Comments - रंगों की दुनियां - Open Books Online2024-03-29T12:48:40Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A331732&xn_auth=noइस प्यारी और रंग भरी रचना के…tag:openbooks.ning.com,2013-03-18:5170231:Comment:3347642013-03-18T05:13:58.073ZMeena Pathakhttps://openbooks.ning.com/profile/MeenaPathak
<p>इस प्यारी और रंग भरी रचना के लिए हार्दिक बधाई नूतन जी </p>
<p>इस प्यारी और रंग भरी रचना के लिए हार्दिक बधाई नूतन जी </p> आदरणीया नूतन जी:
मैंने पाया…tag:openbooks.ning.com,2013-03-18:5170231:Comment:3349412013-03-18T05:03:55.266Zvijay nikorehttps://openbooks.ning.com/profile/vijaynikore
<p></p>
<p><strong>आदरणीया नूतन जी:</strong></p>
<p><br></br>मैंने पाया है खुद को ..अकेला एक ऐसी दुनिया में</p>
<p>जहाँ रौशनी न थी ...क्यूंकि आखों में ज्योति न थी <strong>.... वाह, वाह!</strong></p>
<p> </p>
<p>सुंदरता का रंगों में संवरना</p>
<p>यूँ न होता संभव ...जो रौशनी न होती <strong> .... बहुत खूब!</strong></p>
<p> </p>
<p>यूँ न होता मुमकिन ... रंगों की दुनियां</p>
<p>जो रौशनी में बैठी .... किरणों की परियां</p>
<p>भर भर गागर न रंग बिखेरती …</p>
<p></p>
<p><strong>आदरणीया नूतन जी:</strong></p>
<p><br/>मैंने पाया है खुद को ..अकेला एक ऐसी दुनिया में</p>
<p>जहाँ रौशनी न थी ...क्यूंकि आखों में ज्योति न थी <strong>.... वाह, वाह!</strong></p>
<p> </p>
<p>सुंदरता का रंगों में संवरना</p>
<p>यूँ न होता संभव ...जो रौशनी न होती <strong> .... बहुत खूब!</strong></p>
<p> </p>
<p>यूँ न होता मुमकिन ... रंगों की दुनियां</p>
<p>जो रौशनी में बैठी .... किरणों की परियां</p>
<p>भर भर गागर न रंग बिखेरती <strong>.... क्या कहने!</strong></p>
<p> </p>
<p>फिर भी मुझे सीखना है ... रंगों के उस गणित को,</p>
<p>जिसे आजन्म ...बिन ज्योति की आँखें</p>
<p>देखती हैं सोचती है ... समझती हैं </p>
<p>वो कैसे परिभाषित करतीं है</p>
<p>रंगों के इस अद्भुत संसार को</p>
<p>हरेक रंग को ?</p>
<p>परियों तुम आओ ... और ढुलका दो </p>
<p>उन प्यारी आँखों में ...ज्योति कलश | <strong>These lines are the epitome</strong></p>
<p><strong> of perfection in imagination!</strong></p>
<p> </p>
<p><strong>मैं और क्या कह सकता हूँ ? ...</strong></p>
<p><strong>_यही कि ऐसा ही और लिखने के लिए शुभकामनाएँ!</strong></p>
<p> </p>
<p><strong>सादर,</strong></p>
<p><strong>विजय निकोर</strong></p>
<p> </p>
<p> </p> धन्यवाद डॉ स्वरण जी ... आभार…tag:openbooks.ning.com,2013-03-15:5170231:Comment:3337952013-03-15T15:52:08.045Zडॉ नूतन डिमरी गैरोलाhttps://openbooks.ning.com/profile/3t5r6erq96iiw
<p>धन्यवाद डॉ स्वरण जी ... आभार इस सुन्दर टिप्पणी के लिए जो खुद कवितामय लग रही है... सादर </p>
<p>धन्यवाद डॉ स्वरण जी ... आभार इस सुन्दर टिप्पणी के लिए जो खुद कवितामय लग रही है... सादर </p>
भाव के साथ साथ कविता के कं…tag:openbooks.ning.com,2013-03-15:5170231:Comment:3337562013-03-15T07:54:16.070ZDr. Swaran J. Omcawrhttps://openbooks.ning.com/profile/DrSwaranJOmcawr
