Comments - भिखारिन (हास्य व्यंग्य) अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव - Open Books Online2024-03-29T11:15:46Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A478015&xn_auth=no नारी सशक्तीकरण, नारी स्वतंत्…tag:openbooks.ning.com,2013-11-30:5170231:Comment:4798702013-11-30T03:32:13.124Zrajesh kumarihttps://openbooks.ning.com/profile/rajeshkumari
<p><span> नारी सशक्तीकरण, नारी स्वतंत्रता की बात करने वाले कुछ लोग जेल में हैं और कुछ जाने वाले हैं। //???.......उन कुछ लोगों के नाम भी बता देते तो समझने में आसानी होती. </span></p>
<p><span> नारी सशक्तीकरण, नारी स्वतंत्रता की बात करने वाले कुछ लोग जेल में हैं और कुछ जाने वाले हैं। //???.......उन कुछ लोगों के नाम भी बता देते तो समझने में आसानी होती. </span></p> आदरणीय बृजेश जी से पूर्णत सहम…tag:openbooks.ning.com,2013-11-29:5170231:Comment:4800092013-11-29T21:00:54.384Zवेदिकाhttps://openbooks.ning.com/profile/vedikagitika
<div class="xg_user_generated"><p>आदरणीय बृजेश जी से पूर्णत सहमत हूँ|</p>
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<p>//आप सभी अपने विचार व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र हैं वैसे ही वह परिवार भी स्वतंत्र था निर्णय लेने के लिए। देश का उच्च वर्ग, फिल्म टीवी के कलाकार , चैनल्स वाले, बड़े उद्योग घराने , क्रिकेट से अरबों कमाने वाले और अति आधुनिक दिखने के चक्कर में अमेरिका यूरोप का अंध समर्थन करने वाले ये <strong>॥ छः लोग ॥</strong> हमारी संस्कृति , परम्परा रीति रिवाज से कभी सहमत न होंगे॥ कुछ उदाहरण सहित अपनी बात स्पष्ट कर दूं…</p>
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<div class="xg_user_generated"><p>आदरणीय बृजेश जी से पूर्णत सहमत हूँ|</p>
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<p>//आप सभी अपने विचार व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र हैं वैसे ही वह परिवार भी स्वतंत्र था निर्णय लेने के लिए। देश का उच्च वर्ग, फिल्म टीवी के कलाकार , चैनल्स वाले, बड़े उद्योग घराने , क्रिकेट से अरबों कमाने वाले और अति आधुनिक दिखने के चक्कर में अमेरिका यूरोप का अंध समर्थन करने वाले ये <strong>॥ छः लोग ॥</strong> हमारी संस्कृति , परम्परा रीति रिवाज से कभी सहमत न होंगे॥ कुछ उदाहरण सहित अपनी बात स्पष्ट कर दूं ....<strong>//</strong></p>
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<p>आ०अखिलेश जी! आपकी एक एक बात का जवाब विस्तार से दिया जा सकता है लेकिन उस चर्चा को करना केवल समय खराब करना है| और आप इस तरह जिन छह लोगों को इंगित कर रहे है क्या वह आपके अधिकार-क्षेत्र मे आता है? </p>
<p>ओबीओ लाइव महोत्सव का विषय को मुद्दा बनाकर आप क्या दर्शाना चाहते है? जबकि वह सफल आयोजन था| </p>
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<p>//परम्परायें टूट रहीं हैं परिवार बिखर चुका है, शिक्षा संस्कृति भाषा वेश- भूषा कुछ भी अपना नहीं है, हमारी सभ्यता नष्ट हो रही है, हम आज भी गुलाम हैं आदि- आदि। रचनाओं पर सब ने सब को बधाई दी। मैं आज भी कहता हूँ - गुलाम तो 69 देश हुए थे पर भारत जैसा हर बात में बिना सोचे समझे नकल करने वाला कोई न हुआ। नारी सशक्तीकरण, नारी स्वतंत्रता की बात करने वाले कुछ लोग जेल में हैं और कुछ जाने वाले हैं। //</p>
