Comments - पहाड़ अब भी सरल है -- - Open Books Online2024-03-29T11:44:40Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A383582&xn_auth=noआदरणीया नूतन जी सच्चाई सी रूब…tag:openbooks.ning.com,2013-06-25:5170231:Comment:3851382013-06-25T17:29:07.163Zannapurna bajpaihttps://openbooks.ning.com/profile/annapurnabajpai
<p>आदरणीया नूतन जी सच्चाई सी रूबरू करवाता आपका यह लेख शायद उन महान आत्माओं को झकझोरने मे सहायक हो जो वादे तो बड़े बड़े करते है परंतु कुर्सी पते ही भूल जाते हैं । क्या कहें क्या न कहें उत्तराखंड की त्रासदी ने सचमुच दिल को दहला दिया है ।</p>
<p>आदरणीया नूतन जी सच्चाई सी रूबरू करवाता आपका यह लेख शायद उन महान आत्माओं को झकझोरने मे सहायक हो जो वादे तो बड़े बड़े करते है परंतु कुर्सी पते ही भूल जाते हैं । क्या कहें क्या न कहें उत्तराखंड की त्रासदी ने सचमुच दिल को दहला दिया है ।</p> आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी.. स…tag:openbooks.ning.com,2013-06-25:5170231:Comment:3845722013-06-25T03:59:14.806Zडॉ नूतन डिमरी गैरोलाhttps://openbooks.ning.com/profile/3t5r6erq96iiw
<p>आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी.. सादर धन्यवाद ... हां इस आपदा के समय मे जिससे जो हो पा रहा है वह मदद कर रहा है... यहाँ हमारी आत्मा हमारी एकता के परख है... और हम जरूर इसमें जीते किन्तु कुछेक लोगों की वजह से जिन्होंने वहाँ लोगो को ठगा उनसे मन को पीड़ा हुई.. हम उन सभी लोगो का धन्यवाद करते हैं जिन्होंने ऐसे समय मे मदद की.. </p>
<p>आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी.. सादर धन्यवाद ... हां इस आपदा के समय मे जिससे जो हो पा रहा है वह मदद कर रहा है... यहाँ हमारी आत्मा हमारी एकता के परख है... और हम जरूर इसमें जीते किन्तु कुछेक लोगों की वजह से जिन्होंने वहाँ लोगो को ठगा उनसे मन को पीड़ा हुई.. हम उन सभी लोगो का धन्यवाद करते हैं जिन्होंने ऐसे समय मे मदद की.. </p> आ0 गैरोला जी, बाढ़ की विभीष…tag:openbooks.ning.com,2013-06-24:5170231:Comment:3845212013-06-24T16:20:07.544Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'https://openbooks.ning.com/profile/kewalprasad
<p>आ0 गैरोला जी, बाढ़ की विभीषिका और उससे होने वाले धन, जन और विकास की हानि से त्राहि-त्राहि की पुकार पूरे भारत वर्ष में हो रही है। इस घोर आपदा से निपटने के लिए एक नेता जाति को छोड़ कर शेष सारे देशवासी पीडि़तों की मदद के लिए गम्भीर होकर यथा सम्भव राहत सामाग्री की व्यवस्था करने में प्रयासरत हैं। उत्तर प्रदेश से तो कई खेप भेजी भी जा चुकी है और कई संस्थाएं अब भी प्रयासरत हैं। यहां एक बात अवश्य कहना चाहूंगा कि किसी मजदूर पर आक्षेप लगाने से पहले स्थानीय अराजक तत्वों और लुटिया चोरों पर ध्यान…</p>
