Comments - बड़े साहब की गाँधी जयंती (कविता)- अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव - Open Books Online2024-03-29T09:06:14Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A445723&xn_auth=noबड़ा ही सटीक व्यंग्य किया है इ…tag:openbooks.ning.com,2013-10-06:5170231:Comment:4499062013-10-06T05:08:43.275ZAbhinav Arunhttps://openbooks.ning.com/profile/ArunKumarPandeyAbhinav
<p>बड़ा ही सटीक व्यंग्य किया है इस रचना में आदरणीय श्री अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी , आज कदाचार इस हद तक बढ़ गया है की ज़मीर जैसी चीज़ लुप्त प्रजाति का गुण हो गया है । और गलती को भी गर्व से गा बजा के निभाया जा रहा है उसका , ग्लोरिफिकेशन करके । अफ़सोस होता है बापू , भगत जैसी विभूतियों ने इसी दिन के लिए देश आज़ाद कराया था ? करारा आक्षेप करती इस रचना के हार्दिक साधुवाद , बधाई !!</p>
<p>बड़ा ही सटीक व्यंग्य किया है इस रचना में आदरणीय श्री अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी , आज कदाचार इस हद तक बढ़ गया है की ज़मीर जैसी चीज़ लुप्त प्रजाति का गुण हो गया है । और गलती को भी गर्व से गा बजा के निभाया जा रहा है उसका , ग्लोरिफिकेशन करके । अफ़सोस होता है बापू , भगत जैसी विभूतियों ने इसी दिन के लिए देश आज़ाद कराया था ? करारा आक्षेप करती इस रचना के हार्दिक साधुवाद , बधाई !!</p> आ, गणेशजी बागी ; अरुण शर्मा…tag:openbooks.ning.com,2013-10-03:5170231:Comment:4484332013-10-03T16:55:58.035Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttps://openbooks.ning.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p>आ, गणेशजी बागी ; अरुण शर्मा अनंतजी ; सुशील जोशीजी ; सुरेंद्र कुमार शुक्ला भ्रमरजी ; केवल प्रसाद्जी ; विजय मिश्रजी ; आशुतोष मिश्राजी ; डी पी माथुरजी ; बृजेश नीरज जी ; आ. गीतिका वेदिका जी एवं गिरिराज भाई .........</p>
<p>आप सब की प्रशंसा और हार्दिक बधाई से मुझे और अच्छा लिखने की प्रेरणा मिलती है। सामयिक विषय * बड़े साहब की गाँधी जयंती * पर मेरा प्रयास सफल हुआ । आप सभी का हार्दिक धन्यवाद और आभार ॥ </p>
<p>आ, गणेशजी बागी ; अरुण शर्मा अनंतजी ; सुशील जोशीजी ; सुरेंद्र कुमार शुक्ला भ्रमरजी ; केवल प्रसाद्जी ; विजय मिश्रजी ; आशुतोष मिश्राजी ; डी पी माथुरजी ; बृजेश नीरज जी ; आ. गीतिका वेदिका जी एवं गिरिराज भाई .........</p>
<p>आप सब की प्रशंसा और हार्दिक बधाई से मुझे और अच्छा लिखने की प्रेरणा मिलती है। सामयिक विषय * बड़े साहब की गाँधी जयंती * पर मेरा प्रयास सफल हुआ । आप सभी का हार्दिक धन्यवाद और आभार ॥ </p> बहुत ही सुन्दर व्यंग किया है…tag:openbooks.ning.com,2013-10-03:5170231:Comment:4480962013-10-03T13:30:54.979Zबृजेश नीरजhttps://openbooks.ning.com/profile/BrijeshKumarSingh
<p>बहुत ही सुन्दर व्यंग किया है आपने इसके लिए आप बधाई के पात्र ह</p>
<p>बहुत ही सुन्दर व्यंग किया है आपने इसके लिए आप बधाई के पात्र ह</p> आदरणीय अखिलेश सर नमस्कार, सरक…tag:openbooks.ning.com,2013-10-03:5170231:Comment:4473232013-10-03T12:05:00.004ZD P Mathurhttps://openbooks.ning.com/profile/DPMathur
आदरणीय अखिलेश सर नमस्कार, सरकारी अफसरों की मनोदशा पर सुन्दर व्यंग किया गया है उन्हें बस अवकाश से मतलब होता है बस, आपको बधाई ।
आदरणीय अखिलेश सर नमस्कार, सरकारी अफसरों की मनोदशा पर सुन्दर व्यंग किया गया है उन्हें बस अवकाश से मतलब होता है बस, आपको बधाई । वाह !!
