Comments - ग़ज़ल- "न पीपल की छाया, न पोखर दिखे!" - Open Books Online2024-03-28T15:25:23Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A341155&xn_auth=noआदरणीय सौरभ जी,
सादर प्रणाम!…tag:openbooks.ning.com,2013-04-15:5170231:Comment:3472642013-04-15T14:12:06.972Zसंदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी'https://openbooks.ning.com/profile/SandeipDwivediWahidKashiwasi
<p>आदरणीय सौरभ जी,</p>
<p>सादर प्रणाम! ग़ज़ल को आपकी पारखी नज़रों का अनुमोदन प्राप्त हुआ, आह्लादित हूँ! सादर,</p>
<p>आदरणीय सौरभ जी,</p>
<p>सादर प्रणाम! ग़ज़ल को आपकी पारखी नज़रों का अनुमोदन प्राप्त हुआ, आह्लादित हूँ! सादर,</p> भाई संदीप 'दीप' जी,
आपने सरा…tag:openbooks.ning.com,2013-04-15:5170231:Comment:3471062013-04-15T14:10:58.864Zसंदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी'https://openbooks.ning.com/profile/SandeipDwivediWahidKashiwasi
<p>भाई संदीप 'दीप' जी,</p>
<p>आपने सराहा मेरा मान बढ़ा! आपका हार्दिक धन्यवाद! :-)</p>
<p>भाई संदीप 'दीप' जी,</p>
<p>आपने सराहा मेरा मान बढ़ा! आपका हार्दिक धन्यवाद! :-)</p> पूरी ग़ज़ल एक संवेदनशील हृदय की…tag:openbooks.ning.com,2013-04-14:5170231:Comment:3465752013-04-14T04:43:41.060ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>पूरी ग़ज़ल एक संवेदनशील हृदय की व्यक्त हुई आह सी सामने आती है.</p>
<p>फिर भी इन अश’आर को बार-बार उद्धृत करना चाहूँगा.</p>
<p><span style="color: #3366ff;">न पीपल की छाया, न पोखर दिखे;</span><br></br> <span style="color: #3366ff;">मेरे गाँव के खेत बंजर दिखे; (1)</span></p>
<p><span style="color: #3366ff;">जो मज्लिस में तल्क़ीन दें सब्र की,</span><br></br> <span style="color: #3366ff;">वो गोशे में आपे से बाहर दिखे;(4)</span></p>
<p><span style="color: #3366ff;">लहू से रही सुर्ख़ बरसों ज़मीं,…</span><br></br></p>
<p>पूरी ग़ज़ल एक संवेदनशील हृदय की व्यक्त हुई आह सी सामने आती है.</p>
<p>फिर भी इन अश’आर को बार-बार उद्धृत करना चाहूँगा.</p>
<p><span style="color: #3366ff;">न पीपल की छाया, न पोखर दिखे;</span><br/> <span style="color: #3366ff;">मेरे गाँव के खेत बंजर दिखे; (1)</span></p>
<p><span style="color: #3366ff;">जो मज्लिस में तल्क़ीन दें सब्र की,</span><br/> <span style="color: #3366ff;">वो गोशे में आपे से बाहर दिखे;(4)</span></p>
<p><span style="color: #3366ff;">लहू से रही सुर्ख़ बरसों ज़मीं,</span><br/> <span style="color: #3366ff;">ज़रा अब तो कश्मीरी केसर दिखे;(6)</span></p>
<p><span style="color: #3366ff;">कड़ी धूप में वो निखरने लगा,</span><br/> <span style="color: #3366ff;">पसीना है मेहनत का ज़ेवर दिखे;(9)</span><br/> <span style="color: #3366ff;">वतन का भला हो मुक़र्रर तभी,</span><br/> <span style="color: #3366ff;">तरक़्क़ी जो हर सू बराबर दिखे; (10)</span><br/> <span style="color: #3366ff;">तमन्ना है '<em>वाहिद</em>' मेरी बस यही,</span><br/> <span style="color: #3366ff;">मकां-रोटी सबको मयस्सर दिखे;(11)</span></p>
