Comments - मै .......... - Open Books Online2024-03-28T11:51:11Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A205654&xn_auth=noप्रिय अनुज ,स्नेहाशीश ,, शब्द…tag:openbooks.ning.com,2012-03-31:5170231:Comment:2075502012-03-31T19:29:52.952Zअश्विनी कुमारhttps://openbooks.ning.com/profile/0ebe0p3dse0e4
<p>प्रिय अनुज ,स्नेहाशीश ,, शब्द थे मन मे गहरे दबे हुए जिनमे से कुछ शब्दों को यहाँ मंच पर रख दिया ,,....हार्दिक आभार </p>
<p>और हाँ मुशायरे को व्यस्तता के कारण समय नही दे पाया :( लेकिन क्या करें मार्च है तो बस मार्च है और जब समय मिला तो पता चला यहाँ भी क्लोजिंग हो गई :)</p>
<p>प्रिय अनुज ,स्नेहाशीश ,, शब्द थे मन मे गहरे दबे हुए जिनमे से कुछ शब्दों को यहाँ मंच पर रख दिया ,,....हार्दिक आभार </p>
<p>और हाँ मुशायरे को व्यस्तता के कारण समय नही दे पाया :( लेकिन क्या करें मार्च है तो बस मार्च है और जब समय मिला तो पता चला यहाँ भी क्लोजिंग हो गई :)</p> गहरी रहस्यवादी पंक्तियाँ ...tag:openbooks.ning.com,2012-03-29:5170231:Comment:2068092012-03-29T10:40:49.585Zवीनस केसरीhttps://openbooks.ning.com/profile/1q1lxk02g9ue6
<p>गहरी रहस्यवादी पंक्तियाँ ...</p>
<p>गहरी रहस्यवादी पंक्तियाँ ...</p> आदरणीय प्रदीप जी आदरणीय शाही…tag:openbooks.ning.com,2012-03-28:5170231:Comment:2059492012-03-28T02:49:13.522Zअश्विनी कुमारhttps://openbooks.ning.com/profile/0ebe0p3dse0e4
<p>आदरणीय प्रदीप जी आदरणीय शाही जी स्नेही अनुज चातक ,,एवम अग्रज बागी जी ,तथा सौरभ जी ;;को यथोचित हार्दिक अभिवादन तथा स्नेहाशीश ... अग्रज बागी जी प्रवाह मे बाधा को दूर करने का प्रयत्न करता हूँ ,... आप सभी का हार्दिक आभार .....||जय भारत ||</p>
<p>आदरणीय प्रदीप जी आदरणीय शाही जी स्नेही अनुज चातक ,,एवम अग्रज बागी जी ,तथा सौरभ जी ;;को यथोचित हार्दिक अभिवादन तथा स्नेहाशीश ... अग्रज बागी जी प्रवाह मे बाधा को दूर करने का प्रयत्न करता हूँ ,... आप सभी का हार्दिक आभार .....||जय भारत ||</p> अन्यमनस्कता नहीं बल्कि रीतापन…tag:openbooks.ning.com,2012-03-27:5170231:Comment:2057862012-03-27T16:32:02.854ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>अन्यमनस्कता नहीं बल्कि रीतापन. ’कुछ नहीं’ नहीं बल्कि ’कुछ’ के ’नहीं’ होने का भाव. रचना में व्याप्त नैराश्य भय से कंपाता नहीं, व्यथित करता है. कहाँ गयी सुषमा.. प्रकृति-सुषमा ? कहाँ गया हमारा विस्तार.. भावनात्मक विस्तार ?</p>
<p>इन अन्तर्प्रवाहित सकारात्मक किन्तु कचोटती हुई भाव-पंक्तियों के लिये भाई अश्विनीजी को हार्दिक बधाइयाँ.</p>
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<p>अन्यमनस्कता नहीं बल्कि रीतापन. ’कुछ नहीं’ नहीं बल्कि ’कुछ’ के ’नहीं’ होने का भाव. रचना में व्याप्त नैराश्य भय से कंपाता नहीं, व्यथित करता है. कहाँ गयी सुषमा.. प्रकृति-सुषमा ? कहाँ गया हमारा विस्तार.. भावनात्मक विस्तार ?</p>