<p>आ0 गैरोला जी, बाढ़ की विभीषिका और उससे होने वाले धन, जन और विकास की हानि से त्राहि-त्राहि की पुकार पूरे भारत वर्ष में हो रही है। इस घोर आपदा से निपटने के लिए एक नेता जाति को छोड़ कर शेष सारे देशवासी पीडि़तों की मदद के लिए गम्भीर होकर यथा सम्भव राहत सामाग्री की व्यवस्था करने में प्रयासरत हैं। उत्तर प्रदेश से तो कई खेप भेजी भी जा चुकी है और कई संस्थाएं अब भी प्रयासरत हैं। यहां एक बात अवश्य कहना चाहूंगा कि किसी मजदूर पर आक्षेप लगाने से पहले स्थानीय अराजक तत्वों और लुटिया चोरों पर ध्यान देना उचित होगा। यहां एक बात और उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्ड की सरकार ने सैलानियों के लिए कुछ नहीं किया- फिर राहत की सामाग्री गई कहां?....स्थानीय लोगों के हिस्से में ही गई होगी,....ऐसी आपदा किसी धर्म जाति और प्रान्त के नागरिकों विशेष के लिए नहीं आती है बल्कि यह संकट सभी को समान रूप से प्रभावित करती है। आपने बात को चर्चा का विषय बनाया इसलिए इसके हर पहलू पर विचार होना चाहिए। सादर,</p> आदरणीय नूतन जी,आपका समसामयिक…tag:openbooks.ning.com,2013-06-24:5170231:Comment:3842012013-06-24T15:14:28.143ZSavitri Rathorehttps://openbooks.ning.com/profile/SavitriRathore
<p><strong><span style="color: #000080;">आदरणीय नूतन जी,आपका समसामयिक लेख हमें उत्तराखंड की वास्तविक स्थिति से अवगत करता है।यह सच है कि इस प्राकृतिक आपदा में सम्पूर्ण उत्तरांचल पूरी तरह नष्ट हो गया है और उसे पुनः अपनी पुरानी स्थिति में वापस आने में वर्षों लग जाएंगे।इस विनाशलीला में फंसे यात्रियों को मदद करने,उन्हें सुरक्षित निकलने तथा उनके गंतव्य तक पहुँचाने में स्थानीय निवासियों एवं सेना का जो योगदान है,वह सराहनीय है........ऐसी विकट स्थिति में हम केवल स्थानीय निवासियों और यात्रियों की कुशलता…</span></strong></p>
<p><strong><span style="color: #000080;">आदरणीय नूतन जी,आपका समसामयिक लेख हमें उत्तराखंड की वास्तविक स्थिति से अवगत करता है।यह सच है कि इस प्राकृतिक आपदा में सम्पूर्ण उत्तरांचल पूरी तरह नष्ट हो गया है और उसे पुनः अपनी पुरानी स्थिति में वापस आने में वर्षों लग जाएंगे।इस विनाशलीला में फंसे यात्रियों को मदद करने,उन्हें सुरक्षित निकलने तथा उनके गंतव्य तक पहुँचाने में स्थानीय निवासियों एवं सेना का जो योगदान है,वह सराहनीय है........ऐसी विकट स्थिति में हम केवल स्थानीय निवासियों और यात्रियों की कुशलता के लिए प्रार्थना कर सकते हैं......ईश्वर उन सभी की सहायता करे,उन्हें इन विषम परिस्थितियों को झेलने की शक्ति और संबल दे तथा जो इस विभीषिका में मारे गए हैं,उन सभी की आत्मा को शांति दे एवं उनके परिजनों को उनका विछोह सहने की शक्ति प्रदान करे।<br/></span></strong></p> कितना बेबस है समाज ! जो लोग…tag:openbooks.ning.com,2013-06-24:5170231:Comment:3842592013-06-24T09:59:01.886Zaman kumarhttps://openbooks.ning.com/profile/amankumar
<p>कितना बेबस है समाज ! जो लोग सत्ता मे आते है जाति , रंग ,छेत्र , रंग , धर्म के आधार पर हमें लड़ा कर , उन्हें चुनते समय हम ये कभी नही पूछते हमारी समस्याओ क हल कब / कैसे होंगा !</p>
<p>पहाड़ को तो बस दूध देने वाली गाय समझा गया है ! विकास तो पेर्येटन के लिए ही होता है लोगो के लिए नही क्युकी बड़ी जमीने सत्ता और दलालों के पास ही होती है आपदा प्रबंधन तक मे अभी तक ठोस काम नही है ! मूल निवासियों को अब भी जानवरों से निम्न माना गया है |</p>
<p>अब पुचा जाये दोनों दलों से प्राक्रतिक आपदा प्रबंधन मे कुछ…</p>
