Comments - बटवारा आसमान का...... - Open Books Online2024-03-28T12:48:13Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A278315&xn_auth=noसमाज में, परिवार में, घटित हो…tag:openbooks.ning.com,2012-10-04:5170231:Comment:2783342012-10-04T04:46:50.005ZDr.Prachi Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>समाज में, परिवार में, घटित होती सच्चाइयों को प्रकृति के सापेक्ष रख कर देखना, व सुन्दर बिम्बों के माध्यम से उनको व्यक्त करना अभिव्यक्ति की रोचकता में चार चाँद लगा देता है. इस हेतु बधाई.</p>
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<p>समाज में, परिवार में, घटित होती सच्चाइयों को प्रकृति के सापेक्ष रख कर देखना, व सुन्दर बिम्बों के माध्यम से उनको व्यक्त करना अभिव्यक्ति की रोचकता में चार चाँद लगा देता है. इस हेतु बधाई.</p>
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<p></p> बटवारे सिर्फ जायजाद ही कहाँ ब…tag:openbooks.ning.com,2012-10-03:5170231:Comment:2784302012-10-03T20:02:43.262Zsatish mapatpurihttps://openbooks.ning.com/profile/satishmapatpuri
<p>बटवारे सिर्फ जायजाद ही कहाँ बाटते हैं,<br></br> बटवारे छीन लेते हैं, दिलों के एहसास भी,<br></br> बटवारे जो एक को दो कर देते हैं,<br></br> वो भला दो को एक रखें कैसे, ......... बँटवारा वो चाहे परिवार का हो , समाज का हो , राष्ट्र का हो या दिलों का हो कष्टकारी होता ही है . अवमूल्यन के इस दौर में हर क्षेत्र में ह्रास हुआ है , चाहे वह नैतिक मूल्य हो , भाई चारा हो , फ़र्ज़ हो या कुछ और . जैसे - जैसे हम आत्म केन्द्रित होते गए ..... स्वार्थ के वशीभूत होते गए .... वैसे - वैसे हर रिश्तों से कटते गए .... संयुक्त…</p>
<p>बटवारे सिर्फ जायजाद ही कहाँ बाटते हैं,<br/> बटवारे छीन लेते हैं, दिलों के एहसास भी,<br/> बटवारे जो एक को दो कर देते हैं,<br/> वो भला दो को एक रखें कैसे, ......... बँटवारा वो चाहे परिवार का हो , समाज का हो , राष्ट्र का हो या दिलों का हो कष्टकारी होता ही है . अवमूल्यन के इस दौर में हर क्षेत्र में ह्रास हुआ है , चाहे वह नैतिक मूल्य हो , भाई चारा हो , फ़र्ज़ हो या कुछ और . जैसे - जैसे हम आत्म केन्द्रित होते गए ..... स्वार्थ के वशीभूत होते गए .... वैसे - वैसे हर रिश्तों से कटते गए .... संयुक्त परिवार अब सामाजिक शास्त्र का पाठ बन चुका है . ..... आपने बंटवारे की बात सूरज - चाँद एवं उनके पिता आकाश के माध्यम से कहकर आज के इंसानी समाज को दर्पण दिखाया है . .... इस खुबसूरत प्रस्तुति के बधाई पियूष जी</p>