Comments - गीत (रिश्ते नाते हारे) - Open Books Online2024-03-29T06:14:49Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A461299&xn_auth=noआशीर्वचनों के लिए आपका हार्दि…tag:openbooks.ning.com,2013-11-05:5170231:Comment:4669912013-11-05T02:54:40.509ZSushil.Joshihttps://openbooks.ning.com/profile/SushilJoshi
<p>आशीर्वचनों के लिए आपका हार्दिक आभार आ0 विजय निकोरे जी....</p>
<p>आशीर्वचनों के लिए आपका हार्दिक आभार आ0 विजय निकोरे जी....</p> रिशतों की सच्चाई को बयां करत…tag:openbooks.ning.com,2013-10-30:5170231:Comment:4642072013-10-30T07:06:43.296Zvijay nikorehttps://openbooks.ning.com/profile/vijaynikore
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<p>रिशतों की सच्चाई को बयां करती यह रचना भावपूर्ण है... आपको बधाई।</p>
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<p>सादर,</p>
<p>विजय निकोर</p>
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<p>रिशतों की सच्चाई को बयां करती यह रचना भावपूर्ण है... आपको बधाई।</p>
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<p>सादर,</p>
<p>विजय निकोर</p>
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<p> </p> गीत के मर्म तक पहुँचकर अनुमोद…tag:openbooks.ning.com,2013-10-30:5170231:Comment:4638792013-10-30T01:54:37.825ZSushil.Joshihttps://openbooks.ning.com/profile/SushilJoshi
<p>गीत के मर्म तक पहुँचकर अनुमोदन करने हेतु आपका कोटि कोटि धन्यवाद आ0 विजय जी.....</p>
<p>गीत के मर्म तक पहुँचकर अनुमोदन करने हेतु आपका कोटि कोटि धन्यवाद आ0 विजय जी.....</p> बहुत बहुत धन्यवाद आपका आ0 राम…tag:openbooks.ning.com,2013-10-30:5170231:Comment:4638782013-10-30T01:53:27.396ZSushil.Joshihttps://openbooks.ning.com/profile/SushilJoshi
<p>बहुत बहुत धन्यवाद आपका आ0 राम भाई......</p>
<p>बहुत बहुत धन्यवाद आपका आ0 राम भाई......</p> ह्रदयतल से आभार आपका आ0 जितेन…tag:openbooks.ning.com,2013-10-30:5170231:Comment:4641112013-10-30T01:53:07.265ZSushil.Joshihttps://openbooks.ning.com/profile/SushilJoshi
<p>ह्रदयतल से आभार आपका आ0 जितेन्द्र भाई जी....</p>
<p>ह्रदयतल से आभार आपका आ0 जितेन्द्र भाई जी....</p> बहुत बहुत धन्यवाद रचना पसंद क…tag:openbooks.ning.com,2013-10-30:5170231:Comment:4640732013-10-30T01:52:24.942ZSushil.Joshihttps://openbooks.ning.com/profile/SushilJoshi
<p>बहुत बहुत धन्यवाद रचना पसंद कर टिप्पणी देने के लिए आ0 राजेश जी...</p>
<p>बहुत बहुत धन्यवाद रचना पसंद कर टिप्पणी देने के लिए आ0 राजेश जी...</p> श्रध्येय सुशीलजी ,रोम-रोम से…tag:openbooks.ning.com,2013-10-29:5170231:Comment:4636912013-10-29T07:55:31.190Zविजय मिश्रhttps://openbooks.ning.com/profile/37jicf27kggmy
श्रध्येय सुशीलजी ,रोम-रोम से द्रवित करने वाली रचना है , एक ही बात कई तरह से कही जा सकती है मगर आपने जिस तरह से कहा है यह आत्म उद्बोधन से कम नहीं लगता , मर्म पर आघात करती है आपकी यह रचना , सोचने को बाध्य करती है ,परिस्थितियों की अनुभूति कराने में पूर्ण सक्षम है . आत्मीय अनुग्रह एवं आभार .धन्य .
श्रध्येय सुशीलजी ,रोम-रोम से द्रवित करने वाली रचना है , एक ही बात कई तरह से कही जा सकती है मगर आपने जिस तरह से कहा है यह आत्म उद्बोधन से कम नहीं लगता , मर्म पर आघात करती है आपकी यह रचना , सोचने को बाध्य करती है ,परिस्थितियों की अनुभूति कराने में पूर्ण सक्षम है . आत्मीय अनुग्रह एवं आभार .धन्य . आदरणीय शुशील जी , बहुत ही…tag:openbooks.ning.com,2013-10-29:5170231:Comment:4633912013-10-29T06:01:46.530Zram shiromani pathakhttps://openbooks.ning.com/profile/ramshiromanipathak
<p> आदरणीय शुशील जी , बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति // बहुत बहुत बधाई///सादर </p>
<p> आदरणीय शुशील जी , बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति // बहुत बहुत बधाई///सादर </p> आज के अपने अपने स्वार्थ, छल,…tag:openbooks.ning.com,2013-10-29:5170231:Comment:4635512013-10-29T05:55:13.108Zजितेन्द्र पस्टारियाhttps://openbooks.ning.com/profile/JitendraPastariya
<p>आज के अपने अपने स्वार्थ, छल, कपट को पूर्णत: स्पष्ट करते सुंदर भाव से संजोयी गीत रचना पर, बधाई स्वीकारें आदरणीय शुशील जी</p>
<p>आज के अपने अपने स्वार्थ, छल, कपट को पूर्णत: स्पष्ट करते सुंदर भाव से संजोयी गीत रचना पर, बधाई स्वीकारें आदरणीय शुशील जी</p> इस सुंदर रचना पर हार्दिक बधाई…tag:openbooks.ning.com,2013-10-28:5170231:Comment:4625362013-10-28T09:42:52.346Zराजेश 'मृदु'https://openbooks.ning.com/profile/RajeshKumarJha
<p>इस सुंदर रचना पर हार्दिक बधाई विशेषकर अंतिम चार पंक्तियों के लिए डबल बधाई, सादर</p>
<p>इस सुंदर रचना पर हार्दिक बधाई विशेषकर अंतिम चार पंक्तियों के लिए डबल बधाई, सादर</p>