Comments - स्त्री मन की गाठें - Open Books Online2024-03-28T20:29:21Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A424971&xn_auth=noसुंदर शब्दों में सराहना हेतु,…tag:openbooks.ning.com,2013-09-01:5170231:Comment:4263472013-09-01T16:04:25.199ZVinita Shuklahttps://openbooks.ning.com/profile/VinitaShukla
<p>सुंदर शब्दों में सराहना हेतु, हार्दिक धन्यवाद, महिमा जी.</p>
<p>सुंदर शब्दों में सराहना हेतु, हार्दिक धन्यवाद, महिमा जी.</p> आपकी इस विचारशील, काव्यात्मक…tag:openbooks.ning.com,2013-09-01:5170231:Comment:4264342013-09-01T16:03:49.578ZVinita Shuklahttps://openbooks.ning.com/profile/VinitaShukla
<p>आपकी इस विचारशील, काव्यात्मक प्रतिक्रिया के लिए, अतिशय आभार, आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी.</p>
<p>आपकी इस विचारशील, काव्यात्मक प्रतिक्रिया के लिए, अतिशय आभार, आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी.</p> पंख ले उमंगों केतितली सा उड़ना…tag:openbooks.ning.com,2013-09-01:5170231:Comment:4263412013-09-01T15:25:02.927ZMAHIMA SHREEhttps://openbooks.ning.com/profile/MAHIMASHREE
<p>पंख ले उमंगों के<br/>तितली सा उड़ना<br/>तंग दायरों ने वे<br/>फैले पर काटे<br/>स्त्री मन की गाठें-<br/>अनगिन असंख्य गाठें</p>
<p>कभी हुई सावित्री<br/>कभी बनी सीता<br/>जीवन को होम किया<br/>देवी पद जीता<br/>स्नेह लुटाया, फिर भी<br/>अंचल था रीता <br/>रिश्तों का महासमर<br/>शकुनि की बिसातें<br/>स्त्री मन की गाठें-</p>
<p>वाह आदरणीया ...आपको नमन ..इस रचना ने हजारो साल से दमित इच्छाओ से बने गाठो को , उनके संताप को झेलती , घसीटती और जीती स्त्रिओ को एक आवाज दी है .. बहुत -२ बधाई</p>
<p>पंख ले उमंगों के<br/>तितली सा उड़ना<br/>तंग दायरों ने वे<br/>फैले पर काटे<br/>स्त्री मन की गाठें-<br/>अनगिन असंख्य गाठें</p>
<p>कभी हुई सावित्री<br/>कभी बनी सीता<br/>जीवन को होम किया<br/>देवी पद जीता<br/>स्नेह लुटाया, फिर भी<br/>अंचल था रीता <br/>रिश्तों का महासमर<br/>शकुनि की बिसातें<br/>स्त्री मन की गाठें-</p>
<p>वाह आदरणीया ...आपको नमन ..इस रचना ने हजारो साल से दमित इच्छाओ से बने गाठो को , उनके संताप को झेलती , घसीटती और जीती स्त्रिओ को एक आवाज दी है .. बहुत -२ बधाई</p> स्त्री मन की असंख्य गांठे लेक…tag:openbooks.ning.com,2013-09-01:5170231:Comment:4264172013-09-01T14:26:14.024Zलक्ष्मण रामानुज लडीवालाhttps://openbooks.ning.com/profile/LaxmanPrasadLadiwala
<p>स्त्री मन की असंख्य गांठे लेकर रची रचना सुन्दर बन पड़ी है | महासमर सा प्रश्न है जिसकी गांठे कोई नहीं खोल पाया है - </p>
<p>स्त्री मन की असंख्य गांठे </p>
<p>चली आ रही है युग युग से </p>
<p>पर खोल न पाया कोई |</p>
<p>गांठे रही है, रहेगी </p>
<p>देखो जैसे सांठे | ------</p>
<p>अपने स्त्री मन के भावो को सफलतापूर्वक रचना में पिरोने के लिए हार्दिक बधाई </p>
<p></p>
<p>स्त्री मन की असंख्य गांठे लेकर रची रचना सुन्दर बन पड़ी है | महासमर सा प्रश्न है जिसकी गांठे कोई नहीं खोल पाया है - </p>
