Comments - ग़ज़ल (यहाँ तनहाइयों में क्या रखा है....) - Open Books Online2024-03-29T08:36:20Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1013717&xn_auth=noमुहतरमा डिंपल शर्मा जीआदाबग़ज़ल…tag:openbooks.ning.com,2020-07-30:5170231:Comment:10138602020-07-30T05:15:16.303Zसालिक गणवीरhttps://openbooks.ning.com/profile/SalikGanvir
<p>मुहतरमा डिंपल शर्मा जी<br/>आदाब<br/>ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.</p>
<p>मुहतरमा डिंपल शर्मा जी<br/>आदाब<br/>ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.</p> आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी नमस्…tag:openbooks.ning.com,2020-07-30:5170231:Comment:10137842020-07-30T03:14:55.757ZDimple Sharmahttps://openbooks.ning.com/profile/DimpleSharma
<p>आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी नमस्ते,इस नई जानकारी के लिए बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय, मुझे भी मना ही सही लगता था पर अब आगे से मना की जगह में भी मनअ का ही इस्तेमाल करुंगी आदरणीय, बहुत आभार आपका इस नई जानकारी के लिए।</p>
<p>आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी नमस्ते,इस नई जानकारी के लिए बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय, मुझे भी मना ही सही लगता था पर अब आगे से मना की जगह में भी मनअ का ही इस्तेमाल करुंगी आदरणीय, बहुत आभार आपका इस नई जानकारी के लिए।</p> आदरणीय सालिक गणवीर जी नमस्ते,…tag:openbooks.ning.com,2020-07-30:5170231:Comment:10137822020-07-30T03:11:14.788ZDimple Sharmahttps://openbooks.ning.com/profile/DimpleSharma
<p>आदरणीय सालिक गणवीर जी नमस्ते, वाह वाह वाह बहुत ख़ूब आदरणीय कमाल, ग़ज़ल के तीसरा ,चौथा,छठा और सातवां शेर तो बहुत ही उम्दा हुए हैं बधाई स्वीकार करें आदरणीय, बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है।</p>
<p>आदरणीय सालिक गणवीर जी नमस्ते, वाह वाह वाह बहुत ख़ूब आदरणीय कमाल, ग़ज़ल के तीसरा ,चौथा,छठा और सातवां शेर तो बहुत ही उम्दा हुए हैं बधाई स्वीकार करें आदरणीय, बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है।</p> आदरणीय रवि भसीन साहब
सादर नमस…tag:openbooks.ning.com,2020-07-29:5170231:Comment:10138272020-07-29T10:12:27.375Zसालिक गणवीरhttps://openbooks.ning.com/profile/SalikGanvir
<p>आदरणीय रवि भसीन साहब</p>
<p>सादर नमस्कार</p>
<p>ये आपकी ज़र्रा नवाज़ी है जनाब.सराहना के लिए आपका ह्रदय से आभार. उम्मीद है आपका स्नेह और मार्ग दर्शन सतत मिलता रहेगा. आपसे इन्सपायर होकर ही एक ग़ज़ल पोस्ट की है.Waiting for approval,as soon as it is cleared please have a look .</p>
<p>आदरणीय रवि भसीन साहब</p>
<p>सादर नमस्कार</p>
<p>ये आपकी ज़र्रा नवाज़ी है जनाब.सराहना के लिए आपका ह्रदय से आभार. उम्मीद है आपका स्नेह और मार्ग दर्शन सतत मिलता रहेगा. आपसे इन्सपायर होकर ही एक ग़ज़ल पोस्ट की है.Waiting for approval,as soon as it is cleared please have a look .</p> आदरणीय सालिक गणवीर साहिब, नमस…tag:openbooks.ning.com,2020-07-29:5170231:Comment:10138252020-07-29T09:22:41.324Zरवि भसीन 'शाहिद'https://openbooks.ning.com/profile/RaviBhasin
<div align="left"><p dir="ltr">आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir">सालिक गणवीर</a> साहिब, नमस्कार! हुज़ूर आप जो इतनी इज़्ज़त और मुहब्बत देते हैं उसके लिए तह-ए-दिल से आपका शुक्रगुज़ार हूँ। और भाई जान, जब एक दूसरे के साथ सलाह-मशवरा कर रहे हैं तो सुझाए हुए मिस्रे या अशआर लेने में कोई हर्ज़ नहीं है। Intellectual property वाली कोई बात नहीं है जनाब, क्यूँकि दोनों ही अशआर आपके शेर से प्रेरित थे (रो रहे हैं, मातम हुआ है)। फिर भी मैं आपके इस जज़्बे की क़द्र करता हूँ। बहरहाल,…</p>
</div>
