Comments - उसके हिस्से में क्यों रास्ता कम है- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर" - Open Books Online2024-03-29T05:21:41Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1064063&xn_auth=noआ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन…tag:openbooks.ning.com,2021-08-01:5170231:Comment:10657262021-08-01T00:25:58.912Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन । लम्बे अंतराल के बाद आपकी उपस्थिति से हर्षित हूँ। आपकी व भाई समर जी की बात समझ गया हूँ । आप लोगों से बहुत कुछ सीखने को मिला है और मिलता रहेगा यही आस है। स्नेह व मार्गदर्शन के लिए सादर आभार ।</p>
<p>आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन । लम्बे अंतराल के बाद आपकी उपस्थिति से हर्षित हूँ। आपकी व भाई समर जी की बात समझ गया हूँ । आप लोगों से बहुत कुछ सीखने को मिला है और मिलता रहेगा यही आस है। स्नेह व मार्गदर्शन के लिए सादर आभार ।</p> आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन।…tag:openbooks.ning.com,2021-08-01:5170231:Comment:10654782021-08-01T00:21:03.342Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर पुनः उपस्थिति और मार्गदर्शन के लिए आभार। आपकी समझाइस समझ गया हूँ । बदलाव का दोनों रूप में प्रयास करता हूँ । सादर.. </p>
<p>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर पुनः उपस्थिति और मार्गदर्शन के लिए आभार। आपकी समझाइस समझ गया हूँ । बदलाव का दोनों रूप में प्रयास करता हूँ । सादर.. </p> आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर'…tag:openbooks.ning.com,2021-07-31:5170231:Comment:10654682021-07-31T18:54:16.098ZSaurabh Pandeyhttps://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय <span>लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी, प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारें. </span></p>
<p><span>किंतु, आदरणीय समर साहब के बहर पर कहे का समर्थन मैं भी करूँगा. पंक्तियों का विन्यास मान्य बहर के अनुसार होना उचित होता है.</span></p>
<p><span>या फिर, छांदसिक विन्यासों पर ग़ज़ल कही जा सकती है. कहें.</span></p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p></p>
<p>आदरणीय <span>लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी, प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारें. </span></p>
<p><span>किंतु, आदरणीय समर साहब के बहर पर कहे का समर्थन मैं भी करूँगा. पंक्तियों का विन्यास मान्य बहर के अनुसार होना उचित होता है.</span></p>
<p><span>या फिर, छांदसिक विन्यासों पर ग़ज़ल कही जा सकती है. कहें.</span></p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p></p> //मैं जानना चाह रहा था कि क्य…tag:openbooks.ning.com,2021-07-30:5170231:Comment:10653122021-07-30T09:15:44.368ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p><span>//मैं जानना चाह रहा था कि क्या इसी बह्र को किसी अन्य बह्र के रूप में लिखा जा सकता है, बिना शब्द जोड़े घटाए ?//</span></p>
<p><span>भाई, 212 212 212 212 ये अरकान बह्र-ए-मुतदारिक मुसम्मन सालिम के हैं, इसके अंतिम रुक्न 212 को ज़िहाफ़ लगा कर 212 की जगह 2(फ़ा) कर सकते हैं,यानी इसे 212 212 212 2 कर सकते हैं, इससे अधिक की गुंजाइश नहीं है,विस्तार से जानने के लिये फ़ोन पर सम्पर्क कर सकते हैं ।</span></p>
<p><span>//मैं जानना चाह रहा था कि क्या इसी बह्र को किसी अन्य बह्र के रूप में लिखा जा सकता है, बिना शब्द जोड़े घटाए ?//</span></p>
<p><span>भाई, 212 212 212 212 ये अरकान बह्र-ए-मुतदारिक मुसम्मन सालिम के हैं, इसके अंतिम रुक्न 212 को ज़िहाफ़ लगा कर 212 की जगह 2(फ़ा) कर सकते हैं,यानी इसे 212 212 212 2 कर सकते हैं, इससे अधिक की गुंजाइश नहीं है,विस्तार से जानने के लिये फ़ोन पर सम्पर्क कर सकते हैं ।</span></p> आ. भाई समर जी,सादर अभिवादन ।…tag:openbooks.ning.com,2021-07-30:5170231:Comment:10653112021-07-30T07:24:43.994Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p><span>आ. भाई समर जी,सादर अभिवादन । गजल पर पुनः उपस्थिति और सराहना के लिए धन्यवाद।</span></p>