<p><span> </span></p>
<p></p>
<p><span>भाव के साथ साथ कविता के कंटेंट्स व उस का सम्यक मूल्य कविता की परिपक्व्यता और सौन्दर्य बोध उस के श्रृंगार हैं </span></p>
<p>फिर भी मुझे सीखना है</p>
<p>रंगों के उस गणित को,</p>
<p>जिसे आजन्म</p>
<p>बिन ज्योति की आँखें </p>
<p>देखती हैं </p>
<p><span>रियली बहुत अच्छा लगी आप की कविता </span></p>
<p><span> </span></p>
<p></p>
<p><span>भाव के साथ साथ कविता के कंटेंट्स व उस का सम्यक मूल्य कविता की परिपक्व्यता और सौन्दर्य बोध उस के श्रृंगार हैं </span></p>
<p>फिर भी मुझे सीखना है</p>
<p>रंगों के उस गणित को,</p>
<p>जिसे आजन्म</p>
<p>बिन ज्योति की आँखें </p>
<p>देखती हैं </p>
<p><span>रियली बहुत अच्छा लगी आप की कविता </span></p> आदरणीया डॉ. नूतन जी,हृदय से ब…tag:openbooks.ning.com,2013-03-12:5170231:Comment:3319692013-03-12T12:30:50.019Zram shiromani pathakhttps://openbooks.ning.com/profile/ramshiromanipathak
<p><span>आदरणीया डॉ. नूतन जी,</span><span>हृदय से बधाई</span></p>
<p></p>
<p>फिर भी मुझे सीखना है</p>
<p>रंगों के उस गणित को,</p>
<p>जिसे आजन्म</p>
<p>बिन ज्योति की आँखें </p>
<p>देखती हैं <br/>सोचती हैं</p>
<p>समझती हैं <br/>वो कैसे परिभाषित करतीं है <br/>रंगों के इस अद्भुत संसार को</p>
<p>हरेक रंग को ?</p>
<p><span>आदरणीया डॉ. नूतन जी,</span><span>हृदय से बधाई</span></p>
<p></p>
<p>फिर भी मुझे सीखना है</p>
<p>रंगों के उस गणित को,</p>
<p>जिसे आजन्म</p>
<p>बिन ज्योति की आँखें </p>
<p>देखती हैं <br/>सोचती हैं</p>
<p>समझती हैं <br/>वो कैसे परिभाषित करतीं है <br/>रंगों के इस अद्भुत संसार को</p>
<p>हरेक रंग को ?</p> आपकी सुन्दर रचना से एक बार फि…tag:openbooks.ning.com,2013-03-12:5170231:Comment:3320632013-03-12T10:29:29.916Zलक्ष्मण रामानुज लडीवालाhttps://openbooks.ning.com/profile/LaxmanPrasadLadiwala
<p>आपकी सुन्दर रचना से एक बार फिर रंगों की दुनिया में झाकने का अवसर मिला है, रंगों पर काव्य महोत्सव में लिखी सुन्दर </p>
<p>रचनाओं में से एक रचना यह भी रची गयी है, जिसके लिए आपको हार्दिक बधाई डॉ नूतन गैरोला जी </p>
<p>आपकी सुन्दर रचना से एक बार फिर रंगों की दुनिया में झाकने का अवसर मिला है, रंगों पर काव्य महोत्सव में लिखी सुन्दर </p>
<p>रचनाओं में से एक रचना यह भी रची गयी है, जिसके लिए आपको हार्दिक बधाई डॉ नूतन गैरोला जी </p> आदरणीय सौरभ जी ! इस मंच पर हम…tag:openbooks.ning.com,2013-03-12:5170231:Comment:3319432013-03-12T09:01:48.260Zडॉ नूतन डिमरी गैरोलाhttps://openbooks.ning.com/profile/3t5r6erq96iiw
<p>आदरणीय सौरभ जी ! इस मंच पर हमें सीखने सिखाने की जो मौका मिलता है..वह इसे सभी जगह से बिलकुल भिन्न बनता है ... और विशेष भी... आप सब से हमें सीखने को मिलता रहे ...सादर </p>
<p>आदरणीय सौरभ जी ! इस मंच पर हमें सीखने सिखाने की जो मौका मिलता है..वह इसे सभी जगह से बिलकुल भिन्न बनता है ... और विशेष भी... आप सब से हमें सीखने को मिलता रहे ...सादर </p> आदरणीय डॉ प्राची ... आपने इन…tag:openbooks.ning.com,2013-03-12:5170231:Comment:3319422013-03-12T08:57:52.180Zडॉ नूतन डिमरी गैरोलाhttps://openbooks.ning.com/profile/3t5r6erq96iiw
