Comments - गृहणी - Open Books Online2024-03-28T13:35:12Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1066664&xn_auth=noआदरणीय सौरभ पान्डेय जी, हार्…tag:openbooks.ning.com,2021-08-25:5170231:Comment:10671072021-08-25T10:24:20.597ZUsha Awasthihttps://openbooks.ning.com/profile/UshaAwasthi
<p></p>
<p>आदरणीय सौरभ पान्डेय जी, हार्दिक धन्यवाद आपका।आपको रचना सार्थक लगी , जानकर खुशी हुई ।आपके सुझाव का ध्यान रक्खूँगी।</p>
<p>सादर प्रणाम</p>
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<p>आदरणीय सौरभ पान्डेय जी, हार्दिक धन्यवाद आपका।आपको रचना सार्थक लगी , जानकर खुशी हुई ।आपके सुझाव का ध्यान रक्खूँगी।</p>
<p>सादर प्रणाम</p> वाह ! .. बहुत् ही सार्थक दोहे…tag:openbooks.ning.com,2021-08-25:5170231:Comment:10667992021-08-25T09:37:05.912ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>वाह ! .. बहुत् ही सार्थक दोहे हुए हैं. भावपक्ष अत्यंत उदार है. </p>
<p></p>
<p>शैल्पिक रूप से <span><em>उमग प्रेम से खिलाती</em> को व्यवस्थित कर लें, तो आपकी प्रस्तुति दोहा छंद को प्रासंगिक आयाम देती हुई है, आदरणीया ऊषा अवस्थी जी. </span></p>
<p><span>हार्दिक बधाइयाँ </span></p>
<p></p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p></p>
<p>वाह ! .. बहुत् ही सार्थक दोहे हुए हैं. भावपक्ष अत्यंत उदार है. </p>
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<p>शैल्पिक रूप से <span><em>उमग प्रेम से खिलाती</em> को व्यवस्थित कर लें, तो आपकी प्रस्तुति दोहा छंद को प्रासंगिक आयाम देती हुई है, आदरणीया ऊषा अवस्थी जी. </span></p>
<p><span>हार्दिक बधाइयाँ </span></p>
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<p>शुभ-शुभ</p>
<p></p> आ0 लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी…tag:openbooks.ning.com,2021-08-25:5170231:Comment:10667042021-08-25T05:27:45.762ZUsha Awasthihttps://openbooks.ning.com/profile/UshaAwasthi
<p>आ0 लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी ,सादर प्रणाम।</p>
<p>आपके कथन को मैं समझ गई। आपका और समर कबीर जी का बहुत शुक्रिया।</p>
<p>आ0 लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी ,सादर प्रणाम।</p>
<p>आपके कथन को मैं समझ गई। आपका और समर कबीर जी का बहुत शुक्रिया।</p> आ. ऊषा जी, सादर अभिवादन। दोहो…tag:openbooks.ning.com,2021-08-24:5170231:Comment:10669882021-08-24T23:38:12.627Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. ऊषा जी, सादर अभिवादन। दोहों का प्रयास अच्छा है । हार्दिक बधाई। आ. भाई समर जी द्वारा बताये चरण को यूँ करके सुधारा जा सकता है - उमग खिलाती प्रेम से।</p>
<p>आ. ऊषा जी, सादर अभिवादन। दोहों का प्रयास अच्छा है । हार्दिक बधाई। आ. भाई समर जी द्वारा बताये चरण को यूँ करके सुधारा जा सकता है - उमग खिलाती प्रेम से।</p> आदरणीय समर कबीर साहेब, आपकी प…tag:openbooks.ning.com,2021-08-24:5170231:Comment:10666922021-08-24T11:34:38.025ZUsha Awasthihttps://openbooks.ning.com/profile/UshaAwasthi
<p>आदरणीय समर कबीर साहेब, आपकी प्रतिक्रिया पाकर खुशी हुई ।</p>
<p>सच कहूँ तो मैंने यह सोच कर लिखा ही नहीं कि मैं किस विधा में लिख रही हूँ। संगीत की थोड़ी - बहुत जानकारी के अनुसार जब मुझे लगता है कि यह लय में आ रही है,मैं उसे लिख लेती हूँ। जब मैं उसे बोलूँगी तो वह उचित मात्राओं में ही रहेगी ।जब कुछ भाव उठते हैं , ऐसा ही करती हूँ।किन्तु आपने इस ओर मेरा ध्यान दिलाया , हार्दिक आभार आपका। कोशिश करूँगी।</p>
<p>आदरणीय समर कबीर साहेब, आपकी प्रतिक्रिया पाकर खुशी हुई ।</p>
<p>सच कहूँ तो मैंने यह सोच कर लिखा ही नहीं कि मैं किस विधा में लिख रही हूँ। संगीत की थोड़ी - बहुत जानकारी के अनुसार जब मुझे लगता है कि यह लय में आ रही है,मैं उसे लिख लेती हूँ। जब मैं उसे बोलूँगी तो वह उचित मात्राओं में ही रहेगी ।जब कुछ भाव उठते हैं , ऐसा ही करती हूँ।किन्तु आपने इस ओर मेरा ध्यान दिलाया , हार्दिक आभार आपका। कोशिश करूँगी।</p> मुहतरमा ऊषा अवस्थी जी आदाब, द…tag:openbooks.ning.com,2021-08-24:5170231:Comment:10666882021-08-24T09:54:13.784ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>मुहतरमा ऊषा अवस्थी जी आदाब, दोहों का अच्छा प्रयास हुआ है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>एक निवेदन ये है कि रचना के साथ उसकी विधा भी लिख दिया करें तो नये लिखने वालों को टिप्पणी करने में आसानी होगी ।</p>
<p></p>
<p>'उमग प्रेम से खिलाती</p>
<p>गृहणी नेह सम्हार'</p>
<p>इस पंक्ति के विषम चरण का अंत 212 पर नहीं है,देख लें ।</p>
<p>मुहतरमा ऊषा अवस्थी जी आदाब, दोहों का अच्छा प्रयास हुआ है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>एक निवेदन ये है कि रचना के साथ उसकी विधा भी लिख दिया करें तो नये लिखने वालों को टिप्पणी करने में आसानी होगी ।</p>
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<p>'उमग प्रेम से खिलाती</p>
<p>गृहणी नेह सम्हार'</p>
<p>इस पंक्ति के विषम चरण का अंत 212 पर नहीं है,देख लें ।</p>