Comments - "यार दौलत फिर कमा ली जाएगी"- ग़ज़ल - Open Books Online2024-03-29T11:47:11Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A499179&xn_auth=noBhai ji _____/\______tag:openbooks.ning.com,2015-11-22:5170231:Comment:7171202015-11-22T11:09:24.344Zरोहिताश्व मिश्राhttps://openbooks.ning.com/profile/0pxdogl13y8y0
Bhai ji _____/\______
Bhai ji _____/\______ बंदरों के हाथ में है उस्तरा,…tag:openbooks.ning.com,2014-02-17:5170231:Comment:5135352014-02-17T12:41:27.777Zअनिल कुमार 'अलीन'https://openbooks.ning.com/profile/aline
<p>बंदरों के हाथ में है उस्तरा,<br/> अब विरासत यूँ सँभाली जाएगी;।।2।।......बहुत खूब भाई...................</p>
<p>बंदरों के हाथ में है उस्तरा,<br/> अब विरासत यूँ सँभाली जाएगी;।।2।।......बहुत खूब भाई...................</p> //-- अरूजनुसार "कोई" को = २२,…tag:openbooks.ning.com,2014-01-18:5170231:Comment:5013262014-01-18T15:44:16.745Zवीनस केसरीhttps://openbooks.ning.com/profile/1q1lxk02g9ue6
<div class="xg_user_generated"><p><strong>//-- अरूजनुसार "कोई" को = २२, १२, २१ और २ के वज्न में बाँध सकते हैं मगर २ के वज्न में बाँधने से बचना चाहिए क्योकि फिर शब्द को बहुत गिरा कर पढ़ना होता है और गति से आगे बढ़ जाना होता है जिससे मात्र का संयोजन गडबड न हो ...//<br></br><br></br></strong>संदीप भाई अभी मैंने २ साल पुराना लिंक देखा तो पाया की मैंने खुद <span><span class="null">गलत बयानी कर रखी है, स्वीकारता हूँ कि मैंने इस लिंक पर जो ये बात कही है = …<br></br></span></span></p>
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</div>
<div class="xg_user_generated"><p><strong>//-- अरूजनुसार "कोई" को = २२, १२, २१ और २ के वज्न में बाँध सकते हैं मगर २ के वज्न में बाँधने से बचना चाहिए क्योकि फिर शब्द को बहुत गिरा कर पढ़ना होता है और गति से आगे बढ़ जाना होता है जिससे मात्र का संयोजन गडबड न हो ...//<br/><br/></strong>संदीप भाई अभी मैंने २ साल पुराना लिंक देखा तो पाया की मैंने खुद <span><span class="null">गलत बयानी कर रखी है, स्वीकारता हूँ कि मैंने इस लिंक पर जो ये बात कही है = <br/></span></span></p>
<p><span><span class="null"><strong>// २ के वज्न में बाँध सकते हैं मगर २ के वज्न में बाँधने से बचना चाहिए क्योकि फिर शब्द को बहुत गिरा कर पढ़ना होता है और गति से आगे बढ़ जाना होता है जिससे मात्र का संयोजन गडबड न हो ...// </strong></span></span></p>
<p><span><span class="null">ये अरूज़ के अनुसार गलत है</span></span> <span><span class="null">इसे सही करना होगा ....<br/></span></span></p>
<p><strong>मेरे दो साल पुराने कहे के कारण यदि किसी को गलत जानकारी साझा हुई है तो मैं खेद प्रकट करता हूँ</strong><br/>मेरी जानकारी में अरूज़ अनुसार <strong>कोई</strong> को २ मात्रा में किसी दशा में नहीं कर सकते ....<strong><br/></strong><br/><br/><br/></p>
</div> भाई वीनस जी,
आपकी मुबारकबाद…tag:openbooks.ning.com,2014-01-18:5170231:Comment:5012382014-01-18T15:08:29.597Zसंदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी'https://openbooks.ning.com/profile/SandeipDwivediWahidKashiwasi