<p>कितना बेबस है समाज ! जो लोग सत्ता मे आते है जाति , रंग ,छेत्र , रंग , धर्म के आधार पर हमें लड़ा कर , उन्हें चुनते समय हम ये कभी नही पूछते हमारी समस्याओ क हल कब / कैसे होंगा !</p>
<p>पहाड़ को तो बस दूध देने वाली गाय समझा गया है ! विकास तो पेर्येटन के लिए ही होता है लोगो के लिए नही क्युकी बड़ी जमीने सत्ता और दलालों के पास ही होती है आपदा प्रबंधन तक मे अभी तक ठोस काम नही है ! मूल निवासियों को अब भी जानवरों से निम्न माना गया है |</p>
<p>अब पुचा जाये दोनों दलों से प्राक्रतिक आपदा प्रबंधन मे कुछ क्यों नही हुआ ?</p> आदरणीया नूतन जी:
आपका लेख…tag:openbooks.ning.com,2013-06-24:5170231:Comment:3843512013-06-24T05:17:03.190Zvijay nikorehttps://openbooks.ning.com/profile/vijaynikore
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<p>आदरणीया नूतन जी:</p>
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<p>आपका लेख पढ़ कर स्पष्ट है कि समाज के एक अंश में मानवता के गिरने से कैसे बाकी सारे समाज को</p>
<p>दुख होता है, और कभी-कभी लगता है कि यह "एक अंश" अपनी गणना में बढ़ता जा रहा है।</p>
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<p>पहाड़ के लोगों के लिए मेरे लिए बचपन से ही बहुत मान रहा है ... मेरी एक बचपन की मित्र और उनका परिवार</p>
<p>बहुत वर्षों से श्रीनगर में खो गया है।</p>
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<p>इस कठिन समय में आपके पति जी ने डाकटरों को आवहन किया है, यह जान कर बहुत ही अच्छा लगा।</p>
<p>खेद है कि देश…</p>
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<p>आदरणीया नूतन जी:</p>
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<p>आपका लेख पढ़ कर स्पष्ट है कि समाज के एक अंश में मानवता के गिरने से कैसे बाकी सारे समाज को</p>
<p>दुख होता है, और कभी-कभी लगता है कि यह "एक अंश" अपनी गणना में बढ़ता जा रहा है।</p>
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<p>पहाड़ के लोगों के लिए मेरे लिए बचपन से ही बहुत मान रहा है ... मेरी एक बचपन की मित्र और उनका परिवार</p>
<p>बहुत वर्षों से श्रीनगर में खो गया है।</p>
<p> </p>
<p>इस कठिन समय में आपके पति जी ने डाकटरों को आवहन किया है, यह जान कर बहुत ही अच्छा लगा।</p>
<p>खेद है कि देश में जब भी विपदा आती है, प्रधान मंत्रि, सोनिया गांधी, और अन्य नेता न जाने किस इन्तज़ार</p>
<p>में बैठे रहते हैं!</p>
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<p>सभी दुखी और पीढ़ित भाई-बाहनों के संग हमारी प्रार्थना है।</p>
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<p>सादर,</p>
<p>विजय निकोर</p>
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<p> </p> पहाड़ के लोगों के संपर्क में ए…tag:openbooks.ning.com,2013-06-24:5170231:Comment:3843432013-06-24T04:41:41.448ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>पहाड़ के लोगों के संपर्क में एक प्रारंभ से रहा हूँ. उनकी सात्विकता और उदारता के प्रति कभी संशय नहीं रहा है. इस आपद घड़ी में भी जिस विश्वस्ति के साथ लोग जुड़े हैं वह अभिभूत तो करता ही है गर्व का कारण भी है.</p>
<p>नकारात्मक शक्तियाँ हर समय क्रियाशील रहती हैं उनको नकारते हुए आगे बढ़ना ही सात्विक लोगों का गुण है.</p>