<p><span>लेकिन मैं जानना चाह रहा था कि क्या इसी बह्र को किसी अन्य बह्र के रूप में लिखा जा सकता है, बिना शब्द जोड़े घटाए ?</span></p>
<p></p>
<p><span>सादर</span></p>
<p><span>आ. भाई समर जी,सादर अभिवादन । गजल पर पुनः उपस्थिति और सराहना के लिए धन्यवाद।</span></p>
<p><span>लेकिन मैं जानना चाह रहा था कि क्या इसी बह्र को किसी अन्य बह्र के रूप में लिखा जा सकता है, बिना शब्द जोड़े घटाए ?</span></p>
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<p><span>सादर</span></p> आ. भाई सालिक गणवीर जी,सादर अभ…tag:openbooks.ning.com,2021-07-30:5170231:Comment:10653102021-07-30T07:19:53.071Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p><span>आ. भाई सालिक गणवीर जी,सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए धन्यवाद।</span></p>
<p><span>आ. भाई सालिक गणवीर जी,सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए धन्यवाद।</span></p> आ. भाई चेतन जी,सादर अभिवादन ।…tag:openbooks.ning.com,2021-07-30:5170231:Comment:10653092021-07-30T07:18:50.930Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई चेतन जी,सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए धन्यवाद।</p>
<p>आ. भाई चेतन जी,सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए धन्यवाद।</p> //क्या इस बह्र को किसी और प्र…tag:openbooks.ning.com,2021-07-24:5170231:Comment:10643552021-07-24T14:47:24.878ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p><span>//क्या इस बह्र को किसी और प्रचलित बह्र में बदला जा सकता है?//</span></p>
<p><span>बिल्कुल बदला जा सकता है, आपका मतला देखें:-</span></p>
<p><span>'जिसका अपना यहाँ दायरा कम है<br/>आसमाँ को भी वो मानता कम है'</span></p>
<p>अब आपके इस मतले को हम 2122 1212 22/112 पर ऐसे कर सकते हैं:-</p>
<p>'जिसका अपना ही दायरा कम है</p>
<p>आसमाँ को वो देखता कम है'</p>
<p>बस इसी तरह हर शैर को इस बह्र में ढाल सकते हैं ।</p>
<p><span>//क्या इस बह्र को किसी और प्रचलित बह्र में बदला जा सकता है?//</span></p>
<p><span>बिल्कुल बदला जा सकता है, आपका मतला देखें:-</span></p>
<p><span>'जिसका अपना यहाँ दायरा कम है<br/>आसमाँ को भी वो मानता कम है'</span></p>
<p>अब आपके इस मतले को हम 2122 1212 22/112 पर ऐसे कर सकते हैं:-</p>
<p>'जिसका अपना ही दायरा कम है</p>
<p>आसमाँ को वो देखता कम है'</p>
<p>बस इसी तरह हर शैर को इस बह्र में ढाल सकते हैं ।</p> भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी…tag:openbooks.ning.com,2021-07-24:5170231:Comment:10643432021-07-24T05:54:42.459Zसालिक गणवीरhttps://openbooks.ning.com/profile/SalikGanvir
<p><span>भाई <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami" class="fn url">लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'</a> जी</span></p>
<p><span>सादर अभिवादन</span></p>
<p><span>अच्छी ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करें</span></p>
<p><span>भाई <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami" class="fn url">लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'</a> जी</span></p>
<p><span>सादर अभिवादन</span></p>
<p><span>अच्छी ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करें</span></p> अच्छी ग़ज़ल हुई है, भाई 'मु…tag:openbooks.ning.com,2021-07-21:5170231:Comment:10645102021-07-21T14:26:50.521ZChetan Prakashhttps://openbooks.ning.com/profile/ChetanPrakash68
<p>अच्छी ग़ज़ल हुई है, भाई 'मुसाफिर, ! लेकिन चौथा शैर , बात औरों के सिर डाल कर देखो / अपने ईमान को तौलता कम है " में रब्त का अभाव है, सादर </p>
<p>अच्छी ग़ज़ल हुई है, भाई 'मुसाफिर, ! लेकिन चौथा शैर , बात औरों के सिर डाल कर देखो / अपने ईमान को तौलता कम है " में रब्त का अभाव है, सादर </p>