Comments - ग़ज़ल-मिलती दुआ है - Open Books Online2024-03-29T00:16:56Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1067755&xn_auth=noआदरणीय समर कबीर सर् , मैं भी…tag:openbooks.ning.com,2021-09-06:5170231:Comment:10678182021-09-06T09:52:30.764ZRachna Bhatiahttps://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>आदरणीय समर कबीर सर् , मैं भी इसी शे'र को ठीक करना चाहती थी ।पर,हुआ नहीं। आपने बहुत अच्छा कर दिया।</p>
<p>बेहद शुक्रिय:।</p>
<p>आदरणीय समर कबीर सर् , मैं भी इसी शे'र को ठीक करना चाहती थी ।पर,हुआ नहीं। आपने बहुत अच्छा कर दिया।</p>
<p>बेहद शुक्रिय:।</p> 'घटाया कब उन्होंने
बढ़ाकर फ़ा…tag:openbooks.ning.com,2021-09-06:5170231:Comment:10679092021-09-06T06:09:50.685ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p><span>'घटाया कब उन्होंने</span></p>
<p><span>बढ़ाकर फ़ासला है'</span></p>
<p><span>यूँ कहें:-</span></p>
<p><span>'ज़बाँ की तल्ख़ियों ने</span></p>
<p><span>बढ़ाया फ़ासला है'</span></p>
<p><span>'घटाया कब उन्होंने</span></p>
<p><span>बढ़ाकर फ़ासला है'</span></p>
<p><span>यूँ कहें:-</span></p>
<p><span>'ज़बाँ की तल्ख़ियों ने</span></p>
<p><span>बढ़ाया फ़ासला है'</span></p> आदरणीय मनोज कुमार अहसास जी सह…tag:openbooks.ning.com,2021-09-06:5170231:Comment:10679082021-09-06T05:49:55.383ZRachna Bhatiahttps://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>आदरणीय मनोज कुमार अहसास जी सही कहा आपने। सुधरने की कोशिश कर रही हूँ।</p>
<p>आदरणीय मनोज कुमार अहसास जी सही कहा आपने। सुधरने की कोशिश कर रही हूँ।</p> आदरणीय समर कबीर सर् नमस्कार।…tag:openbooks.ning.com,2021-09-06:5170231:Comment:10678112021-09-06T05:48:20.857ZRachna Bhatiahttps://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>आदरणीय समर कबीर सर् नमस्कार। सर् फेयर में सुधार कर लेती हूँ।यहाँ एडिट करने से पोस्ट पैंडिंग में चली जाती है।</p>
<p>सर्,इस तरह से शे'र कर लें क्या</p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">1222/122</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">घटाया कब उन्होंने</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">बढ़ाकर फ़ासला है</span></p>
<p></p>
<p>आदरणीय समर कबीर सर् नमस्कार। सर् फेयर में सुधार कर लेती हूँ।यहाँ एडिट करने से पोस्ट पैंडिंग में चली जाती है।</p>
<p>सर्,इस तरह से शे'र कर लें क्या</p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">1222/122</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">घटाया कब उन्होंने</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">बढ़ाकर फ़ासला है</span></p>
<p></p> मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब,…tag:openbooks.ning.com,2021-09-06:5170231:Comment:10676062021-09-06T01:55:02.137ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, छोटी बह्र में ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span><strong>'कसम</strong> से इक क़ज़ा है'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'क़ज़ा' की जगह "सज़ा" शब्द उचित होगा ।</span></p>
<p><span>'कसम'--"क़सम"--कब सीखेंगी?</span></p>
<p></p>
<p><span>'ज़बाँ की तल्ख़ियाँ ही</span></p>
<p><span>बढ़ातीं फ़ासला है'</span></p>
<p><span>इस शे'र में 'तल्ख़ियाँ' शब्द बहुवचन होने से रदीफ़ 'है' की बजाय "हैं" हो रही है, सुधार का प्रयास करें ।</span></p>
<p>मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, छोटी बह्र में ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span><strong>'कसम</strong> से इक क़ज़ा है'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'क़ज़ा' की जगह "सज़ा" शब्द उचित होगा ।</span></p>
<p><span>'कसम'--"क़सम"--कब सीखेंगी?</span></p>
<p></p>
<p><span>'ज़बाँ की तल्ख़ियाँ ही</span></p>
<p><span>बढ़ातीं फ़ासला है'</span></p>
<p><span>इस शे'र में 'तल्ख़ियाँ' शब्द बहुवचन होने से रदीफ़ 'है' की बजाय "हैं" हो रही है, सुधार का प्रयास करें ।</span></p> नमस्कार आदरणीय ऐसा प्रतीत होत…tag:openbooks.ning.com,2021-09-05:5170231:Comment:10676902021-09-05T17:26:11.482Zमनोज अहसासhttps://openbooks.ning.com/profile/ManojkumarAhsaas
<p>नमस्कार आदरणीय ऐसा प्रतीत होता है कि आपने बहर के हिसाब से शब्दों को बिठाया है अभी आपको बहर पर मेरे ख्याल से और अधिक मेहनत करनी चाहिए बाकी भाव आपके बहुत अच्छे हैं और एक अच्छी गजल की बधाई आपको देता हूं</p>
<p>नमस्कार आदरणीय ऐसा प्रतीत होता है कि आपने बहर के हिसाब से शब्दों को बिठाया है अभी आपको बहर पर मेरे ख्याल से और अधिक मेहनत करनी चाहिए बाकी भाव आपके बहुत अच्छे हैं और एक अच्छी गजल की बधाई आपको देता हूं</p>