Comments - भारतीयता रही न ध्यान है - Open Books Online2024-03-29T10:13:43Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A369799&xn_auth=noabhaar ashok ji
tag:openbooks.ning.com,2013-06-10:5170231:Comment:3755862013-06-10T04:43:31.132ZDr Ashutosh Vajpeyeehttps://openbooks.ning.com/profile/DrAshutoshVajpeyee
<p>abhaar ashok ji</p>
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<p>abhaar ashok ji</p>
<p></p> आदरणीय डॉ. आशुतोष वाजपेयी साह…tag:openbooks.ning.com,2013-06-08:5170231:Comment:3747512013-06-08T15:25:58.230ZAshok Kumar Raktalehttps://openbooks.ning.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>आदरणीय डॉ. आशुतोष वाजपेयी साहब सादर, बहुत सुन्दर देश और तिरंगे की भावना के विपरीत कार्यों के प्रतिष्ठित होने पर रची सुन्दर घनाक्षरी. सादर बधाई स्वीकारें. किन्तु मुझे छंद विधान के नाम पर अधूरी जानकारी उचित नहीं लगी. आपके लिखे के आगे घनाक्षरी लिखा होना उचित होता.या इसे गनात्म्क आधारित घनाक्षरी कहना उचित होता.सादर,</p>
<p>आदरणीय डॉ. आशुतोष वाजपेयी साहब सादर, बहुत सुन्दर देश और तिरंगे की भावना के विपरीत कार्यों के प्रतिष्ठित होने पर रची सुन्दर घनाक्षरी. सादर बधाई स्वीकारें. किन्तु मुझे छंद विधान के नाम पर अधूरी जानकारी उचित नहीं लगी. आपके लिखे के आगे घनाक्षरी लिखा होना उचित होता.या इसे गनात्म्क आधारित घनाक्षरी कहना उचित होता.सादर,</p> पुनः पुनः आभार सौरभ जी यह विध…tag:openbooks.ning.com,2013-06-03:5170231:Comment:3716982013-06-03T13:34:36.030ZDr Ashutosh Vajpeyeehttps://openbooks.ning.com/profile/DrAshutoshVajpeyee
<p>पुनः पुनः आभार सौरभ जी यह विधान मै पूर्व की एक रचना में दे चूका हूँ इस कारण मुझे लगा लगभग सभी को ज्ञात हो गया होगा.....खैर आगे से आपके परामर्श को ध्यान रखूँगा.......एक बार मुझे इतना समय देने के लिए बहुत धन्यवाद<br/>आगे भी इसी प्रकार के स्नेह की निरन्तर अपेक्षा है</p>
<p>पुनः पुनः आभार सौरभ जी यह विधान मै पूर्व की एक रचना में दे चूका हूँ इस कारण मुझे लगा लगभग सभी को ज्ञात हो गया होगा.....खैर आगे से आपके परामर्श को ध्यान रखूँगा.......एक बार मुझे इतना समय देने के लिए बहुत धन्यवाद<br/>आगे भी इसी प्रकार के स्नेह की निरन्तर अपेक्षा है</p> //'रगण जगण' की ५ आवृत्तियों क…tag:openbooks.ning.com,2013-06-03:5170231:Comment:3717312013-06-03T09:31:00.019ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>//'रगण जगण' की ५ आवृत्तियों के बाद एक गुरु//</p>
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<p>आदरणीय, मैं ही नहीं शायद ही कोई पाठक इस लिहाज से इस कवित्त को देख पाया होगा.</p>
<p>दूसरे, आपको विधान ही लिख देना था कि पदों में सामान्य सम और विषम शब्दों का व्यवस्थित संयोजन तथा १६,१५ की यति या कुल ३१ वर्ण के अलावे भी अंतर्निहित वर्ण व्यवस्था है. इस आशय का ऐडमिन का सदा अनुरोध भी रहता है, कि व्यवहृत छंद की रचनाओं के साथ प्रयुक्त विधान को संक्षेप में दे दें या ग़ज़ल के मिसरों का वज़्न भी लिख दें.</p>