<p>भाई <a class="fn url" href="http://www.openbooksonline.com/profile/1q1lxk02g9ue6">वीनस </a> जी,</p>
<p>आपकी मुबारकबाद क़बूल है! :-) देर से ही सही किन्तु अच्छा लगा!</p>
<p>//<em>अगर अपनी जान बचाने की बात की गयी होती</em> //मत्ले में स्वयं को 'सब्जेक्ट' रखते हुए ये कहने का प्रयास किया है कि मुझसे ये बात कही जा रही है!</p>
<p>रही बात '<strong>कल</strong>' की तो जब तक 'वाहिद' है तब तक तो ठीक है किन्तु यदि वह न रहे तो? फ़िलहाल अभी तक तो वह उपलब्ध है ही! :-)<br></br>कोई की मात्रा की बात पर मैं यही…</p>
<p>भाई <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/1q1lxk02g9ue6" class="fn url">वीनस </a> जी,</p>
<p>आपकी मुबारकबाद क़बूल है! :-) देर से ही सही किन्तु अच्छा लगा!</p>
<p>//<em>अगर अपनी जान बचाने की बात की गयी होती</em> //मत्ले में स्वयं को 'सब्जेक्ट' रखते हुए ये कहने का प्रयास किया है कि मुझसे ये बात कही जा रही है!</p>
<p>रही बात '<strong>कल</strong>' की तो जब तक 'वाहिद' है तब तक तो ठीक है किन्तु यदि वह न रहे तो? फ़िलहाल अभी तक तो वह उपलब्ध है ही! :-)<br/>कोई की मात्रा की बात पर मैं यही कहूँगा कि आपने एक बार इस ओर इंगित किया था बतौर आपकी ही इबारत में --</p>
<p>// <em>अरूजनुसार <strong>"कोई"</strong> को = <strong>२२</strong>, <strong>१२</strong>, <strong>२१</strong> और <strong>२</strong> के वज्न में बाँध सकते हैं <strong>मगर २ के वज्न में बाँधने से बचना चाहिए</strong> क्योकि फिर शब्द को बहुत गिरा कर पढ़ना होता है और गति से आगे बढ़ जाना होता है जिससे मात्र का संयोजन गडबड न हो</em> // जहाँ आपने यह बात कही थी उसका लिंक आदरणीय गिरिराज जी को भी दिया है और आपको भी दे रहा हूँ .. (<a href="http://www.openbooksonline.com/profiles/blogs/5170231:BlogPost:209604?id=5170231%3ABlogPost%3A209604&page=3#comments" target="_blank">http://www.openbooksonline.com/profiles/blogs/5170231:BlogPost:209604?id=5170231%3ABlogPost%3A209604&page=3#comments</a>) शेष आपने सब स्पष्ट कर ही दिया है! :-) सादर,</p> भाई बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है ..…tag:openbooks.ning.com,2014-01-18:5170231:Comment:5011782014-01-18T14:55:37.283Zवीनस केसरीhttps://openbooks.ning.com/profile/1q1lxk02g9ue6
<p>भाई बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है .. <br></br>ढेरो मुबारकबाद पेश करता हूँ ... हर एक शेर में तागज्जुल से रू-ब-रू हुआ ...<br></br><br></br>जाँ तेरी ऐसे बचा ली जाएगी;<br></br> हर तमन्ना मार डाली जाएगी;<br></br>बहुत शानदार मतला है ,,, मगर और खूबसूरत हो जाता अगर <strong>अपनी जान</strong> बचाने की बात की गयी होती ...वैसे ये मतला भी स्पष्ट है ..<br></br><br></br>चुप रहा 'वाहिद अगर महफ़िल में कल,<br></br> नज़्म उसकी गुनगुना ली जाएगी <br></br>मक्ता में मैं <strong>कल</strong> शब्द पर उलझ गया, <strong>कल</strong> कहने की क्या विशेष ज़रुरत थी ये…</p>
