Comments - इंसान - Open Books Online2024-03-28T22:23:44Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A345353&xn_auth=noसत्य चाहे जो हो, ये भी अच्छा…tag:openbooks.ning.com,2013-04-14:5170231:Comment:3466062013-04-14T07:38:52.447ZAshok Kumar Raktalehttps://openbooks.ning.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>सत्य चाहे जो हो, ये भी अच्छा है कभी कभी हम खुद को भी कोस लें. सुन्दर रचना आदरणीय वीनस जी.</p>
<p>सत्य चाहे जो हो, ये भी अच्छा है कभी कभी हम खुद को भी कोस लें. सुन्दर रचना आदरणीय वीनस जी.</p> आदरणीय वीनस जी, सत्य को उजागर…tag:openbooks.ning.com,2013-04-14:5170231:Comment:3467122013-04-14T04:06:55.606Zअरुण कुमार निगमhttps://openbooks.ning.com/profile/arunkumarnigam
<p>आदरणीय वीनस जी, सत्य को उजागर कर दिया. लूटनेवाला लुटने के डर से शरणागत होता है. मांगते समय इतना भी नहीं सोचता है कि जो कुछ वह मांग रहा है, क्या वैसा ही कुछ लुटा रहा है ? सटीक रचना के लिए बधाई....</p>
<p>आदरणीय वीनस जी, सत्य को उजागर कर दिया. लूटनेवाला लुटने के डर से शरणागत होता है. मांगते समय इतना भी नहीं सोचता है कि जो कुछ वह मांग रहा है, क्या वैसा ही कुछ लुटा रहा है ? सटीक रचना के लिए बधाई....</p> आ० वीनस जी
सच को मुखरता से क…tag:openbooks.ning.com,2013-04-13:5170231:Comment:3464542013-04-13T16:58:41.982ZDr.Prachi Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>आ० वीनस जी </p>
<p>सच को मुखरता से कहती... तीक्ष अभिव्यक्ति </p>
<p></p>
<p>धरती पर प्रकृति के हर तत्व को नित ज़िंदगी के प्रतिकूल बनाता ...मनुष्य अन्य ग्रहों पर जीवन तलाशता फिरता है....?</p>
<p>ये दोगलापन ही तो है...</p>
<p></p>
<p>इस प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई </p>
<p></p>
<p>आ० वीनस जी </p>
<p>सच को मुखरता से कहती... तीक्ष अभिव्यक्ति </p>
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<p>धरती पर प्रकृति के हर तत्व को नित ज़िंदगी के प्रतिकूल बनाता ...मनुष्य अन्य ग्रहों पर जीवन तलाशता फिरता है....?</p>
<p>ये दोगलापन ही तो है...</p>
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<p>इस प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई </p>
<p></p> एक दम अलग सी रचना प्रस्तुत की…tag:openbooks.ning.com,2013-04-13:5170231:Comment:3465182013-04-13T13:50:30.913Zrajesh kumarihttps://openbooks.ning.com/profile/rajeshkumari
<p><span>एक दम अलग सी रचना प्रस्तुत की है वीनस जी सच में इंसान दोगला है इसमें कोई दो राय नहीं प्रकृति </span><span> से खिलवाड़ भी करता है उसके दुश्परिणामों पर या तो खुद को या खुदा </span><span> को कोसता है इस शानदार प्रस्तुति हेतु बधाई |</span></p>
<p><span>एक दम अलग सी रचना प्रस्तुत की है वीनस जी सच में इंसान दोगला है इसमें कोई दो राय नहीं प्रकृति </span><span> से खिलवाड़ भी करता है उसके दुश्परिणामों पर या तो खुद को या खुदा </span><span> को कोसता है इस शानदार प्रस्तुति हेतु बधाई |</span></p> आपने तो यथार्थ दर्शन करा दिया…tag:openbooks.ning.com,2013-04-13:5170231:Comment:3460032013-04-13T03:59:09.282ZVindu Babuhttps://openbooks.ning.com/profile/vandanatiwari
आपने तो यथार्थ दर्शन करा दिया आदरणीय वीनस जी। आज का दौर यही हो गया है कि हम कृत्रिम संसाधनों से पौरुष बटोरना चाहते हैं।<br />
प्रशंसनीय रचनात्मकता के लिए सादर बधाई स्वीकारें।
आपने तो यथार्थ दर्शन करा दिया आदरणीय वीनस जी। आज का दौर यही हो गया है कि हम कृत्रिम संसाधनों से पौरुष बटोरना चाहते हैं।<br />
प्रशंसनीय रचनात्मकता के लिए सादर बधाई स्वीकारें। विन्ध्येश्वरी त्रिपाठी विनय,…tag:openbooks.ning.com,2013-04-12:5170231:Comment:3461562013-04-12T18:39:37.130Zवीनस केसरीhttps://openbooks.ning.com/profile/1q1lxk02g9ue6
<p><span class="st"><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/Vindhyeshwariprasadtripathi" class="fn url">विन्ध्येश्वरी त्रिपाठी विनय</a>, <br/>पसंदगी के लिए आभार <br/><br/>निदा फाजली के एक शेर से अपनी बात कहूँगा कि, <br/><br/><em>हर आदमी में होते हैं</em> दस बीस आदमी <br/>जिसको भी देखना हो कई बार देखना...<br/><br/>वैसे पिछले दिनों जो रचनाएँ पोस्ट की हैं वो २००९ से २०११ के दरमियाँ लिखी थी <br/>सादर <br/></span></p>
