Comments - 'मैं' को ध्येय बनाऊँगी - Open Books Online2024-03-28T11:50:33Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A482479&xn_auth=noआभार आदरणीय सक्सेना जी
सादरtag:openbooks.ning.com,2014-02-25:5170231:Comment:5157232014-02-25T19:29:19.881ZVindu Babuhttps://openbooks.ning.com/profile/vandanatiwari
<p>आभार आदरणीय सक्सेना जी</p>
<p>सादर</p>
<p>आभार आदरणीय सक्सेना जी</p>
<p>सादर</p> सुंदर प्रस्तुति आदरणीया।tag:openbooks.ning.com,2014-01-23:5170231:Comment:5032112014-01-23T08:35:49.596ZMadan Mohan saxenahttps://openbooks.ning.com/profile/MadanMohansaxena
सुंदर प्रस्तुति आदरणीया।
सुंदर प्रस्तुति आदरणीया। अरे आदरणीया गीतिका जी आप तो ब…tag:openbooks.ning.com,2013-12-11:5170231:Comment:4855202013-12-11T08:04:40.414ZVindu Babuhttps://openbooks.ning.com/profile/vandanatiwari
अरे आदरणीया गीतिका जी आप तो बुरा मान गईं!<br />
और गुस्सा मेरे साधारण से प्रयास पर...प्रतिक्रिया वापस लेकर।<br />
कुछ देकर वापस लेना,वो भी इतनी जल्दी...ऐसा थोड़ी होता है,थोड़ा बहुत तो हास-परिहास चलता है न!<br />
फिर प्रश्न पूछना गलत है क्या?<br />
उत्तर देना न देना अपनी जगह पर।<br />
निवेदन है सहयोग बनाए रखें।<br />
सादर
अरे आदरणीया गीतिका जी आप तो बुरा मान गईं!<br />
और गुस्सा मेरे साधारण से प्रयास पर...प्रतिक्रिया वापस लेकर।<br />
कुछ देकर वापस लेना,वो भी इतनी जल्दी...ऐसा थोड़ी होता है,थोड़ा बहुत तो हास-परिहास चलता है न!<br />
फिर प्रश्न पूछना गलत है क्या?<br />
उत्तर देना न देना अपनी जगह पर।<br />
निवेदन है सहयोग बनाए रखें।<br />
सादर आदरणीय सौरभ सर आपकी रचना पर प…tag:openbooks.ning.com,2013-12-11:5170231:Comment:4855192013-12-11T07:35:21.560ZVindu Babuhttps://openbooks.ning.com/profile/vandanatiwari
आदरणीय सौरभ सर आपकी रचना पर प्रतिक्रिया पाकर आत्मबल बढा,इसके लिए आपका हार्दिक आभार।<br />
मैं आपके कथ्य को आत्मसात कर सुधार का प्रयास करूंगी।<br />
स्नेह बनाए रखें आदरणीय।<br />
सादर
आदरणीय सौरभ सर आपकी रचना पर प्रतिक्रिया पाकर आत्मबल बढा,इसके लिए आपका हार्दिक आभार।<br />
मैं आपके कथ्य को आत्मसात कर सुधार का प्रयास करूंगी।<br />
स्नेह बनाए रखें आदरणीय।<br />
सादर //एक प्रश्न आदरणीया गीतिका जी…tag:openbooks.ning.com,2013-12-10:5170231:Comment:4851712013-12-10T15:29:27.792Zवेदिकाhttps://openbooks.ning.com/profile/vedikagitika
<p>//एक प्रश्न आदरणीया गीतिका जी से - क्या वास्तव में कल्पना असीम होती है? क्या रचना में प्रयुक्त 'सीमाओं' शब्द कल्पना की सीमाओं के लिए है, या सामर्थ्य की सीमाओं के लिए, या और किसी ओर इशारा है?</p>
<p>आपके मार्गदर्शन के प्रतीक्षा रहेगी!//</p>
<p>आदरणीय बृजेश जी! किसी रचनाकार की रचना पर मै आपको मार्गदर्शन देने का दुस्साहस नहीं कर सकती| मै अपनी प्रतिक्रिया वापस लेती हूँ|</p>
<p></p>
<p>//एक प्रश्न आदरणीया गीतिका जी से - क्या वास्तव में कल्पना असीम होती है? क्या रचना में प्रयुक्त 'सीमाओं' शब्द कल्पना की सीमाओं के लिए है, या सामर्थ्य की सीमाओं के लिए, या और किसी ओर इशारा है?</p>
<p>आपके मार्गदर्शन के प्रतीक्षा रहेगी!//</p>
