Comments - आस की कश्तियाँ - Open Books Online2024-03-29T15:23:45Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A271357&xn_auth=noकिरण जी, आपने मन को छू जाने व…tag:openbooks.ning.com,2012-12-10:5170231:Comment:2981432012-12-10T13:53:44.520Zvijay nikorehttps://openbooks.ning.com/profile/vijaynikore
<p>किरण जी, आपने मन को छू जाने वाले एक अति सुन्दर कविता लिखी है। साधुवाद।</p>
<p>विजय निकोर</p>
<p>किरण जी, आपने मन को छू जाने वाले एक अति सुन्दर कविता लिखी है। साधुवाद।</p>
<p>विजय निकोर</p> वाह......माय सिस द ग्रेट किरन…tag:openbooks.ning.com,2012-09-22:5170231:Comment:2745152012-09-22T15:38:40.423ZVISHAAL CHARCHCHIThttps://openbooks.ning.com/profile/VISHAALCHARCHCHIT
<p>वाह......माय सिस द ग्रेट किरन........एक अच्छी कोशिश की है तुमने अपने भावों को शब्दों में पिरोने की.......कुछ त्रुटियां हैं जैसा कि सौरभ सर जी ने बताया है......तुम सर की बातों का अक्षरशः पालन करती चलो बस मुझे पूर्ण विश्वास है कि तुम्हारी भावी रचनाओं में गुणात्मक सुधार दिखेगा, ....... मेरी सारी शुभकामनायें तुम्हारे साथ हैं..........!!!!</p>
<p>वाह......माय सिस द ग्रेट किरन........एक अच्छी कोशिश की है तुमने अपने भावों को शब्दों में पिरोने की.......कुछ त्रुटियां हैं जैसा कि सौरभ सर जी ने बताया है......तुम सर की बातों का अक्षरशः पालन करती चलो बस मुझे पूर्ण विश्वास है कि तुम्हारी भावी रचनाओं में गुणात्मक सुधार दिखेगा, ....... मेरी सारी शुभकामनायें तुम्हारे साथ हैं..........!!!!</p> सौरभ जी नमस्कार जी आपकी बात क…tag:openbooks.ning.com,2012-09-21:5170231:Comment:2739862012-09-21T09:34:47.406ZKiran Aryahttps://openbooks.ning.com/profile/KiranArya
<p><span class="userContent"><span class="fbPhotosPhotoCaption" id="fbPhotoSnowliftCaption"><span class="hasCaption">सौरभ जी नमस्कार जी आपकी बात का तात्पर्य समझा हमने और चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता में सम्मिलित रचनाओ को पढ़ा भी लेकिन लिखा नहीं कुछ टिपण्णी रूप में व्यस्तता के कारण तो कोशिश करेंगे कि प्रतिदिन एक बार तो यहाँ जरुर आये हम..........और आप सभी कि संगती और अनुभवों का लाभ भी उठाये.........जी आगे से कुछ भी साझा करने से पहले ध्यान रखेंगे साथ ही आपके इस स्नेह से स्निग्ध मार्गदर्शन के हम…</span></span></span></p>
<p><span class="userContent"><span class="fbPhotosPhotoCaption" id="fbPhotoSnowliftCaption"><span class="hasCaption">सौरभ जी नमस्कार जी आपकी बात का तात्पर्य समझा हमने और चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता में सम्मिलित रचनाओ को पढ़ा भी लेकिन लिखा नहीं कुछ टिपण्णी रूप में व्यस्तता के कारण तो कोशिश करेंगे कि प्रतिदिन एक बार तो यहाँ जरुर आये हम..........और आप सभी कि संगती और अनुभवों का लाभ भी उठाये.........जी आगे से कुछ भी साझा करने से पहले ध्यान रखेंगे साथ ही आपके इस स्नेह से स्निग्ध मार्गदर्शन के हम सदा अभिलाषी है..........शुभं</span></span> <br/><br/></span></p> //आप अन्य समृद्ध रचनाकारों की…tag:openbooks.ning.com,2012-09-16:5170231:Comment:2723762012-09-16T12:04:11.182ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>//<em>आप अन्य समृद्ध रचनाकारों की प्रविष्टियों व प्रस्तुतियों को भी अवश्य पढ़े और उनपर खुल कर अपनी बात कहें.</em>//</p>