<p>आदरणीय डॉ प्राची ... आपने इन शब्दों को जो मान दिया वह मेरे लिए खुशी का सबब है... आपका तहे दिल शुक्रिया .. </p>
<p>आदरणीय डॉ प्राची ... आपने इन शब्दों को जो मान दिया वह मेरे लिए खुशी का सबब है... आपका तहे दिल शुक्रिया .. </p> आदरणीया डॉ. नूतन जी,
बेहद कोम…tag:openbooks.ning.com,2013-03-12:5170231:Comment:3318732013-03-12T05:06:28.712ZDr.Prachi Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>आदरणीया डॉ. नूतन जी,</p>
<p>बेहद कोमल, निर्मल रंगों से रंगी कल्पनाएँ, जैसे सोच का सागर बह चला, </p>
<p>इतना सुन्दर शब्द चित्र उकेरा है आपने, मानों मानस पटल पर कोइ रील खुद भी खुद चलने लगी हो.....वाह! </p>
<p>और सुनहरी परियां.</p>
<p>हाथों में रजत कलश लिए</p>
<p>छलकाती हैं रंगों की गगरिया |.....कितना सुन्दर चित्रण </p>
<p></p>
<p>रौशनी का मूल्य</p>
<p>और आँखों की ज्योति</p>
<p>एक दुनिया की कीमत है</p>
<p>जग की ज्योति है |...............कितनी सुन्दर सोच-समझ का समृद्ध विस्तार…</p>
<p>आदरणीया डॉ. नूतन जी,</p>
<p>बेहद कोमल, निर्मल रंगों से रंगी कल्पनाएँ, जैसे सोच का सागर बह चला, </p>
<p>इतना सुन्दर शब्द चित्र उकेरा है आपने, मानों मानस पटल पर कोइ रील खुद भी खुद चलने लगी हो.....वाह! </p>
<p>और सुनहरी परियां.</p>
<p>हाथों में रजत कलश लिए</p>
<p>छलकाती हैं रंगों की गगरिया |.....कितना सुन्दर चित्रण </p>
<p></p>
<p>रौशनी का मूल्य</p>
<p>और आँखों की ज्योति</p>
<p>एक दुनिया की कीमत है</p>
<p>जग की ज्योति है |...............कितनी सुन्दर सोच-समझ का समृद्ध विस्तार है </p>
<p></p>
<p>फिर भी मुझे सीखना है</p>
<p>रंगों के उस गणित को,</p>
<p><strong>जिसे आजन्म</strong></p>
<p><strong>बिन ज्योति की आँखें </strong></p>
<p><strong>देखती हैं </strong><br/><strong>सोचती हैं</strong></p>
<p><strong>समझती हैं </strong><br/>वो कैसे परिभाषित करतीं है <br/>रंगों के इस अद्भुत संसार को</p>
<p>हरेक रंग को ?.................बहुत सुन्दर चाहना </p>
<p></p>
<p>परियों तुम आओ</p>
<p>और ढुलका दो </p>
<p>उन प्यारी आँखों में</p>
<p>ज्योति कलश |...........ज्योतिकलश का ढुलकाना मुग्ध कर गया...वाह अद्वितीय रचना </p>
<p></p>
<p>यदि यह रचना महोत्सव में होती, तो मैं इसे रंग विषय पर महोत्सव की सबसे खूबसूरत रचना कहती तो अतिशयोक्ति न होती </p>
<p></p>
<p>बहुत बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीया </p>
<p>सादर.</p>
<p></p>
<p></p> सादर धन्यवाद, डॉ. नूतन.. .
यह…tag:openbooks.ning.com,2013-03-12:5170231:Comment:3319202013-03-12T05:05:36.399ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>सादर धन्यवाद, डॉ. नूतन.. .</p>
<p>यह मंच ही ’सीखने-सिखाने’ का मंच है. हम यहाँ परस्पर सीखते हैं. सहयोग बना रहे, आदरणीया.. .</p>
<p></p>
<p>सादर धन्यवाद, डॉ. नूतन.. .</p>
<p>यह मंच ही ’सीखने-सिखाने’ का मंच है. हम यहाँ परस्पर सीखते हैं. सहयोग बना रहे, आदरणीया.. .</p>
<p></p>