Comments - अपने अपने हिस्से का पानी - Open Books Online2024-03-29T11:56:16Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A365508&xn_auth=noसुंदर बिम्बों को लेकर रची गयी…tag:openbooks.ning.com,2013-06-25:5170231:Comment:3851552013-06-25T20:46:28.756Zवेदिकाhttps://openbooks.ning.com/profile/vedikagitika
<p>सुंदर बिम्बों को लेकर रची गयी रचना … वाह सुंदर सुंदर!</p>
<p>बधाई आदरणीया नूतन जी! </p>
<p>सुंदर बिम्बों को लेकर रची गयी रचना … वाह सुंदर सुंदर!</p>
<p>बधाई आदरणीया नूतन जी! </p> सुंदर.....बधाईtag:openbooks.ning.com,2013-06-14:5170231:Comment:3783622013-06-14T16:16:51.998ZPriyanka singhhttps://openbooks.ning.com/profile/Priyankasingh
<p><span> सुंदर.....<span>बधाई</span></span></p>
<p><span> सुंदर.....<span>बधाई</span></span></p> kya imagination hai ..wah me…tag:openbooks.ning.com,2013-06-06:5170231:Comment:3733222013-06-06T08:35:10.216ZDr Ashutosh Mishrahttps://openbooks.ning.com/profile/DrAshutoshMishra
<p>kya imagination hai ..wah meri taraf se hardik badhayee sweekarein </p>
<p>kya imagination hai ..wah meri taraf se hardik badhayee sweekarein </p> और मैं हर रोज एक अंजुली में प…tag:openbooks.ning.com,2013-06-05:5170231:Comment:3732072013-06-05T18:43:53.650ZMAHIMA SHREEhttps://openbooks.ning.com/profile/MAHIMASHREE
<p>और मैं हर रोज एक अंजुली में पानी को भर</p>
<p>देख लेती हूँ किनारे को भिगोता हुआ एक सम्पूर्ण सागर</p>
<p>और किनारे जो कही भी अलग नहीं</p>
<p>समान्तर नहीं</p>
<p>वर्तुलाकार में एक साथ चलते और मिलते हुए</p>
<p>और उस सागर में होते हो तुम और तुम्हारा प्रतिबिम्ब</p>
<p>एक घूंट मैं आचमन कर लेती हूँ</p>
<p>बाकी से खुद को भिगो देती हूँ ................. </p>
<p>वाह !! बहुत ही सुंदर .. बधाई आपको</p>
<p>और मैं हर रोज एक अंजुली में पानी को भर</p>
<p>देख लेती हूँ किनारे को भिगोता हुआ एक सम्पूर्ण सागर</p>
<p>और किनारे जो कही भी अलग नहीं</p>
<p>समान्तर नहीं</p>
<p>वर्तुलाकार में एक साथ चलते और मिलते हुए</p>
<p>और उस सागर में होते हो तुम और तुम्हारा प्रतिबिम्ब</p>
<p>एक घूंट मैं आचमन कर लेती हूँ</p>
<p>बाकी से खुद को भिगो देती हूँ ................. </p>
<p>वाह !! बहुत ही सुंदर .. बधाई आपको</p> प्रिय सखी नूतन जी आपकी इस रचन…tag:openbooks.ning.com,2013-05-31:5170231:Comment:3705122013-05-31T18:11:01.360Zrajesh kumarihttps://openbooks.ning.com/profile/rajeshkumari
<p><span>प्रिय सखी नूतन जी आपकी इस </span><span>रचना पर अभी अभी ध्यान </span><span> गया, बहुत ही सुन्दर बिम्बों में गुंथे भाव दिल तक पंहुच गए बहुत सुन्दर वाह वाह बहुत बधाई आपको |</span></p>