<p>मेरी इस पंक्ति का तात्पर्य समझियेगा, किरण आर्यजी. मैंने इस मंच की प्रस्तुतियों के प्रति भी कहा है.अभी इस मंच पर <strong>चित्र से काव्य तक</strong> का आयोजन चल रहा है. यह प्रतियोगिता भी है जो तीन दिनों तक चलेगी. आप इस प्रतियोगिता में शास्त्रीय छंदबद्ध रचना दे सकीं तो आपका स्वागत है. अन्यथा, आप एक जागरुक पाठक की तरह सभी प्रतिभागियों की रचनाएँ पढ़ें और उनपर अपने विचारों को…</p>
<p>//<em>आप अन्य समृद्ध रचनाकारों की प्रविष्टियों व प्रस्तुतियों को भी अवश्य पढ़े और उनपर खुल कर अपनी बात कहें.</em>//</p>
<p>मेरी इस पंक्ति का तात्पर्य समझियेगा, किरण आर्यजी. मैंने इस मंच की प्रस्तुतियों के प्रति भी कहा है.अभी इस मंच पर <strong>चित्र से काव्य तक</strong> का आयोजन चल रहा है. यह प्रतियोगिता भी है जो तीन दिनों तक चलेगी. आप इस प्रतियोगिता में शास्त्रीय छंदबद्ध रचना दे सकीं तो आपका स्वागत है. अन्यथा, आप एक जागरुक पाठक की तरह सभी प्रतिभागियों की रचनाएँ पढ़ें और उनपर अपने विचारों को टिप्पणियों के रूप में रखें. </p>
<p>आप अपनी प्रस्तुतियाँ अवश्य प्रेषित करें, किरण जी. लेकिन उनका अभिप्राय अवश्य स्पष्ट हो. कथ्य, तथ्य, शिल्प, तर्क आदि का सही सम्मिश्रण हो. ऐसा हो पाया तो हम सभी में एक लेखक और पाठक के तौर पर गुणात्मक परिवर्तन हो सकेगा.</p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p></p> सौरभ जी नमस्कार......आपके सुझ…tag:openbooks.ning.com,2012-09-16:5170231:Comment:2722982012-09-16T11:45:02.717ZKiran Aryahttps://openbooks.ning.com/profile/KiranArya
<p><span>सौरभ जी नमस्कार......आपके सुझावों पर अमल करने का प्रयास रहेगा सदैव गर आप सभी गुनीजनो के सानिध्य में कुछ नया सीख पाए तो ये हमारी खुशनसीबी होगी और आपकी बातों को ध्यान में रखकर ही हम आगे कुछ भी लिखेंगे.......पढने का शौक हमेशा से रहा और इसीलिए पुस्तकालय विज्ञानं को अपना कार्यक्षेत्र चुना हमने जब भी समय मिलता है तो कुछ नया पढ़ते है हम.......कोशिश करेंगे समृद्ध रचनाकारों को पढ़े और अपनी बात भी कहे खुलके............आप सभी वरिष्ट जनों के स्नेह मार्गदर्शन और प्रोत्साहन के सदा अभिलाषी है…</span></p>
<p><span>सौरभ जी नमस्कार......आपके सुझावों पर अमल करने का प्रयास रहेगा सदैव गर आप सभी गुनीजनो के सानिध्य में कुछ नया सीख पाए तो ये हमारी खुशनसीबी होगी और आपकी बातों को ध्यान में रखकर ही हम आगे कुछ भी लिखेंगे.......पढने का शौक हमेशा से रहा और इसीलिए पुस्तकालय विज्ञानं को अपना कार्यक्षेत्र चुना हमने जब भी समय मिलता है तो कुछ नया पढ़ते है हम.......कोशिश करेंगे समृद्ध रचनाकारों को पढ़े और अपनी बात भी कहे खुलके............आप सभी वरिष्ट जनों के स्नेह मार्गदर्शन और प्रोत्साहन के सदा अभिलाषी है हम............शुभं</span></p> किरण आर्यजी, आप मेरे मंतव्य क…tag:openbooks.ning.com,2012-09-14:5170231:Comment:2718482012-09-14T10:29:32.668ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>किरण आर्यजी, आप मेरे मंतव्य को समझ पायीं, यही इस मंच के लिये संतोष का विषय है.</p>