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<p>प्रथम दृष्ट्या कोई पाठक…</p>
<p>//'रगण जगण' की ५ आवृत्तियों के बाद एक गुरु//</p>
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<p>आदरणीय, मैं ही नहीं शायद ही कोई पाठक इस लिहाज से इस कवित्त को देख पाया होगा.</p>
<p>दूसरे, आपको विधान ही लिख देना था कि पदों में सामान्य सम और विषम शब्दों का व्यवस्थित संयोजन तथा १६,१५ की यति या कुल ३१ वर्ण के अलावे भी अंतर्निहित वर्ण व्यवस्था है. इस आशय का ऐडमिन का सदा अनुरोध भी रहता है, कि व्यवहृत छंद की रचनाओं के साथ प्रयुक्त विधान को संक्षेप में दे दें या ग़ज़ल के मिसरों का वज़्न भी लिख दें.</p>
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<p>प्रथम दृष्ट्या कोई पाठक इस रचना को मनहरण घनाक्षरी पर आधारित ही कहेगा. क्यों कि विधान स्पष्ट है और रचना उस विधान को संतुष्ट कर रही है. अब उसके अंदर रगण और जगण की आवृति भी है ताकि पद दण्डक के स्वरूप को अंगीकार करे तो यह इस छंद रचना की विशिष्टता हुई न.</p>
<p>वैसे ऐसे अभिनव प्रयोग होते हैं, होने भी चाहिये.यही साहित्य संप्रेषण का लालित्य है.</p>
<p>आपको मनहरण को विशिष्ट आयाम देने के लिए सादर बधाइयाँ, आदरणीय.</p>
<p></p> सौरभ जी बहुत बहुत आभार.....कि…tag:openbooks.ning.com,2013-06-03:5170231:Comment:3715472013-06-03T08:38:27.758ZDr Ashutosh Vajpeyeehttps://openbooks.ning.com/profile/DrAshutoshVajpeyee
<p>सौरभ जी बहुत बहुत आभार.....किन्तु शिल्प के सन्दर्भ में मै आपसे कुछ स्पष्ट करना चाहता हूँ आप जिसे मनहरण घनाक्षरी कह रहे हैं वस्तुतः वह मनहरण घनाक्षरी न होकर आशुतोष गणात्मक घनाक्षरी छन्द है जो मेरे द्वारा किया गया घनाक्षरी में नूतन प्रयोग है और जिसे काव्याचार्य अशोक पाण्डे 'अशोक' जी ने 'आशुतोष गणात्मक घनाक्षरी छन्द' नाम से व्यवहृत किया है जिसका शिल्प इस प्रकार है 'रगण जगण' की ५ आवृत्तियों के बाद एक गुरु......अतः आपसे पुनः निवेदन है की इस शिल्प की कसौटी पर इसे कस कर तब निर्णय कीजिये.......पुनः…</p>
<p>सौरभ जी बहुत बहुत आभार.....किन्तु शिल्प के सन्दर्भ में मै आपसे कुछ स्पष्ट करना चाहता हूँ आप जिसे मनहरण घनाक्षरी कह रहे हैं वस्तुतः वह मनहरण घनाक्षरी न होकर आशुतोष गणात्मक घनाक्षरी छन्द है जो मेरे द्वारा किया गया घनाक्षरी में नूतन प्रयोग है और जिसे काव्याचार्य अशोक पाण्डे 'अशोक' जी ने 'आशुतोष गणात्मक घनाक्षरी छन्द' नाम से व्यवहृत किया है जिसका शिल्प इस प्रकार है 'रगण जगण' की ५ आवृत्तियों के बाद एक गुरु......अतः आपसे पुनः निवेदन है की इस शिल्प की कसौटी पर इसे कस कर तब निर्णय कीजिये.......पुनः पुनः धन्यवाद और आभार</p> ब्रजेश जी संजय जी बहुत बहुत आ…tag:openbooks.ning.com,2013-06-03:5170231:Comment:3717232013-06-03T08:30:45.340ZDr Ashutosh Vajpeyeehttps://openbooks.ning.com/profile/DrAshutoshVajpeyee
<p>ब्रजेश जी संजय जी बहुत बहुत आभार......और धन्यवाद</p>
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<p>ब्रजेश जी संजय जी बहुत बहुत आभार......और धन्यवाद</p>