<div align="left"><p dir="ltr">आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir">सालिक गणवीर</a> साहिब, नमस्कार! हुज़ूर आप जो इतनी इज़्ज़त और मुहब्बत देते हैं उसके लिए तह-ए-दिल से आपका शुक्रगुज़ार हूँ। और भाई जान, जब एक दूसरे के साथ सलाह-मशवरा कर रहे हैं तो सुझाए हुए मिस्रे या अशआर लेने में कोई हर्ज़ नहीं है। Intellectual property वाली कोई बात नहीं है जनाब, क्यूँकि दोनों ही अशआर आपके शेर से प्रेरित थे (रो रहे हैं, मातम हुआ है)। फिर भी मैं आपके इस जज़्बे की क़द्र करता हूँ। बहरहाल, आपका ये मक़ता बहुत ज़बरदस्त है। आपको इस ग़ज़ल के लिए एक बार फिर दिली मुबारकबाद!</p>
</div> आदरणीय भसीन साहिब
आदाब
जनाब म…tag:openbooks.ning.com,2020-07-29:5170231:Comment:10138172020-07-29T06:10:24.699Zसालिक गणवीरhttps://openbooks.ning.com/profile/SalikGanvir
<p>आदरणीय भसीन साहिब</p>
<p>आदाब</p>
<p>जनाब मैने पहले भी कहा है कि आपकी कलम का मुरीद हूँ, तो आपकी बात पर अविश्वास करने का सवाल ही पैैैदा नहीं होता. आपके दोनो अश'आर बहुत उम्दा हैं,sir,it is your inttallatual property.पुरानी ग़ज़ल का एक शैर लिख कर पुनः पोस्ट कर रहा हूँ. साथ ही साथ आपकी ग़ज़ल पढ़कर ,मैं भी एक पोस्ट कर रहा हूँ.पढ़ कर बताइये और </p>
<p>इस्सलाह दें</p>
<p>आदरणीय भसीन साहिब</p>
<p>आदाब</p>
<p>जनाब मैने पहले भी कहा है कि आपकी कलम का मुरीद हूँ, तो आपकी बात पर अविश्वास करने का सवाल ही पैैैदा नहीं होता. आपके दोनो अश'आर बहुत उम्दा हैं,sir,it is your inttallatual property.पुरानी ग़ज़ल का एक शैर लिख कर पुनः पोस्ट कर रहा हूँ. साथ ही साथ आपकी ग़ज़ल पढ़कर ,मैं भी एक पोस्ट कर रहा हूँ.पढ़ कर बताइये और </p>
<p>इस्सलाह दें</p> आदरणीय सालिक गणवीर साहिब, आदा…tag:openbooks.ning.com,2020-07-28:5170231:Comment:10137012020-07-28T07:04:58.932Zरवि भसीन 'शाहिद'https://openbooks.ning.com/profile/RaviBhasin
<p>आदरणीय सालिक गणवीर साहिब, आदाब। हुज़ूर वो अशआर इसलिए उदाहरण के तौर पे पेश किये थे क्यूँकि बचपन से हम 'मना' सुनते, पढ़ते और लिखते आये हैं, तो अचानक अगर एक दिन कोई बताए कि ये शब्द मना नहीं बल्कि मनअ' है तो विश्वास करना मुश्किल हो जाता है, चाहे बताने वाले का हम कितना भी एहतराम क्यों ना करते हों। फिर ये भी सोचा कि और लोग जो इन टिप्पणियों को पढ़ेंगे उनके लिए भी समझना आसान हो जाएगा। जनाब-ए-आ'ली आख़िरी शे'र के लिए ये दो मशवरे हैं:</p>
<p></p>
<p>1222 / 1222 / 122<br></br>सुनाई दे रही हैं सिसकियाँ…</p>
<p>आदरणीय सालिक गणवीर साहिब, आदाब। हुज़ूर वो अशआर इसलिए उदाहरण के तौर पे पेश किये थे क्यूँकि बचपन से हम 'मना' सुनते, पढ़ते और लिखते आये हैं, तो अचानक अगर एक दिन कोई बताए कि ये शब्द मना नहीं बल्कि मनअ' है तो विश्वास करना मुश्किल हो जाता है, चाहे बताने वाले का हम कितना भी एहतराम क्यों ना करते हों। फिर ये भी सोचा कि और लोग जो इन टिप्पणियों को पढ़ेंगे उनके लिए भी समझना आसान हो जाएगा। जनाब-ए-आ'ली आख़िरी शे'र के लिए ये दो मशवरे हैं:</p>
<p></p>
<p>1222 / 1222 / 122<br/>सुनाई दे रही हैं सिसकियाँ बस<br/>यहाँ रोने पे क्यूँ पहरा लगा है</p>
<p></p>
<p>1222 / 1222 / 122<br/>हमें रोने कहाँ देती है खुल कर<br/>ये शहरों में जो मातम की फ़ज़ा है</p>
<p></p>
<p>/<span>आप अपने आख़िरी शे'र में आसानी से अल्फ़ाज़ इधर-उधर करके मनअ' को 21 के वज़्न में ला सकते हैं।/</span></p>
<p><span>जी ये मैंने ग़लत लिखा था, माज़रत चाहता हूँ। शायद रदीफ़ या क़ाफिये को लेकर confuse हो गया हूँगा।</span></p> आदरणीय भसीन साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर…tag:openbooks.ning.com,2020-07-28:5170231:Comment:10137002020-07-28T05:15:33.717Zसालिक गणवीरhttps://openbooks.ning.com/profile/SalikGanvir
<p>आदरणीय भसीन साहिब</p>
<p>आदाब</p>
<p>ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ. जनाब बेहतर होता आप मनअ' का वज़्न बता देते तो आपको जस्टिफाई करने के लिए इतने सारे उदाहरण नहीं देने पड़ते.जनाब आपकी भाषा पर पकड़ का मैं पहले से ही मुरीद हूूँ. //हमारे गाँँव मेें सब रो रहे हैं, तुम्हारे शह्र मेेंं मातम हुआ है// आखिरी शैर बदल कर ऐसा लिखने से बाात बनेगी या नहीं, सलाह दें.सादर.</p>