<p>स्त्री मन की असंख्य गांठे </p>
<p>चली आ रही है युग युग से </p>
<p>पर खोल न पाया कोई |</p>
<p>गांठे रही है, रहेगी </p>
<p>देखो जैसे सांठे | ------</p>
<p>अपने स्त्री मन के भावो को सफलतापूर्वक रचना में पिरोने के लिए हार्दिक बधाई </p>
<p></p> बहुत बहुत धन्यवाद अरुण जी.tag:openbooks.ning.com,2013-09-01:5170231:Comment:4261892013-09-01T14:13:29.604ZVinita Shuklahttps://openbooks.ning.com/profile/VinitaShukla
<p>बहुत बहुत धन्यवाद अरुण जी.</p>
<p>बहुत बहुत धन्यवाद अरुण जी.</p> बेहद सुन्दर भाव पिरोये शानदार…tag:openbooks.ning.com,2013-09-01:5170231:Comment:4261692013-09-01T11:40:15.486Zअरुन 'अनन्त'https://openbooks.ning.com/profile/ArunSharma
<p>बेहद सुन्दर भाव पिरोये शानदार प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीया.</p>
<p>बेहद सुन्दर भाव पिरोये शानदार प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीया.</p> कोटिशः धन्यवाद विजयाश्री जी.tag:openbooks.ning.com,2013-09-01:5170231:Comment:4257452013-09-01T05:50:09.019ZVinita Shuklahttps://openbooks.ning.com/profile/VinitaShukla
<p>कोटिशः धन्यवाद विजयाश्री जी.</p>
<p>कोटिशः धन्यवाद विजयाश्री जी.</p> अनगिन असंख्य गाठें
कभी हुई सा…tag:openbooks.ning.com,2013-08-31:5170231:Comment:4254392013-08-31T18:55:58.121Zvijayashreehttps://openbooks.ning.com/profile/vijayashree
<p>अनगिन असंख्य गाठें</p>
<p>कभी हुई सावित्री<br/>कभी बनी सीता<br/>जीवन को होम किया<br/>देवी पद जीता<br/>स्नेह लुटाया, फिर भी<br/>अंचल था रीता <br/>रिश्तों का महासमर<br/>शकुनि की बिसातें<br/>स्त्री मन की गाठें-<br/>अनगिन असंख्य गाठें</p>
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<p>स्त्री मन के भावों को बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त करती सुंदर अभिव्यक्ति </p>
<p>हार्दिक बधाई विनीता शुक्ला जी </p>
<p>अनगिन असंख्य गाठें</p>
<p>कभी हुई सावित्री<br/>कभी बनी सीता<br/>जीवन को होम किया<br/>देवी पद जीता<br/>स्नेह लुटाया, फिर भी<br/>अंचल था रीता <br/>रिश्तों का महासमर<br/>शकुनि की बिसातें<br/>स्त्री मन की गाठें-<br/>अनगिन असंख्य गाठें</p>
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<p>स्त्री मन के भावों को बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त करती सुंदर अभिव्यक्ति </p>
<p>हार्दिक बधाई विनीता शुक्ला जी </p> हार्दिक आभार शुभ्रा जी.tag:openbooks.ning.com,2013-08-31:5170231:Comment:4250792013-08-31T14:08:08.321ZVinita Shuklahttps://openbooks.ning.com/profile/VinitaShukla
<p>हार्दिक आभार शुभ्रा जी.</p>
<p>हार्दिक आभार शुभ्रा जी.</p> आ. गिरिराज जी, आपका कोटिशः धन…tag:openbooks.ning.com,2013-08-31:5170231:Comment:4250782013-08-31T14:07:42.168ZVinita Shuklahttps://openbooks.ning.com/profile/VinitaShukla
<p>आ. गिरिराज जी, आपका कोटिशः धन्यवाद.</p>
<p>आ. गिरिराज जी, आपका कोटिशः धन्यवाद.</p>