<p><span class="st"><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/Vindhyeshwariprasadtripathi" class="fn url">विन्ध्येश्वरी त्रिपाठी विनय</a>, <br/>पसंदगी के लिए आभार <br/><br/>निदा फाजली के एक शेर से अपनी बात कहूँगा कि, <br/><br/><em>हर आदमी में होते हैं</em> दस बीस आदमी <br/>जिसको भी देखना हो कई बार देखना...<br/><br/>वैसे पिछले दिनों जो रचनाएँ पोस्ट की हैं वो २००९ से २०११ के दरमियाँ लिखी थी <br/>सादर <br/></span></p> आदरणीय वीनस सर जी सादर क्या ह…tag:openbooks.ning.com,2013-04-12:5170231:Comment:3454892013-04-12T08:05:23.291ZSANDEEP KUMAR PATELhttps://openbooks.ning.com/profile/SANDEEPKUMARPATEL
<p>आदरणीय वीनस सर जी सादर <br/>क्या ही खूबसूरती के साथ सच को साझा किया है आपने <br/>इंसानी हक़ीकत इससे परे क्या है <br/>आज श्रद्धा के नाम पर चल रहे ढकोसलो के मुँह पर करारा तमाचा जड़ा है आपने <br/>और याद भी दिलाया है के तुम क्या हो <br/>तुममे क्या क्षमता है <br/>तुम क्या कर सकते हो <br/>क्या कर चुके हो <br/>पर ये इंसान है ग़लती और हार इसके दो ही पहलू हैं <br/>जिन्हे ये दुर्भाग्य मानता है <br/>उसके लिए क्या कीजे <br/>जय हो <br/>बेहतरीन रचना के लिए बहुत बहुत बधाई हो</p>
<p>आदरणीय वीनस सर जी सादर <br/>क्या ही खूबसूरती के साथ सच को साझा किया है आपने <br/>इंसानी हक़ीकत इससे परे क्या है <br/>आज श्रद्धा के नाम पर चल रहे ढकोसलो के मुँह पर करारा तमाचा जड़ा है आपने <br/>और याद भी दिलाया है के तुम क्या हो <br/>तुममे क्या क्षमता है <br/>तुम क्या कर सकते हो <br/>क्या कर चुके हो <br/>पर ये इंसान है ग़लती और हार इसके दो ही पहलू हैं <br/>जिन्हे ये दुर्भाग्य मानता है <br/>उसके लिए क्या कीजे <br/>जय हो <br/>बेहतरीन रचना के लिए बहुत बहुत बधाई हो</p> आदरणीय वीनस सर जी! एक गजल गो…tag:openbooks.ning.com,2013-04-12:5170231:Comment:3456692013-04-12T07:54:15.427Zविन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठीhttps://openbooks.ning.com/profile/Vindhyeshwariprasadtripathi
आदरणीय वीनस सर जी! एक गजल गो अतुकांत कविता की तरफ कैसे उन्मुख हो गया? फिल्हाल इसांनों की सच्चाई से रूबरू कराती खूबसूरत रचना के लिये आपको भूरिश: बधाई।
आदरणीय वीनस सर जी! एक गजल गो अतुकांत कविता की तरफ कैसे उन्मुख हो गया? फिल्हाल इसांनों की सच्चाई से रूबरू कराती खूबसूरत रचना के लिये आपको भूरिश: बधाई। आ0 वीनस केसरी जी, ’विनती करते…tag:openbooks.ning.com,2013-04-12:5170231:Comment:3454842013-04-12T06:47:39.003Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'https://openbooks.ning.com/profile/kewalprasad
<p>आ0 वीनस केसरी जी, ’विनती करते हैं <br/>रचते हैं नकली श्रद्धा का खूबसूरत नाटक <br/>प्रार्थनाओं का दौर चलता है,<br/>’माँ’ हम सब अपकी संतान हैं’। ...बहुत, बहुत ही सुन्दर । हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,</p>
<p>आ0 वीनस केसरी जी, ’विनती करते हैं <br/>रचते हैं नकली श्रद्धा का खूबसूरत नाटक <br/>प्रार्थनाओं का दौर चलता है,<br/>’माँ’ हम सब अपकी संतान हैं’। ...बहुत, बहुत ही सुन्दर । हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,</p> खुबसूरत रचना हां हम इंसान है…tag:openbooks.ning.com,2013-04-12:5170231:Comment:3456382013-04-12T03:52:22.073Zलक्ष्मण रामानुज लडीवालाhttps://openbooks.ning.com/profile/LaxmanPrasadLadiwala
<p>खुबसूरत रचना हां हम इंसान है दोगले है - <strong>हार्दिक बधाई श्री वीनस केसरी जय </strong></p>
<p><strong>आपने मुहं मिया मिट्ठू बनते मोहल्ले है,</strong></p>
<p><strong>परीक्षा से पता लगता कितने खोखले है </strong></p>
<p><strong>फिर भी वाह वाह करते ये सब चोचले है |- </strong></p>
<p><strong>परम्परा निभाते देखो कितने होंसले है - नव संवत्सर कि हार्दिक शुभ कामनाए वीनस भाई </strong></p>
<p>खुबसूरत रचना हां हम इंसान है दोगले है - <strong>हार्दिक बधाई श्री वीनस केसरी जय </strong></p>
<p><strong>आपने मुहं मिया मिट्ठू बनते मोहल्ले है,</strong></p>
<p><strong>परीक्षा से पता लगता कितने खोखले है </strong></p>
<p><strong>फिर भी वाह वाह करते ये सब चोचले है |- </strong></p>
<p><strong>परम्परा निभाते देखो कितने होंसले है - नव संवत्सर कि हार्दिक शुभ कामनाए वीनस भाई </strong></p>