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<p>क्या अर्थ है इन बेमतलब की विस्तारना का, और व्यर्थ के मुद्दे को पोषण देने का? आपसे अनुरोध है की आप ऐसी विवादित टिप्पणियाँ देने से बचिए| और विषयांतर करके अन्य चर्चा करके स्वयं को एनीहाउ सिध्द करने की कोशिश मत करिए|</p>
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<p>//आदरणीय विजय भाई एवं आदरणीय राजेश भाई बड़ी मजबूती और तर्क पूर्वक मेरी रचना के पक्ष में लगातार अपने विचार प्रकट करते रहे,// जैसे कथनों से आप पाठकवर्ग को गुट मे बाँट कर क्यूँ वोट एकत्र कर रहे हैं?</p>
<p>यह मंच साहित्यिक मंच है कोई राजनैतिक मंच नही| आप अपना सम्मान भी बनाए रखिए और दूसरों का भी सम्मान करिए|</p>
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</div> आदरणीय अखिलेश जी, आपकी टिप्पण…tag:openbooks.ning.com,2013-11-29:5170231:Comment:4799092013-11-29T15:33:16.366Zबृजेश नीरजhttps://openbooks.ning.com/profile/BrijeshKumarSingh
<p>आदरणीय अखिलेश जी, आपकी टिप्पणी से लगता है कि आपने यह रचना किसी विचारधारा को पुष्ट करने के लिए लिखी है. मैं इस प्रवृत्ति का विरोध करता हूँ. आपके द्वारा चुने गए विषय पर हाल ही में देश में बहुत हो-हल्ला हो चुका है. ये पंचायत नहीं है और न यहाँ से फतवे जारी होते हैं.</p>
<p>जिस तरह की आपत्तियां आज जींस और टॉप को लेकर होती हैं वैसी ही कभी सलवार-कुर्ते को लेकर भी होती थीं. समाज में फ़ैली गन्दगी वस्त्रों के कारण नहीं, बच्चों को सही शिक्षा न मिल पाने और सामाजिक मूल्यों में आती गिरावट के कारण…</p>
<p>आदरणीय अखिलेश जी, आपकी टिप्पणी से लगता है कि आपने यह रचना किसी विचारधारा को पुष्ट करने के लिए लिखी है. मैं इस प्रवृत्ति का विरोध करता हूँ. आपके द्वारा चुने गए विषय पर हाल ही में देश में बहुत हो-हल्ला हो चुका है. ये पंचायत नहीं है और न यहाँ से फतवे जारी होते हैं.</p>
<p>जिस तरह की आपत्तियां आज जींस और टॉप को लेकर होती हैं वैसी ही कभी सलवार-कुर्ते को लेकर भी होती थीं. समाज में फ़ैली गन्दगी वस्त्रों के कारण नहीं, बच्चों को सही शिक्षा न मिल पाने और सामाजिक मूल्यों में आती गिरावट के कारण हैं.</p>
<p>किसी के वस्त्रों पर टिपण्णी करने या इस विषय पर बहस के लिए ये मंच नहीं है. किसी भी प्रकार के कठमुल्लापन से बचने की आवश्यकता कम से कम इस मंच पर अवश्य है.</p>
<p>साहित्यिक चर्चाओं की ही अपेक्षा है सभी सदस्यों से.</p>
<p>सादर!</p> आदरणीय विजय भाई एवं आदरणीय रा…tag:openbooks.ning.com,2013-11-29:5170231:Comment:4794032013-11-29T14:22:41.505Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p>आदरणीय विजय भाई एवं आदरणीय राजेश भाई बड़ी मजबूती और तर्क पूर्वक मेरी रचना के पक्ष में लगातार अपने विचार प्रकट करते रहे, इसके लिए हार्दिक धन्यवाद और आभार स्वीकार करें॥पश्चिम से प्रभावित और बाज़ारवाद से ग्रस्त भारत के संबंध में विस्तृत जानकारी देने के लिए पुनः धन्यवाद विजय भाई । बृजेश भाई एवं संदीप भाई रचना पर अपनी राय और सुझाव के लिए हार्दिक धन्यवाद स्वीकार करें॥</p>
<p>आदरणीया कुंतीजी एवं आदरणीय निलेश भाई विचार प्रकट करने के लिए धन्यवाद। अनुरोध है कि इस पर मेरी राय और सविस्तार टिप्पणी पर…</p>
<p>आदरणीय विजय भाई एवं आदरणीय राजेश भाई बड़ी मजबूती और तर्क पूर्वक मेरी रचना के पक्ष में लगातार अपने विचार प्रकट करते रहे, इसके लिए हार्दिक धन्यवाद और आभार स्वीकार करें॥पश्चिम से प्रभावित और बाज़ारवाद से ग्रस्त भारत के संबंध में विस्तृत जानकारी देने के लिए पुनः धन्यवाद विजय भाई । बृजेश भाई एवं संदीप भाई रचना पर अपनी राय और सुझाव के लिए हार्दिक धन्यवाद स्वीकार करें॥</p>