<p>भावनाओं का शाब्दिक संप्रेषण अवश्य हो. ऐसा संभव कर पाने वाला ही रचनाकार है. कवि कोई जन्म से ही नहीं होता, किरणजी. लेकिन कोई <strong>क्या</strong> और <strong>क्यों</strong> लिखता है इस हेतु अपने आप में समझ विकसित करना प्रत्येक रचनाकार का पहला कर्त्तव्य है. इसके बाद ही कोई <strong>कैसे</strong> लिखता है पर विवेचना हो सकती है.</p>
<p>भावुक शब्दों का संजाल बुन मुलायम पंक्तियाँ लिखते जाना प्रारम्भिक दौर में अक्सर…</p>
<p>किरण आर्यजी, आप मेरे मंतव्य को समझ पायीं, यही इस मंच के लिये संतोष का विषय है.</p>
<p>भावनाओं का शाब्दिक संप्रेषण अवश्य हो. ऐसा संभव कर पाने वाला ही रचनाकार है. कवि कोई जन्म से ही नहीं होता, किरणजी. लेकिन कोई <strong>क्या</strong> और <strong>क्यों</strong> लिखता है इस हेतु अपने आप में समझ विकसित करना प्रत्येक रचनाकार का पहला कर्त्तव्य है. इसके बाद ही कोई <strong>कैसे</strong> लिखता है पर विवेचना हो सकती है.</p>
<p>भावुक शब्दों का संजाल बुन मुलायम पंक्तियाँ लिखते जाना प्रारम्भिक दौर में अक्सर सभी को सुहाता है. <strong>अक्सर सभी</strong> का अर्थ है रचनाकार के साथ सामान्य पाठक को भी. लेकिन यह दौर लम्बा बना रह गया तो फिर वहीं लिखने वाले और पढ़ने वाले की भाषा और उसका साहित्य लगातार पंगु होने लगते हैं. आपको मैं इस मंच पर पढ़ता रहा हूँ. अतः आपसे बँधी उम्मीद ने मुझे आपको संयत करने हेतु प्रेरित किया.</p>
<p>सर्वोपरि, आप अन्य समृद्ध रचनाकारों की प्रविष्टियों व प्रस्तुतियों को भी अवश्य पढ़े और उनपर खुल कर अपनी बात कहें. मेरी मानिये, देखियेगा आपके संप्रेषण में कैसा गुणात्मक विकास होता है.</p>
<p></p>
<p><strong>एक बात :</strong> <em>आँधियों तले</em> के स्थान पर सही शब्द-समुच्चय <strong>आँधियों में</strong> होना चाहिये. <em>आँधियों तले</em> जैसे शब्द-समुच्चय का प्रयोग जबतक रचना विशेष की मांग न बने न लिखा करें. यों सुना तो आपने भी होगा, <em>हमने देखी है उन आँखों की महकती खुश्बू.. हाथ से छू के उसे रिश्तों का इल्ज़ाम न दो.. </em> किन्तु, इस अति विशिष्ट पंक्तियों का रचयिता स्वयं में अति उच्च स्तर का भाव-शब्द चितेरा है.</p>
<p>हमारा-आपका प्रयास संयत और निरंतर रहा तो हम भी आने वाले समय में भाव-शब्दों से चित्र उकेरने लगेंगे. </p>
<p>शुभ-शुभ</p> रेखा जी और संदीप जी आभार.....…tag:openbooks.ning.com,2012-09-14:5170231:Comment:2716532012-09-14T09:02:31.578ZKiran Aryahttps://openbooks.ning.com/profile/KiranArya
<p>रेखा जी और संदीप जी आभार............शुभं</p>
<p>रेखा जी और संदीप जी आभार............शुभं</p> राजेश जी नमस्कार जी हाँ सही क…tag:openbooks.ning.com,2012-09-14:5170231:Comment:2715812012-09-14T09:01:53.254ZKiran Aryahttps://openbooks.ning.com/profile/KiranArya
<p>राजेश जी नमस्कार जी हाँ सही कहा आपने अभी बहुत कुछ सीखना शेष है और सभी वरिष्ट जनों के सानिध्य में प्रतिपल कुछ नया सीखने का प्रयास निरंतर रहेगा हमारा........आपके स्नेह और प्रोत्साहन के लिए आभार..........शुभं</p>
