Comments - माँग भरकर सुहागन खड़ी रह गई - Open Books Online2024-03-29T11:03:18Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A419742&xn_auth=noउम्दा गजल.....खासकर ये शेर खा…tag:openbooks.ning.com,2013-08-25:5170231:Comment:4207672013-08-25T15:27:11.675ZVISHAAL CHARCHCHIThttps://openbooks.ning.com/profile/VISHAALCHARCHCHIT
<p>उम्दा गजल.....खासकर ये शेर खास तरीफ के काबिल बन पड़ा है.....<br/><br/>फ़ौज से लौट कर आ सका वह नहीं </p>
<p>माँग भरकर सुहागन खड़ी रह गई </p>
<p>उम्दा गजल.....खासकर ये शेर खास तरीफ के काबिल बन पड़ा है.....<br/><br/>फ़ौज से लौट कर आ सका वह नहीं </p>
<p>माँग भरकर सुहागन खड़ी रह गई </p> सरिता जी , सुन्दर रचना , बधाई…tag:openbooks.ning.com,2013-08-24:5170231:Comment:4204232013-08-24T12:53:22.408Zगिरिराज भंडारीhttps://openbooks.ning.com/profile/girirajbhandari
<p>सरिता जी , सुन्दर रचना , बधाई !</p>
<p>सरिता जी , सुन्दर रचना , बधाई !</p> फ़ौज से लौट कर आ सका वह नहीं…tag:openbooks.ning.com,2013-08-24:5170231:Comment:4201022013-08-24T11:56:27.607ZMeena Pathakhttps://openbooks.ning.com/profile/MeenaPathak
<p>फ़ौज से लौट कर आ सका वह नहीं <br/> माँग भरकर सुहागन खड़ी रह गई ....... बहुत सुन्दर, बधाई आप को</p>
<p>फ़ौज से लौट कर आ सका वह नहीं <br/> माँग भरकर सुहागन खड़ी रह गई ....... बहुत सुन्दर, बधाई आप को</p> आदरणीय भाई विजय मिश्र जी हार्…tag:openbooks.ning.com,2013-08-24:5170231:Comment:4201002013-08-24T11:49:42.441ZSarita Bhatiahttps://openbooks.ning.com/profile/SaritaBhatia
<p>आदरणीय भाई विजय मिश्र जी हार्दिक आभार </p>
<p>आदरणीय भाई विजय मिश्र जी हार्दिक आभार </p> शुक्रिया अरुण ,स्नेह बनाए रख…tag:openbooks.ning.com,2013-08-24:5170231:Comment:4200992013-08-24T11:48:24.512ZSarita Bhatiahttps://openbooks.ning.com/profile/SaritaBhatia
<p>शुक्रिया अरुण ,स्नेह बनाए रखें </p>
<p>शुक्रिया अरुण ,स्नेह बनाए रखें </p> खूब सुंदर उतरी है ,दिल से दिम…tag:openbooks.ning.com,2013-08-24:5170231:Comment:4200892013-08-24T10:38:38.988Zविजय मिश्रhttps://openbooks.ning.com/profile/37jicf27kggmy
खूब सुंदर उतरी है ,दिल से दिमाग होती हुई कलम से उभरी है . साधुवाद सरिता बहन .
खूब सुंदर उतरी है ,दिल से दिमाग होती हुई कलम से उभरी है . साधुवाद सरिता बहन . वाह आदरणीया सरिता जी आपका यह…tag:openbooks.ning.com,2013-08-24:5170231:Comment:4201542013-08-24T08:41:24.199Zअरुन 'अनन्त'https://openbooks.ning.com/profile/ArunSharma
<p>वाह आदरणीया सरिता जी आपका यह अंदाज बहुत ही अच्छा लगा शानदार रचना हेतु मेरी बधाई स्वीकारें.</p>
<p>वाह आदरणीया सरिता जी आपका यह अंदाज बहुत ही अच्छा लगा शानदार रचना हेतु मेरी बधाई स्वीकारें.</p> इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत…tag:openbooks.ning.com,2013-08-24:5170231:Comment:4201392013-08-24T07:33:01.240ZShyam Narain Vermahttps://openbooks.ning.com/profile/ShyamNarainVerma
<table cellspacing="0" width="462" border="0">
<colgroup><col width="462"></col></colgroup><tbody><tr><td align="left" width="462" height="20">इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.</td>
</tr>
</tbody>
</table>
<table cellspacing="0" width="462" border="0">
<colgroup><col width="462"></col></colgroup><tbody><tr><td align="left" width="462" height="20">इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.</td>
</tr>
</tbody>
</table> घाव बुल को मिले हो गई अजनबी …tag:openbooks.ning.com,2013-08-24:5170231:Comment:4199712013-08-24T06:05:21.188Zआशीष नैथानी 'सलिल'https://openbooks.ning.com/profile/AshishNaithaniSalil
<p>घाव बुल को मिले हो गई अजनबी </p>
<p>आरजू अब अधूरी पड़ी रह गई |</p>
<p> </p>
<p>सुन्दर रचना आदरणीया सरिता जी |</p>
<p>घाव बुल को मिले हो गई अजनबी </p>
<p>आरजू अब अधूरी पड़ी रह गई |</p>
<p> </p>
<p>सुन्दर रचना आदरणीया सरिता जी |</p> आदरणीय अरुण जी तह दिल से शुक्…tag:openbooks.ning.com,2013-08-24:5170231:Comment:4201102013-08-24T04:49:41.855ZSarita Bhatiahttps://openbooks.ning.com/profile/SaritaBhatia
<p>आदरणीय अरुण जी तह दिल से शुक्रिया </p>
<p>आदरणीय अरुण जी तह दिल से शुक्रिया </p>