Comments - ग़ज़ल नूर की - जिस दिन से इकतरफ़ा रिश्ता टूट गया - Open Books Online2024-03-29T02:02:48Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1070367&xn_auth=noधन्यवाद आ. सुरेन्द्र भाई tag:openbooks.ning.com,2021-10-14:5170231:Comment:10709972021-10-14T04:17:46.183ZNilesh Shevgaonkarhttps://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>धन्यवाद आ. सुरेन्द्र भाई </p>
<p>धन्यवाद आ. सुरेन्द्र भाई </p> धन्यवाद आ. श्याम नारायण जी tag:openbooks.ning.com,2021-10-14:5170231:Comment:10709912021-10-14T03:08:20.696ZNilesh Shevgaonkarhttps://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>धन्यवाद आ. श्याम नारायण जी </p>
<p>धन्यवाद आ. श्याम नारायण जी </p> आद0 भाई नीलेश नूर जी सादर अभि…tag:openbooks.ning.com,2021-10-14:5170231:Comment:10711442021-10-14T01:34:29.335Zनाथ सोनांचलीhttps://openbooks.ning.com/profile/SurendraNathSingh
<p>आद0 भाई नीलेश नूर जी सादर अभिवादन।</p>
<p>मुझे तो हर शेर सवा शेर लगा। गज़ब का कथ्य लिया है आपने। क्या कहने। बाकमाल। बहुत बहुत बधाई भाई जी</p>
<p>आद0 भाई नीलेश नूर जी सादर अभिवादन।</p>
<p>मुझे तो हर शेर सवा शेर लगा। गज़ब का कथ्य लिया है आपने। क्या कहने। बाकमाल। बहुत बहुत बधाई भाई जी</p> नमस्ते जी, बहुत ही उम्दा प्रस…tag:openbooks.ning.com,2021-10-08:5170231:Comment:10707072021-10-08T06:05:46.984ZShyam Narain Vermahttps://openbooks.ning.com/profile/ShyamNarainVerma
नमस्ते जी, बहुत ही उम्दा प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर
नमस्ते जी, बहुत ही उम्दा प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर //मैं चूँकि उस सामान्य से आगे…tag:openbooks.ning.com,2021-10-06:5170231:Comment:10704752021-10-06T11:35:42.612ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>//<span>मैं चूँकि उस सामान्य से आगे देखता हूँ //</span></p>
<p></p>
<p>जय हो .. :-))</p>
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<p>//<span>मैं चूँकि उस सामान्य से आगे देखता हूँ //</span></p>
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<p>जय हो .. :-))</p>
<p></p> धन्यवाद आ. बृजेश ब्रज जी tag:openbooks.ning.com,2021-10-06:5170231:Comment:10703992021-10-06T03:55:38.315ZNilesh Shevgaonkarhttps://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>धन्यवाद आ. बृजेश ब्रज जी </p>
<p>धन्यवाद आ. बृजेश ब्रज जी </p> धन्यवाद आ. सौरभ सर..आप का ग़ज़ल…tag:openbooks.ning.com,2021-10-06:5170231:Comment:10706562021-10-06T03:55:04.826ZNilesh Shevgaonkarhttps://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>धन्यवाद आ. सौरभ सर..<br></br>आप का ग़ज़ल पर आना ही अपने आप में ईनाम होता है. आपकी विस्तृत टिप्पणी से अभिभूत हूँ. </p>
<p><br></br>"<span>अपने लालच को तुम काबू में रक्खो / वो देखो इक और सितारा टूट गया. ".. सितारे टूटने पर कुछ मांगना सामान्य और तयशुदा सी बात है ..<br></br>मैं चूँकि उस सामान्य से आगे देखता हूँ इसलिए सोचता हूँ कि सितारे टूटते ही इसलिए हैं कि कोई कुछ माँग सके..नियति स्वयं को प्रकट करने के मार्ग स्वयं प्रशस्त करती है ...<br></br></span></p>
<p></p>
<p><span>मैंने माण्डूकोपनिषद तो नहीं पढ़ा लेकिन…</span></p>
<p>धन्यवाद आ. सौरभ सर..<br/>आप का ग़ज़ल पर आना ही अपने आप में ईनाम होता है. आपकी विस्तृत टिप्पणी से अभिभूत हूँ. </p>
<p><br/>"<span>अपने लालच को तुम काबू में रक्खो / वो देखो इक और सितारा टूट गया. ".. सितारे टूटने पर कुछ मांगना सामान्य और तयशुदा सी बात है ..<br/>मैं चूँकि उस सामान्य से आगे देखता हूँ इसलिए सोचता हूँ कि सितारे टूटते ही इसलिए हैं कि कोई कुछ माँग सके..नियति स्वयं को प्रकट करने के मार्ग स्वयं प्रशस्त करती है ...<br/></span></p>
