Comments - ग़ज़ल - छीन लेगा मेरा .गुमान भी क्या - Open Books Online2024-03-28T18:35:59Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A502009&xn_auth=noमेरा लहजा ज़रा सा तल्ख़ जो है
क…tag:openbooks.ning.com,2014-03-25:5170231:Comment:5240372014-03-25T18:20:29.322Zभुवन निस्तेजhttps://openbooks.ning.com/profile/BHUWANNISTEJ
<p>मेरा लहजा ज़रा सा तल्ख़ जो है</p>
<p>काट ली जायेगी ज़बान भी क्या</p>
<p> </p>
<p>वाह! बेहतरीन ..........</p>
<p>मेरा लहजा ज़रा सा तल्ख़ जो है</p>
<p>काट ली जायेगी ज़बान भी क्या</p>
<p> </p>
<p>वाह! बेहतरीन ..........</p> अब के दावा जो है मुहब्बत का झ…tag:openbooks.ning.com,2014-02-05:5170231:Comment:5081312014-02-05T04:12:52.731Zअनिल कुमार 'अलीन'https://openbooks.ning.com/profile/aline
<p>अब के दावा जो है मुहब्बत का <br/>झूठ ठहरेगा ये बयान भी क्या...............बहुत खूब...................</p>
<p>अब के दावा जो है मुहब्बत का <br/>झूठ ठहरेगा ये बयान भी क्या...............बहुत खूब...................</p> अयहयहयहय..क्या बात कही है..गज…tag:openbooks.ning.com,2014-02-02:5170231:Comment:5066762014-02-02T13:23:51.138Zमनोज कुमार सिंह 'मयंक'https://openbooks.ning.com/profile/2pfvid8pxd2o7
<p>अयहयहयहय..क्या बात कही है..गजल इसे कहते हैं...वाह..</p>
<p>अयहयहयहय..क्या बात कही है..गजल इसे कहते हैं...वाह..</p> आदरणीय वीनस जी शानदार ग़ज़ल कही…tag:openbooks.ning.com,2014-01-31:5170231:Comment:5060312014-01-31T16:55:08.457ZMaheshwari Kanerihttps://openbooks.ning.com/profile/MaheshwariKaneri
<p><span>आदरणीय वीनस जी<span> शानदार ग़ज़ल कही है,<span> बहुत बहुत बधाई आपको</span></span></span></p>
<p><span>आदरणीय वीनस जी<span> शानदार ग़ज़ल कही है,<span> बहुत बहुत बधाई आपको</span></span></span></p> जिंदाबाद ग़ज़ल ! क्या शानदार ग़ज़…tag:openbooks.ning.com,2014-01-30:5170231:Comment:5054642014-01-30T06:23:22.673ZSaarthi Baidyanathhttps://openbooks.ning.com/profile/saarthibaidyanath
<p>जिंदाबाद ग़ज़ल ! क्या शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय ...हर शेर , सवाल कर रहा है खुलुसियत के साथ ...माशा-अल्लाह ! मेरे पसंदीदा अशआर ..<br></br><span>छीन लेगा मेरा .गुमान भी क्या </span><br></br><span>इल्म लेगा ये इम्तेहान भी क्या ..उम्दा आगाज़ </span><br></br><br></br></p>
<p><span>है मुकद्दर में कुछ उड़ान भी क्या </span><br></br><span>इस ज़मीं पर है आसमान भी क्या</span></p>
<p></p>
<p>मेरा लहजा ज़रा सा तल्ख़ जो है</p>
<p>काट ली जायेगी ज़बान भी क्या</p>
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<p>धूप से लुट चुके मुसाफ़िर को</p>
<p>लूट लेंगे ये सायबान भी क्या…</p>
<p>जिंदाबाद ग़ज़ल ! क्या शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय ...हर शेर , सवाल कर रहा है खुलुसियत के साथ ...माशा-अल्लाह ! मेरे पसंदीदा अशआर ..<br/><span>छीन लेगा मेरा .गुमान भी क्या </span><br/><span>इल्म लेगा ये इम्तेहान भी क्या ..उम्दा आगाज़ </span><br/><br/></p>
<p><span>है मुकद्दर में कुछ उड़ान भी क्या </span><br/><span>इस ज़मीं पर है आसमान भी क्या</span></p>
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<p>मेरा लहजा ज़रा सा तल्ख़ जो है</p>
<p>काट ली जायेगी ज़बान भी क्या</p>
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<p>धूप से लुट चुके मुसाफ़िर को</p>
<p>लूट लेंगे ये सायबान भी क्या ..... मजा आ गया ..धूप सा मजा आ गया सर्दियों में !..वाह साहब वाह </p> मेरी नज़रें तो पर्वतों पर हैं…tag:openbooks.ning.com,2014-01-30:5170231:Comment:5053042014-01-30T06:14:25.693ZAbhinav Arunhttps://openbooks.ning.com/profile/ArunKumarPandeyAbhinav
मेरी नज़रें तो पर्वतों पर हैं<br />
मुझको ललचायेंगी ढलान भी क्या....लाजवाब आपके मेयार की जिंदाबाद ग़ज़ल आदरणीय ...हौसला देते हैं आपके बेलाग बयान ,,साधुवाद !!
