Comments - श्रद्धा - Open Books Online2024-03-28T23:11:49Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A487891&xn_auth=noकितनों की प्रखर प्रगतिशीलता क…tag:openbooks.ning.com,2013-12-19:5170231:Comment:4896112013-12-19T20:08:43.026ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>कितनों की प्रखर प्रगतिशीलता का आधार इतना नोनी लगा भी होता है ! ऐसा भी होता है !!</p>
<p>बधाई नीरज भाईजी.. आपकी संभवतः किस पहली प्रस्तुति से गुजर रहा हूँ.</p>
<p>शुभ-शुभ-शुभ हो</p>
<p></p>
<p>कितनों की प्रखर प्रगतिशीलता का आधार इतना नोनी लगा भी होता है ! ऐसा भी होता है !!</p>
<p>बधाई नीरज भाईजी.. आपकी संभवतः किस पहली प्रस्तुति से गुजर रहा हूँ.</p>
<p>शुभ-शुभ-शुभ हो</p>
<p></p> शायद! ऐसी विकृत मन:स्थिति तब…tag:openbooks.ning.com,2013-12-17:5170231:Comment:4884052013-12-17T17:46:36.224Zजितेन्द्र पस्टारियाhttps://openbooks.ning.com/profile/JitendraPastariya
<p>शायद! ऐसी विकृत मन:स्थिति तब बनती है, जब बच्चों को बहुत ज्यादा उम्र तक निर्णय लेने की क्षमता लायक न समझा जाता हो, और अधिक आश्रय मिलता हो, यहाँ तक की माता-पिता बड़ी उम्र के बच्चों को भी मुह में निवाला भी देते हो, ऐसे में बच्चे निकम्मे और मक्कार हो जाते है, और आश्रय छूटने पर ऐसी सोच रखने लगते है, बढ़िया लघुकथा आदरणीय नीरज जी बधाई स्वीकारें</p>
<p>शायद! ऐसी विकृत मन:स्थिति तब बनती है, जब बच्चों को बहुत ज्यादा उम्र तक निर्णय लेने की क्षमता लायक न समझा जाता हो, और अधिक आश्रय मिलता हो, यहाँ तक की माता-पिता बड़ी उम्र के बच्चों को भी मुह में निवाला भी देते हो, ऐसे में बच्चे निकम्मे और मक्कार हो जाते है, और आश्रय छूटने पर ऐसी सोच रखने लगते है, बढ़िया लघुकथा आदरणीय नीरज जी बधाई स्वीकारें</p> हालात और स्वार्थ इंसान को कित…tag:openbooks.ning.com,2013-12-17:5170231:Comment:4886162013-12-17T16:12:52.344ZDr.Prachi Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>हालात और स्वार्थ इंसान को कितना भावहीन बना देते हैं की एक बेटा पिता की मृत्यु पर ऐसी किसी संवेदनहीन विचारधारा के चलते स्वार्थपरक कर्म करने को बाध्य हो जाता है.</p>
<p></p>
<p>इस लघुकथा पर हार्दिक बधाई आ० नीरज खरे जी </p>
<p>हालात और स्वार्थ इंसान को कितना भावहीन बना देते हैं की एक बेटा पिता की मृत्यु पर ऐसी किसी संवेदनहीन विचारधारा के चलते स्वार्थपरक कर्म करने को बाध्य हो जाता है.</p>
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<p>इस लघुकथा पर हार्दिक बधाई आ० नीरज खरे जी </p> आदरणीय नीरज जी,
एक विद्रुप स…tag:openbooks.ning.com,2013-12-17:5170231:Comment:4886102013-12-17T15:45:38.381ZShubhranshu Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/ShubhranshuPandey
<p>आदरणीय नीरज जी, </p>
<p>एक विद्रुप सच्चाई है. जिसे नाकारा नहीं जा सकता है.</p>
<p>प्रेम चन्द की ’कफ़न’ शायद इन्ही मनःस्थितियों में कही गयी होगी.</p>
<p>सादर.</p>
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<p>आदरणीय नीरज जी, </p>
<p>एक विद्रुप सच्चाई है. जिसे नाकारा नहीं जा सकता है.</p>
<p>प्रेम चन्द की ’कफ़न’ शायद इन्ही मनःस्थितियों में कही गयी होगी.</p>
<p>सादर.</p>
<p></p> कुछ कपूत ऐसे भी होते हैं, यह…tag:openbooks.ning.com,2013-12-17:5170231:Comment:4882892013-12-17T11:16:18.153Zराजेश 'मृदु'https://openbooks.ning.com/profile/RajeshKumarJha