<p>आदरणीय बृजेश जी! किसी रचनाकार की रचना पर मै आपको मार्गदर्शन देने का दुस्साहस नहीं कर सकती| मै अपनी प्रतिक्रिया वापस लेती हूँ|</p>
<p></p> टिप्पणियों से ज्ञात हुआ कि यह…tag:openbooks.ning.com,2013-12-10:5170231:Comment:4850632013-12-10T14:52:03.085ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>टिप्पणियों से ज्ञात हुआ कि यह आपकी पहली मात्रिक कविता है. इस प्रयास पर हार्दिक बधाई, वन्दनाजी.<br></br>लेकिन एक बात अवश्य कहना चाहूँगा, यदि मुझे सुना गया तो ! कारण, कि अबतक का मेरा अनुभव यही बताता है कि हम अपने कथ्य या तथ्यों के प्रति इतने आग्रही हो गये हैं कि किसी से कुछ सुनना सहज प्रतीत नहीं होता. इसे आप अपने पर कोई टिप्पणी या कटाक्ष न मानें इसकी प्रार्थना है.</p>
<p></p>
<p>विधा कोई हो, प्रयास के साथ उस विधा की मूलभूत बातों को सदा मस्तिष्क में पृष्ठभूमि-धुन की तरह बजते रहना चाहिये अन्यथा गहन…</p>
<p>टिप्पणियों से ज्ञात हुआ कि यह आपकी पहली मात्रिक कविता है. इस प्रयास पर हार्दिक बधाई, वन्दनाजी.<br/>लेकिन एक बात अवश्य कहना चाहूँगा, यदि मुझे सुना गया तो ! कारण, कि अबतक का मेरा अनुभव यही बताता है कि हम अपने कथ्य या तथ्यों के प्रति इतने आग्रही हो गये हैं कि किसी से कुछ सुनना सहज प्रतीत नहीं होता. इसे आप अपने पर कोई टिप्पणी या कटाक्ष न मानें इसकी प्रार्थना है.</p>
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<p>विधा कोई हो, प्रयास के साथ उस विधा की मूलभूत बातों को सदा मस्तिष्क में पृष्ठभूमि-धुन की तरह बजते रहना चाहिये अन्यथा गहन कथ्य बस किसी भार की तरह लदे दीखते हैं. <br/>आपकी इस कविता में मात्रिकता के मूलभूत नियमों का निर्वहन नहीं हुआ है. <br/>बाकी, सभीने बहुत कुछ कहा है. <br/><br/>आपका प्रश्न हो सकता है कि मात्रिकता के वो मूलभूत नियम कहाँ हैं.</p>
<p>उत्तर है, आपकी जिज्ञासा और आपके सतत अध्ययन में.</p>
<p>आप इसी मंच पर हैं. समुचित समय दें. हर कुछ पर चर्चा होती है. स्पष्ट होता रहेगा. <br/>शुभेच्छाएँ<br/><br/></p> आदरणीय शरदेन्दु सर नमस्ते।
आप…tag:openbooks.ning.com,2013-12-09:5170231:Comment:4844662013-12-09T02:56:29.408ZVindu Babuhttps://openbooks.ning.com/profile/vandanatiwari
आदरणीय शरदेन्दु सर नमस्ते।<br />
आपकी टिप्पणी पाकर मन बहुत खुश हुआ।<br />
आपने कहा 'गम्भीर विद्यार्थी'... गंभीरता आई इसका मतलब अब 'सीखना' भी आ जाएगा।<br />
<br />
आपके दृष्टिकोण को प्रणाम है,कविता का उद्गम 'भाव' से होता है और कविता का हृदय में विलय होने पर भी भावसम्वर्धन ही होता है इसलिए भाव ही तो प्रधान है।<br />
<br />
इस रचना के भाव पर आंशिक ही सही पर चर्चा हुई,रचनाकर्म सार्थक हुआ,मैं मंच की आभारी हूं।<br />
<br />
//भावों ते माध्यम से रचनाकार और पाठक के बीच सफलतापूर्वक संवाद होता रहे,तो कोई भी रचना सार्थक और सुन्दर है//<br />
आपकी यह बात मेरे…
आदरणीय शरदेन्दु सर नमस्ते।<br />
आपकी टिप्पणी पाकर मन बहुत खुश हुआ।<br />
आपने कहा 'गम्भीर विद्यार्थी'... गंभीरता आई इसका मतलब अब 'सीखना' भी आ जाएगा।<br />
<br />
आपके दृष्टिकोण को प्रणाम है,कविता का उद्गम 'भाव' से होता है और कविता का हृदय में विलय होने पर भी भावसम्वर्धन ही होता है इसलिए भाव ही तो प्रधान है।<br />
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इस रचना के भाव पर आंशिक ही सही पर चर्चा हुई,रचनाकर्म सार्थक हुआ,मैं मंच की आभारी हूं।<br />
