Comments - ग़ज़ल: शह्र के अख़बार को मत हमजुबाँ रखिये - Open Books Online2024-03-29T15:03:41Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A531058&xn_auth=noआदरणीय Mukesh Verma "Chiragh…tag:openbooks.ning.com,2014-05-14:5170231:Comment:5413662014-05-14T16:12:35.090Zभुवन निस्तेजhttps://openbooks.ning.com/profile/BHUWANNISTEJ
<p>आदरणीय <span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/ChiraghIndia" class="fn url">Mukesh Verma "Chiragh"</a> जी सुझाव के लिए आप्लोगों क हार्दिक आभार, मतले में सामान्य बदलाव किया है, सादर...</p>
<p>आदरणीय <span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/ChiraghIndia" class="fn url">Mukesh Verma "Chiragh"</a> जी सुझाव के लिए आप्लोगों क हार्दिक आभार, मतले में सामान्य बदलाव किया है, सादर...</p> आदरणीय भुवन जीजितनी भी तारीफ…tag:openbooks.ning.com,2014-04-17:5170231:Comment:5319622014-04-17T16:30:52.153ZMukesh Verma "Chiragh"https://openbooks.ning.com/profile/ChiraghIndia
<p>आदरणीय भुवन जी<br/>जितनी भी तारीफ की जाए कम है..बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने. मुबारकबाद क़ुबूल करें<br/>शिज़्जू जी की बात मुझे भी सही लगती है. उर्दू में चंद्र बिंदु यहाँ क़ुबूल नहीं है.</p>
<p>आदरणीय भुवन जी<br/>जितनी भी तारीफ की जाए कम है..बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने. मुबारकबाद क़ुबूल करें<br/>शिज़्जू जी की बात मुझे भी सही लगती है. उर्दू में चंद्र बिंदु यहाँ क़ुबूल नहीं है.</p> आ. कृष्ण सिंह पेला जी सादर धन…tag:openbooks.ning.com,2014-04-17:5170231:Comment:5318322014-04-17T05:46:52.145Zभुवन निस्तेजhttps://openbooks.ning.com/profile/BHUWANNISTEJ
<p>आ. कृष्ण सिंह पेला जी सादर धन्यवाद...</p>
<p>आ. <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/vijaynikore" class="fn url">vijay nikore</a> जी धन्यवाद...</p>
<p>आ. गुमनाम पिथौरागढ़ी साहब बहुत बहुत धन्यवाद...</p>
<p>आ. कृष्ण सिंह पेला जी सादर धन्यवाद...</p>
<p>आ. <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/vijaynikore" class="fn url">vijay nikore</a> जी धन्यवाद...</p>
<p>आ. गुमनाम पिथौरागढ़ी साहब बहुत बहुत धन्यवाद...</p> आदरणीय शकील जम्शेद्पुरी जी हा…tag:openbooks.ning.com,2014-04-17:5170231:Comment:5316962014-04-17T05:43:34.448Zभुवन निस्तेजhttps://openbooks.ning.com/profile/BHUWANNISTEJ
<p>आदरणीय शकील जम्शेद्पुरी जी हार्दिक आभार...</p>
<p>आदरणीय शकील जम्शेद्पुरी जी हार्दिक आभार...</p> आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, आपक…tag:openbooks.ning.com,2014-04-17:5170231:Comment:5316952014-04-17T05:42:43.066Zभुवन निस्तेजhttps://openbooks.ning.com/profile/BHUWANNISTEJ
<p>आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, आपके स्नेह के लिए सदैव आभारी हूँ, कृपया त्रुटियाँ हो तो बेझिझक फटकार लगा दें...</p>
<p>आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, आपके स्नेह के लिए सदैव आभारी हूँ, कृपया त्रुटियाँ हो तो बेझिझक फटकार लगा दें...</p> देवता, बुत और पत्थर बन के रहत…tag:openbooks.ning.com,2014-04-16:5170231:Comment:5314962014-04-16T11:37:40.447Zgumnaam pithoragarhihttps://openbooks.ning.com/profile/gumnaampithoragarhi
<p>देवता, बुत और पत्थर बन के रहते हो</p>
<p>कुछ तो इंसानों के जैसी ख़ामियाँ रखिये</p>
<p></p>
