Comments - जन जन के संताप........कुण्डलिया - Open Books Online2024-03-29T04:40:25Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A352347&xn_auth=noहार्दिक आभार.. आदर्णीय कुशवाह…tag:openbooks.ning.com,2013-05-03:5170231:Comment:3572372013-05-03T12:08:56.198Zmanoj shuklahttps://openbooks.ning.com/profile/manojshukla
हार्दिक आभार.. आदर्णीय कुशवाहा जी
हार्दिक आभार.. आदर्णीय कुशवाहा जी सुन्दर प्रयास
सादर बधाईआदरणी…tag:openbooks.ning.com,2013-05-03:5170231:Comment:3571572013-05-03T11:31:08.820ZPRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHAhttps://openbooks.ning.com/profile/PRADEEPKUMARSINGHKUSHWAHA
<p>सुन्दर प्रयास </p>
<p>सादर बधाईआदरणीय मनोज जी </p>
<p>सुन्दर प्रयास </p>
<p>सादर बधाईआदरणीय मनोज जी </p> आदर्णीय सौरभ पाण्डेय जी...साद…tag:openbooks.ning.com,2013-04-26:5170231:Comment:3532342013-04-26T03:27:13.820Zmanoj shuklahttps://openbooks.ning.com/profile/manojshukla
<p>आदर्णीय सौरभ पाण्डेय जी...सादर आभार आपका जो आपने मेरी रचना मे कमी को उजागर किया. मैने उन कमियों को दूर करने का प्रयास किया है....सादर</p>
<p>आदर्णीय सौरभ पाण्डेय जी...सादर आभार आपका जो आपने मेरी रचना मे कमी को उजागर किया. मैने उन कमियों को दूर करने का प्रयास किया है....सादर</p> कहते है कविराय, नही उनमे है प…tag:openbooks.ning.com,2013-04-25:5170231:Comment:3531482013-04-25T18:18:37.826ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>कहते है कविराय, नही उनमे है प्रीति<br/> प्यादों मे तकरार , कराती है राजनीति... इस तरह से कुण्डलिया का अंत नहीं हो सकता. रोला वाला भाग रोला के नियमों क अनुसार ही होगा.</p>
<p></p>
<p>बाकी आपका प्रयास अच्छा है. सतत प्रयासरत रहें. एक बात और <strong>सोंटा </strong> सही शब्द है न कि <em><strong>शोंटा</strong></em>. हम अक्षरियों के प्रति संवेदन शील रहें.</p>
<p>शुभकामनाएँ व बधाइयाँ.. .</p>
<p></p>
<p>कहते है कविराय, नही उनमे है प्रीति<br/> प्यादों मे तकरार , कराती है राजनीति... इस तरह से कुण्डलिया का अंत नहीं हो सकता. रोला वाला भाग रोला के नियमों क अनुसार ही होगा.</p>
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<p>बाकी आपका प्रयास अच्छा है. सतत प्रयासरत रहें. एक बात और <strong>सोंटा </strong> सही शब्द है न कि <em><strong>शोंटा</strong></em>. हम अक्षरियों के प्रति संवेदन शील रहें.</p>
<p>शुभकामनाएँ व बधाइयाँ.. .</p>
<p></p> आदर्णीय श्री अशोक जी ,तथा आदर…tag:openbooks.ning.com,2013-04-25:5170231:Comment:3531322013-04-25T14:57:35.967Zmanoj shuklahttps://openbooks.ning.com/profile/manojshukla
आदर्णीय श्री अशोक जी ,तथा आदर्णीय लक्षमण प्रसाद जी आपका सादर आभार....आपके सुझाव अनुसार मैने पोस्ट को एडिट कर दिया है... अपनी रचना को दोषमुक्त करने मे हुई देरी के लिए मै आप सभी महानुभावों से क्षमा माँगता हू जिन्होने मुझे पढा और अपने बहुमूल्य सूझाव दिये
