Comments - गजल - Open Books Online2024-03-29T01:22:43Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A451116&xn_auth=noइस अद्भुत ग़ज़ल को इस मंच के उप…tag:openbooks.ning.com,2013-10-16:5170231:Comment:4559122013-10-16T06:23:14.079ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>इस अद्भुत ग़ज़ल को इस मंच के उपलब्धि भी मानूँगा. आपकी कोशिश और ताक़त पर मेरी हार्दिक बधाइयाँ..</p>
<p>जिन सुधीजनों ने सुझाव दिये हैं, उनपर गहन विचार करें और अमल करें. वो तकनीकी बातें हैं. बहुत ज़रूरी हैं.</p>
<p>और ऐसे ही लिखते रहें. वाह !</p>
<p></p>
<p>इस अद्भुत ग़ज़ल को इस मंच के उपलब्धि भी मानूँगा. आपकी कोशिश और ताक़त पर मेरी हार्दिक बधाइयाँ..</p>
<p>जिन सुधीजनों ने सुझाव दिये हैं, उनपर गहन विचार करें और अमल करें. वो तकनीकी बातें हैं. बहुत ज़रूरी हैं.</p>
<p>और ऐसे ही लिखते रहें. वाह !</p>
<p></p> वाह भाई दिल खुश हो गया आपने ह…tag:openbooks.ning.com,2013-10-11:5170231:Comment:4532442013-10-11T21:01:46.252Zवीनस केसरीhttps://openbooks.ning.com/profile/1q1lxk02g9ue6
<p>वाह भाई दिल खुश हो गया <br></br><br></br>आपने हर्फे कवाफी का ऐसा शानदार इस्तेमाल किया है कि ग़ज़ल में जान आ गयी <br></br><br></br>वो रेगिस्तान में भी देखते हैं ख्वाब पानी का ,<br></br> उन्हें उम्मीद है अब भी उसी बादल निठल्ले से।<br></br><br></br>इस शेर की ग़ज़लियत ने तो लुत्फ़ ला दिया .... बेहद शानदार <br></br><br></br>अन्य शेर भी हास्य के साथ वयंग्य करने में समर्थ हैं ढेरो बधाई स्वीकारें <br></br><br></br>कुछ शब्द आपने मूल वज्न से बाहर जा कर प्रयोग कर लिए हैं .,,, उनको साध लिया होता तो ये एक बेहतरीन ग़ज़ल हो सकती थी <br></br>सही वज्न यूँ है -…</p>
<p>वाह भाई दिल खुश हो गया <br/><br/>आपने हर्फे कवाफी का ऐसा शानदार इस्तेमाल किया है कि ग़ज़ल में जान आ गयी <br/><br/>वो रेगिस्तान में भी देखते हैं ख्वाब पानी का ,<br/> उन्हें उम्मीद है अब भी उसी बादल निठल्ले से।<br/><br/>इस शेर की ग़ज़लियत ने तो लुत्फ़ ला दिया .... बेहद शानदार <br/><br/>अन्य शेर भी हास्य के साथ वयंग्य करने में समर्थ हैं ढेरो बधाई स्वीकारें <br/><br/>कुछ शब्द आपने मूल वज्न से बाहर जा कर प्रयोग कर लिए हैं .,,, उनको साध लिया होता तो ये एक बेहतरीन ग़ज़ल हो सकती थी <br/>सही वज्न यूँ है - <br/><br/>इन्टरनेशनल - २२ २२ <br/>क्रिकेट - १२ <br/><span style="text-decoration: line-through;">तजुर्बा</span> तज्रिबा - २१२ <br/><br/>कभी <strong>भी</strong> में <strong>भी</strong> भर्ती का शब्द है <br/><br/><br/>तकाबुले रदीफ का दोष भी सही इंगित किया गया है <br/><br/><span style="color: #008000;"><strong><span style="text-decoration: underline;"><span class="font-size-3">तकाबुले रदीफ़ दोष के भेद <br/></span></span></strong></span> <br/> <span class="font-size-3">तकाबुले रदीफ़ दोष के दो भेद होते हैं <br/></span> <br/> <span class="font-size-3"><span style="color: #008000;"><b>तकाबुले</b> <b>रदीफ़ दोष भेद</b> <strong>१ -</strong> <b>लाज्तमा</b><b>-</b><b>ए</b><b>-</b><b>ज़ुज्ब</b><b>-</b><b>ए</b><b>-</b><b>रदीफैन =</b></span> मतला के अतिरिक्त यदि रदीफ़ का तुकांत <b>स्वर</b> मिसरा-ए- उला के अंत आ जाये तो उसे लाज्तमा-ए-ज़ुज्ब-ए-रादीफैन कहते हैं</span></p>
