Comments - ग़ज़ल - सच को अपनाने का जब ऐलान किया ! - Open Books Online2024-03-29T11:45:46Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A496858&xn_auth=noसादर प्रणाम अग्रज श्री !!tag:openbooks.ning.com,2014-01-15:5170231:Comment:4999032014-01-15T09:56:06.962ZAbhinav Arunhttps://openbooks.ning.com/profile/ArunKumarPandeyAbhinav
<p>सादर प्रणाम अग्रज श्री !!</p>
<p>सादर प्रणाम अग्रज श्री !!</p> हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाइयाँ…tag:openbooks.ning.com,2014-01-14:5170231:Comment:4997082014-01-14T10:16:31.841ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाइयाँ भाई अभिनव अरुण जी</p>
<p></p>
<p>हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाइयाँ भाई अभिनव अरुण जी</p>
<p></p> अर्दिक आभार आदरणीया सविता मिश…tag:openbooks.ning.com,2014-01-09:5170231:Comment:4980192014-01-09T11:26:37.430ZAbhinav Arunhttps://openbooks.ning.com/profile/ArunKumarPandeyAbhinav
<p>अर्दिक आभार आदरणीया सविता मिश्र जी बहुत शुक्रिया !</p>
<p>अर्दिक आभार आदरणीया सविता मिश्र जी बहुत शुक्रिया !</p> देश निकाला देकर सारे पेड़ों को…tag:openbooks.ning.com,2014-01-09:5170231:Comment:4977512014-01-09T05:20:33.985Zsavitamishrahttps://openbooks.ning.com/profile/savitamisra
<p>देश निकाला देकर सारे पेड़ों को ,<br/> हमने अपने शहरों को वीरान किया |....सुन्दर <br/>सभी में एक से बढ़कर एक सच्चाई बयान की है आपने</p>
<p>देश निकाला देकर सारे पेड़ों को ,<br/> हमने अपने शहरों को वीरान किया |....सुन्दर <br/>सभी में एक से बढ़कर एक सच्चाई बयान की है आपने</p> आपकी प्रेरक टिप्पणी केलिए आभा…tag:openbooks.ning.com,2014-01-09:5170231:Comment:4974942014-01-09T03:26:02.557ZAbhinav Arunhttps://openbooks.ning.com/profile/ArunKumarPandeyAbhinav
आपकी प्रेरक टिप्पणी केलिए आभार और अभिवादन आदरणीया वंदना जी , शुक्रिया !
आपकी प्रेरक टिप्पणी केलिए आभार और अभिवादन आदरणीया वंदना जी , शुक्रिया ! आदरणीय श्री दिलीप नैथानी जी द…tag:openbooks.ning.com,2014-01-09:5170231:Comment:4977462014-01-09T03:25:15.873ZAbhinav Arunhttps://openbooks.ning.com/profile/ArunKumarPandeyAbhinav
आदरणीय श्री दिलीप नैथानी जी दिली शुक्रिया आपका और नूतनवर्ष अभिनन्दन
आदरणीय श्री दिलीप नैथानी जी दिली शुक्रिया आपका और नूतनवर्ष अभिनन्दन आपका हार्दिक आभार अश'आर पसंद…tag:openbooks.ning.com,2014-01-09:5170231:Comment:4975762014-01-09T03:24:35.234ZAbhinav Arunhttps://openbooks.ning.com/profile/ArunKumarPandeyAbhinav
आपका हार्दिक आभार अश'आर पसंद करने केलिए आदरणीय श्री सरथी जी .
आपका हार्दिक आभार अश'आर पसंद करने केलिए आदरणीय श्री सरथी जी . सच को अपनाने का जब ऐलान किया…tag:openbooks.ning.com,2014-01-09:5170231:Comment:4975712014-01-09T00:30:34.592Zvandanahttps://openbooks.ning.com/profile/vandana956
<p><span>सच को अपनाने का जब ऐलान किया ,</span><br/><span>सबने मुझ पर बाणों का संधान किया |</span></p>
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<p>बहुत बढ़िया ग़ज़ल आदरणीय </p>
<p><span>सच को अपनाने का जब ऐलान किया ,</span><br/><span>सबने मुझ पर बाणों का संधान किया |</span></p>
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<p>बहुत बढ़िया ग़ज़ल आदरणीय </p> जागो रण में नींदें भारी पड़ती…tag:openbooks.ning.com,2014-01-08:5170231:Comment:4974802014-01-08T16:54:57.929Zआशीष नैथानी 'सलिल'https://openbooks.ning.com/profile/AshishNaithaniSalil
<p>जागो रण में नींदें भारी पड़ती हैं ,<br/>अभिमन्यू ने प्राणों का बलिदान किया | <strong> वाह वाह !!</strong></p>
<p></p>
<p>दूषित होकर भी गंगा गंगा ही है ,<br/>बेशक हमने अपना ही नुक्सान किया |<br/><br/>वृद्धाश्रम में नाम लिखाकर भूल गए ,<br/>हमने अपनों का ऐसा सम्मान किया | <strong> बेहतरीन !</strong></p>
<p></p>
<p><strong>इस लाजवाब ग़ज़ल पर दिली दाद आदरणीय !</strong></p>
<p>जागो रण में नींदें भारी पड़ती हैं ,<br/>अभिमन्यू ने प्राणों का बलिदान किया | <strong> वाह वाह !!</strong></p>
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<p>दूषित होकर भी गंगा गंगा ही है ,<br/>बेशक हमने अपना ही नुक्सान किया |<br/><br/>वृद्धाश्रम में नाम लिखाकर भूल गए ,<br/>हमने अपनों का ऐसा सम्मान किया | <strong> बेहतरीन !</strong></p>
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<p><strong>इस लाजवाब ग़ज़ल पर दिली दाद आदरणीय !</strong></p> देश निकाला देकर सारे पेड़ों को…tag:openbooks.ning.com,2014-01-08:5170231:Comment:4976702014-01-08T16:46:06.321ZSaarthi Baidyanathhttps://openbooks.ning.com/profile/saarthibaidyanath
<p><span>देश निकाला देकर सारे पेड़ों को ,</span><br/><span>हमने अपने शहरों को वीरान किया |....नवीन लगा ये बिम्ब ...वाह </span></p>
<p></p>
<p><span><span>बाहर बाहर उन्नतशील लबादे हैं</span><br/><span>भीतर भीतर मूल्यों को शमशान किया |....बहुत बढ़िया अभिनव अरुण साहब ...वाह </span></span></p>
<p><span>देश निकाला देकर सारे पेड़ों को ,</span><br/><span>हमने अपने शहरों को वीरान किया |....नवीन लगा ये बिम्ब ...वाह </span></p>
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<p><span><span>बाहर बाहर उन्नतशील लबादे हैं</span><br/><span>भीतर भीतर मूल्यों को शमशान किया |....बहुत बढ़िया अभिनव अरुण साहब ...वाह </span></span></p>