<div id="__tbSetup"></div> अद्भुत... इस शानदार प्रस्तुति…tag:openbooks.ning.com,2013-06-02:5170231:Comment:3711412013-06-02T08:19:12.640ZSanjay Mishra 'Habib'https://openbooks.ning.com/profile/SanjayMishraHabib
<p>अद्भुत... इस शानदार प्रस्तुति पर सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय डा आशुतोष जी...</p>
<p>अद्भुत... इस शानदार प्रस्तुति पर सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय डा आशुतोष जी...</p> बहुत ही सुन्दर! मेरी बधाई स्व…tag:openbooks.ning.com,2013-06-02:5170231:Comment:3708872013-06-02T03:42:12.796Zबृजेश नीरजhttps://openbooks.ning.com/profile/BrijeshKumarSingh
<p>बहुत ही सुन्दर! मेरी बधाई स्वीकारें!</p>
<p>बहुत ही सुन्दर! मेरी बधाई स्वीकारें!</p> मानवीय मूल्यों में सतत हो रहा…tag:openbooks.ning.com,2013-06-01:5170231:Comment:3706282013-06-01T09:48:58.256ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>मानवीय मूल्यों में सतत हो रहा ह्रास किसी संवेदनशील मनस को न कुरेद दे हो ही नहीं सकता.</p>
<p>किंतु संवेदना वहीं कुंद हुई दिखती है जब व्यष्टि की महत्ता पर तो सारी वैचारिकता संकेन्द्रित होती दिखे, किन्तु समष्टि के प्रति अक्षम्य निर्लिप्तता व्यापी दिखे. आदरणीय आशुतोषजी, आपकी कलम इसी अन्यमन्स्कता पर सचेष्ट प्रहार करती दिखी है.</p>
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<p>त्रिवर्ण की अवधारणा तक को अब हाशिये पर रखने का कुचक्र चल रहा है जिसकी प्रच्छाया मात्र में सैकड़ों-हज़ारों ने अपनी क़ुर्बानियाँ दी हैं और इसके मान को…</p>
<p>मानवीय मूल्यों में सतत हो रहा ह्रास किसी संवेदनशील मनस को न कुरेद दे हो ही नहीं सकता.</p>
<p>किंतु संवेदना वहीं कुंद हुई दिखती है जब व्यष्टि की महत्ता पर तो सारी वैचारिकता संकेन्द्रित होती दिखे, किन्तु समष्टि के प्रति अक्षम्य निर्लिप्तता व्यापी दिखे. आदरणीय आशुतोषजी, आपकी कलम इसी अन्यमन्स्कता पर सचेष्ट प्रहार करती दिखी है.</p>
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<p>त्रिवर्ण की अवधारणा तक को अब हाशिये पर रखने का कुचक्र चल रहा है जिसकी प्रच्छाया मात्र में सैकड़ों-हज़ारों ने अपनी क़ुर्बानियाँ दी हैं और इसके मान को प्रतिस्थापित किया है.</p>
<p>आपकी ओजस्वी और ऊर्जस्वी पंक्तियों को सादर नमन.</p>
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<p>शिल्प के लिहाज से मनहरण घनाक्षरी का सुन्दर नमूना प्रस्तुत हुआ है. यह अवश्य है कि परिपाटी के अनुरूप पदों में चरणानुसार यति ढूँढने वाले पाठक सशंकित होंगे. लेकिन इस उत्कृष्ट छंद के लिए आपको अतिशय बधाइयाँ.. .</p>
<p></p> कुन्ती जी डॉ नूतन जी लक्ष्मन…tag:openbooks.ning.com,2013-06-01:5170231:Comment:3705632013-06-01T08:37:58.571ZDr Ashutosh Vajpeyeehttps://openbooks.ning.com/profile/DrAshutoshVajpeyee
<p>कुन्ती जी डॉ नूतन जी लक्ष्मन प्रसाद जी और केवल जी आप को बहुत धन्यवाद और आभार.....सदा स्नेह का आकांक्षी हूँ......इसी प्रकार स्नेह वृष्ट करते रहिएगा</p>
<p>कुन्ती जी डॉ नूतन जी लक्ष्मन प्रसाद जी और केवल जी आप को बहुत धन्यवाद और आभार.....सदा स्नेह का आकांक्षी हूँ......इसी प्रकार स्नेह वृष्ट करते रहिएगा</p>