Comments - छन्न पकैया छन्न पकैया - Open Books Online2024-03-29T12:55:22Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A293452&xn_auth=noआदरणीय रक्ताले सर ...आपका बहु…tag:openbooks.ning.com,2012-12-04:5170231:Comment:2958392012-12-04T12:25:24.157Zकुमार गौरव अजीतेन्दुhttps://openbooks.ning.com/profile/KumarGauravAjeetendu
आदरणीय रक्ताले सर ...आपका बहुत-बहुत धन्यवाद......
आदरणीय रक्ताले सर ...आपका बहुत-बहुत धन्यवाद...... आदरणीय गौरव जी
…tag:openbooks.ning.com,2012-12-01:5170231:Comment:2949412012-12-01T04:26:05.651ZAshok Kumar Raktalehttps://openbooks.ning.com/profile/AshokKumarRaktale
<p> आदरणीय गौरव जी</p>
<p> सादर, छन्न पकैया छंद में क्रिकेट में दुर्गति को खूब उभारा है. वाह!!! बधाई स्वीकारें.</p>
<p> आदरणीय गौरव जी</p>
<p> सादर, छन्न पकैया छंद में क्रिकेट में दुर्गति को खूब उभारा है. वाह!!! बधाई स्वीकारें.</p> आदरणीय गुरुदेव .......शिल्प क…tag:openbooks.ning.com,2012-11-29:5170231:Comment:2943452012-11-29T07:01:28.682Zकुमार गौरव अजीतेन्दुhttps://openbooks.ning.com/profile/KumarGauravAjeetendu
<p><span>आदरणीय गुरुदेव .......शिल्प के आधार पर भी</span><span> रचना सही है ये जान कर मेहनत सार्थक लग रही है ........एक बार पुनः आपका हार्दिक आभार ......</span></p>
<p><span>आदरणीय गुरुदेव .......शिल्प के आधार पर भी</span><span> रचना सही है ये जान कर मेहनत सार्थक लग रही है ........एक बार पुनः आपका हार्दिक आभार ......</span></p> आदरणीया प्राची दीदी ......रचन…tag:openbooks.ning.com,2012-11-29:5170231:Comment:2944312012-11-29T07:01:14.286Zकुमार गौरव अजीतेन्दुhttps://openbooks.ning.com/profile/KumarGauravAjeetendu
<p><span>आदरणीया प्राची दीदी ......रचना आपको पसंद आई .......जान के बहुत अच्छा लगा ......आपका हार्दिक आभार .......</span></p>
<p><span>आदरणीया प्राची दीदी ......रचना आपको पसंद आई .......जान के बहुत अच्छा लगा ......आपका हार्दिक आभार .......</span></p> आदरणीय लक्ष्मण सर ........रचन…tag:openbooks.ning.com,2012-11-29:5170231:Comment:2943442012-11-29T07:01:00.231Zकुमार गौरव अजीतेन्दुhttps://openbooks.ning.com/profile/KumarGauravAjeetendu
<p><span>आदरणीय लक्ष्मण सर ........रचना को पसंद करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ........</span></p>
<p><span>आदरणीय लक्ष्मण सर ........रचना को पसंद करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ........</span></p> शिल्प के लिहाज से सार छंद में…tag:openbooks.ning.com,2012-11-29:5170231:Comment:2943272012-11-29T05:49:08.536ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>शिल्प के लिहाज से सार छंद में 16-12 की यति पर पद के दोनों चरण होते हैं. यदि चरणों का समापन गुरु गुरु (ऽऽ) या लघु लघु गुरु (।। ऽ) से हो तो गेयता उत्कृष्ट रहती है. विशेषकर सम चरण में इसे निभाना रुचिकर है</p>
<p>उपरोक्त आधार पर आप देखिये क्या ही सुन्दर प्रस्तुति है. दूसरे, छंदों में इस तरह के कथ्य आज के युवा पाठकों को भी लुभाते हैं. दूसरे, जबतक विषय की मांग या पूरे कथ्य का आग्रह न हो खड़ी हिन्दी का प्रयोग छंदों को आजके संदर्भ से जोड़े रहता है. हाँ, सवैया जैसे छंदों में आजकी खड़ी या शुद्ध हिन्दी…</p>