सरकारी लोगों की सरकारी…tag:openbooks.ning.com,2013-10-03:5170231:Comment:4471132013-10-03T10:08:53.555Zवेदिकाhttps://openbooks.ning.com/profile/vedikagitika
<p>वाह !!</p>
<p>सरकारी लोगों की सरकारी छुट्टी !!</p>
<p>गंभीर व्यंग!!</p>
<p>वाह !!</p>
<p>सरकारी लोगों की सरकारी छुट्टी !!</p>
<p>गंभीर व्यंग!!</p> आनंदित कर देने वाली रचना के ल…tag:openbooks.ning.com,2013-10-03:5170231:Comment:4469012013-10-03T09:21:36.493ZDr Ashutosh Mishrahttps://openbooks.ning.com/profile/DrAshutoshMishra
<p>आनंदित कर देने वाली रचना के लिए हार्दिक बधाई ....छत्तीस गढ़ की मिट्टी से जुदा हूँ और आप भी वहीं से जुड़ें हैं जानकार प्रसन्नता हुई ..सादर </p>
<p>आनंदित कर देने वाली रचना के लिए हार्दिक बधाई ....छत्तीस गढ़ की मिट्टी से जुदा हूँ और आप भी वहीं से जुड़ें हैं जानकार प्रसन्नता हुई ..सादर </p> चरित्रहीन और विवेकहीन अफसरशाह…tag:openbooks.ning.com,2013-10-03:5170231:Comment:4469722013-10-03T09:08:16.775Zविजय मिश्रhttps://openbooks.ning.com/profile/37jicf27kggmy
चरित्रहीन और विवेकहीन अफसरशाही के घृणित किन्तु व्यवहारिक पक्ष को कतिपय अत्यन्त व्यवस्थित ढंग से रखा आपने ,इनके चरित्र इससे भी एक कदम आगे लोक स्मिता हनन तक पहुँचने से नहीं हिचकते हैं ,जिसकी आपने अपनी कविता में मर्यादित वर्जना कियी है अखिलेशजी . बहुत सुन्दर ,भाई बधाई .
चरित्रहीन और विवेकहीन अफसरशाही के घृणित किन्तु व्यवहारिक पक्ष को कतिपय अत्यन्त व्यवस्थित ढंग से रखा आपने ,इनके चरित्र इससे भी एक कदम आगे लोक स्मिता हनन तक पहुँचने से नहीं हिचकते हैं ,जिसकी आपने अपनी कविता में मर्यादित वर्जना कियी है अखिलेशजी . बहुत सुन्दर ,भाई बधाई . भार्इ जी! एक गंभीर एवं शसक्त…tag:openbooks.ning.com,2013-10-03:5170231:Comment:4463872013-10-03T03:03:03.685Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'https://openbooks.ning.com/profile/kewalprasad
<p>भार्इ जी! एक गंभीर एवं शसक्त रचना। आपको हृदयतल से हार्दिक बधाइयां। सादर,</p>
<p>भार्इ जी! एक गंभीर एवं शसक्त रचना। आपको हृदयतल से हार्दिक बधाइयां। सादर,</p> प्रिय अखिलेश जी आज के काम काज…tag:openbooks.ning.com,2013-10-02:5170231:Comment:4463022013-10-02T17:42:14.662ZSURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMARhttps://openbooks.ning.com/profile/SURENDRAKUMARSHUKLABHRAMAR
<p>प्रिय अखिलेश जी आज के काम काज की अफसरनामा की कलई खोलती ..व्यंग्य कसती नशे का विरोध करती अच्छी रचना <br/>आभार <br/>भ्रमर ५</p>
<p>प्रिय अखिलेश जी आज के काम काज की अफसरनामा की कलई खोलती ..व्यंग्य कसती नशे का विरोध करती अच्छी रचना <br/>आभार <br/>भ्रमर ५</p> वाह... बहुत खूब आदरणीय अखिलेश…tag:openbooks.ning.com,2013-10-02:5170231:Comment:4464152013-10-02T16:03:12.566ZSushil.Joshihttps://openbooks.ning.com/profile/SushilJoshi
<p>वाह... बहुत खूब आदरणीय अखिलेश जी.... क्या सुंदर प्रस्तुति है आज के दिन... बधाई...</p>
<p>वाह... बहुत खूब आदरणीय अखिलेश जी.... क्या सुंदर प्रस्तुति है आज के दिन... बधाई...</p>