<p>राजेश जी नमस्कार जी हाँ सही कहा आपने अभी बहुत कुछ सीखना शेष है और सभी वरिष्ट जनों के सानिध्य में प्रतिपल कुछ नया सीखने का प्रयास निरंतर रहेगा हमारा........आपके स्नेह और प्रोत्साहन के लिए आभार..........शुभं</p> सौरभ पाण्डेय जी नमस्कार सबसे…tag:openbooks.ning.com,2012-09-14:5170231:Comment:2717472012-09-14T08:59:50.238ZKiran Aryahttps://openbooks.ning.com/profile/KiranArya
<p>सौरभ पाण्डेय जी नमस्कार सबसे पहले तो मैं कोई कवि नहीं हूँ हाँ शिशु कह सकते है अभी मुझे आप यहाँ बस सीख रही हूँ सभी वरिष्ट गुणीजनों के सानिध्य में और ये प्रयास जारी रहेगा हमेशा ही जी हाँ बहुत सी त्रुटियाँ थी इस रचना में जो आपने देखी और अवगत कराया हमें उनसे.........हांजी आपने सही इंगित किया की सी कहने से आभासी हो जाता है अहसास.........और जहाँ तक अविरल का प्रश्न था वो मैंने उसके बिना रुके बहते जाने के लिए लिखा था.........अभी उसकी जगह निरंतर कर दिया है.........आपके मार्गदर्शन एवं स्नेह से स्निग्ध…</p>
<p>सौरभ पाण्डेय जी नमस्कार सबसे पहले तो मैं कोई कवि नहीं हूँ हाँ शिशु कह सकते है अभी मुझे आप यहाँ बस सीख रही हूँ सभी वरिष्ट गुणीजनों के सानिध्य में और ये प्रयास जारी रहेगा हमेशा ही जी हाँ बहुत सी त्रुटियाँ थी इस रचना में जो आपने देखी और अवगत कराया हमें उनसे.........हांजी आपने सही इंगित किया की सी कहने से आभासी हो जाता है अहसास.........और जहाँ तक अविरल का प्रश्न था वो मैंने उसके बिना रुके बहते जाने के लिए लिखा था.........अभी उसकी जगह निरंतर कर दिया है.........आपके मार्गदर्शन एवं स्नेह से स्निग्ध प्रोत्साहन के हम सदा अभिलाषी है..............और आगे से ध्यान रखेंगे व्याकरण का भी और त्रुटियों का भी............शुभं <br/>मायूसियों ने आज फिर दस्तक दी<br/> खयालो के बंद दरवाजो से निकल<br/> मन के आँगन में बिखरने को<br/> बेताब सी मायूसियाँ<br/> लेकिन आस की एक लौ<br/> जिससे रोशन है दिल की बस्तियाँ<br/> मुस्कुरा के बोली बुझने ना देना मुझे<br/> जीवन में आयेंगे कठोर थपेड़े<br/> वक़्त की आंधियों तले<br/> हमने मिटती देखी हैं <br/> इन थपेड़ो की गिरफ्त में कई हस्तियाँ<br/> जिंदगी की उलझनों से बिफरती<br/> भटकती सी राहो पर<br/> डगमगते कदमो से उठती गिरती<br/> लहरों सी बेबसी की लाचार सिसकियाँ<br/> मन के सागर में उम्मीद के दीये सी<br/> लहरों सी अठखेलियाँ करती<br/>निरंतर बहती जाती है<br/> आस की यह रोशन कश्तियाँ.........किरण आर्य</p> मन के सागर में उम्मीद के दिए…tag:openbooks.ning.com,2012-09-14:5170231:Comment:2716282012-09-14T05:14:27.704ZRekha Joshihttps://openbooks.ning.com/profile/RekhaJoshi
<p><span>मन के सागर में उम्मीद के दिए सी</span><br/><span>लहरों सी अठखेलियाँ करती,</span><br/><span>अविरल बहती जाती है</span><br/><span>आस की ये रोशन सी कश्तियाँ....,अति सुंदर भाव किरन जी ,हार्दिक बधाई </span></p>
<p><span>मन के सागर में उम्मीद के दिए सी</span><br/><span>लहरों सी अठखेलियाँ करती,</span><br/><span>अविरल बहती जाती है</span><br/><span>आस की ये रोशन सी कश्तियाँ....,अति सुंदर भाव किरन जी ,हार्दिक बधाई </span></p>