Comments - सच मन को आहत करता है - वीनस केसरी - Open Books Online2024-03-29T14:20:20Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A344292&xn_auth=noव्यवस्था जब विकार सदृश हो जाय…tag:openbooks.ning.com,2013-04-17:5170231:Comment:3486472013-04-17T20:59:07.928ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>व्यवस्था जब विकार सदृश हो जाय और समाधान के स्थान पर वापस कुण्ठा का कारण बने तो सत्य हाशिये पर जाता दिखायी देता है. सत्य से व्यवस्था होती होगी लेकिन सामान्य आँखों और मन के परे का तथ्य है. लेकिन व्यवस्था से सत्य दैनिक अनुभूतियों का हिस्सा है. यहीं आपका कवि विद्रोह कर उठता है. </p>
<p>इस संदर्भ सापेक्ष रचना के लिए अतिशय बधाइयाँ, वीनसजी.. .</p>
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<p>व्यवस्था जब विकार सदृश हो जाय और समाधान के स्थान पर वापस कुण्ठा का कारण बने तो सत्य हाशिये पर जाता दिखायी देता है. सत्य से व्यवस्था होती होगी लेकिन सामान्य आँखों और मन के परे का तथ्य है. लेकिन व्यवस्था से सत्य दैनिक अनुभूतियों का हिस्सा है. यहीं आपका कवि विद्रोह कर उठता है. </p>
<p>इस संदर्भ सापेक्ष रचना के लिए अतिशय बधाइयाँ, वीनसजी.. .</p>
<p></p> व्यवस्था पर व्यंग करती सुन्दर…tag:openbooks.ning.com,2013-04-12:5170231:Comment:3461442013-04-12T17:38:20.723ZAshok Kumar Raktalehttps://openbooks.ning.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>व्यवस्था पर व्यंग करती सुन्दर रचना आदरणीय वीनस जी.</p>
<p>व्यवस्था पर व्यंग करती सुन्दर रचना आदरणीय वीनस जी.</p> वीनस जी सादर ,
सच बोलने वालो …tag:openbooks.ning.com,2013-04-10:5170231:Comment:3448932013-04-10T14:52:40.827ZParveen Malikhttps://openbooks.ning.com/profile/ParveenMalik
<p>वीनस जी सादर ,</p>
<p><span>सच बोलने वालो </span><br/><span>सच कडवा होता है इसलिए तुमने इसे दवा बताया </span><br/><span>मगर यह जहर है, क़त्ल का सामान है </span><br/><span>मार डालता है हसीन सपनों को </span><br/><span>तुम झूठ के सामने प्रश्न चिह्न खड़े करते हो </span><br/><span>क्यों ? कैसे ? कब ? कहाँ ? किसको ? किससे ? ...</span><br/><span>तुम शानदार व्यवस्था में अवरोध भर हो..</span></p>
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<p>बहुत ही सत्य कहा ... बहुत बढ़िया !</p>
<p>वीनस जी सादर ,</p>
<p><span>सच बोलने वालो </span><br/><span>सच कडवा होता है इसलिए तुमने इसे दवा बताया </span><br/><span>मगर यह जहर है, क़त्ल का सामान है </span><br/><span>मार डालता है हसीन सपनों को </span><br/><span>तुम झूठ के सामने प्रश्न चिह्न खड़े करते हो </span><br/><span>क्यों ? कैसे ? कब ? कहाँ ? किसको ? किससे ? ...</span><br/><span>तुम शानदार व्यवस्था में अवरोध भर हो..</span></p>
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<p>बहुत ही सत्य कहा ... बहुत बढ़िया !</p> आ0 वीनस जी, वाह भाई जी! वास्त…tag:openbooks.ning.com,2013-04-09:5170231:Comment:3445222013-04-09T16:28:11.796Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'https://openbooks.ning.com/profile/kewalprasad
<p>आ0 वीनस जी, वाह भाई जी! वास्तव में ये सत्य जानना चाहते हैं, सत्य के बगैर स्वयं नही रहते है, सत्य के उपासक हैं ये... मगर कोई अन्य स्वयं के हक के लिए सच की बात करता है, तो ये ही लोग उसे सूली पर चढ़ाकर, जहर देकर, डण्डो और पानी की धार से मार देते हैं। अतिसुन्दर प्रस्तुति। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,</p>
<p>आ0 वीनस जी, वाह भाई जी! वास्तव में ये सत्य जानना चाहते हैं, सत्य के बगैर स्वयं नही रहते है, सत्य के उपासक हैं ये... मगर कोई अन्य स्वयं के हक के लिए सच की बात करता है, तो ये ही लोग उसे सूली पर चढ़ाकर, जहर देकर, डण्डो और पानी की धार से मार देते हैं। अतिसुन्दर प्रस्तुति। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,</p> आदरणीय भाई वीनस जी बहोत ही सु…tag:openbooks.ning.com,2013-04-09:5170231:Comment:3444612013-04-09T13:57:36.881Zram shiromani pathakhttps://openbooks.ning.com/profile/ramshiromanipathak
<p>आदरणीय भाई वीनस जी बहोत ही सुन्दर मार्मिक रचना है !हार्दिक बधाई </p>
<p>आदरणीय भाई वीनस जी बहोत ही सुन्दर मार्मिक रचना है !हार्दिक बधाई </p>