Comments - ग़ज़ल - बादलों और बिजलियों की नेमतें - Open Books Online2024-03-28T20:00:09Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A264328&xn_auth=noपरम श्रद्धेय श्री सौरभ जी आपक…tag:openbooks.ning.com,2012-09-02:5170231:Comment:2675332012-09-02T08:33:08.643ZAbhinav Arunhttps://openbooks.ning.com/profile/ArunKumarPandeyAbhinav
परम श्रद्धेय श्री सौरभ जी आपकी टिप्पणी मेरी कलम को और ऊर्जस्वित करेगी ! हार्दिक आभार और साधुवाद |
परम श्रद्धेय श्री सौरभ जी आपकी टिप्पणी मेरी कलम को और ऊर्जस्वित करेगी ! हार्दिक आभार और साधुवाद | ज़िन्दगी रुई के फाहों की तरह…tag:openbooks.ning.com,2012-09-01:5170231:Comment:2671872012-09-01T16:41:12.299ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p><em>ज़िन्दगी रुई के फाहों की तरह ,</em><br/><em>सांस की तारों से धुनता ही रहा |</em></p>
<p><em>चाहतों की आग थी जलती रही ,</em><br/> <em>दिल मेरा खामोश भुनता ही रहा |</em></p>
<p>वाह वाह ! बहुत-बहुत बधाई, भाईजी.</p>
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<p><em>ज़िन्दगी रुई के फाहों की तरह ,</em><br/><em>सांस की तारों से धुनता ही रहा |</em></p>
<p><em>चाहतों की आग थी जलती रही ,</em><br/> <em>दिल मेरा खामोश भुनता ही रहा |</em></p>
<p>वाह वाह ! बहुत-बहुत बधाई, भाईजी.</p>
<p></p> बहुत आभार आपका श्री योगी जी ग़…tag:openbooks.ning.com,2012-08-27:5170231:Comment:2653292012-08-27T09:59:43.544ZAbhinav Arunhttps://openbooks.ning.com/profile/ArunKumarPandeyAbhinav
<p>बहुत आभार आपका श्री योगी जी ग़ज़ल आपको पसंद आई प्रयास सार्थक हुआ !</p>
<p>बहुत आभार आपका श्री योगी जी ग़ज़ल आपको पसंद आई प्रयास सार्थक हुआ !</p> हर ग़ज़ल मेरी उदासी का किला ,
श…tag:openbooks.ning.com,2012-08-27:5170231:Comment:2650772012-08-27T05:06:43.061ZYogi Saraswathttps://openbooks.ning.com/profile/YogendraKumarSaraswat
<div><font face="Mangal" size="4">हर ग़ज़ल मेरी उदासी का किला ,</font></div>
<div><font face="Mangal" size="4">शेर दीवारों में चुनता ही रहा |<br/><br/></font></div>
<div><font face="Mangal" size="4">क्या कहूँ जबसे हूँ आया शहर में ,</font></div>
<div><font face="Mangal" size="4">गाँव की चाहत में घुनता ही रहा |</font></div>
<div><font face="Mangal" size="4">बहुत खूब , सुन्दर अल्फाजों से सजी हुई बढ़िया ग़ज़ल , अभिनव जी ! बधाई</font></div>
<div><font face="Mangal" size="4">हर ग़ज़ल मेरी उदासी का किला ,</font></div>
<div><font face="Mangal" size="4">शेर दीवारों में चुनता ही रहा |<br/><br/></font></div>
<div><font face="Mangal" size="4">क्या कहूँ जबसे हूँ आया शहर में ,</font></div>
<div><font face="Mangal" size="4">गाँव की चाहत में घुनता ही रहा |</font></div>
<div><font face="Mangal" size="4">बहुत खूब , सुन्दर अल्फाजों से सजी हुई बढ़िया ग़ज़ल , अभिनव जी ! बधाई</font></div> बहुत बहुत आभार आदरणीया रेखा…tag:openbooks.ning.com,2012-08-26:5170231:Comment:2648472012-08-26T16:30:39.386ZAbhinav Arunhttps://openbooks.ning.com/profile/ArunKumarPandeyAbhinav
<div> बहुत बहुत आभार आदरणीया रेखा जी ,आदरणीया सीमा जी ,श्री विन्धेश्वरी जी ,श्री संदीप जी और श्री सुजान जी . आपका उत्साह वर्धन मेरी प्रेरणा है |</div>