<p><span class="font-size-3"><span style="color: #008000;"><b>तकाबुले</b> <b>रदीफ़ दोष भेद</b> <b>२</b> <b>-</b> <b>लाज्तमा</b><b>-</b><b>ए</b><b>-</b><b>तकाबुल</b><b>-</b><b>ए</b><b>-</b><b>रदीफैन =</b></span> मतला और हुस्ने मतला के अतिरिक्त किसी शेर में यदि रदीफ़ का तुकान्त पूरा एक शब्द या पूरी रदीफ़ मिसरा-ए-उला के अंत आ जाये तो उसे लाज्तमा-ए-तकाबुल-ए-रदीफैन कहते हैं<strong><br/></strong><br/><span class="font-size-3">शेर के दोषपूर्ण मतला होने भ्रम की स्थिति से बचने के लिए इस दोष से बचने की हर संभव कोशिश करनी चाहिए|</span> <br/> <span class="font-size-3">अरूजियों और उस्ताद शाइरों द्वारा <b>केवल स्वर का उला के अंत में टकराना</b> कई स्थितियों में स्वीकार्य बताया गया है</span><br/> <span class="font-size-3">यदि शेर खराब न हो रहा हो और यह ऐब दूर हो सके तो इससे अवश्य बचना चाहिए परन्तु इस दोष को दूर करने के चक्कर में शेर खराब हो जा रहा है अर्थात, अर्थ का अनर्थ हो जा रहा है, सहजता समाप्त ओ जा रही है अथवा लय भंग हो रहे है अथवा शब्द विन्यास गडबड हो रहा है तो इसे रखा जा सकता है और बड़े से बड़े शाइर के कलाम में यह दोष देखने को मिलता है</span> <br/></span></p> आदरणीय अरूण शर्मा अनन्त जी ।…tag:openbooks.ning.com,2013-10-11:5170231:Comment:4527322013-10-11T03:45:58.603ZRam Awadh VIshwakarmahttps://openbooks.ning.com/profile/RamAwadhVIshwakarma
<p>आदरणीय अरूण शर्मा अनन्त जी । सच तो यह है कि <span style="text-decoration: underline;">सुना है राह के काँटे भी उसका कुछ न कर पाये</span></p>
<p><span style="text-decoration: underline;">मग़र पैरों मे छाले पड़ गये जूते के तल्ले से</span>। इस शेर में तकाबुले रदीफ का दोष है ही नही। अगर मतले के अलावा किसी शेर में सानी मिसरा और ऊला मिसरा में अंत में रदीफ ''से आता तो तकाबुले रदीफ का दोष होता परन्तु उपरोक्त शेर में ऐसा नही है इस लिये मेरे ज्ञान के अनुसार इसमें तकाबुले रदीफ का दोष नही है।</p>
<p>आदरणीय अरूण शर्मा अनन्त जी । सच तो यह है कि <span style="text-decoration: underline;">सुना है राह के काँटे भी उसका कुछ न कर पाये</span></p>
<p><span style="text-decoration: underline;">मग़र पैरों मे छाले पड़ गये जूते के तल्ले से</span>। इस शेर में तकाबुले रदीफ का दोष है ही नही। अगर मतले के अलावा किसी शेर में सानी मिसरा और ऊला मिसरा में अंत में रदीफ ''से आता तो तकाबुले रदीफ का दोष होता परन्तु उपरोक्त शेर में ऐसा नही है इस लिये मेरे ज्ञान के अनुसार इसमें तकाबुले रदीफ का दोष नही है।</p> तुम्हारे गाँव के बारे में ये…tag:openbooks.ning.com,2013-10-08:5170231:Comment:4518502013-10-08T23:29:56.496ZSushil.Joshihttps://openbooks.ning.com/profile/SushilJoshi
<p>तुम्हारे गाँव के बारे में ये मेरा तजुर्बा है,<br/> बजाया बीन जब भी नाग ही निकले मुहल्ले से।.... बहुत बहुत सुंदर प्रस्तुति है आदरणीय राम अवध जी..... बधाई</p>
<p>तुम्हारे गाँव के बारे में ये मेरा तजुर्बा है,<br/> बजाया बीन जब भी नाग ही निकले मुहल्ले से।.... बहुत बहुत सुंदर प्रस्तुति है आदरणीय राम अवध जी..... बधाई</p> आदरणीय लाजवाब ग़ज़ल कही है आपने…tag:openbooks.ning.com,2013-10-08:5170231:Comment:4518282013-10-08T17:25:56.488Zअरुन 'अनन्त'https://openbooks.ning.com/profile/ArunSharma
<p>आदरणीय लाजवाब ग़ज़ल कही है आपने खासकर काफिया का चुनाव बेहद उम्दा है आकर्षित करता है, आदरणीय श्री बागी भ्राताश्री जी ने तकाबुले रदीफ़ का दोष बता ही दिया है. खैर शानदार ग़ज़ल पर ढेरों दाद कुबूल फरमाएं. </p>
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<p>वो इन्टरनेषनल क्रिकेट की करते समीक्षा हैं, (इन्टरनेशनल सही शब्द है)</p>
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<p>आदरणीय लाजवाब ग़ज़ल कही है आपने खासकर काफिया का चुनाव बेहद उम्दा है आकर्षित करता है, आदरणीय श्री बागी भ्राताश्री जी ने तकाबुले रदीफ़ का दोष बता ही दिया है. खैर शानदार ग़ज़ल पर ढेरों दाद कुबूल फरमाएं. </p>
