Comments - चाँद मुझे तरसाते क्यूँ हो ? - Open Books Online2024-03-29T11:01:44Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A526503&xn_auth=noबहुत सुंदर, मनभावन रचना आदरणी…tag:openbooks.ning.com,2014-04-02:5170231:Comment:5275272014-04-02T16:43:04.743Zजितेन्द्र पस्टारियाhttps://openbooks.ning.com/profile/JitendraPastariya
<p>बहुत सुंदर, मनभावन रचना आदरणीय ब्रह्मचारी जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें</p>
<p>बहुत सुंदर, मनभावन रचना आदरणीय ब्रह्मचारी जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें</p> बहुत सुन्दर गीत रचना | हार्दि…tag:openbooks.ning.com,2014-04-02:5170231:Comment:5274102014-04-02T14:38:11.430Zलक्ष्मण रामानुज लडीवालाhttps://openbooks.ning.com/profile/LaxmanPrasadLadiwala
<p>बहुत सुन्दर गीत रचना | हार्दिक बधाई श्री ब्रह्मचारी जी </p>
<p>बहुत सुन्दर गीत रचना | हार्दिक बधाई श्री ब्रह्मचारी जी </p> बहुत खूब !! आ0 ब्रम्ह्चारी जी…tag:openbooks.ning.com,2014-04-02:5170231:Comment:5273252014-04-02T09:06:16.414Zannapurna bajpaihttps://openbooks.ning.com/profile/annapurnabajpai
<p>बहुत खूब !! आ0 ब्रम्ह्चारी जी , बधाई आपको इस रचना के लिए । </p>
<p></p>
<p>बहुत खूब !! आ0 ब्रम्ह्चारी जी , बधाई आपको इस रचना के लिए । </p>
<p></p> चंद्र, उसकी रूप लावण्यता तथा…tag:openbooks.ning.com,2014-04-02:5170231:Comment:5270652014-04-02T03:08:31.152Zविन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठीhttps://openbooks.ning.com/profile/Vindhyeshwariprasadtripathi
चंद्र, उसकी रूप लावण्यता तथा उसके कृत्यों से निर्मित अप्रतिम दृश्य का मनोहारी वर्णन किया है आपने। बधाई आदरणीय ब्रह्मचारी जी!
चंद्र, उसकी रूप लावण्यता तथा उसके कृत्यों से निर्मित अप्रतिम दृश्य का मनोहारी वर्णन किया है आपने। बधाई आदरणीय ब्रह्मचारी जी! आदरणीय ब्रम्हचारी सर ...इसे र…tag:openbooks.ning.com,2014-04-01:5170231:Comment:5270252014-04-01T11:00:49.934ZDr Ashutosh Mishrahttps://openbooks.ning.com/profile/DrAshutoshMishra
<p>आदरणीय ब्रम्हचारी सर ...इसे रचना को गुनगुनाने में बहुत आनंद आया ..मेरी तरफ से तहे दिल बधाई स्वीकार करीं सादर </p>
<p>आदरणीय ब्रम्हचारी सर ...इसे रचना को गुनगुनाने में बहुत आनंद आया ..मेरी तरफ से तहे दिल बधाई स्वीकार करीं सादर </p> ऐसा लगता मुझको हर पल –
मौन नि…tag:openbooks.ning.com,2014-04-01:5170231:Comment:5267982014-04-01T05:58:05.676Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p>ऐसा लगता मुझको हर पल –</p>
<p>मौन निमंत्रण हो देते तुम ।</p>
<p>ऐसी बात नहीं गर बोलो , चंद्र किरण बिखराते क्यूँ हो ?</p>
<p>चाँद मुझे तरसाते क्यूँ हो ?</p>
<p>नटखट चाँद पर सुंदर रचना, हार्दिक बधाई </p>
<p>ऐसा लगता मुझको हर पल –</p>
<p>मौन निमंत्रण हो देते तुम ।</p>
<p>ऐसी बात नहीं गर बोलो , चंद्र किरण बिखराते क्यूँ हो ?</p>
<p>चाँद मुझे तरसाते क्यूँ हो ?</p>
<p>नटखट चाँद पर सुंदर रचना, हार्दिक बधाई </p> आ0 बृह्मचारी जी, वाह! बहुत ख…tag:openbooks.ning.com,2014-04-01:5170231:Comment:5269302014-04-01T05:34:40.881Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'https://openbooks.ning.com/profile/kewalprasad
<p>आ0 बृह्मचारी जी, वाह! बहुत खूबसूरत भाव, अच्छा लगा। बधाई स्वीकारें। सादर,</p>
<p>आ0 बृह्मचारी जी, वाह! बहुत खूबसूरत भाव, अच्छा लगा। बधाई स्वीकारें। सादर,</p> बहुत सुन्दर ..tag:openbooks.ning.com,2014-04-01:5170231:Comment:5265742014-04-01T03:56:42.134ZNeeraj Neerhttps://openbooks.ning.com/profile/NeerajKumarNeer
<p>बहुत सुन्दर ..</p>
<p>बहुत सुन्दर ..</p>