Comments - ग़ज़ल -दिल लगाना छोड़ दें - Open Books Online2024-03-28T15:46:48Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1082358&xn_auth=noआदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर…tag:openbooks.ning.com,2022-04-10:5170231:Comment:10826112022-04-10T07:15:52.304ZRachna Bhatiahttps://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' भाई आपने सहीह कहा सर् की इस्लाह के बाद ग़ज़ल अच्छी हो गई है।</p>
<p>आपका हार्दिक आभार।</p>
<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' भाई आपने सहीह कहा सर् की इस्लाह के बाद ग़ज़ल अच्छी हो गई है।</p>
<p>आपका हार्दिक आभार।</p> आदरणीय चेतन प्रकाश जी नमस्कार…tag:openbooks.ning.com,2022-04-10:5170231:Comment:10824912022-04-10T07:13:57.328ZRachna Bhatiahttps://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>आदरणीय चेतन प्रकाश जी नमस्कार। आपने बिल्कुल सही कहा आदरणीय समर कबीर सर् के द्वारा दी गई इस्लाह के बाद उसमें न केवल और सुधार की गुंजाइश नहीं रहती बल्कि ग़ज़ल भी ग़ज़ल कहलाने लाइक़ हो जाती है। इसके लिए हम सब समर कबीर सर् के बहुत बहुत आभारी हैं।</p>
<p></p>
<p>आदरणीय ग़ज़ल में रह गई त्रुटि को इंगित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद,पर मुझे इस शे'र में एब दिखाई नहीं दे रहा है। कृपया आप इसे थोड़ा बारीकी से समझाएँ व शे'र ठीक करने के लिए कुछ सुझाव दें।</p>
<p>सादर।</p>
<p>आदरणीय चेतन प्रकाश जी नमस्कार। आपने बिल्कुल सही कहा आदरणीय समर कबीर सर् के द्वारा दी गई इस्लाह के बाद उसमें न केवल और सुधार की गुंजाइश नहीं रहती बल्कि ग़ज़ल भी ग़ज़ल कहलाने लाइक़ हो जाती है। इसके लिए हम सब समर कबीर सर् के बहुत बहुत आभारी हैं।</p>
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<p>आदरणीय ग़ज़ल में रह गई त्रुटि को इंगित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद,पर मुझे इस शे'र में एब दिखाई नहीं दे रहा है। कृपया आप इसे थोड़ा बारीकी से समझाएँ व शे'र ठीक करने के लिए कुछ सुझाव दें।</p>
<p>सादर।</p> आ. रचना बहन सादर अभिवादन। सुन…tag:openbooks.ning.com,2022-04-10:5170231:Comment:10823052022-04-10T01:15:47.062Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. रचना बहन सादर अभिवादन। सुन्दर गजल हुई है। भाई समर जी के सुझाव से यह और निखर गयी है । हार्दिक बधाई।</p>
<p>आ. रचना बहन सादर अभिवादन। सुन्दर गजल हुई है। भाई समर जी के सुझाव से यह और निखर गयी है । हार्दिक बधाई।</p> नमन, आदरणीया, अच्छी ग़ज़ल हु…tag:openbooks.ning.com,2022-04-09:5170231:Comment:10826072022-04-09T08:10:55.162ZChetan Prakashhttps://openbooks.ning.com/profile/ChetanPrakash68
<p>नमन, आदरणीया, अच्छी ग़ज़ल हुई हुई है, और श्रद्धेय समर कबीर साहब ने भी बहुत अच्छे से बारीकियाँ सोदाहरण समझाईं हैं ! फिर भी ' कान के कच्चे जहाँ सब दर ओ दीवार हों' मुझे लगता है, उक्त ऊला मिसरे में एब-ए-तनाफुर का दोष है, देखिएगा, सादर !</p>
<p>नमन, आदरणीया, अच्छी ग़ज़ल हुई हुई है, और श्रद्धेय समर कबीर साहब ने भी बहुत अच्छे से बारीकियाँ सोदाहरण समझाईं हैं ! फिर भी ' कान के कच्चे जहाँ सब दर ओ दीवार हों' मुझे लगता है, उक्त ऊला मिसरे में एब-ए-तनाफुर का दोष है, देखिएगा, सादर !</p> आदरणीय पंकज कुमार मिश्रा जी,…tag:openbooks.ning.com,2022-04-08:5170231:Comment:10823982022-04-08T14:48:11.718ZRachna Bhatiahttps://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>आदरणीय पंकज कुमार मिश्रा जी, नमस्कार। आपने बिल्कुल सही कहा सर् की इस्लाह के बाद ग़ज़ल अच्छी हो गई है।</p>
