Comments - हर सफ़े का हिसाब बाकी है- ग़ज़ल - Open Books Online2024-03-28T17:18:48Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1056693&xn_auth=no// सँभवतः मैनें ये शब्द रेख़्त…tag:openbooks.ning.com,2021-03-27:5170231:Comment:10575492021-03-27T18:18:51.727ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p><span>// सँभवतः मैनें ये शब्द रेख़्ता पर देखें हैं। और वहीं से इनका अर्थ लिय्या है//</span></p>
<p><span>रेख़्ता पर अधिकतर जानकारी ग़लत दी हुई है,उस पर भरोसा न किया करें । </span></p>
<p><span><strong>//मंसूब करना</strong> का अर्थ मैं नहीं समझ पाया//</span></p>
<p><span>'मंसूब' का अर्थ होता है समर्पित करना ।</span></p>
<p><span>'अपना लेकिन ख़्वाब बाकी है'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को यूँ कहें:-</span></p>
<p><span>'अपना लेकिन ये ख़्वाब बाक़ी है'</span></p>
<p><span>'ख़्वाब' लिखा ऐसे जाता…</span></p>
<p><span>// सँभवतः मैनें ये शब्द रेख़्ता पर देखें हैं। और वहीं से इनका अर्थ लिय्या है//</span></p>
<p><span>रेख़्ता पर अधिकतर जानकारी ग़लत दी हुई है,उस पर भरोसा न किया करें । </span></p>
<p><span><strong>//मंसूब करना</strong> का अर्थ मैं नहीं समझ पाया//</span></p>
<p><span>'मंसूब' का अर्थ होता है समर्पित करना ।</span></p>
<p><span>'अपना लेकिन ख़्वाब बाकी है'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को यूँ कहें:-</span></p>
<p><span>'अपना लेकिन ये ख़्वाब बाक़ी है'</span></p>
<p><span>'ख़्वाब' लिखा ऐसे जाता है,लेकिन पढा 'ख़ाब' जाता है,और इसका वज़्न 21 होता है,उम्मीद है समझ गए होंगे ।</span></p> आदरणीय समर कबीर सर सादर नमन,…tag:openbooks.ning.com,2021-03-26:5170231:Comment:10576172021-03-26T17:28:20.053Zसतविन्द्र कुमार राणाhttps://openbooks.ning.com/profile/28fn40mg3o5v9
<p style="text-align: center;">आदरणीय समर कबीर सर सादर नमन, आपके मार्गदर्शन के लिए सादर हार्दिक आभार सर। सँभवतः मैनें ये शब्द रेख़्ता पर देखें हैं। और वहीं से इनका अर्थ लिय्या है। <strong>मंसूब करना</strong> का अर्थ मैं नहीं समझ पाया। सफ़हे को सफ़ा बह्र में लाने केलिए लिखा ऐसे ही ख्बाब को ख़वाब लिखने की कोशिश की, यदि ऐसा करना गलत है तो फिर मुझे इन खयालात को ऐसे गजल में कैसे बांधना होगा या फिर् खारिज करना होगा, कृपया मार्गदर्शन करें।</p>
<p style="text-align: center;">आदरणीय समर कबीर सर सादर नमन, आपके मार्गदर्शन के लिए सादर हार्दिक आभार सर। सँभवतः मैनें ये शब्द रेख़्ता पर देखें हैं। और वहीं से इनका अर्थ लिय्या है। <strong>मंसूब करना</strong> का अर्थ मैं नहीं समझ पाया। सफ़हे को सफ़ा बह्र में लाने केलिए लिखा ऐसे ही ख्बाब को ख़वाब लिखने की कोशिश की, यदि ऐसा करना गलत है तो फिर मुझे इन खयालात को ऐसे गजल में कैसे बांधना होगा या फिर् खारिज करना होगा, कृपया मार्गदर्शन करें।</p> जनाब सतविन्द्र कुमार राणा जी…tag:openbooks.ning.com,2021-03-24:5170231:Comment:10572112021-03-24T14:29:54.404ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब सतविन्द्र कुमार राणा जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करे ।</p>
<p></p>
<p><span>'हर सफ़े का हिसाब बाकी है'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'सफ़े' शब्द ग़लत है सहीह शब्द है "सफ़हे", देखियेगा ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'जब तलक इंतिसाब बाकी है,<br></br>तब तलक इंतिहाब बाकी है'</span></p>
<p><span>इस मतले में 'इंतिसाब' का अर्थ आपने ग़लत लिखा और लिया है, इसका अर्थ है 'मंसूब करना'और 'इंतिहाब' शब्द मेरे लिये नया है,ये किस भाषा का है?</span></p>
<p></p>
<p><span> 'बर्क़-ए-शम से मिच मिचाए…</span></p>
<p>जनाब सतविन्द्र कुमार राणा जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करे ।</p>
<p></p>
<p><span>'हर सफ़े का हिसाब बाकी है'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'सफ़े' शब्द ग़लत है सहीह शब्द है "सफ़हे", देखियेगा ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'जब तलक इंतिसाब बाकी है,<br/>तब तलक इंतिहाब बाकी है'</span></p>
<p><span>इस मतले में 'इंतिसाब' का अर्थ आपने ग़लत लिखा और लिया है, इसका अर्थ है 'मंसूब करना'और 'इंतिहाब' शब्द मेरे लिये नया है,ये किस भाषा का है?</span></p>
<p></p>
<p><span> 'बर्क़-ए-शम से मिच मिचाए क्यों'</span></p>
<p><span>ये मिसरा बह्र में नहीं है,और 'बर्क़-ए-शम' शब्द आपने कहाँ से लिया है?</span></p>
<p></p>
<p><span>'अपना लेकिन ख़्वाब बाकी है'</span></p>
<p><span>ये मिसरा बह्र में नहीं है ।</span></p>