<p>कब नजाने खुदकुशी ये गाँव कर लेगा</p>
<p>शह्र की ख़ुदग़र्ज़ियाँ गर दरमियाँ रखिये</p>
<p></p>
<p></p>
<p>घर की बातें घर में ही रह जाये है अच्छा</p>
<p>शह्र के अख़बार को मत हमजुबाँ रखिये</p>
<p></p>
<p>बहुत खूब बधाई स्वीकार करें</p>
<p>देवता, बुत और पत्थर बन के रहते हो</p>
<p>कुछ तो इंसानों के जैसी ख़ामियाँ रखिये</p>
<p></p>
<p>कब नजाने खुदकुशी ये गाँव कर लेगा</p>
<p>शह्र की ख़ुदग़र्ज़ियाँ गर दरमियाँ रखिये</p>
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<p>घर की बातें घर में ही रह जाये है अच्छा</p>
<p>शह्र के अख़बार को मत हमजुबाँ रखिये</p>
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<p>बहुत खूब बधाई स्वीकार करें</p>
बहुत खूब गज़ल कही है। बधाई।tag:openbooks.ning.com,2014-04-16:5170231:Comment:5317132014-04-16T10:37:05.909Zvijay nikorehttps://openbooks.ning.com/profile/vijaynikore
<p></p>
<p>बहुत खूब गज़ल कही है। बधाई।</p>
<p></p>
<p>बहुत खूब गज़ल कही है। बधाई।</p> ... कुछ अलग अपना भी अंदाज़े बय…tag:openbooks.ning.com,2014-04-15:5170231:Comment:5314432014-04-15T17:59:56.453ZKrishnasingh Pelahttps://openbooks.ning.com/profile/KrishnasinghPela
<p><span>... कुछ अलग अपना भी अंदाज़े बयाँ रखिये </span></p>
<p><span>वाह </span><span>क्या बात</span><span> </span><a class="fn url" href="http://www.openbooksonline.com/profile/BHUWANNISTEJ" rel="nofollow">भुवन निस्तेज</a><span> जी । जरुर अाप का अंदाज ए बयाँ कुछ अलग ही है ।<span>ग़ज़ल की जितनी भी तारीफ की जाये कम है । </span></span></p>
<p><span>...कुछ तो इंसानों के जैसी ख़ामियाँ रखिये</span></p>
<p></p>
<p><span><span><span>...<span>ख्वाब को अब तो सवार-ए-कहकशाँ रखिये…</span></span></span></span></p>
<p><span>... कुछ अलग अपना भी अंदाज़े बयाँ रखिये </span></p>
<p><span>वाह </span><span>क्या बात</span><span> </span><a rel="nofollow" href="http://www.openbooksonline.com/profile/BHUWANNISTEJ" class="fn url">भुवन निस्तेज</a><span> जी । जरुर अाप का अंदाज ए बयाँ कुछ अलग ही है ।<span>ग़ज़ल की जितनी भी तारीफ की जाये कम है । </span></span></p>
<p><span>...कुछ तो इंसानों के जैसी ख़ामियाँ रखिये</span></p>
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<p><span><span><span>...<span>ख्वाब को अब तो सवार-ए-कहकशाँ रखिये । </span></span></span></span></p>
<p><span><span><span><span>एेसे एेसे सानी हैं जिनका काेई सानी नहीं </span></span></span></span></p> आदरनीय भुवन भाई , लाजवाब गज़ल…tag:openbooks.ning.com,2014-04-15:5170231:Comment:5314302014-04-15T12:36:35.896Zगिरिराज भंडारीhttps://openbooks.ning.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरनीय भुवन भाई , लाजवाब गज़ल कही अहि , दिली बधाई स्वीकार करें ॥</p>
<p>घर की बातें घर में ही रह जाये है अच्छा</p>
<p>शह्र के अख़बार को मत हमजुबाँ रखिये - बहुत खूब , भाई , बधाई !!</p>
<p>आदरनीय भुवन भाई , लाजवाब गज़ल कही अहि , दिली बधाई स्वीकार करें ॥</p>
<p>घर की बातें घर में ही रह जाये है अच्छा</p>
<p>शह्र के अख़बार को मत हमजुबाँ रखिये - बहुत खूब , भाई , बधाई !!</p> पढ़कर आनंद आ गया आदरणीय।tag:openbooks.ning.com,2014-04-15:5170231:Comment:5314222014-04-15T10:44:16.754Zशकील समरhttps://openbooks.ning.com/profile/ShakeelJamshedpuri
<p>पढ़कर आनंद आ गया आदरणीय।</p>
<p>पढ़कर आनंद आ गया आदरणीय।</p>