<p>हार्दिक धन्यवाद।</p>
<p>आदरणीय पंकज कुमार मिश्रा जी, नमस्कार। आपने बिल्कुल सही कहा सर् की इस्लाह के बाद ग़ज़ल अच्छी हो गई है।</p>
<p>हार्दिक धन्यवाद।</p> आदरणीय रचना जी बाऊजी ने समुचि…tag:openbooks.ning.com,2022-04-07:5170231:Comment:10823842022-04-07T11:55:55.223ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"https://openbooks.ning.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>आदरणीय रचना जी बाऊजी ने समुचित सुझाव दिए हैं, इसलिए इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल पर और कहने की आवश्यकता नहीं है। उनके सुझावों को अमल में लायें.... लेखनी में निखार आएगा।</p>
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<p>आदरणीय रचना जी बाऊजी ने समुचित सुझाव दिए हैं, इसलिए इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल पर और कहने की आवश्यकता नहीं है। उनके सुझावों को अमल में लायें.... लेखनी में निखार आएगा।</p>
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<p></p> आदरणीय समर कबीर सर् सादर नमस्…tag:openbooks.ning.com,2022-04-06:5170231:Comment:10824502022-04-06T09:43:16.651ZRachna Bhatiahttps://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>आदरणीय समर कबीर सर् सादर नमस्कार। सर्, आपने बेहतरीन इस्लाह दी जिस कारण ग़ज़ल अच्छी हो गई।आपका बेहद शुक्रिय:।</p>
<p>आदरणीय समर कबीर सर् सादर नमस्कार। सर्, आपने बेहतरीन इस्लाह दी जिस कारण ग़ज़ल अच्छी हो गई।आपका बेहद शुक्रिय:।</p> मुह्तारमा रचना भाटिया जी आदाब…tag:openbooks.ning.com,2022-04-06:5170231:Comment:10823712022-04-06T09:25:32.039ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>मुह्तारमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें I </p>
<p></p>
<p><span>'रात दिन गर आप अश्कों को बहाना छोड़ दें'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को यूँ कहना उचित होगा :-</span></p>
<p><span>'रात दिन यूँ आप अश्कों को बहाना छोड़ दें '</span></p>
<p></p>
<p>'कान की कच्ची जहाँ की हर दर ओ दीवार हो</p>
<p>उस जगह को<span> </span><span>राज़-दाँ</span><span> </span>अपना बनाना छोड़ दें'</p>
<p>इस शे`र को उचित लगे तो यूँ कहें :-</p>
<p>'कान के कच्चे जहाँ के सब दर-ओ-दीवार…</p>
<p>मुह्तारमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें I </p>
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<p><span>'रात दिन गर आप अश्कों को बहाना छोड़ दें'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को यूँ कहना उचित होगा :-</span></p>
<p><span>'रात दिन यूँ आप अश्कों को बहाना छोड़ दें '</span></p>
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<p>'कान की कच्ची जहाँ की हर दर ओ दीवार हो</p>
<p>उस जगह को<span> </span><span>राज़-दाँ</span><span> </span>अपना बनाना छोड़ दें'</p>
<p>इस शे`र को उचित लगे तो यूँ कहें :-</p>
<p>'कान के कच्चे जहाँ के सब दर-ओ-दीवार हों </p>
<p>उस जगह को राज़ दाँ अपना बनाना छोड़ दें'</p>
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<p>'गर्दिश-ए-अय्याम आतीं हीं हैं जाने के लिए'</p>
<p>आप उनके डर से "निर्मल" सर झुकाना छोड़ दें'</p>
<p>इस शे`र को यूँ कहें :-</p>
<p>गर्दिश-ए-अय्याम आती ही है जाने के लिए </p>
<p>आप इसके डर से 'निर्मल' सर झुकाना छोड़ दें '</p>
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