Comments - दोहे - Open Books Online2024-03-29T09:36:07Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A388068&xn_auth=noआदरणीया सरिता जी, मैं आपकी को…tag:openbooks.ning.com,2013-07-02:5170231:Comment:3893482013-07-02T13:36:04.791ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीया सरिता जी, मैं आपकी कोशिशों और सकारात्मकता के आगे नत हूँ. </p>
<p>आपने कहे का और सुझाए गये विन्दुओं का सार्थक मान रखा है, मैं आभारी हूँ. रचनाकर्म संप्रेषणीयता में शुद्धता की मांग करता है. यह शुद्धता भाव के अनुसार, शब्द चयन के अनुसार, व्याकरण के अनुसार, प्रयुक्त छंद विधान के अनुसार तथा संप्रेषणीयता के अनुसार होनी चाहिये. कोई रचनाकार इसी लिहाज से प्रयास करे तो रचना अवश्य पाठकों के हृदय और मस्तिष्क दोनों को संतुष्ट करेगी. मात्र हृदय को छूने वाली या मात्र मस्तिष्क को संतुष्ट करने वाली…</p>
<p>आदरणीया सरिता जी, मैं आपकी कोशिशों और सकारात्मकता के आगे नत हूँ. </p>
<p>आपने कहे का और सुझाए गये विन्दुओं का सार्थक मान रखा है, मैं आभारी हूँ. रचनाकर्म संप्रेषणीयता में शुद्धता की मांग करता है. यह शुद्धता भाव के अनुसार, शब्द चयन के अनुसार, व्याकरण के अनुसार, प्रयुक्त छंद विधान के अनुसार तथा संप्रेषणीयता के अनुसार होनी चाहिये. कोई रचनाकार इसी लिहाज से प्रयास करे तो रचना अवश्य पाठकों के हृदय और मस्तिष्क दोनों को संतुष्ट करेगी. मात्र हृदय को छूने वाली या मात्र मस्तिष्क को संतुष्ट करने वाली एकांगी रचनाएँ संपूर्ण और व्यवस्थित नहीं होतीं. </p>
<p>आपका पुनः आभार. सतत और दीर्घकालीन प्रयत्न करें</p>
<p>शुभम</p> Saurabh Pandey sir maine ism…tag:openbooks.ning.com,2013-07-02:5170231:Comment:3894142013-07-02T12:46:18.165ZSarita Bhatiahttps://openbooks.ning.com/profile/SaritaBhatia
<p><span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey" class="fn url">Saurabh Pandey</a> sir maine ismein sudhar kar diya hai kripya janch len </p>
<p><span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey" class="fn url">Saurabh Pandey</a> sir maine ismein sudhar kar diya hai kripya janch len </p> प्रयास पर शुभकामनाएँ आदरणीया…tag:openbooks.ning.com,2013-07-02:5170231:Comment:3887952013-07-02T01:16:24.270ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>प्रयास पर शुभकामनाएँ आदरणीया</p>
<p>सब के साथ हैं होना था न कि है. तथा <em>कहित</em> को आसानी से <strong>कहे</strong> कहा जा सकता था.</p>
<p>दूसरे, लिंग दोष पर ध्यान दें, आदरणीया. ग्रीष्म की संज्ञा पुल्लिंग है तो दिल्ली सदा रूप बदलती रही है. और.. . जल नहीं घन छाता है.</p>
<p>बहरहाल इस प्रयास और प्रस्तुति पर बधाई.</p>
<p>सादर</p>
<p></p>
<p>प्रयास पर शुभकामनाएँ आदरणीया</p>
<p>सब के साथ हैं होना था न कि है. तथा <em>कहित</em> को आसानी से <strong>कहे</strong> कहा जा सकता था.</p>
<p>दूसरे, लिंग दोष पर ध्यान दें, आदरणीया. ग्रीष्म की संज्ञा पुल्लिंग है तो दिल्ली सदा रूप बदलती रही है. और.. . जल नहीं घन छाता है.</p>
<p>बहरहाल इस प्रयास और प्रस्तुति पर बधाई.</p>
<p>सादर</p>
<p></p> बहुत सुंदर . साधुवादtag:openbooks.ning.com,2013-07-01:5170231:Comment:3886592013-07-01T14:14:45.098ZLOON KARAN CHHAJERhttps://openbooks.ning.com/profile/LOONKARANCHHAJER
<p>बहुत सुंदर . साधुवाद</p>
<p>बहुत सुंदर . साधुवाद</p> आदरणीया सरिता जी,सुंदर//////tag:openbooks.ning.com,2013-07-01:5170231:Comment:3888402013-07-01T13:30:16.493Zram shiromani pathakhttps://openbooks.ning.com/profile/ramshiromanipathak
<p><span>आदरणीया सरिता जी,<span>सुंदर//////</span></span></p>
<p><span>आदरणीया सरिता जी,<span>सुंदर//////</span></span></p> दोहों पर प्रयास हेतु हार्दिक…tag:openbooks.ning.com,2013-07-01:5170231:Comment:3885722013-07-01T07:14:56.970Zअरुन 'अनन्त'https://openbooks.ning.com/profile/ArunSharma
<p>दोहों पर प्रयास हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीया सरिता जी प्रयास करते रहिये, जब ओ बी ओ पर आ ही गईं हैं तो फिकर नॉट. धीरे धीरे सब सध जायेगा.</p>
<p>दोहों पर प्रयास हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीया सरिता जी प्रयास करते रहिये, जब ओ बी ओ पर आ ही गईं हैं तो फिकर नॉट. धीरे धीरे सब सध जायेगा.</p> वाह वाह , बहुत सुंदर . साधुवा…tag:openbooks.ning.com,2013-07-01:5170231:Comment:3884862013-07-01T06:59:21.004Zविजय मिश्रhttps://openbooks.ning.com/profile/37jicf27kggmy
वाह वाह , बहुत सुंदर . साधुवाद सरिताजी
वाह वाह , बहुत सुंदर . साधुवाद सरिताजी आभार आदरणीया-tag:openbooks.ning.com,2013-07-01:5170231:Comment:3885512013-07-01T04:51:39.009Zरविकरhttps://openbooks.ning.com/profile/dineshravikar
<p>आभार आदरणीया-</p>
<p>आभार आदरणीया-</p> आदरणीय...सरिता जी, सच में बार…tag:openbooks.ning.com,2013-06-30:5170231:Comment:3883562013-06-30T19:40:58.041Zजितेन्द्र पस्टारियाhttps://openbooks.ning.com/profile/JitendraPastariya
आदरणीय...सरिता जी, सच में बारिश के मौसम में सारी धरा खुश होकर, चारों तरफ हरियाली बिखेर देती है! साल भर की प्यासी धरती, अपनी प्यास बुझा लेती है, नदियाँ फिर से कलकल बहने लगती है! शहर हो गांव सभी जगह एक रौनक सी छा जाती है! ......सुंदर रचना प्रस्तुति के लिए शुभकामनाऐ
आदरणीय...सरिता जी, सच में बारिश के मौसम में सारी धरा खुश होकर, चारों तरफ हरियाली बिखेर देती है! साल भर की प्यासी धरती, अपनी प्यास बुझा लेती है, नदियाँ फिर से कलकल बहने लगती है! शहर हो गांव सभी जगह एक रौनक सी छा जाती है! ......सुंदर रचना प्रस्तुति के लिए शुभकामनाऐ