Comments - ग़ज़ल (जो भुला चुके हैं मुझको मेरी ज़िन्दगी बदल के) - Open Books Online2024-03-29T00:54:09Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1074688&xn_auth=noआदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ…tag:openbooks.ning.com,2021-12-15:5170231:Comment:10749722021-12-15T10:05:37.845Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttps://openbooks.ning.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया। सादर।</p>
<p>आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया। सादर।</p> आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभ…tag:openbooks.ning.com,2021-12-15:5170231:Comment:10749662021-12-15T07:19:35.833Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।</p>
<p>आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।</p> आदरणीय चेतन प्रकाश जी आदाब, ग…tag:openbooks.ning.com,2021-12-12:5170231:Comment:10749412021-12-12T12:49:20.528Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttps://openbooks.ning.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>आदरणीय चेतन प्रकाश जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद ज़र्रा नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया जनाब,</p>
<p>पाँचवें शे'र का भाव क़ब्र में दफ़्न मय्यत का क़ब्र के ऊपर चलने-फिरने वालों से यह कहने का है कि ऐसा न करें यह तकलीफ़-देह है, समय आने पर तुम्हें भी दूसरे लोगों के काँधों पर चल कर यहीं आकर दफ़्न होना है। सादर। </p>
<p>आदरणीय चेतन प्रकाश जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद ज़र्रा नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया जनाब,</p>
<p>पाँचवें शे'र का भाव क़ब्र में दफ़्न मय्यत का क़ब्र के ऊपर चलने-फिरने वालों से यह कहने का है कि ऐसा न करें यह तकलीफ़-देह है, समय आने पर तुम्हें भी दूसरे लोगों के काँधों पर चल कर यहीं आकर दफ़्न होना है। सादर। </p> आदाब, अमीर साहब, ग़ज़ल अच्छी …tag:openbooks.ning.com,2021-12-12:5170231:Comment:10751322021-12-12T12:34:51.376ZChetan Prakashhttps://openbooks.ning.com/profile/ChetanPrakash68
<p>आदाब, अमीर साहब, ग़ज़ल अच्छी हुई है , बधाई ! पाँचवे शे'र का सानी देखिएगा, मुझे रब्त का अभाव लगा ! सादर </p>
<p>आदाब, अमीर साहब, ग़ज़ल अच्छी हुई है , बधाई ! पाँचवे शे'र का सानी देखिएगा, मुझे रब्त का अभाव लगा ! सादर </p> धन्यवाद, आदरणीय ।tag:openbooks.ning.com,2021-12-11:5170231:Comment:10748532021-12-11T06:26:49.938Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttps://openbooks.ning.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>धन्यवाद, आदरणीय ।</p>
<p>धन्यवाद, आदरणीय ।</p> पुन: बधाई tag:openbooks.ning.com,2021-12-11:5170231:Comment:10748522021-12-11T06:16:15.700ZNilesh Shevgaonkarhttps://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>पुन: बधाई </p>
<p>पुन: बधाई </p> जनाब निलेश शेवगाँवकर जी और मु…tag:openbooks.ning.com,2021-12-10:5170231:Comment:10751232021-12-10T19:16:31.716Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttps://openbooks.ning.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>जनाब निलेश शेवगाँवकर जी और मुहतरम समर कबीर साहिब के दर्मियान हुई चर्चा और विवेचन के प्रकाश में यह निष्कर्ष निकला है कि प्रस्तुत ग़ज़ल का मिसरा 'जिन्हें सँगदिली पे अपनी बड़ा नाज़ था उन्होंने' में 'सँगदिली' शब्द को 212 के वज़्न पर लेना उचित नहीं है, अतः मिसरे को बदल कर यूँ कर दिया गया है - <b>'जिन्हें अपने सख़्त दिल पर बड़ा नाज़ था उन्होंने', </b>दोनों गुणीजनों का सादर आभार। </p>
<p>जनाब निलेश शेवगाँवकर जी और मुहतरम समर कबीर साहिब के दर्मियान हुई चर्चा और विवेचन के प्रकाश में यह निष्कर्ष निकला है कि प्रस्तुत ग़ज़ल का मिसरा 'जिन्हें सँगदिली पे अपनी बड़ा नाज़ था उन्होंने' में 'सँगदिली' शब्द को 212 के वज़्न पर लेना उचित नहीं है, अतः मिसरे को बदल कर यूँ कर दिया गया है - <b>'जिन्हें अपने सख़्त दिल पर बड़ा नाज़ था उन्होंने', </b>दोनों गुणीजनों का सादर आभार। </p> //सवाल यह नहीं है कि इसे लिखा…tag:openbooks.ning.com,2021-12-10:5170231:Comment:10751182021-12-10T15:10:48.954ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p><span>//सवाल यह नहीं है कि इसे लिखा कैसे जाए, सवाल यह है कि दोनों सूरतों में संग का वज़'न क्या हो //</span></p>
<p><span>जी, वज़्न तो 'संग दिली' का 2112 ही होगा ।</span></p>
<p><span>//सवाल यह नहीं है कि इसे लिखा कैसे जाए, सवाल यह है कि दोनों सूरतों में संग का वज़'न क्या हो //</span></p>
<p><span>जी, वज़्न तो 'संग दिली' का 2112 ही होगा ।</span></p> आ. समर सर, .तुझे देख कर लग गय…tag:openbooks.ning.com,2021-12-10:5170231:Comment:10748502021-12-10T13:53:21.092ZNilesh Shevgaonkarhttps://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<div class=""><div class="_1mf _1mj"><span>आ. समर सर, <br/>.<br/>तुझे देख कर लग गया दिल न जाना</span></div>
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<div class=""><div class="_1mf _1mj"><span>कि उस संग-दिल से हमें प्यार होगा</span></div>
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<div class=""><div class="_1mf _1mj"><span> </span></div>
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<div class=""><div class="_1mf _1mj"><span>मीर तक़ी मीर <br/></span>सभी ने संग का वज़'न २१ लिया है ..अमीर साहब का <strong>सँग २ </strong>पर है मिसरे में <br/>सादर </div>
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<div class=""><div class="_1mf _1mj"><span>आ. समर सर, <br/>.<br/>तुझे देख कर लग गया दिल न जाना</span></div>
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<div class=""><div class="_1mf _1mj"><span>मीर तक़ी मीर <br/></span>सभी ने संग का वज़'न २१ लिया है ..अमीर साहब का <strong>सँग २ </strong>पर है मिसरे में <br/>सादर </div>
</div> आ. समर सर,सवाल यह नहीं है कि…tag:openbooks.ning.com,2021-12-10:5170231:Comment:10750132021-12-10T13:49:43.213ZNilesh Shevgaonkarhttps://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>आ. समर सर,<br/>सवाल यह नहीं है कि इसे लिखा कैसे जाए, सवाल यह है कि दोनों सूरतों में संग का वज़'न क्या हो <br/>सादर </p>
<p>आ. समर सर,<br/>सवाल यह नहीं है कि इसे लिखा कैसे जाए, सवाल यह है कि दोनों सूरतों में संग का वज़'न क्या हो <br/>सादर </p>