<p>भाई बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है .. <br/>ढेरो मुबारकबाद पेश करता हूँ ... हर एक शेर में तागज्जुल से रू-ब-रू हुआ ...<br/><br/>जाँ तेरी ऐसे बचा ली जाएगी;<br/> हर तमन्ना मार डाली जाएगी;<br/>बहुत शानदार मतला है ,,, मगर और खूबसूरत हो जाता अगर <strong>अपनी जान</strong> बचाने की बात की गयी होती ...वैसे ये मतला भी स्पष्ट है ..<br/><br/>चुप रहा 'वाहिद अगर महफ़िल में कल,<br/> नज़्म उसकी गुनगुना ली जाएगी <br/>मक्ता में मैं <strong>कल</strong> शब्द पर उलझ गया, <strong>कल</strong> कहने की क्या विशेष ज़रुरत थी ये समझ नहीं आया <br/><br/>कोई को ११ की जगह २ मात्रा पर बाँधने की बात मैंने कहीं नहीं कही है , मेरी जानकारी में इसे किसी सूरत में २ नहीं किया जा सकता <br/>आपने इसे प्रयोग के तौर पर लिया है और इसकी घोषणा भी कर दी है तो मैं आपके प्रयोग का खंडन नहीं करूंगा मगर मैं इस प्रयोग से सहमत नहीं हो पा रहा हूँ ... जब कोई प्रयोग इस घोषणा के साथ किया जाए कि <strong>//हाँ मुझे पता है ये नियम अनुसार सही नहीं है परन्तु मैंने जानबूझ कर ऐसा किया है//</strong> तो उसका खंडन उचित भी नहीं है ...... क्योकि समय खुद बहुत कुछ निर्धारित करता है .... <br/><br/>हाँ यदि आप यह कहेंगे की नियम अनुसार कोई को २ <strong>भी</strong> गिना जा सकता है तो मेरी जानकारी में अरूज़ में इस बात की कोई जगह नहीं है</p> भाई अरुन जी,
ग़ज़ल को पसंद करने…tag:openbooks.ning.com,2014-01-18:5170231:Comment:5010032014-01-18T14:12:44.178Zसंदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी'https://openbooks.ning.com/profile/SandeipDwivediWahidKashiwasi
<p>भाई <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/ArunSharma" class="fn url">अरुन</a> जी,</p>
<p>ग़ज़ल को पसंद करने और मुक्तकंठ से प्रशंसा करने हेतु आपका आभारी हूँ! किन्तु आपका ध्यान कहीं और था क्या? मैं 'आशीष जी' तो नहीं! ;-)</p>
<p>सादर,</p>
<p>भाई <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/ArunSharma" class="fn url">अरुन</a> जी,</p>
<p>ग़ज़ल को पसंद करने और मुक्तकंठ से प्रशंसा करने हेतु आपका आभारी हूँ! किन्तु आपका ध्यान कहीं और था क्या? मैं 'आशीष जी' तो नहीं! ;-)</p>
<p>सादर,</p> आदरेया Dr.Prachi Singh जी,
आप…tag:openbooks.ning.com,2014-01-18:5170231:Comment:5012352014-01-18T14:10:57.294Zसंदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी'https://openbooks.ning.com/profile/SandeipDwivediWahidKashiwasi
<div class="xg_user_generated"><p>आदरेया <a rel="nofollow" href="http://www.openbooksonline.com/profile/DrPrachiSingh376" class="fn url">Dr.Prachi Singh</a> जी,</p>
<p>आपकी सराहना मिली हृदय गद्गद है! बह्र के विषय में आपने जो कहा है उसका समाधान नीचे आदरणीय गिरिराज जी को दी गई प्रतिक्रिया में करने का प्रयास किया है! सादर,</p>
</div>
<div class="xg_user_generated"><p>आदरेया <a rel="nofollow" href="http://www.openbooksonline.com/profile/DrPrachiSingh376" class="fn url">Dr.Prachi Singh</a> जी,</p>
<p>आपकी सराहना मिली हृदय गद्गद है! बह्र के विषय में आपने जो कहा है उसका समाधान नीचे आदरणीय गिरिराज जी को दी गई प्रतिक्रिया में करने का प्रयास किया है! सादर,</p>
</div> आदरणीय गिरिराज जी!
