Comments - अहसास की ग़ज़ल : मनोज अहसास - Open Books Online2024-03-28T12:13:04Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1043169&xn_auth=noबहुत ही उम्दा ग़ज़ल है भाई. आनं…tag:openbooks.ning.com,2021-03-25:5170231:Comment:10570282021-03-25T11:33:12.593Zधर्मेन्द्र शर्माhttps://openbooks.ning.com/profile/Dharam
<p>बहुत ही उम्दा ग़ज़ल है भाई. आनंद आ गया पढ़कर. </p>
<p>बहुत ही उम्दा ग़ज़ल है भाई. आनंद आ गया पढ़कर. </p> बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय समर…tag:openbooks.ning.com,2021-01-30:5170231:Comment:10432872021-01-30T16:09:06.993Zमनोज अहसासhttps://openbooks.ning.com/profile/ManojkumarAhsaas
<p>बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय समर कबीर साहब पूरी ग़ज़ल को दोबारा देखता हूं और आपके सुझाव पर अमल करने की कोशिश करता हूं सादर आभार</p>
<p>बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय समर कबीर साहब पूरी ग़ज़ल को दोबारा देखता हूं और आपके सुझाव पर अमल करने की कोशिश करता हूं सादर आभार</p> जनाब मनोज अहसास जी आदाब, ग़ज़ल…tag:openbooks.ning.com,2021-01-30:5170231:Comment:10434662021-01-30T15:38:23.349ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब मनोज अहसास जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'ये मानता हूँ पहले से बेकल रहा हूँ मैं,</span><br></br><span>लेकिन तेरे ख़्यालों का संदल रहा हूँ मैं'</span></p>
<p><span>मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,देखियेगा ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'अब होश की ज़मीन पर टिकते नहीं क़दम'</span></p>
<p>ये मिसरा 'पर' शब्द के कारण बह्र से ख़ारिज हो रहा है, 'पर', की जगह "पे" कर लें ।</p>
<p></p>
<p><span>'हैरत से देखते हैं मुझे रास्ते के लोग,</span><br></br><span>बिल्कुल…</span></p>
<p>जनाब मनोज अहसास जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'ये मानता हूँ पहले से बेकल रहा हूँ मैं,</span><br/><span>लेकिन तेरे ख़्यालों का संदल रहा हूँ मैं'</span></p>
<p><span>मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,देखियेगा ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'अब होश की ज़मीन पर टिकते नहीं क़दम'</span></p>
<p>ये मिसरा 'पर' शब्द के कारण बह्र से ख़ारिज हो रहा है, 'पर', की जगह "पे" कर लें ।</p>
<p></p>
<p><span>'हैरत से देखते हैं मुझे रास्ते के लोग,</span><br/><span>बिल्कुल किनारे राह के यूँ चल रहा हूँ मैं'</span></p>
<p><span>इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,ग़ौर करें ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'मुझको उदासियां मिली है आसमान से,<br/>चुपचाप इन के आसरे में जल रहा हूँ मैं'</span></p>
<p><span>इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं हुआ, ग़ौर करें ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'साहिल पर जाके तू मुझे मुड़ कर तो देखता'</span></p>
<p><span>ये मिसरा भी 'पर' शब्द के कारण बह्र से ख़ारिज है,'पर' की जगह "पे" कर लें ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'अब खुद को ढूंढ लेने की मुश्किल में हूं जनाब<br/>ताउम्र तेरी यादों से बोझल रहा हूँ मैं'</span></p>
<p><span>इस शैर में शुतरगुरबा दोष है,ऊला यूँ कह सकते हैं:-</span></p>