<p></p>
<p>बहुत-बहुत बधाई संदीप भाईजी.</p> वाह वाह आदरणीय संदीप भाई सादर…tag:openbooks.ning.com,2013-04-11:5170231:Comment:3455402013-04-11T15:36:43.613ZSANDEEP KUMAR PATELhttps://openbooks.ning.com/profile/SANDEEPKUMARPATEL
<p>वाह वाह आदरणीय संदीप भाई सादर </p>
<p>बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल हुई है </p>
<p>हर इक शेर पे दाद क़ुबूल कीजिये </p>
<p></p>
<p> इस अशआर पर विशेष दाद कुबूलें </p>
<p></p>
<p><span> कड़ी धूप में वो निखरने लगा,</span><br/><span>पसीना है मेहनत का ज़ेवर दिखे;</span></p>
<p></p>
<p>जय हो </p>
<p>वाह वाह आदरणीय संदीप भाई सादर </p>
<p>बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल हुई है </p>
<p>हर इक शेर पे दाद क़ुबूल कीजिये </p>
<p></p>
<p> इस अशआर पर विशेष दाद कुबूलें </p>
<p></p>
<p><span> कड़ी धूप में वो निखरने लगा,</span><br/><span>पसीना है मेहनत का ज़ेवर दिखे;</span></p>
<p></p>
<p>जय हो </p> हार्दिक आभार एवं कृतज्ञता प्र…tag:openbooks.ning.com,2013-04-10:5170231:Comment:3446702013-04-10T07:48:15.875Zसंदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी'https://openbooks.ning.com/profile/SandeipDwivediWahidKashiwasi
<p>हार्दिक आभार एवं कृतज्ञता प्रकट करता हूँ आदरणीय भ्रमर जी! आपसे तो सदैव ही मार्गदर्शन एवं सहयोग प्राप्त होता रहता है! सादर,</p>
<p>हार्दिक आभार एवं कृतज्ञता प्रकट करता हूँ आदरणीय भ्रमर जी! आपसे तो सदैव ही मार्गदर्शन एवं सहयोग प्राप्त होता रहता है! सादर,</p> बदन पर कफ़न सी सफ़ेदी न हो,तेरे…tag:openbooks.ning.com,2013-04-09:5170231:Comment:3446352013-04-09T18:30:13.118ZSURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMARhttps://openbooks.ning.com/profile/SURENDRAKUMARSHUKLABHRAMAR
<p><span>बदन पर कफ़न सी सफ़ेदी न हो,</span><br></br><span>तेरे पाँव में फिर महावर दिखे; (8)</span><br></br><span>कड़ी धूप में वो निखरने लगा,</span><br></br><span>पसीना है मेहनत का ज़ेवर दिखे;(9)</span><br></br><span>वतन का भला हो मुक़र्रर तभी,</span><br></br><span>तरक़्क़ी जो हर सू बराबर दिखे; (</span></p>
<p><span><span>प्रिय वाहिद काशी वासी भाई जी आप की रचनाओं के।। छंदों के गजलों के क्लिष्ट शब्दों को समझने में ताकत तो बड़ी लगती है लेकिन ईर्ष्या भी होती है साथ साथ आनंद भी फिर भोले बाबा की कृपा आप पर यों ही बनी रहे तो…</span></span></p>
<p><span>बदन पर कफ़न सी सफ़ेदी न हो,</span><br/><span>तेरे पाँव में फिर महावर दिखे; (8)</span><br/><span>कड़ी धूप में वो निखरने लगा,</span><br/><span>पसीना है मेहनत का ज़ेवर दिखे;(9)</span><br/><span>वतन का भला हो मुक़र्रर तभी,</span><br/><span>तरक़्क़ी जो हर सू बराबर दिखे; (</span></p>
<p><span><span>प्रिय वाहिद काशी वासी भाई जी आप की रचनाओं के।। छंदों के गजलों के क्लिष्ट शब्दों को समझने में ताकत तो बड़ी लगती है लेकिन ईर्ष्या भी होती है साथ साथ आनंद भी फिर भोले बाबा की कृपा आप पर यों ही बनी रहे तो हम भी सीखते ही रहें कुछ उर्दू फ़ारसी ......सुन्दर </span></span></p>