<p>आदरणीया कुंतीजी एवं आदरणीय निलेश भाई विचार प्रकट करने के लिए धन्यवाद। अनुरोध है कि इस पर मेरी राय और सविस्तार टिप्पणी पर भी गौर करने की कृपा करें । ........सादर । </p>
<p></p> रचना में न तो हास्य है न व्यं…tag:openbooks.ning.com,2013-11-29:5170231:Comment:4793842013-11-29T12:08:00.264ZNilesh Shevgaonkarhttps://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>रचना में न तो हास्य है न व्यंग्य ..... अलबत्ता तालिबानी मानसिकता पर दु:ख अवश्य हुआ है </p>
<p>रचना में न तो हास्य है न व्यंग्य ..... अलबत्ता तालिबानी मानसिकता पर दु:ख अवश्य हुआ है </p> अखिलेश जी लगता है आप समाज से…tag:openbooks.ning.com,2013-11-29:5170231:Comment:4794482013-11-29T10:08:23.025Zcoontee mukerjihttps://openbooks.ning.com/profile/coonteemukerji
<p>अखिलेश जी लगता है आप समाज से देश से दुनिया से रूष्ट है. अच्छा सोचिये,अच्छा देखिये, अच्छा लिखिये. दुनिया बहुत सुंदर है.पर्यटन कीजिये.विचारों की संकीर्णता से बच जायेंगे.खुश रहिये.</p>
<p>अखिलेश जी लगता है आप समाज से देश से दुनिया से रूष्ट है. अच्छा सोचिये,अच्छा देखिये, अच्छा लिखिये. दुनिया बहुत सुंदर है.पर्यटन कीजिये.विचारों की संकीर्णता से बच जायेंगे.खुश रहिये.</p> मंच में जब अपरिहार्य कारणों स…tag:openbooks.ning.com,2013-11-28:5170231:Comment:4788102013-11-28T14:35:39.251ZSANDEEP KUMAR PATELhttps://openbooks.ning.com/profile/SANDEEPKUMARPATEL
<p>मंच में जब अपरिहार्य कारणों से विवाद होने लगे तो अग्रजों को सामने आना चाहिए ताकि मंच में सौहार्द पूर्ण माहौल बना रहे..............और यदि रचना इतनी बुरी होती या इसमें कुछ न होता तो वह इस मंच में नहीं दिख रही होती यह सभी पाठकों को समझना चाहिए ये कवी के अपने विचार हैं इससे यह आवश्यक नहीं है के सभी सहमत हों ....................यही इस मंच की विशेषता है </p>
<p>मंच में जब अपरिहार्य कारणों से विवाद होने लगे तो अग्रजों को सामने आना चाहिए ताकि मंच में सौहार्द पूर्ण माहौल बना रहे..............और यदि रचना इतनी बुरी होती या इसमें कुछ न होता तो वह इस मंच में नहीं दिख रही होती यह सभी पाठकों को समझना चाहिए ये कवी के अपने विचार हैं इससे यह आवश्यक नहीं है के सभी सहमत हों ....................यही इस मंच की विशेषता है </p> मै भी आ० बृजेश जी ही का मान…tag:openbooks.ning.com,2013-11-28:5170231:Comment:4786622013-11-28T13:45:04.820ZMeena Pathakhttps://openbooks.ning.com/profile/MeenaPathak
<p>मै भी आ० बृजेश जी ही का मान रख रही हूँ आ० मृदु जी .... </p>
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<p>मै भी आ० बृजेश जी ही का मान रख रही हूँ आ० मृदु जी .... </p>
<p></p> अब मै कुछ नही बोलूँगी आ० मृदु…tag:openbooks.ning.com,2013-11-28:5170231:Comment:4784962013-11-28T13:35:20.771ZMeena Pathakhttps://openbooks.ning.com/profile/MeenaPathak
<p>अब मै कुछ नही बोलूँगी आ० मृदु जी ......</p>
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<p>अब मै कुछ नही बोलूँगी आ० मृदु जी ......</p>
<p></p> आदरणीय बृजेश जी से मैं सहमत ह…tag:openbooks.ning.com,2013-11-28:5170231:Comment:4787282013-11-28T13:34:24.643Zराजेश 'मृदु'https://openbooks.ning.com/profile/RajeshKumarJha
<p>आदरणीय बृजेश जी से मैं सहमत हूं ।</p>
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<p>आदरणीय बृजेश जी से मैं सहमत हूं ।</p>
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