मेरी नज़रें तो पर्वतों पर हैं<br />
मुझको ललचायेंगी ढलान भी क्या....लाजवाब आपके मेयार की जिंदाबाद ग़ज़ल आदरणीय ...हौसला देते हैं आपके बेलाग बयान ,,साधुवाद !! इस क़दर जीतने की बेचैनी दाँव प…tag:openbooks.ning.com,2014-01-30:5170231:Comment:5055362014-01-30T06:03:15.794ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>इस क़दर जीतने की बेचैनी <br/>दाँव पर लग चुकी है जान भी क्या.. . इस शेर को देर तक मथता रहा. ’बचे कुछ दिन’ वालों की याद कर मन वाकई सिहर गया.</p>
<p></p>
<p>आप तकाबुले रदीफ़ क्यों रहने देते हैं जी ?</p>
<p></p>
<p>इस क़दर जीतने की बेचैनी <br/>दाँव पर लग चुकी है जान भी क्या.. . इस शेर को देर तक मथता रहा. ’बचे कुछ दिन’ वालों की याद कर मन वाकई सिहर गया.</p>
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<p>आप तकाबुले रदीफ़ क्यों रहने देते हैं जी ?</p>
<p></p> है मुकद्दर में कुछ उड़ान भी क्…tag:openbooks.ning.com,2014-01-28:5170231:Comment:5051392014-01-28T15:20:06.899Zrajesh kumarihttps://openbooks.ning.com/profile/rajeshkumari
<p>है मुकद्दर में कुछ उड़ान भी क्या <br/>इस ज़मीं पर है आसमान भी क्या----वाह्ह्ह्हह वाह्ह्ह </p>
<p><span>मेरी नज़रें तो पर्वतों पर हैं </span><br/><span>मुझको ललचायेंगी ढलान भी क्या ---जबरदस्त ,लाजबाब </span></p>
<p>ग़ज़ल पर देर से पंहुची इसका खेद है ,पर मजा आ गया पढ़ के सभी शेर लाजबाब हैं पर ये दो तो बार बार पढने को मन करता है ,दिल बधाई कबूलें वीनस जी </p>
<p></p>
<p>है मुकद्दर में कुछ उड़ान भी क्या <br/>इस ज़मीं पर है आसमान भी क्या----वाह्ह्ह्हह वाह्ह्ह </p>
<p><span>मेरी नज़रें तो पर्वतों पर हैं </span><br/><span>मुझको ललचायेंगी ढलान भी क्या ---जबरदस्त ,लाजबाब </span></p>
<p>ग़ज़ल पर देर से पंहुची इसका खेद है ,पर मजा आ गया पढ़ के सभी शेर लाजबाब हैं पर ये दो तो बार बार पढने को मन करता है ,दिल बधाई कबूलें वीनस जी </p>
<p></p> वाह-वाह क्या बात है।
उम्दा…tag:openbooks.ning.com,2014-01-27:5170231:Comment:5050082014-01-27T17:28:11.691ZTilak Raj Kapoorhttps://openbooks.ning.com/profile/TilakRajKapoor
<p>वाह-वाह क्या बात है।</p>
<p>उम्दा ग़ज़ल। </p>
<p>वाह-वाह क्या बात है।</p>
<p>उम्दा ग़ज़ल। </p> है मुकद्दर में कुछ उड़ान भी क्…tag:openbooks.ning.com,2014-01-26:5170231:Comment:5042282014-01-26T07:57:51.667ZDr Ashutosh Mishrahttps://openbooks.ning.com/profile/DrAshutoshMishra
<p>है मुकद्दर में कुछ उड़ान भी क्या <br/>इस ज़मीं पर है आसमान भी क्या</p>
<p>इस क़दर जीतने की बेचैनी <br/>दाँव पर लग चुकी है जान भी क्या </p>
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<p>मेरी नज़रें तो पर्वतों पर हैं <br/>मुझको ललचायेंगी ढलान भी क्या ..आदरणीय वीनस सर ..आपकी इस बेहतरीन ग़ज़ल को पढ़कर हमेशा की तरह ही नयी सोच मिली है उधृत किया शेर मुझे बिशेस रूप से पसंद आये ..आपको हार्दिक बधाई केसाथ </p>
<p>है मुकद्दर में कुछ उड़ान भी क्या <br/>इस ज़मीं पर है आसमान भी क्या</p>
<p>इस क़दर जीतने की बेचैनी <br/>दाँव पर लग चुकी है जान भी क्या </p>
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<p>मेरी नज़रें तो पर्वतों पर हैं <br/>मुझको ललचायेंगी ढलान भी क्या ..आदरणीय वीनस सर ..आपकी इस बेहतरीन ग़ज़ल को पढ़कर हमेशा की तरह ही नयी सोच मिली है उधृत किया शेर मुझे बिशेस रूप से पसंद आये ..आपको हार्दिक बधाई केसाथ </p>