<p></p>
<p><span>मैंने माण्डूकोपनिषद तो नहीं पढ़ा लेकिन मुझे लगता है 5000 साल की जीन मेमोरी जो कहीं से चली आ रही है उसने मेरे मस्तिष्क के किसी उतक को उत्प्रेरित किया होगा जिससे यह शेर हो पाया ..<br/>वैसे भी सब कुछ कभी न कभी कहा ही जा चुका है.. न्य कुछ नहीं सिवाय अंदाज़-ए-बयाँ के.. <br/></span></p>
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<p><span>आपको ग़जल पसंद आई तो लिखना सार्थक हुआ..<br/>सादर </span></p> धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी tag:openbooks.ning.com,2021-10-06:5170231:Comment:10705622021-10-06T03:47:42.427ZNilesh Shevgaonkarhttps://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी </p>
<p>धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी </p> वाह क्या ही खूबसूरत ग़ज़ल कही ह…tag:openbooks.ning.com,2021-10-05:5170231:Comment:10705552021-10-05T09:46:03.401Zबृजेश कुमार 'ब्रज'https://openbooks.ning.com/profile/brijeshkumar
<p><span>वाह क्या ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आदरणीय नीलेश जी</span></p>
<p><span>वाह क्या ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आदरणीय नीलेश जी</span></p> आदरणीय नीलेश भाई, इस अच्छी ग़ज़…tag:openbooks.ning.com,2021-10-05:5170231:Comment:10706532021-10-05T09:06:05.209ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय नीलेश भाई, इस अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें.</p>
<p></p>
<p>एक-एक कर शेरों में ठोस बिम्बों का विपुल प्रयोग चकित भी करता है, प्रायोगिक तो है ही.</p>
<p>यथा, ’<span>मेरा <em>करघा टूट गया</em>’ या, ’.. गहरी खाई से बाहर / आते ही आते फिर <em>रस्सा टूट गया</em>’ </span></p>
<p></p>
<p><span>अपने लालच को तुम काबू में रक्खो / वो देखो इक और सितारा टूट गया. ......... भाई, ये बात कुछ समझ में नहीं आयी. सितारे का टूटना ही तो लालच का कारण होता है, जो इसे हवा देता है, न कि…</span></p>
<p>आदरणीय नीलेश भाई, इस अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें.</p>
<p></p>
<p>एक-एक कर शेरों में ठोस बिम्बों का विपुल प्रयोग चकित भी करता है, प्रायोगिक तो है ही.</p>
<p>यथा, ’<span>मेरा <em>करघा टूट गया</em>’ या, ’.. गहरी खाई से बाहर / आते ही आते फिर <em>रस्सा टूट गया</em>’ </span></p>
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<p><span>अपने लालच को तुम काबू में रक्खो / वो देखो इक और सितारा टूट गया. ......... भाई, ये बात कुछ समझ में नहीं आयी. सितारे का टूटना ही तो लालच का कारण होता है, जो इसे हवा देता है, न कि वाइस-वर्सा.</span></p>
<p><span>सितारे टूटते हुए न दीखें, तो कोई अपने मन की मुराद की पूर्ति के लिए ललक भी न दिखाए. इस सोच की बिना पर मैं अपनी बात रख रहा हूँ. </span></p>
<p></p>
<p><span>थामा ही था हाथ तुम्हारा मैंने बस / और अचानक मेरा सपना टूट गया. ........ इस शेर के होने पर मैं मुग्ध हूँ. लेकिन कमाल तो मक्ता ने किया है - “नूर” मेरा उस नूर से मिल जाएगा फिर / जस पल मेरे जिस्म का पिंजरा टूट गया. <br/></span></p>
<p><span>क्या बात है. क्या बात है ! </span></p>
<p></p>
<p><span>मक्ता को माण्डूक उपनिषद के अद्वैतप्रकरण की श्लोक-संख्या 4 के आलोक में देखिए -</span></p>
<p><span>घटादीषु प्रलीनेषु घटाकाशादयो यथा ।<br/>आकाशे प्रलीयन्ते तद्वज्जीवा इहात्मनि ।।<br/>अर्थात, घड़ों के टूट जाने पर जैसे उनके भीतर के आकाश और बाहर के बृहद आकाश केबीच का भेद मिट जाता है, और दोनों आकाश एक-दूसरे के साथ एकाकार हो जाते हैं, वैसे ही जीवात्मा मुक्त होकर परमात्मा में विलीन हो जाती है. </span></p>
<p></p>
<p>जय-जय </p>
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