आदर्णीय श्री अशोक जी ,तथा आदर्णीय लक्षमण प्रसाद जी आपका सादर आभार....आपके सुझाव अनुसार मैने पोस्ट को एडिट कर दिया है... अपनी रचना को दोषमुक्त करने मे हुई देरी के लिए मै आप सभी महानुभावों से क्षमा माँगता हू जिन्होने मुझे पढा और अपने बहुमूल्य सूझाव दिये आदरणीय मनोज जी सादर, सुन्दर क…tag:openbooks.ning.com,2013-04-25:5170231:Comment:3528932013-04-25T14:10:17.560ZAshok Kumar Raktalehttps://openbooks.ning.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>आदरणीय मनोज जी सादर, सुन्दर कुण्डलिया छंद लिखे हैं किन्तु मुझे लगता है पोस्ट करने की शीघ्रता में आप ठीक से मात्रा गणना नहीं कर पा रहे हैं. अंतिम छंद यदि सुधार कर दिया जाय तो क्या ही सुन्दर निखरेगा. सुन्दर भाव प्रस्तुत करने के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें.</p>
<p>आदरणीय मनोज जी सादर, सुन्दर कुण्डलिया छंद लिखे हैं किन्तु मुझे लगता है पोस्ट करने की शीघ्रता में आप ठीक से मात्रा गणना नहीं कर पा रहे हैं. अंतिम छंद यदि सुधार कर दिया जाय तो क्या ही सुन्दर निखरेगा. सुन्दर भाव प्रस्तुत करने के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें.</p> तीनो कुंडलिया सुन्दर और सामयि…tag:openbooks.ning.com,2013-04-25:5170231:Comment:3530222013-04-25T13:35:07.386Zलक्ष्मण रामानुज लडीवालाhttps://openbooks.ning.com/profile/LaxmanPrasadLadiwala
<p>तीनो कुंडलिया सुन्दर और सामयिक, हार्दिक बधाई श्री मनोज शुक्ला जी | "जन जन तो त्रस्त" का एक बार पुनः अवलोकन करे </p>
<p>शायद आप "जन जन तो है त्रस्त" लिखना चाह रहे थे |</p>
<p>तीनो कुंडलिया सुन्दर और सामयिक, हार्दिक बधाई श्री मनोज शुक्ला जी | "जन जन तो त्रस्त" का एक बार पुनः अवलोकन करे </p>
<p>शायद आप "जन जन तो है त्रस्त" लिखना चाह रहे थे |</p> सादर आभार आदर्णीय पाठक जी....…tag:openbooks.ning.com,2013-04-24:5170231:Comment:3525602013-04-24T17:03:08.365Zmanoj shuklahttps://openbooks.ning.com/profile/manojshukla
सादर आभार आदर्णीय पाठक जी....स्नेह बनाये रखें
सादर आभार आदर्णीय पाठक जी....स्नेह बनाये रखें कुण्डलियां अच्छी हैं!आ० मनोज…tag:openbooks.ning.com,2013-04-24:5170231:Comment:3527662013-04-24T16:03:51.247Zram shiromani pathakhttps://openbooks.ning.com/profile/ramshiromanipathak
<p><span>कुण्डलियां अच्छी हैं!<span>आ० मनोज शुक्ला जी ///<span>बधाई स्वीकारे। सादर</span></span></span></p>
<p><span>कुण्डलियां अच्छी हैं!<span>आ० मनोज शुक्ला जी ///<span>बधाई स्वीकारे। सादर</span></span></span></p> सादर आभार आपका आदर्णीया. डा.प…tag:openbooks.ning.com,2013-04-24:5170231:Comment:3526582013-04-24T14:33:44.451Zmanoj shuklahttps://openbooks.ning.com/profile/manojshukla
सादर आभार आपका आदर्णीया. डा.प्राची जी.
सादर आभार आपका आदर्णीया. डा.प्राची जी.