<div> बहुत बहुत आभार आदरणीया रेखा जी ,आदरणीया सीमा जी ,श्री विन्धेश्वरी जी ,श्री संदीप जी और श्री सुजान जी . आपका उत्साह वर्धन मेरी प्रेरणा है |</div> चाहतों की आग थी जलती रही ,
दि…tag:openbooks.ning.com,2012-08-25:5170231:Comment:2645132012-08-25T16:55:36.709ZRekha Joshihttps://openbooks.ning.com/profile/RekhaJoshi
<p><font size="4" face="Mangal">चाहतों की आग थी जलती रही ,</font></p>
<div><font size="4" face="Mangal">दिल मेरा खामोश भुनता ही रहा |,अरुण जी खूबसूरत ग़ज़ल ,हार्दिक बधाई </font></div>
<p><font size="4" face="Mangal">चाहतों की आग थी जलती रही ,</font></p>
<div><font size="4" face="Mangal">दिल मेरा खामोश भुनता ही रहा |,अरुण जी खूबसूरत ग़ज़ल ,हार्दिक बधाई </font></div> ऐसा बहुत ही कम हो पाता है कि…tag:openbooks.ning.com,2012-08-25:5170231:Comment:2643602012-08-25T14:57:54.563Zseema agrawalhttps://openbooks.ning.com/profile/seemaagrawal8
<p>ऐसा बहुत ही कम हो पाता है कि किसी गज़ल का हर शेर कमाल का हो पाए पर अभिनव जी आपकी इस गज़ल में यदि छांटने लगूंगी तो शायद मुमकिन नहीं हो सकेगा .......जिस शेर को पढती हूँ बस वाह ही होती है बस ज्यादा तारीफ करने के लिए यही कह सकती हूँ</p>
<p>ऐसी गज़ले और लिखिए </p>
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<p>ऐसा बहुत ही कम हो पाता है कि किसी गज़ल का हर शेर कमाल का हो पाए पर अभिनव जी आपकी इस गज़ल में यदि छांटने लगूंगी तो शायद मुमकिन नहीं हो सकेगा .......जिस शेर को पढती हूँ बस वाह ही होती है बस ज्यादा तारीफ करने के लिए यही कह सकती हूँ</p>
<p>ऐसी गज़ले और लिखिए </p>
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<p></p> चाहतों की आग थी जलती रही।
दिल…tag:openbooks.ning.com,2012-08-25:5170231:Comment:2642042012-08-25T13:56:57.481Zविन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठीhttps://openbooks.ning.com/profile/Vindhyeshwariprasadtripathi
चाहतों की आग थी जलती रही।<br />
दिल मेरा खामोश भुनता ही रहा।<br />
<br />
सच है आदरणीय अभिनव जी हर व्यक्ति अपनी इच्छा रुपी अग्नि में ही जलता है।वास्तव में पूरी गजल हर शब्द प्रशंसनीय है।सादर बधाई।
चाहतों की आग थी जलती रही।<br />
दिल मेरा खामोश भुनता ही रहा।<br />
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सच है आदरणीय अभिनव जी हर व्यक्ति अपनी इच्छा रुपी अग्नि में ही जलता है।वास्तव में पूरी गजल हर शब्द प्रशंसनीय है।सादर बधाई। आदरणीय अभिनव भईया..
क्या लाजव…tag:openbooks.ning.com,2012-08-25:5170231:Comment:2644142012-08-25T13:42:39.416Zसंदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी'https://openbooks.ning.com/profile/SandeipDwivediWahidKashiwasi
आदरणीय अभिनव भईया..<br />
क्या लाजवाब ग़ज़ल कही है आपने! दिल आनंदित हो उठा! विशेष तौर पर -<br />
ज़िन्दगी रुई के फाहों की तरह ,<br />
सांस की तारों से धुनता ही रहा; वाह , बहुत ख़ूब..!!
आदरणीय अभिनव भईया..<br />
क्या लाजवाब ग़ज़ल कही है आपने! दिल आनंदित हो उठा! विशेष तौर पर -<br />
ज़िन्दगी रुई के फाहों की तरह ,<br />
सांस की तारों से धुनता ही रहा; वाह , बहुत ख़ूब..!! वाह दिल से दाद कबूल करें.....…tag:openbooks.ning.com,2012-08-25:5170231:Comment:2643472012-08-25T11:35:51.415Zसूबे सिंह सुजानhttps://openbooks.ning.com/profile/2fvsz8v20bb3q
<p>वाह दिल से दाद कबूल करें............</p>
<p>वाह दिल से दाद कबूल करें............</p>