . बहुत सी पाठ्य पुस्तकों और कथा कहानियों में भी अनेकों शब्द पढने को मिल जाता है .सहित्तिक पत्रिकाओं में भी .पर कभी किसी से पूछने या कहने का साहस नहीं कर पाया आज आ० भाई सौरभ जी और आपकी चर्चा ने भ्रम का पर्दा हटा दिया . इसके लिए आप दोनों का हार्दिक धन्यवाद .</p>
<p>आ० भाई गोपाल नारायण जी , इस सुन्दर भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई . मैं भी अनेकों शब्द के विषय में भ्रमित था . बहुत सी पाठ्य पुस्तकों और कथा कहानियों में भी अनेकों शब्द पढने को मिल जाता है .सहित्तिक पत्रिकाओं में भी .पर कभी किसी से पूछने या कहने का साहस नहीं कर पाया आज आ० भाई सौरभ जी और आपकी चर्चा ने भ्रम का पर्दा हटा दिया . इसके लिए आप दोनों का हार्दिक धन्यवाद .</p> शत शत अभिनन्दन
सादर अभिवादन…tag:openbooks.ning.com,2014-08-12:5170231:Comment:5669452014-08-12T06:18:51.230Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>शत शत अभिनन्दन</p>
<p> </p>
<p>सादर अभिवादन/ आदरणीय निकोर जी</p>
<p>शत शत अभिनन्दन</p>
<p> </p>
<p>सादर अभिवादन/ आदरणीय निकोर जी</p>