<p>कुछ कपूत ऐसे भी होते हैं, यह सही है । आपकी कथा के सत्य से मैं सहमत इसलिए हूं कि मैं उस घटना का भी साक्षी रहा हूं जब ऐसे ही किसी नालायक ने अपने पिता को मौत के घाट उतार दिया हालांकि वह पकड़ा गया और नौकरी के बदले जहन्नुम चला गया पर कुछ लोग विकृत मन:स्थिति वाले होते हैं, आपको बधाई इस प्रस्तुति पर</p>
<p>कुछ कपूत ऐसे भी होते हैं, यह सही है । आपकी कथा के सत्य से मैं सहमत इसलिए हूं कि मैं उस घटना का भी साक्षी रहा हूं जब ऐसे ही किसी नालायक ने अपने पिता को मौत के घाट उतार दिया हालांकि वह पकड़ा गया और नौकरी के बदले जहन्नुम चला गया पर कुछ लोग विकृत मन:स्थिति वाले होते हैं, आपको बधाई इस प्रस्तुति पर</p> कुछ के लिए हम सभी बेटों को स्…tag:openbooks.ning.com,2013-12-17:5170231:Comment:4882812013-12-17T10:52:45.260ZMeena Pathakhttps://openbooks.ning.com/profile/MeenaPathak
<p>कुछ के लिए हम सभी बेटों को स्वार्थी नही कह सकते आ० शिज्जू जी |<br/>सादर </p>
<p>कुछ के लिए हम सभी बेटों को स्वार्थी नही कह सकते आ० शिज्जू जी |<br/>सादर </p> बेटों का इतना कसैला चित्र ...…tag:openbooks.ning.com,2013-12-17:5170231:Comment:4883402013-12-17T10:51:14.870ZMeena Pathakhttps://openbooks.ning.com/profile/MeenaPathak
<p>बेटों का इतना कसैला चित्र ..... क्या कहूँ .. आप को बधाई दूँ या आने वाले समय को सोच कर सहम जाऊं | <br/><br/>माफ़ी चाहती हूँ एक सवालहै "आप सब भी बेटे हैं क्या ऐसा ही सोचते हैं अपने माता-पिता के लिए ?" आप सब मुझे क्षमा कीजियेगा मेरी बात बुरी लगी हो तो | लघुकथा पढ़ के सहम गई मै क्यों कि मेरे भी बेटे हैं और मैंने उन्हें सीख और संस्कार के सिवा कुछ नही दिया ना दे जाऊँगी तो क्या वो भी मुझे ..............नहीं सोच भी नही सकती मुझे अपने बेटों पर गर्व है |</p>
<p>बेटों का इतना कसैला चित्र ..... क्या कहूँ .. आप को बधाई दूँ या आने वाले समय को सोच कर सहम जाऊं | <br/><br/>माफ़ी चाहती हूँ एक सवालहै "आप सब भी बेटे हैं क्या ऐसा ही सोचते हैं अपने माता-पिता के लिए ?" आप सब मुझे क्षमा कीजियेगा मेरी बात बुरी लगी हो तो | लघुकथा पढ़ के सहम गई मै क्यों कि मेरे भी बेटे हैं और मैंने उन्हें सीख और संस्कार के सिवा कुछ नही दिया ना दे जाऊँगी तो क्या वो भी मुझे ..............नहीं सोच भी नही सकती मुझे अपने बेटों पर गर्व है |</p> आदरणीय नीरज भाई , पुत्र के स्…tag:openbooks.ning.com,2013-12-17:5170231:Comment:4885292013-12-17T10:14:59.804Zगिरिराज भंडारीhttps://openbooks.ning.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरणीय नीरज भाई , पुत्र के स्वार्थ की पराकाष्ठा को आपने कथा मे सुन्दरता से उकेरा है । लघुकथा के लिये बधाई ॥</p>
<p>आदरणीय नीरज भाई , पुत्र के स्वार्थ की पराकाष्ठा को आपने कथा मे सुन्दरता से उकेरा है । लघुकथा के लिये बधाई ॥</p> नीरज जी
अत्यंत सुन्दर कथ्य है…tag:openbooks.ning.com,2013-12-17:5170231:Comment:4885132013-12-17T09:15:59.762Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>नीरज जी</p>
<p>अत्यंत सुन्दर कथ्य है i मन को छु गया i बधाई हो i</p>
<p>नीरज जी</p>
<p>अत्यंत सुन्दर कथ्य है i मन को छु गया i बधाई हो i</p> सोचने पर मज़बूर करती है ये आपक…tag:openbooks.ning.com,2013-12-16:5170231:Comment:4882242013-12-16T17:52:00.941Zram shiromani pathakhttps://openbooks.ning.com/profile/ramshiromanipathak
<p>सोचने पर मज़बूर करती है ये आपकी लघुकथा आदरणीय मैंने तो कई बार पढ़ा बहुत ही सुन्दर सृजन बधाई आपको। ......... सादर </p>
<p>सोचने पर मज़बूर करती है ये आपकी लघुकथा आदरणीय मैंने तो कई बार पढ़ा बहुत ही सुन्दर सृजन बधाई आपको। ......... सादर </p>