Comments - ग़ज़ल - इक अधूरी 'आरज़ू' को उम्र भर रहने दिया - Open Books Online2024-03-29T08:54:34Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1071421&xn_auth=noआ. अंजुमन जी, अभिवादन। गजल का…tag:openbooks.ning.com,2021-11-06:5170231:Comment:10728392021-11-06T23:33:14.387Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. अंजुमन जी, अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा है। हार्दिक बधाई। गुणीजनो की बातों का संज्ञान लें ।</p>
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<p>और अन्य लेखकों की रचनाओं पर भी उपस्थिति दर्ज कराएँ।</p>
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<p>आ. अंजुमन जी, अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा है। हार्दिक बधाई। गुणीजनो की बातों का संज्ञान लें ।</p>
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<p>और अन्य लेखकों की रचनाओं पर भी उपस्थिति दर्ज कराएँ।</p>
<p></p> बढ़िया ग़ज़ल कही आदरणीया...बधाईtag:openbooks.ning.com,2021-11-02:5170231:Comment:10728092021-11-02T11:16:46.212Zबृजेश कुमार 'ब्रज'https://openbooks.ning.com/profile/brijeshkumar
<p>बढ़िया ग़ज़ल कही आदरणीया...बधाई</p>
<p>बढ़िया ग़ज़ल कही आदरणीया...बधाई</p> मुहतरमा आरज़ू अंजुमन साहिबा आ…tag:openbooks.ning.com,2021-10-19:5170231:Comment:10711922021-10-19T16:30:16.431Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttps://openbooks.ning.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p style="text-align: left;">मुहतरमा आरज़ू अंजुमन साहिबा आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।</p>
<p style="text-align: left;">मतले के शिल्प में तकनीकी गड़बड़ है।</p>
<p style="text-align: left;">'ख़ुद को <span style="text-decoration: underline;">उनकी बेरुख़ी से</span> बे- ख़बर रहने दिया ...कैसे ? आप तो जान रहे हैं कि वो ख़फ़ा हैं! तो आप बेख़बर कैसे हुए? अगर आप कहते कि-</p>
<p style="text-align: left;"><span>उन को <strong>अपनी बेरुख़ी से</strong> बे- ख़बर रहने दिया तो ये मुमकिन…</span></p>
<p style="text-align: left;">मुहतरमा आरज़ू अंजुमन साहिबा आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।</p>
<p style="text-align: left;">मतले के शिल्प में तकनीकी गड़बड़ है।</p>
<p style="text-align: left;">'ख़ुद को <span style="text-decoration: underline;">उनकी बेरुख़ी से</span> बे- ख़बर रहने दिया ...कैसे ? आप तो जान रहे हैं कि वो ख़फ़ा हैं! तो आप बेख़बर कैसे हुए? अगर आप कहते कि-</p>
<p style="text-align: left;"><span>उन को <strong>अपनी बेरुख़ी से</strong> बे- ख़बर रहने दिया तो ये मुमकिन है... लेकिन अगर ऊला ऐसे कहेंगे तो सानी मिसरे में कही गई बात ग़लत होगी </span></p>
<p style="text-align: left;">उम्र भर दिल में उन्हीं का मुस्तक़र रहने दिया' ...मुश्किल है, क्योंकि आप तो ख़फ़ा हैं। :-)) </p>
<p style="text-align: left;">'उनकी नज़रों में ज़बर होने की ख़्वाहिश दिल में ले</p>
<p style="text-align: left;"> हमने ख़ुद को ज़ेर उनको पेशतर रहने दिया'. इस शे'र पर मुहतरम समर कबीर साहिब से सहमत हूँ। 'नज़रों में ज़बर' मुख़ालिफ़ैन के होना ठीक है मगर महबूब की नजरों को भाने और लुभाने की बात सही है। मिसरा सानी में ज़ेर के साथ पेशतर का नहीं, ज़बर का जवाज़ है। </p>
<p style="text-align: left;">'शुक्र है तूने ख़ुदा मुझ में हुनर रहने दिया' इस मिसरे का शिल्प ठीक नहीं है, ग़ौर फ़रमाएं <strong>'हुनर रहने दिया'</strong> ?<strong> </strong></p>
<p style="text-align: left;">मक़्ता, तीसरा और<strong> </strong>पाँचवा शे'र उम्दा हुए हैं। सादर। </p>
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<p style="text-align: left;"></p> मुहतरमा अंजुमन `आरज़ू ` जी आदा…tag:openbooks.ning.com,2021-10-19:5170231:Comment:10713362021-10-19T14:15:46.339ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>मुहतरमा अंजुमन `आरज़ू ` जी आदाब , ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है बधाई स्वीकार करें I </p>
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<p><span>उनकी नज़रों में ज़बर होने की ख़्वाहिश दिल में ले</span><br/><span>हमने ख़ुद को ज़ेर उनको पेशतर रहने दिया-ये शे`र मुझे भर्ती का लगा I </span></p>
<p>मुहतरमा अंजुमन `आरज़ू ` जी आदाब , ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है बधाई स्वीकार करें I </p>
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<p><span>उनकी नज़रों में ज़बर होने की ख़्वाहिश दिल में ले</span><br/><span>हमने ख़ुद को ज़ेर उनको पेशतर रहने दिया-ये शे`र मुझे भर्ती का लगा I </span></p>