<p>शिल्प के लिहाज से सार छंद में 16-12 की यति पर पद के दोनों चरण होते हैं. यदि चरणों का समापन गुरु गुरु (ऽऽ) या लघु लघु गुरु (।। ऽ) से हो तो गेयता उत्कृष्ट रहती है. विशेषकर सम चरण में इसे निभाना रुचिकर है</p>
<p>उपरोक्त आधार पर आप देखिये क्या ही सुन्दर प्रस्तुति है. दूसरे, छंदों में इस तरह के कथ्य आज के युवा पाठकों को भी लुभाते हैं. दूसरे, जबतक विषय की मांग या पूरे कथ्य का आग्रह न हो खड़ी हिन्दी का प्रयोग छंदों को आजके संदर्भ से जोड़े रहता है. हाँ, सवैया जैसे छंदों में आजकी खड़ी या शुद्ध हिन्दी का एकांगी प्रयोग कष्टसाध्य है. उन छंदों की भाषा में देसज और आंचलिक शब्दों का प्रयोग अनिवार्य जैसा प्रतीत होता है. वैसे आपको मैंने हिन्दी के खड़े रूप में सवैया कहते पढ़ा है.</p>
<p>शुभेच्छाएँ</p> प्रिय कुमार गौरव जी, बहुत खूब…tag:openbooks.ning.com,2012-11-29:5170231:Comment:2944142012-11-29T05:45:55.071ZDr.Prachi Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>प्रिय कुमार गौरव जी, बहुत खूब छंद <span><span>पकैया... एक एक खिलाड़ी को धो धो के पकाया है छन्न, हा हा. बहुत मज़ा आया पढ़ कर. हार्दिक बधाई .</span></span></p>
<p>प्रिय कुमार गौरव जी, बहुत खूब छंद <span><span>पकैया... एक एक खिलाड़ी को धो धो के पकाया है छन्न, हा हा. बहुत मज़ा आया पढ़ कर. हार्दिक बधाई .</span></span></p> चन्न पकैया छन् पकैया, काव्य क…tag:openbooks.ning.com,2012-11-29:5170231:Comment:2941352012-11-29T04:52:11.233Zलक्ष्मण रामानुज लडीवालाhttps://openbooks.ning.com/profile/LaxmanPrasadLadiwala
<div>चन्न पकैया छन् पकैया, काव्य कमेंट्री बढ़िया</div>
<div>बधाई कुमार गौरव् भाई, सुनी कमेंट्री बढ़िया ।</div>
<div> </div>
<div>चन्न पकैया छन् पकैया, काव्य कमेंट्री बढ़िया</div>
<div>बधाई कुमार गौरव् भाई, सुनी कमेंट्री बढ़िया ।</div>
<div> </div> सराहना के लिए आपका बहुत-बहुत…tag:openbooks.ning.com,2012-11-29:5170231:Comment:2941162012-11-29T01:38:23.766Zकुमार गौरव अजीतेन्दुhttps://openbooks.ning.com/profile/KumarGauravAjeetendu
<p><span>सराहना के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया राजेश जी .....</span></p>
<p><span>सराहना के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया राजेश जी .....</span></p> आपका हार्दिक आभार आदरणीय गुरु…tag:openbooks.ning.com,2012-11-29:5170231:Comment:2940032012-11-29T01:37:37.728Zकुमार गौरव अजीतेन्दुhttps://openbooks.ning.com/profile/KumarGauravAjeetendu
<p><span>आपका हार्दिक आभार आदरणीय गुरुदेव .....रचना शिल्प के आधार पर भी तो सही है न? ......अन्य विद्वजनों की लिखी</span><span> छन्न पकैया पढ़के जितना शिल्प के बारे में मैं समझ सका उतना लिखा है ......बाकी आप मार्गदर्शन करें .....</span></p>
<p><span>आपका हार्दिक आभार आदरणीय गुरुदेव .....रचना शिल्प के आधार पर भी तो सही है न? ......अन्य विद्वजनों की लिखी</span><span> छन्न पकैया पढ़के जितना शिल्प के बारे में मैं समझ सका उतना लिखा है ......बाकी आप मार्गदर्शन करें .....</span></p>