<p><span>'अब ख़ुद को ढूँढ लेने की है जुस्तजू मुझे'</span></p>
<p><span>और सानी में 'ता उम्र' की जगह "इक उम्र" कर लें ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'ग़र याद कभी आऊं तो ये जान लेना तुम <br/>मैं दौर इक बुरा था जो अब टल रहा हूँ मैं'</span></p>
<p><span>इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,और ऊला मिसरा बह्र से ख़ारिज है,देखें ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'अहसास अपनी सोच में उलझी है जिंदगी<br/>खुद अपने हर मकाम की दलदल रहा हूँ मैं'</span></p>
<p><span>दोनों मिसरों में रब्त नहीं है, ग़ौर करें ।</span></p>
<p></p> बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय जान…tag:openbooks.ning.com,2021-01-29:5170231:Comment:10431912021-01-29T15:59:28.116Zमनोज अहसासhttps://openbooks.ning.com/profile/ManojkumarAhsaas
<p>बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय जान गोरखपुरी साहब</p>
<p>बहुत दिनों बाद आप मेरी ग़ज़ल पर आए </p>
<p>हार्दिक आभार</p>
<p>बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय जान गोरखपुरी साहब</p>
<p>बहुत दिनों बाद आप मेरी ग़ज़ल पर आए </p>
<p>हार्दिक आभार</p> 221 2121 1221 212
ये मानता हू…tag:openbooks.ning.com,2021-01-29:5170231:Comment:10431812021-01-29T11:41:46.933ZKrish mishra 'jaan' gorakhpurihttps://openbooks.ning.com/profile/krishnamishrajaangorakhpuri
<p>221 2121 1221 212</p>
<p>ये मानता हूँ पहले से बेकल रहा हूँ मैं,<br></br> लेकिन तेरे ख़्यालों का संदल रहा हूँ मैं।..... मिसरों में रब्त नहीं दिख रहा।</p>
<p>अब होश की ज़मीन पर टिकते नहीं क़दम,<br></br> बरसों तुम्हारे प्यार में पागल रहा हूँ मैं।.....अच्छा शेर</p>
<p>हैरत से देखते हैं मुझे रास्ते के लोग,<br></br> बिल्कुल किनारे राह के यूँ चल रहा हूँ मैं।.....बात नहीं बनी।</p>
<p>मुझको उदासियां मिली है आसमान से,<br></br> चुपचाप इन के आसरे में जल रहा हूँ मैं।.... यहां भी बात नहीं बनी।</p>
<p>साहिल पर जाके तू मुझे…</p>
<p>221 2121 1221 212</p>
<p>ये मानता हूँ पहले से बेकल रहा हूँ मैं,<br/> लेकिन तेरे ख़्यालों का संदल रहा हूँ मैं।..... मिसरों में रब्त नहीं दिख रहा।</p>
<p>अब होश की ज़मीन पर टिकते नहीं क़दम,<br/> बरसों तुम्हारे प्यार में पागल रहा हूँ मैं।.....अच्छा शेर</p>
<p>हैरत से देखते हैं मुझे रास्ते के लोग,<br/> बिल्कुल किनारे राह के यूँ चल रहा हूँ मैं।.....बात नहीं बनी।</p>
<p>मुझको उदासियां मिली है आसमान से,<br/> चुपचाप इन के आसरे में जल रहा हूँ मैं।.... यहां भी बात नहीं बनी।</p>
<p>साहिल पर जाके तू मुझे मुड़ कर तो देखता,<br/> इक वक्त तेरी रूह की हलचल रहा हूँ मैं।.......बहुत खूब,बढ़िया।</p>
<p>मेरी खुशी है किसमें मुझे खुद नहीं पता,<br/> दुनिया की नाप तौल में बेकल रहा हूँ मैं।.....ये अच्छा शेर हुआ है</p>
<p>अब खुद को ढूंढ लेने की मुश्किल में हूं जनाब,<br/> ताउम्र तेरी यादों से बोझल रहा हूँ मैं।.........../जनाब/ और /तेरी/ दोनों में सम्बंध नहीं जुड़ रहा।</p>
<p>ग़र याद कभी आऊं तो ये जान लेना तुम ,<br/> मैं दौर इक बुरा था जो अब टल रहा हूँ मैं ।....दौर के साथ बदलना चलेगा, जबकि वख्त के साथ टलना' मेरे ख्याल से।</p>
<p>अहसास अपनी सोच में उलझी है जिंदगी,<br/> खुद अपने हर मकाम की दलदल रहा हूँ मैं। ...अपनी/ की जगह किसकी कर लें तो बेहतर रहेगा,मेरे ख्याल से।</p>
<p>सादर।</p>