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<p>वो इन्टरनेषनल क्रिकेट की करते समीक्षा हैं, (इन्टरनेशनल सही शब्द है)</p>
<p></p> बहुत प्यारी गजल के लिए - बधाई…tag:openbooks.ning.com,2013-10-08:5170231:Comment:4518152013-10-08T14:58:23.801Zमोहन बेगोवालhttps://openbooks.ning.com/profile/DrMohanlal
<p>बहुत प्यारी गजल के लिए - बधाई हो</p>
<p>वो रेगिस्तान में भी देखते हैं ख्वाब पानी का ,<br/> उन्हें उम्मीद है अब भी उसी बादल निठल्ले से। ये शेर बहुत प्यारा लगा</p>
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<p>बहुत प्यारी गजल के लिए - बधाई हो</p>
<p>वो रेगिस्तान में भी देखते हैं ख्वाब पानी का ,<br/> उन्हें उम्मीद है अब भी उसी बादल निठल्ले से। ये शेर बहुत प्यारा लगा</p>
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<p></p> ग़ज़ल की बातें समूह में "तकाब…tag:openbooks.ning.com,2013-10-08:5170231:Comment:4516572013-10-08T14:41:26.203ZEr. Ganesh Jee "Bagi"https://openbooks.ning.com/profile/GaneshJee
<h3><a href="http://www.openbooksonline.com/group/gazal_ki_bateyn">ग़ज़ल की बातें</a> समूह में "तकाबुले रदीफ़" पर विस्तृत चर्चा हुई है, आप वहां जानकारी ले सकते हैं । </h3>
<h3><a href="http://www.openbooksonline.com/group/gazal_ki_bateyn">ग़ज़ल की बातें</a> समूह में "तकाबुले रदीफ़" पर विस्तृत चर्चा हुई है, आप वहां जानकारी ले सकते हैं । </h3> बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आ० राम…tag:openbooks.ning.com,2013-10-08:5170231:Comment:4518102013-10-08T14:32:50.740ZDr.Prachi Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आ० राम अवध विश्वकर्मा जी </p>
<p>मंच पर ग़ज़ल की बातें समूह में तबाबुले रदीफ़ ऐब पर भी चर्चा हुई है..आप ग़ज़ल की बातें समूह में विस्तार से जानकारी ले सकते हैं </p>
<p>हार्दिक बधाई </p>
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<p>बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आ० राम अवध विश्वकर्मा जी </p>
<p>मंच पर ग़ज़ल की बातें समूह में तबाबुले रदीफ़ ऐब पर भी चर्चा हुई है..आप ग़ज़ल की बातें समूह में विस्तार से जानकारी ले सकते हैं </p>
<p>हार्दिक बधाई </p>
<p></p> आदरणीय श्री बागी जी आपने दूसर…tag:openbooks.ning.com,2013-10-08:5170231:Comment:4517152013-10-08T14:02:45.496ZRam Awadh VIshwakarmahttps://openbooks.ning.com/profile/RamAwadhVIshwakarma
<p>आदरणीय श्री बागी जी आपने दूसरे शेर ''सुना है राह के काँटे भी उसका कुछ न कर पाये<br/>मग़र पैरों मे छाले पड़ गये जूते के तल्ले से। में तगाबुले रदीफ का दोष बताया है कृपया बताने का कष्ट करें कि दोष कैसे है जिससे तगाबुले रदीफ के बारे में मेरे साथ-साथ ओपेन बुक्स आन लाइन के सभी माननीय सदस्यों का भी ज्ञान वर्धन हो सके। धन्यवाद।</p>
<p>आदरणीय श्री बागी जी आपने दूसरे शेर ''सुना है राह के काँटे भी उसका कुछ न कर पाये<br/>मग़र पैरों मे छाले पड़ गये जूते के तल्ले से। में तगाबुले रदीफ का दोष बताया है कृपया बताने का कष्ट करें कि दोष कैसे है जिससे तगाबुले रदीफ के बारे में मेरे साथ-साथ ओपेन बुक्स आन लाइन के सभी माननीय सदस्यों का भी ज्ञान वर्धन हो सके। धन्यवाद।</p> विषय आज के हिसाब से सोलह आने…tag:openbooks.ning.com,2013-10-08:5170231:Comment:4516332013-10-08T11:45:38.147Zविजय मिश्रhttps://openbooks.ning.com/profile/37jicf27kggmy
विषय आज के हिसाब से सोलह आने फिट और शेरों का क्या कहना ,झुमानेवाले हैं ,जिन्दे से कम नहीं . बहुत बहुत बधाई भाई राम अवधजी.
विषय आज के हिसाब से सोलह आने फिट और शेरों का क्या कहना ,झुमानेवाले हैं ,जिन्दे से कम नहीं . बहुत बहुत बधाई भाई राम अवधजी.