Comments - आराधना - Open Books Online2024-03-28T19:37:17Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A319029&xn_auth=noनहीं जी स्त्री से सिर्फ इतनी…tag:openbooks.ning.com,2013-02-19:5170231:Comment:3204912013-02-19T01:20:29.708ZTushar Raj Rastogihttps://openbooks.ning.com/profile/TusharRajRastogi
<p>नहीं जी स्त्री से सिर्फ इतनी अपेक्षा है के वो एक संतान उत्पन्न करे और उस संतान को सुसंतान बनाना तो माता और पिता दोनों के हाथ में है | परन्तु वो समय जिसमें संतान गर्भ में रहती है उस समय की नारी की सोच, आचार, विचार और व्यवहार सबका असर शिशु के मन, मस्तिष्क और विकास पर भी पड़ता है तो उस समय एक आशावादी और सकारात्मक सोच का होना अनिवार्य है जो की शिशु के प्राकृतिक स्वाभाव के विकास के लिए बहुत ही आवश्यक है | क्योंकि जीवन को प्राण सिर्फ एक स्त्री ही दे सकती है | यदि पुरुष संतान उत्पन्न कर सकते तो ये…</p>
<p>नहीं जी स्त्री से सिर्फ इतनी अपेक्षा है के वो एक संतान उत्पन्न करे और उस संतान को सुसंतान बनाना तो माता और पिता दोनों के हाथ में है | परन्तु वो समय जिसमें संतान गर्भ में रहती है उस समय की नारी की सोच, आचार, विचार और व्यवहार सबका असर शिशु के मन, मस्तिष्क और विकास पर भी पड़ता है तो उस समय एक आशावादी और सकारात्मक सोच का होना अनिवार्य है जो की शिशु के प्राकृतिक स्वाभाव के विकास के लिए बहुत ही आवश्यक है | क्योंकि जीवन को प्राण सिर्फ एक स्त्री ही दे सकती है | यदि पुरुष संतान उत्पन्न कर सकते तो ये बात उनपर भी लागू होती | पर इश्वर ने ये गौरव और हक सिर्फ स्त्री को दिया है इसलिए इसके आगे की बहस व्यर्थ और मिथ्या हो जाती है | बाकि आगे तो जीवन में सबसे ऊपर किस्मत ही चलती है चाहे स्त्री हो या पुरुष |</p> तुषार जी स्त्री तो संतान पैदा…tag:openbooks.ning.com,2013-02-18:5170231:Comment:3200792013-02-18T06:25:48.224ZParveen Malikhttps://openbooks.ning.com/profile/ParveenMalik
<p>तुषार जी स्त्री तो संतान पैदा कर देती है लेकिन वो सुसंतान हो इसकी गारंटी भी आप स्त्री से ही चाहते हैं ????</p>
<p>तुषार जी स्त्री तो संतान पैदा कर देती है लेकिन वो सुसंतान हो इसकी गारंटी भी आप स्त्री से ही चाहते हैं ????</p> आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया…tag:openbooks.ning.com,2013-02-17:5170231:Comment:3200232013-02-17T16:44:19.107ZTushar Raj Rastogihttps://openbooks.ning.com/profile/TusharRajRastogi
<p>आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया :)</p>
<p>आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया :)</p> यतार्थपरक होना भी कुछ है ...…tag:openbooks.ning.com,2013-02-17:5170231:Comment:3195882013-02-17T12:50:19.342Zवेदिकाhttps://openbooks.ning.com/profile/vedikagitika
<p>यतार्थपरक होना भी कुछ है ... शुभकामनाये।</p>
<p>यतार्थपरक होना भी कुछ है ... शुभकामनाये।</p> सारी अपेक्षाएं स्त्री से ही क…tag:openbooks.ning.com,2013-02-17:5170231:Comment:3197142013-02-17T12:04:33.901ZMeena Pathakhttps://openbooks.ning.com/profile/MeenaPathak
<p>सारी अपेक्षाएं स्त्री से ही क्यूँ .....</p>
<p>सारी अपेक्षाएं स्त्री से ही क्यूँ .....</p> कामना पुत्र की क्यूँ पुत्री भ…tag:openbooks.ning.com,2013-02-17:5170231:Comment:3196852013-02-17T12:03:18.243ZPRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHAhttps://openbooks.ning.com/profile/PRADEEPKUMARSINGHKUSHWAHA
<p>कामना पुत्र की क्यूँ पुत्री भी महान है </p>
<p>इश्वर की कृति दोनों सर्व शक्तिमान है </p>
<p>बधाई, आपकी प्रस्तुति हेतु </p>
<p>कामना पुत्र की क्यूँ पुत्री भी महान है </p>
<p>इश्वर की कृति दोनों सर्व शक्तिमान है </p>
<p>बधाई, आपकी प्रस्तुति हेतु </p> शुक्रिया प्राची जी
tag:openbooks.ning.com,2013-02-17:5170231:Comment:3193902013-02-17T08:41:50.819ZTushar Raj Rastogihttps://openbooks.ning.com/profile/TusharRajRastogi
<p>शुक्रिया प्राची जी</p>
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<p>शुक्रिया प्राची जी</p>
<p></p> मानव समाज को सुसन्तति मिले इस…tag:openbooks.ning.com,2013-02-17:5170231:Comment:3192002013-02-17T04:53:25.606ZDr.Prachi Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>मानव समाज को सुसन्तति मिले इसकी अपेक्षा सिर्फ स्त्री से...क्यों?</p>
<p>क्या उस शक्ति की ज़रुरत हर इंसान को नहीं जो समाज का अभिन्न अंग है.</p>
<p>यदि समाज को स्वरुप देना सिर्फ स्त्री का ही कर्मक्षेत्र होता तो, उस शक्ति के आह्वाहन की ज़रुरत ही क्यों पढ़ती... जिसे आप स्त्रियों के लिए अह्वाहित करते हैं.</p>
<p>यद्यपि आपकी रचना में इंगित लक्ष्य उचित है, पर कथ्य को और चिंतन और यथार्थपरक होने की ज़रुरत है. </p>
<p>आपकी और रचनाओं का भी इंतज़ार रहेगा.</p>
<p>शुभेच्छाएं.</p>
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<p>मानव समाज को सुसन्तति मिले इसकी अपेक्षा सिर्फ स्त्री से...क्यों?</p>
<p>क्या उस शक्ति की ज़रुरत हर इंसान को नहीं जो समाज का अभिन्न अंग है.</p>
<p>यदि समाज को स्वरुप देना सिर्फ स्त्री का ही कर्मक्षेत्र होता तो, उस शक्ति के आह्वाहन की ज़रुरत ही क्यों पढ़ती... जिसे आप स्त्रियों के लिए अह्वाहित करते हैं.</p>
<p>यद्यपि आपकी रचना में इंगित लक्ष्य उचित है, पर कथ्य को और चिंतन और यथार्थपरक होने की ज़रुरत है. </p>
<p>आपकी और रचनाओं का भी इंतज़ार रहेगा.</p>
<p>शुभेच्छाएं.</p>
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