<div><div>..जय श्री राधे आभार प्रोत्साहन हेतु <div>भ्रमर ५ </div>
</div>
</div>
<p></p> आदरणीय जवाहर भाई, केवल प्रसाद…tag:openbooks.ning.com,2013-04-09:5170231:Comment:3443572013-04-09T08:58:03.749Zसंदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी'https://openbooks.ning.com/profile/SandeipDwivediWahidKashiwasi
<p>आदरणीय जवाहर भाई, केवल प्रसाद जी, राम शिरोमणि जी, अरुन'अनंत' जी, राजेश जी, स्नेही अशोक जी एवं वंदना जी आप सभी के प्रोत्साहन हेतु अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ! सादर,</p>
<p>आदरणीय जवाहर भाई, केवल प्रसाद जी, राम शिरोमणि जी, अरुन'अनंत' जी, राजेश जी, स्नेही अशोक जी एवं वंदना जी आप सभी के प्रोत्साहन हेतु अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ! सादर,</p> बहुत अच्छी गजल पेश की है आपने…tag:openbooks.ning.com,2013-04-06:5170231:Comment:3420182013-04-06T05:00:28.535ZVindu Babuhttps://openbooks.ning.com/profile/vandanatiwari
बहुत अच्छी गजल पेश की है आपने आदरणीय वाहिद जी,शब्द शिल्प प्रशंसनीय है।<br />
वदन पर फिर कफन सी सफेदी न हो..<br />
अति सुन्दर
बहुत अच्छी गजल पेश की है आपने आदरणीय वाहिद जी,शब्द शिल्प प्रशंसनीय है।<br />
वदन पर फिर कफन सी सफेदी न हो..<br />
अति सुन्दर कड़ी धूप में वो निखरने लगा,पसी…tag:openbooks.ning.com,2013-04-05:5170231:Comment:3414802013-04-05T15:21:50.821ZAshok Kumar Raktalehttps://openbooks.ning.com/profile/AshokKumarRaktale
<p><span style="color: #3366ff;">कड़ी धूप में वो निखरने लगा,</span><br/><span style="color: #3366ff;">पसीना है मेहनत का ज़ेवर दिखे;............मेहनतकशों के लिए क्या खूब लिखा है वाह!</span></p>
<p><span style="color: #3366ff;">.....और मक्ता भी कमाल है.बहुत बहुत बधाई आदरणीय संदीप जी इतनी सुन्दर गजल के लिए.</span></p>
<p><span style="color: #3366ff;">कड़ी धूप में वो निखरने लगा,</span><br/><span style="color: #3366ff;">पसीना है मेहनत का ज़ेवर दिखे;............मेहनतकशों के लिए क्या खूब लिखा है वाह!</span></p>
<p><span style="color: #3366ff;">.....और मक्ता भी कमाल है.बहुत बहुत बधाई आदरणीय संदीप जी इतनी सुन्दर गजल के लिए.</span></p> तमन्ना है 'वाहिद' मेरी बस यही…tag:openbooks.ning.com,2013-04-05:5170231:Comment:3414712013-04-05T13:01:51.987Zराजेश 'मृदु'https://openbooks.ning.com/profile/RajeshKumarJha
<p><span style="color: #3366ff;">तमन्ना है '<em>वाहिद</em>' मेरी बस यही,</span><br/> <span style="color: #3366ff;">मकां-रोटी सबको मयस्सर दिखे;</span></p>
<p></p>
<p><span style="color: #3366ff;">तमन्ना पूरी हो हम भी दुआ करेंगें ।</span></p>
<p><span style="color: #3366ff;">तमन्ना है '<em>वाहिद</em>' मेरी बस यही,</span><br/> <span style="color: #3366ff;">मकां-रोटी सबको मयस्सर दिखे;</span></p>
<p></p>
<p><span style="color: #3366ff;">तमन्ना पूरी हो हम भी दुआ करेंगें ।</span></p>