<p></p>
<p>आदरणीय भसीन साहिब</p>
<p>आदाब</p>
<p>ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ. जनाब बेहतर होता आप मनअ' का वज़्न बता देते तो आपको जस्टिफाई करने के लिए इतने सारे उदाहरण नहीं देने पड़ते.जनाब आपकी भाषा पर पकड़ का मैं पहले से ही मुरीद हूूँ. //हमारे गाँँव मेें सब रो रहे हैं, तुम्हारे शह्र मेेंं मातम हुआ है// आखिरी शैर बदल कर ऐसा लिखने से बाात बनेगी या नहीं, सलाह दें.सादर.</p>
<p></p> आदरणीय सालिक गणवीर साहिब, लाज…tag:openbooks.ning.com,2020-07-27:5170231:Comment:10137472020-07-27T11:31:25.594Zरवि भसीन 'शाहिद'https://openbooks.ning.com/profile/RaviBhasin
<p dir="ltr">आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir">सालिक गणवीर</a> साहिब, लाजवाब ग़ज़ल हुई है हुज़ूर, बधाई स्वीकार करें। 4, 5, और 6 नंबर अशआर पर विशेष दाद और मुबारकबाद पेश करता हूँ।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">जनाब-ए-आ'ली, आख़िरी शेर में जो आपने 'मना' शब्द इस्तेमाल किया है, वो दरअस्ल 'मनअ' है और वज़्न 21 पे इस्तेमाल किया जाता है। कृप्या ये अशआर देखें:</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">221 / 2121 / 1221 / 212<br></br> गर मनअ' मुझ को करते हैं तेरी गली से…</p>
<p dir="ltr">आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir">सालिक गणवीर</a> साहिब, लाजवाब ग़ज़ल हुई है हुज़ूर, बधाई स्वीकार करें। 4, 5, और 6 नंबर अशआर पर विशेष दाद और मुबारकबाद पेश करता हूँ।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">जनाब-ए-आ'ली, आख़िरी शेर में जो आपने 'मना' शब्द इस्तेमाल किया है, वो दरअस्ल 'मनअ' है और वज़्न 21 पे इस्तेमाल किया जाता है। कृप्या ये अशआर देखें:</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">221 / 2121 / 1221 / 212<br/> गर मनअ' मुझ को करते हैं तेरी गली से लोग<br/> क्यूँकर न जाऊँ मुझ को तो मरना है ख़्वा-मख़्वाह<br/> (मीर तक़ी मीर)</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">221 / 1221 / 1221 / 122<br/> करता है हमें मनअ' तू पैमाना-कशी से<br/> पैमाना तिरी उम्र का मामूर हो ऐ शैख़<br/> (मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी)</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">2122 / 1122 / 1122 / 22 (112)<br/> घर से बाहर तुम्हें आना है अगर मनअ' तो आप<br/> अपने कोठे पे कबूतर तो उड़ा सकते हैं<br/> (इंशा अल्लाह ख़ान इंशा)</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">2122 / 1212 / 22<br/> इश्क़ से लोग मनअ' करते हैं<br/> जैसे कुछ इख़्तियार है अपना<br/> (असर लखनवी)</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">2122 / 1122 / 1122 / 22<br/> फ़रहत-एहसास तुझे मनअ' है जाना उस तक<br/> क्या तिरे ख़ून के धारे भी नहीं जा सकते<br/> (फ़रहत एहसास)</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">वैसे 'मना' 12 भी शब्द तो है, लेकिन ये "किसी को मना लेना" (मतलब राज़ी कर लेना) वाले अर्थ में इस्तेमाल किया जाता है, जैसे:<br/> 1222 / 1222 / 122<br/> कि उस का रूठना भी लाज़मी है<br/> मना लूँगा अगर होगा ख़फ़ा तो<br/> (नज़ीर नज़र)</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">आप अपने आख़िरी शे'र में आसानी से अल्फ़ाज़ इधर-उधर करके मनअ' को 21 के वज़्न में ला सकते हैं।</p> आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जीआदा…tag:openbooks.ning.com,2020-07-27:5170231:Comment:10136922020-07-27T09:48:58.366Zसालिक गणवीरhttps://openbooks.ning.com/profile/SalikGanvir
<p>आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी<br/>आदाब<br/>ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.</p>
<p>आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी<br/>आदाब<br/>ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.</p>