सर्वप्रथम…tag:openbooks.ning.com,2014-01-18:5170231:Comment:5011702014-01-18T14:10:39.121Zसंदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी'https://openbooks.ning.com/profile/SandeipDwivediWahidKashiwasi
<div class="xg_user_generated"><p>आदरणीय <a class="fn url" href="http://www.openbooksonline.com/profile/girirajbhandari" rel="nofollow">गिरिराज</a> जी!</p>
<p>सर्वप्रथम ग़ज़ल को अनुमोदित करने हेतु आपका हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ! अब आते हैं आपकी जिज्ञासा पर! 'कोई को यहाँ 'कुइ' की तरह लिया है! वर्ष २०१२ के मध्य से जब मैंने धीरे-धीरे अरूज़ को जानना-समझना शुरूअ किया उसी दरमियान मुझे या ज्ञात हुआ था! 'कोई' एक ऐसा शब्द है जिसे सुविधानुसार '२२' '२१' '१२' या '११' में बाँधा जा सकता है! जहाँ तक मैंने अभी…</p>
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<div class="xg_user_generated"><p>आदरणीय <a rel="nofollow" href="http://www.openbooksonline.com/profile/girirajbhandari" class="fn url">गिरिराज</a> जी!</p>
<p>सर्वप्रथम ग़ज़ल को अनुमोदित करने हेतु आपका हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ! अब आते हैं आपकी जिज्ञासा पर! 'कोई को यहाँ 'कुइ' की तरह लिया है! वर्ष २०१२ के मध्य से जब मैंने धीरे-धीरे अरूज़ को जानना-समझना शुरूअ किया उसी दरमियान मुझे या ज्ञात हुआ था! 'कोई' एक ऐसा शब्द है जिसे सुविधानुसार '२२' '२१' '१२' या '११' में बाँधा जा सकता है! जहाँ तक मैंने अभी तक नोटिस किया है उस हिसाब से '११' का वज़्न (कई ऐसे शब्द हैं) कुछ विशेष बह्रों में ही फ़िट बैठता है! और चूँके मैंने यहाँ '२' का वज़्न लिया है तो आपको यह बता दूँ कि ऐसा सिर्फ़ इसलिए किया है कि बिना इस शब्द के मैं जो भाव शे'र में चाहता था वह नहीं आ पा रहा था और इसे लेने पर मात्रिक संयोजन बिगड़ रहा था तो इसका एकमात्र समाधान यही था कि इसे '२' के वज़्न लिया जाय! जब ऐसा किया जाता है तो कोई को बहुत गिराते हुए 'कुइ' पढ़ा जाता है और गति में पढ़ते हुए आगे बढ़ जाना होता है! यह जानकारी मुझे भाई वीनस केसरी जी से लभ्य हुई थी वह भी मेरी ही एक ग़ज़ल पर चर्चा के दौरान ( <a rel="nofollow" href="http://www.openbooksonline.com/profiles/blogs/5170231:BlogPost:209604?id=5170231%3ABlogPost%3A209604&page=3#comments" target="_blank">http://www.openbooksonline.com/profiles/blogs/5170231:BlogPost:2096...</a> ) ! सामान्यतः ऐसे प्रयोग करने से बचने के यथासंभव प्रयास करने चाहिए और मैं भी इस तरह के प्रयोगों से बचता ही हूँ किन्तु यहाँ पर इसे आज़माया है इसका कारण भी ऊपर स्पष्ट कर दिया है! आशा है आपकी जिज्ञासा कुछ हद तक शांत हो गयी होगी! :-)) सादर एवं साभार,</p>
</div> भाई आशीष जी हमेशा जी तरह एक औ…tag:openbooks.ning.com,2014-01-16:5170231:Comment:5003072014-01-16T05:12:01.954Zअरुन 'अनन्त'https://openbooks.ning.com/profile/ArunSharma
<p>भाई आशीष जी हमेशा जी तरह एक और शानदार लाजवाब ग़ज़ल पेश की है आपने सभी के सभी अशआर धारदार बने हुए हैं बेहतरीन ग़ज़ल के लिए ढेरों दिली दाद हाजिर है जनाब कबूल फरमाएं.</p>
<p>भाई आशीष जी हमेशा जी तरह एक और शानदार लाजवाब ग़ज़ल पेश की है आपने सभी के सभी अशआर धारदार बने हुए हैं बेहतरीन ग़ज़ल के लिए ढेरों दिली दाद हाजिर है जनाब कबूल फरमाएं.</p> कर के वादा तू मुकरता है तो सु…tag:openbooks.ning.com,2014-01-15:5170231:Comment:4999832014-01-15T17:54:16.649ZDr.Prachi Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrPrachiSingh376
<p><span>कर के वादा तू मुकरता है तो सुन,</span><br/><span>आज तेरी बात टाली जाएगी......बहुत सुन्दर </span></p>
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<p>पूरी ग़ज़ल बहुत सुन्दर हुई है आ० संदीप जी बहुत बहुत बधाई स्वीकारिये </p>
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<p><span>दास्ताँ कोई फिर बना ली जाएगी....इसकी बह्र एक बार फिर से देख कर आश्वस्त हो लें </span></p>
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<p>शुभकामनाएं </p>
<p><span>कर के वादा तू मुकरता है तो सुन,</span><br/><span>आज तेरी बात टाली जाएगी......बहुत सुन्दर </span></p>
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<p>पूरी ग़ज़ल बहुत सुन्दर हुई है आ० संदीप जी बहुत बहुत बधाई स्वीकारिये </p>
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<p><span>दास्ताँ कोई फिर बना ली जाएगी....इसकी बह्र एक बार फिर से देख कर आश्वस्त हो लें </span></p>
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<p>शुभकामनाएं </p>