Comments - एक कोशिश - ग़ज़ल - Open Books Online2024-03-29T14:10:11Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A524568&xn_auth=noआप सभी आदरणीय मित्रों को बहुत…tag:openbooks.ning.com,2014-04-10:5170231:Comment:5292122014-04-10T09:31:44.112ZZaifhttps://openbooks.ning.com/profile/YamitPunethaZaif
आप सभी आदरणीय मित्रों को बहुत सा धन्यवाद।
आप सभी आदरणीय मित्रों को बहुत सा धन्यवाद। पटल पर आपके माध्यम से एक बहुत…tag:openbooks.ning.com,2014-04-07:5170231:Comment:5286132014-04-07T18:22:22.132ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>पटल पर आपके माध्यम से एक बहुत ही सार्थक सफल और अनुकरणीय ग़ज़ल आयी है, ज़ैफ़भाई. कई शेर कमाल हुए हैं.</p>
<p>और ये शेर तो कमाल हुए हैं -</p>
<p>जिनका नहीं कोई कहीं, <br/> उनके लिए भी रो कभी</p>
<p></p>
<p>जो मैं सही हूँ, 'दाद' दे, <br/> जो मैं ग़लत हूँ, टोक भी</p>
<p></p>
<p>माँ ही रखे उपवास क्या? <br/> तुम भी रखो बेटो कभी!</p>
<p>क्या बात है.. !</p>
<p></p>
<p>ऐसी ग़ज़ल के मतले के उला में आया शिकस्ते नारवा का ऐब खल रहा है.</p>
<p>बहरहाल दिल से दाद कुबूल कीजिये.</p>
<p></p>
<p>पटल पर आपके माध्यम से एक बहुत ही सार्थक सफल और अनुकरणीय ग़ज़ल आयी है, ज़ैफ़भाई. कई शेर कमाल हुए हैं.</p>
<p>और ये शेर तो कमाल हुए हैं -</p>
<p>जिनका नहीं कोई कहीं, <br/> उनके लिए भी रो कभी</p>
<p></p>
<p>जो मैं सही हूँ, 'दाद' दे, <br/> जो मैं ग़लत हूँ, टोक भी</p>
<p></p>
<p>माँ ही रखे उपवास क्या? <br/> तुम भी रखो बेटो कभी!</p>
<p>क्या बात है.. !</p>
<p></p>
<p>ऐसी ग़ज़ल के मतले के उला में आया शिकस्ते नारवा का ऐब खल रहा है.</p>
<p>बहरहाल दिल से दाद कुबूल कीजिये.</p>
<p></p> यमित जी ग़ज़ल पर आपके इस शानदार…tag:openbooks.ning.com,2014-04-01:5170231:Comment:5270172014-04-01T07:56:20.823ZDr Ashutosh Mishrahttps://openbooks.ning.com/profile/DrAshutoshMishra
<p>यमित जी ग़ज़ल पर आपके इस शानदार प्रयास के लिए तहे दिल बधाई स्वीकार करें </p>
<p>यमित जी ग़ज़ल पर आपके इस शानदार प्रयास के लिए तहे दिल बधाई स्वीकार करें </p> भाई यमित इस बेहतरी ग़ज़ल के लिए…tag:openbooks.ning.com,2014-04-01:5170231:Comment:5269272014-04-01T05:17:44.299Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>भाई यमित इस बेहतरी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .</p>
<p>भाई यमित इस बेहतरी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .</p> प्रिय यमित , बहुत सुन्दर ग़ज़ल…tag:openbooks.ning.com,2014-04-01:5170231:Comment:5265802014-04-01T04:31:38.617Zगिरिराज भंडारीhttps://openbooks.ning.com/profile/girirajbhandari
<p>प्रिय यमित , बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ॥</p>
<p>प्रिय यमित , बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ॥</p> बढ़िया भावप्रवण ग़ज़ल है आदरणीय …tag:openbooks.ning.com,2014-04-01:5170231:Comment:5265682014-04-01T00:43:01.716Zvandanahttps://openbooks.ning.com/profile/vandana956
<p>बढ़िया भावप्रवण ग़ज़ल है आदरणीय </p>
<p></p>
<p><span>इन आँसुओं को रोक भी</span></p>
<p>रदीफ़ को यूँ तोड़ा भी जा सकता है ? .... यह मेरे लिए नई जानकारी होगी या यूँ कहूँ कि मेरा इस ओर कभी ध्यान ही नहीं गया </p>
<p>बढ़िया भावप्रवण ग़ज़ल है आदरणीय </p>
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<p><span>इन आँसुओं को रोक भी</span></p>
<p>रदीफ़ को यूँ तोड़ा भी जा सकता है ? .... यह मेरे लिए नई जानकारी होगी या यूँ कहूँ कि मेरा इस ओर कभी ध्यान ही नहीं गया </p> गजल के शिल्प के विषय मे मुझे…tag:openbooks.ning.com,2014-03-31:5170231:Comment:5265632014-03-31T17:57:20.506Zannapurna bajpaihttps://openbooks.ning.com/profile/annapurnabajpai
<p>गजल के शिल्प के विषय मे मुझे खास जानकारी नहीं है किन्तु आपकी छोटी बह्र की गजल अच्छी लगी । </p>
<p>गजल के शिल्प के विषय मे मुझे खास जानकारी नहीं है किन्तु आपकी छोटी बह्र की गजल अच्छी लगी । </p> मैं ही सदा पलटा करूँ? तुम भी…tag:openbooks.ning.com,2014-03-31:5170231:Comment:5264022014-03-31T02:41:48.270Zभुवन निस्तेजhttps://openbooks.ning.com/profile/BHUWANNISTEJ
<p>मैं ही सदा पलटा करूँ? <br/>तुम भी मुझे रोको कभी</p>
<p></p>
<p>great................</p>
<p>मैं ही सदा पलटा करूँ? <br/>तुम भी मुझे रोको कभी</p>
<p></p>
<p>great................</p> bahut badhiya tag:openbooks.ning.com,2014-03-30:5170231:Comment:5256612014-03-30T06:23:11.975ZDr Ashutosh Mishrahttps://openbooks.ning.com/profile/DrAshutoshMishra
<p>bahut badhiya </p>
<p>bahut badhiya </p>