<p>इन अन्तर्प्रवाहित सकारात्मक किन्तु कचोटती हुई भाव-पंक्तियों के लिये भाई अश्विनीजी को हार्दिक बधाइयाँ.</p>
<p></p> आदरणीय अश्वनी जी , कविता में…tag:openbooks.ning.com,2012-03-27:5170231:Comment:2059372012-03-27T15:10:34.181ZEr. Ganesh Jee "Bagi"https://openbooks.ning.com/profile/GaneshJee
<p>आदरणीय अश्वनी जी , कविता में समाहित भाव की यदि बात करे तो निसंदेह बहुत ही बढ़िया है, मुझे केवल प्रवाह में अटकाव महसूस हो रहा है, एक बार जरा प्रवाह पर कसे , सच कहता हूँ चार चाँद न लग गए तो कहियेगा, बहरहाल बधाई स्वीकार करे |</p>
<p>आदरणीय अश्वनी जी , कविता में समाहित भाव की यदि बात करे तो निसंदेह बहुत ही बढ़िया है, मुझे केवल प्रवाह में अटकाव महसूस हो रहा है, एक बार जरा प्रवाह पर कसे , सच कहता हूँ चार चाँद न लग गए तो कहियेगा, बहरहाल बधाई स्वीकार करे |</p> कहाँ नीर है किसी संभालें ! कव…tag:openbooks.ning.com,2012-03-27:5170231:Comment:2059122012-03-27T10:39:57.258ZChaatakhttps://openbooks.ning.com/profile/Chaatak
<p>कहाँ नीर है किसी संभालें !<br/> कविता की अंतिम पंक्ति पर पहुँचते-पहुँचते आपने मन को बिलकुल व्याकुल कर दिया| भावों के साथ शब्दों और सुरों की ये जुगलबंदी लाजवाब है| नजर न लगे भाई!</p>
<p>कहाँ नीर है किसी संभालें !<br/> कविता की अंतिम पंक्ति पर पहुँचते-पहुँचते आपने मन को बिलकुल व्याकुल कर दिया| भावों के साथ शब्दों और सुरों की ये जुगलबंदी लाजवाब है| नजर न लगे भाई!</p> ADARNIYA ASHVINI JI SADAR,
कु…tag:openbooks.ning.com,2012-03-27:5170231:Comment:2056862012-03-27T08:06:16.793ZPRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHAhttps://openbooks.ning.com/profile/PRADEEPKUMARSINGHKUSHWAHA
<p>ADARNIYA ASHVINI JI SADAR,</p>
<p><span class="font-size-3">कुसुमित होता था कुसुम जहां ,</span></p>
<p><span class="font-size-3">वह बगिया भी अब सूख गई ,,</span></p>
<p><span class="font-size-3">निर्झरिणी बहती थी जहां सदा,</span></p>
<p><span class="font-size-3">वह अमिय जाह्नवी सूख गई ,,</span></p>
<p><span class="font-size-3">BAHUT SUNDAR BHAV KE SATH SUNDAR PRASTUTI, BADHAI.</span></p>
<p>ADARNIYA ASHVINI JI SADAR,</p>
<p><span class="font-size-3">कुसुमित होता था कुसुम जहां ,</span></p>
<p><span class="font-size-3">वह बगिया भी अब सूख गई ,,</span></p>
<p><span class="font-size-3">निर्झरिणी बहती थी जहां सदा,</span></p>
<p><span class="font-size-3">वह अमिय जाह्नवी सूख गई ,,</span></p>
<p><span class="font-size-3">BAHUT SUNDAR BHAV KE SATH SUNDAR PRASTUTI, BADHAI.</span></p>