<p></p>
<p>नियतं सङ्गरहितं अरागद्वेषत: कृतम् । </p>
<p>अफलप्रेप्सुना कर्म यत्तत् सात्विकमुच्यते</p>
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<p>पुनः निवेदन करूँगा.. कि आज कितने लोग सुंदर लाल बहुगुणा को…</p>
<p>पहाड़ के लोगों के संपर्क में एक प्रारंभ से रहा हूँ. उनकी सात्विकता और उदारता के प्रति कभी संशय नहीं रहा है. इस आपद घड़ी में भी जिस विश्वस्ति के साथ लोग जुड़े हैं वह अभिभूत तो करता ही है गर्व का कारण भी है.</p>
<p>नकारात्मक शक्तियाँ हर समय क्रियाशील रहती हैं उनको नकारते हुए आगे बढ़ना ही सात्विक लोगों का गुण है.</p>
<p></p>
<p>नियतं सङ्गरहितं अरागद्वेषत: कृतम् । </p>
<p>अफलप्रेप्सुना कर्म यत्तत् सात्विकमुच्यते</p>
<p></p>
<p>पुनः निवेदन करूँगा.. कि आज कितने लोग सुंदर लाल बहुगुणा को जानते हैं या याद करते हैं जिन्होंने इस तथाकथित विकास से होने वाली बरबादी का अंदाज़ा लगा कर प्रारंभ में ही इसका विरोध करना शुरु कर दिया था. निकृष्ट स्वार्थ, अदूरदृष्टि तथा अकूत संपत्ति के सामने सब मौन हो गये थे.</p>
<p>अब प्रकृति विनाशक दिख रही है तो हमें रोने-पीटने का कोई अधिकार नहीं है. बस चुपचाप सिर झुकाकर अपनी गलतियों को मानते हुए हम आगे की पीढ़ियों के उत्तरदायी बनें. आज की दुःख की घड़ी में संवेदना के स्वर पहाड़ के पुत्रों-पुत्रियों के लिए निकल रहे हैं जिनने वाकई सबकुछ खोया है.</p>
<p></p> आदरणीया, सादर अभिवादन!
आपने ब…tag:openbooks.ning.com,2013-06-24:5170231:Comment:3844182013-06-24T02:23:27.408ZJAWAHAR LAL SINGHhttps://openbooks.ning.com/profile/JAWAHARLALSINGH
<p>आदरणीया, सादर अभिवादन!</p>
<p>आपने बेहद मर्माहत करनेवाला दृश्य पेश किया है! ज्यादातर लोग अब भी सहृदय है पर कुछ असामाजिक तत्व तो हर जगह होते हैं बाहरी हों या भीतरी. मैंने टेलीविजन के मध्यम से देखा है कि तिब्बती महिलाएं भी भरपूर मदद कर रही हैं. सेना के जवानों और ITBP की जितनी भी प्रशंशा की जय कम है! इसके अलावा लंगर चलने वाले पंजाबियों के योगदान को भी नकारा नही जा सकता! अभी टाटा स्टील क दल भी गया है वहाँ मदद हेतु. टाटा ग्रुप की अभी कंपनियों के कर्मचारी अपने एक दिन क वेतन अंशदान में दिया हैं.…</p>
<p>आदरणीया, सादर अभिवादन!</p>
<p>आपने बेहद मर्माहत करनेवाला दृश्य पेश किया है! ज्यादातर लोग अब भी सहृदय है पर कुछ असामाजिक तत्व तो हर जगह होते हैं बाहरी हों या भीतरी. मैंने टेलीविजन के मध्यम से देखा है कि तिब्बती महिलाएं भी भरपूर मदद कर रही हैं. सेना के जवानों और ITBP की जितनी भी प्रशंशा की जय कम है! इसके अलावा लंगर चलने वाले पंजाबियों के योगदान को भी नकारा नही जा सकता! अभी टाटा स्टील क दल भी गया है वहाँ मदद हेतु. टाटा ग्रुप की अभी कंपनियों के कर्मचारी अपने एक दिन क वेतन अंशदान में दिया हैं. टाटाग्रूप भी अपनी तरफ से उतनी ही राशि देकर खुद से मदद पहुंचा रही है. हम सभी को पीड़ित लोगों की हर संभव मदद करनी ही चाहिए!समसामयिक आलेख के लिए आपका आभार!</p> आदरणीय DP Mathur जी, प्रिय Gi…tag:openbooks.ning.com,2013-06-23:5170231:Comment:3840732013-06-23T15:44:40.069Zडॉ नूतन डिमरी गैरोलाhttps://openbooks.ning.com/profile/3t5r6erq96iiw
