Comments - करने को नित्य पाप जो-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' - Open Books Online2024-03-28T11:31:32Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1061138&xn_auth=noआ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन…tag:openbooks.ning.com,2021-06-16:5170231:Comment:10617262021-06-16T13:23:06.514Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, सराहना व मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद। <br/>इस मिसरे को यूँ देखिएगा-</p>
<p>/करने को लौट पाप जो गंगा नहायेंगे<br/> कैसे भला वो लोग अधिक पुण्य पायेंगे<br/>// (यहाँ आशय यह है कि लोग मन से प्रायश्चित करने नहीं जाते । केवल तन धोकर आ जाते हैं)<br/>.<br/>//घन्टी बजा कलम से तो हम ही जगायेंगे.....<br/>(क्या यहाँ नया रूपक गढ़ना अनुचित है ?) सादर</p>
<p>आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, सराहना व मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद। <br/>इस मिसरे को यूँ देखिएगा-</p>
<p>/करने को लौट पाप जो गंगा नहायेंगे<br/> कैसे भला वो लोग अधिक पुण्य पायेंगे<br/>// (यहाँ आशय यह है कि लोग मन से प्रायश्चित करने नहीं जाते । केवल तन धोकर आ जाते हैं)<br/>.<br/>//घन्टी बजा कलम से तो हम ही जगायेंगे.....<br/>(क्या यहाँ नया रूपक गढ़ना अनुचित है ?) सादर</p> आ. लक्ष्मण जी,ग़ज़ल का कहन थोडा…tag:openbooks.ning.com,2021-06-09:5170231:Comment:10612972021-06-09T05:00:34.504ZNilesh Shevgaonkarhttps://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>आ. लक्ष्मण जी,<br/>ग़ज़ल का कहन थोडा उलझा हुआ है ..<br/>.<br/><span>करने को नित्य पाप जो गंगा नहायेंगे.... पाप करने के लिए कौन गंगा नहाता है??</span><br/><span>हम से अधिक न यार कभी पुण्य पायेंगे.... इसमें ऐसा लग रहा है कि आप अपने यारों को आपसे कम पुण्यात्मा बता रहे हैं.<br/></span>.<br/><span>घन्टी बजा कलम से तो हम ही जगायेंगे.....कलम से घण्टी बजाने का कोई रूपक मुझे ध्यान नहीं आता...<br/></span>.<br/>बाकी ग़ज़ल के लिए बधाई </p>
<p>आ. लक्ष्मण जी,<br/>ग़ज़ल का कहन थोडा उलझा हुआ है ..<br/>.<br/><span>करने को नित्य पाप जो गंगा नहायेंगे.... पाप करने के लिए कौन गंगा नहाता है??</span><br/><span>हम से अधिक न यार कभी पुण्य पायेंगे.... इसमें ऐसा लग रहा है कि आप अपने यारों को आपसे कम पुण्यात्मा बता रहे हैं.<br/></span>.<br/><span>घन्टी बजा कलम से तो हम ही जगायेंगे.....कलम से घण्टी बजाने का कोई रूपक मुझे ध्यान नहीं आता...<br/></span>.<br/>बाकी ग़ज़ल के लिए बधाई </p> प्रिय बहन सुचि जी, स्नेहाशीष…tag:openbooks.ning.com,2021-06-04:5170231:Comment:10611812021-06-04T07:56:08.911Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>प्रिय बहन सुचि जी, स्नेहाशीष ।गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।</p>
<p>प्रिय बहन सुचि जी, स्नेहाशीष ।गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।</p> आ. भाई आज़ी तमाम जी, सादर अभिव…tag:openbooks.ning.com,2021-06-04:5170231:Comment:10613282021-06-04T07:54:49.570Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई आज़ी तमाम जी, सादर अभिवादन ।गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।</p>
<p>आ. भाई आज़ी तमाम जी, सादर अभिवादन ।गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।</p> वाहः उत्कृष्ट सृजन लक्ष्मण ज…tag:openbooks.ning.com,2021-05-31:5170231:Comment:10612192021-05-31T14:13:51.153Zशुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप"https://openbooks.ning.com/profile/suchisandeepagarwaal
<ul>
<li>वाहः उत्कृष्ट सृजन लक्ष्मण जी। </li>
</ul>
<ul>
<li>वाहः उत्कृष्ट सृजन लक्ष्मण जी। </li>
</ul> सादर प्रणाम आ धामी सर
खूबसूरत…tag:openbooks.ning.com,2021-05-31:5170231:Comment:10609752021-05-31T14:12:04.699ZAazi Tamaamhttps://openbooks.ning.com/profile/AaziTamaa
<p>सादर प्रणाम आ धामी सर</p>
<p>खूबसूरत ग़ज़ल हुई है</p>
<p></p>
<p>सादर प्रणाम आ धामी सर</p>
<p>खूबसूरत ग़ज़ल हुई है</p>
<p></p> आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन ।…tag:openbooks.ning.com,2021-05-31:5170231:Comment:10609702021-05-31T11:05:25.225Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । आपकी उपस्थिति से गजल मुकम्मल हुई...आभार।गलती की ओर ध्यान दिलाने के लिए पुनः आभार..</p>
<p>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । आपकी उपस्थिति से गजल मुकम्मल हुई...आभार।गलती की ओर ध्यान दिलाने के लिए पुनः आभार..</p> जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' ज…tag:openbooks.ning.com,2021-05-31:5170231:Comment:10610812021-05-31T09:27:05.564ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'कोसोगे एक दिन तो स्वयं अपने आप को</span><br/><span>अपनी नजर से बोलिए क्या क्या छिपायेंगे'</span></p>
<p><span>इस शैर में शुतर गुरबा दोष है,ऊला में 'कोसोगे' को "कोसेंगे" कर लें ।</span></p>
<p>जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'कोसोगे एक दिन तो स्वयं अपने आप को</span><br/><span>अपनी नजर से बोलिए क्या क्या छिपायेंगे'</span></p>
<p><span>इस शैर में शुतर गुरबा दोष है,ऊला में 'कोसोगे' को "कोसेंगे" कर लें ।</span></p>