<p><span>प्रिय सखी नूतन जी आपकी इस </span><span>रचना पर अभी अभी ध्यान </span><span> गया, बहुत ही सुन्दर बिम्बों में गुंथे भाव दिल तक पंहुच गए बहुत सुन्दर वाह वाह बहुत बधाई आपको |</span></p> बहुत सुंदर तथा मार्मिक अहसास…tag:openbooks.ning.com,2013-05-30:5170231:Comment:3696912013-05-30T14:52:04.226ZYogendra Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/YogendraSingh967
<p>बहुत सुंदर तथा मार्मिक अहसास से पिरोयी हुई कविता ॥ </p>
<p>बहुत सुंदर तथा मार्मिक अहसास से पिरोयी हुई कविता ॥ </p> आदरणीया नूतन जी:
//
और मैं…tag:openbooks.ning.com,2013-05-30:5170231:Comment:3693952013-05-30T01:40:12.215Zvijay nikorehttps://openbooks.ning.com/profile/vijaynikore
<p></p>
<p>आदरणीया नूतन जी:</p>
<p> </p>
<p>//</p>
<p>और मैं हर रोज एक अंजुली में पानी को भर</p>
<p>देख लेती हूँ किनारे को भिगोता हुआ एक सम्पूर्ण सागर</p>
<p>और किनारे जो कही भी अलग नहीं</p>
<p>समान्तर नहीं//</p>
<p></p>
<p>आपकी कविताएँ मार्मिक भाव से भरपूर हैं,</p>
<p>अत: अच्छी लगती हैं।</p>
<p> </p>
<p>हार्दिक बधाई।</p>
<p>विजय निकोर</p>
<p></p>
<p>आदरणीया नूतन जी:</p>
<p> </p>
<p>//</p>
<p>और मैं हर रोज एक अंजुली में पानी को भर</p>
<p>देख लेती हूँ किनारे को भिगोता हुआ एक सम्पूर्ण सागर</p>
<p>और किनारे जो कही भी अलग नहीं</p>
<p>समान्तर नहीं//</p>
<p></p>
<p>आपकी कविताएँ मार्मिक भाव से भरपूर हैं,</p>
<p>अत: अच्छी लगती हैं।</p>
<p> </p>
<p>हार्दिक बधाई।</p>
<p>विजय निकोर</p> बहुत ही सुंदर रचना जिसका हर श…tag:openbooks.ning.com,2013-05-29:5170231:Comment:3691922013-05-29T09:52:56.358Zcoontee mukerjihttps://openbooks.ning.com/profile/coonteemukerji
<p>बहुत ही सुंदर रचना जिसका हर शब्द अनुभवों के स्याही में डूबी हुई है .नुतन जी , आपकी लेखनी की कोई सानी नहीं...सादर / कुंती .</p>
<p>बहुत ही सुंदर रचना जिसका हर शब्द अनुभवों के स्याही में डूबी हुई है .नुतन जी , आपकी लेखनी की कोई सानी नहीं...सादर / कुंती .</p> अतुकांत शैली में रचित यह रचना…tag:openbooks.ning.com,2013-05-28:5170231:Comment:3689222013-05-28T03:37:23.229ZEr. Ganesh Jee "Bagi"https://openbooks.ning.com/profile/GaneshJee
<p>अतुकांत शैली में रचित यह रचना अपने उच्च बिम्ब और मजबूत कथ्य से बरबस ध्यान खींचती है, अच्छी और भाव प्रधान अभिव्यक्ति पर बधाई आदरणीया डॉ नूतन गैरोला जी । </p>
<p>अतुकांत शैली में रचित यह रचना अपने उच्च बिम्ब और मजबूत कथ्य से बरबस ध्यान खींचती है, अच्छी और भाव प्रधान अभिव्यक्ति पर बधाई आदरणीया डॉ नूतन गैरोला जी । </p> बिंम्ब के धागों से स्नेह को ब…tag:openbooks.ning.com,2013-05-24:5170231:Comment:3668102013-05-24T03:15:23.273ZAshok Kumar Raktalehttps://openbooks.ning.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>बिंम्ब के धागों से स्नेह को बांधती सुन्दर रचना आदरणीया नूतन जी सादर बधाई स्वीकारें.</p>
<p>बिंम्ब के धागों से स्नेह को बांधती सुन्दर रचना आदरणीया नूतन जी सादर बधाई स्वीकारें.</p>