<p>आदरणीय DP Mathur जी, प्रिय Gitika Vedika, और प्रिय Mahima Shree ... सादर धन्यवाद ... आपने पहाड़ के गाँव का दर्द समझा ... इस मुसीबत मे उनका पाना कुछ नहीं रहा और अतिथि धर्म निभाते हुए जो कुछ था वह भी खतम हो गया है... और बेरोजगारी की समस्या बहुत बड़े रूप में सामने खड़ी हो गयी है... Gitika जी ने भी बिल्कुल सही पहचाना .. आपदा प्रबंधन के नाम पर जो सिर्फ हवाई यात्राये हो रही हैं वो सिर्फ आर्थिक नुक्सान है उस से किसी लोकल याँ यात्री का कोई फायदा नहीं होएगा ... हां फसें हुए यात्रियों / लोगों को निकालने…</p>
<p>आदरणीय DP Mathur जी, प्रिय Gitika Vedika, और प्रिय Mahima Shree ... सादर धन्यवाद ... आपने पहाड़ के गाँव का दर्द समझा ... इस मुसीबत मे उनका पाना कुछ नहीं रहा और अतिथि धर्म निभाते हुए जो कुछ था वह भी खतम हो गया है... और बेरोजगारी की समस्या बहुत बड़े रूप में सामने खड़ी हो गयी है... Gitika जी ने भी बिल्कुल सही पहचाना .. आपदा प्रबंधन के नाम पर जो सिर्फ हवाई यात्राये हो रही हैं वो सिर्फ आर्थिक नुक्सान है उस से किसी लोकल याँ यात्री का कोई फायदा नहीं होएगा ... हां फसें हुए यात्रियों / लोगों को निकालने का काम सबसे जरूरी है लेकिन बहुत से हेलिकोप्टर तो VIP को हवाई सर्वेक्षण मे लगे हैं ... महिमा जी दुवाए जरूर सारा करेंगी और हमारे हाथ में और है भी क्या ..उतनी उचाई मे कोई जा नहीं सकता जबकि रास्ते टूटे हैं ... मदद के लिए गए ट्रक भी आधे रस्ते तक ही जा सक्ते हैं ... और जहाँ केम्प है वहाँ पर राशन पहुच जाए यही जरूरी है... और जहाँ हम कोई नहीं पहुच सकता वहाँ दुवाये पहुंचे की उन लोगो मे इतना सामर्थ्य उताप्पन हो कि वो अपनी सुरक्षा कर सकें .. सभी का धन्यवाद ..</p> आदरणीया नूतन जी आपका लेख पढ़ा…tag:openbooks.ning.com,2013-06-23:5170231:Comment:3840572013-06-23T14:29:26.772ZMAHIMA SHREEhttps://openbooks.ning.com/profile/MAHIMASHREE
<p>आदरणीया नूतन जी आपका लेख पढ़ा .. प्राकृतिक आपदा से पहाड़वासियों और तीर्थयात्रियों का बहुत भारी मात्रा में जानमाल की हानि हुयी .. पुरे देश में इस बात से लोगो को दुःख पहुंचा है .. इस दुःख की घडी में हम सब की संवेदनाएं और कुशलता की प्रार्थना दुःख से गुजरे लोगो के लिए है .. असामाजिक तत्व हरेक जगह सक्रीय हो जाते हैं जब सुरक्षा की कमी और लोगो की लाचारी उन्हें दिखाई पड़ती है ..आपका परिवार आगे बढ़ कर मदद कर रहा है उसके लिए आप सभी बधाई के पात्र हैं .. अपने दुःख को आपने साझा किया इसके लिए आभारी हूँ…</p>
<p>आदरणीया नूतन जी आपका लेख पढ़ा .. प्राकृतिक आपदा से पहाड़वासियों और तीर्थयात्रियों का बहुत भारी मात्रा में जानमाल की हानि हुयी .. पुरे देश में इस बात से लोगो को दुःख पहुंचा है .. इस दुःख की घडी में हम सब की संवेदनाएं और कुशलता की प्रार्थना दुःख से गुजरे लोगो के लिए है .. असामाजिक तत्व हरेक जगह सक्रीय हो जाते हैं जब सुरक्षा की कमी और लोगो की लाचारी उन्हें दिखाई पड़ती है ..आपका परिवार आगे बढ़ कर मदद कर रहा है उसके लिए आप सभी बधाई के पात्र हैं .. अपने दुःख को आपने साझा किया इसके लिए आभारी हूँ किसी प्रकार की आर्थिक मदद अगर हम सभी से जरुरत पड़े तो बताएं .. दूर से हम सभी बस दुःख पीड़ितों के कुशलता की मंगलकामना और आर्थिक मदद ही कर सकने में समर्थ हैं .. सादर</p>