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//भावों ते माध्यम से रचनाकार और पाठक के बीच सफलतापूर्वक संवाद होता रहे,तो कोई भी रचना सार्थक और सुन्दर है//<br />
आपकी यह बात मेरे हृदय को छू गई। यह आपने मुझे ही नही पूरे मंच को संदेश दिया है।<br />
आपका हृदयातल से बारम्बार आभार आदरणीय।<br />
शुभ शुभ<br />
सादर आदरणीय बृजेश सर आपकी प्रतिक्र…tag:openbooks.ning.com,2013-12-09:5170231:Comment:4843862013-12-09T00:55:02.087ZVindu Babuhttps://openbooks.ning.com/profile/vandanatiwari
आदरणीय बृजेश सर आपकी प्रतिक्रिया हमारा सम्बल है। आपका प्रश्न रचना को और स्पष्टता की ओर ले जा रहा है।<br />
आपका बहुत आभार आदरणीय<br />
सादर
आदरणीय बृजेश सर आपकी प्रतिक्रिया हमारा सम्बल है। आपका प्रश्न रचना को और स्पष्टता की ओर ले जा रहा है।<br />
आपका बहुत आभार आदरणीय<br />
सादर आदरणीय विजय सर आपकी टिप्पणी स…tag:openbooks.ning.com,2013-12-09:5170231:Comment:4843062013-12-09T00:48:35.913ZVindu Babuhttps://openbooks.ning.com/profile/vandanatiwari
आदरणीय विजय सर आपकी टिप्पणी से यूं लगा जैसे रचना में और वजन आ गया है।<br />
आपने रचना को अपने मनोभाव से जोड़ा,ये सच में मेरे लिए बहुत गौरव की बात है।<br />
आपके स्नेह की आभारी हूं आदरणीय,आशीर्वाद बनाए रखें।<br />
आपका हार्दिक आभार<br />
सादर
आदरणीय विजय सर आपकी टिप्पणी से यूं लगा जैसे रचना में और वजन आ गया है।<br />
आपने रचना को अपने मनोभाव से जोड़ा,ये सच में मेरे लिए बहुत गौरव की बात है।<br />
आपके स्नेह की आभारी हूं आदरणीय,आशीर्वाद बनाए रखें।<br />
आपका हार्दिक आभार<br />
सादर आदरणीया वंदना जी, आपकी इस रचन…tag:openbooks.ning.com,2013-12-08:5170231:Comment:4843042013-12-08T20:28:34.676Zsharadindu mukerjihttps://openbooks.ning.com/profile/sharadindumukerji
<p>आदरणीया वंदना जी, आपकी इस रचना को कई बार पढ़ा. बहुत गहन भाव हैं. शिल्प के विषय में विद्वानों ने थोड़ा इंगित किया है...आप गम्भीर विद्यार्थी हैं साहित्य के क्षेत्र में, शीघ्र ही 'कविता' के हर आंगिक में महारत भी हासिल करेंगी इसमें मुझे कोई संदेह नहीं है...वैसे मुझसे ये बातें नि:संदेह हास्यास्पद हैं क्योंकि मेरी रचनाएँ आवारा बादल की तरह होती हैं....मै शिल्प का जानता ही क्या हूँ. हाँ, भाव तो दिल को छूते हैं. भावों के माध्यम से यदि रचनाकार और पाठक के बीच संवाद सफलतापूर्वक होता रहे तो कोई भी रचना…</p>
<p>आदरणीया वंदना जी, आपकी इस रचना को कई बार पढ़ा. बहुत गहन भाव हैं. शिल्प के विषय में विद्वानों ने थोड़ा इंगित किया है...आप गम्भीर विद्यार्थी हैं साहित्य के क्षेत्र में, शीघ्र ही 'कविता' के हर आंगिक में महारत भी हासिल करेंगी इसमें मुझे कोई संदेह नहीं है...वैसे मुझसे ये बातें नि:संदेह हास्यास्पद हैं क्योंकि मेरी रचनाएँ आवारा बादल की तरह होती हैं....मै शिल्प का जानता ही क्या हूँ. हाँ, भाव तो दिल को छूते हैं. भावों के माध्यम से यदि रचनाकार और पाठक के बीच संवाद सफलतापूर्वक होता रहे तो कोई भी रचना सार्थक और सुंदर है. मेरे दृष्टिकोण से इस कसौटी पर आपकी रचना खरी उतरती है. आपसे इस मंच की बहुत आशाएँ बँध रही हैं. हार्दिक शुभकामनाएँ.</p>