Comments - ग़ज़ल ( हद में कभी थे हद से गुज़रना पड़ा हमें.....) - Open Books Online2024-03-29T11:36:06Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1012353&xn_auth=noआदरणीय रवि शुक्ला जी,
सादर अभ…tag:openbooks.ning.com,2020-07-21:5170231:Comment:10127452020-07-21T10:01:51.793Zसालिक गणवीरhttps://openbooks.ning.com/profile/SalikGanvir
<p>आदरणीय रवि शुक्ला जी,</p>
<p>सादर अभिवादन</p>
<p>ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और सराहना के लिए मश्कूर-ओ-ममनून हूँ.</p>
<p>आदरणीय रवि शुक्ला जी,</p>
<p>सादर अभिवादन</p>
<p>ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और सराहना के लिए मश्कूर-ओ-ममनून हूँ.</p> आदरणीय सलीक गणवीर जी । अच्छे…tag:openbooks.ning.com,2020-07-21:5170231:Comment:10126712020-07-21T06:38:33.165ZRavi Shuklahttps://openbooks.ning.com/profile/RaviShukla
<p><span>आदरणीय सलीक गणवीर जी । अच्छे अशआर हुए है। हार्दिक बघाई स्वीकार कीजिये। ख्वाबों के पंख वाले मिसरे में मुझे कछ अटकाव लग रहा है । बहुपचन के अनुसार कााफिया बदल रहा है । सादर ।</span></p>
<p><span>आदरणीय सलीक गणवीर जी । अच्छे अशआर हुए है। हार्दिक बघाई स्वीकार कीजिये। ख्वाबों के पंख वाले मिसरे में मुझे कछ अटकाव लग रहा है । बहुपचन के अनुसार कााफिया बदल रहा है । सादर ।</span></p> आदरणीय अमीरूद्दीन 'अमीर' साहि…tag:openbooks.ning.com,2020-07-21:5170231:Comment:10127322020-07-21T04:35:45.881Zसालिक गणवीरhttps://openbooks.ning.com/profile/SalikGanvir
<p>आदरणीय अमीरूद्दीन 'अमीर' साहिब.</p>
<p>आदाब</p>
<p>ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और सराहना के लिए तह-ए-दिल से मश्कूर-ओ-ममनून हूँ. आपकी इस्लाह पर अमल के बाद पुनः पोस्ट करता हूँ, इसके लिए आपको अलग से शुक्रिया अदा करता हूँ. सादर.</p>
<p>क</p>
<p>आदरणीय अमीरूद्दीन 'अमीर' साहिब.</p>
<p>आदाब</p>
<p>ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और सराहना के लिए तह-ए-दिल से मश्कूर-ओ-ममनून हूँ. आपकी इस्लाह पर अमल के बाद पुनः पोस्ट करता हूँ, इसके लिए आपको अलग से शुक्रिया अदा करता हूँ. सादर.</p>
<p>क</p> जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, अच्…tag:openbooks.ning.com,2020-07-20:5170231:Comment:10127172020-07-20T17:50:59.466Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttps://openbooks.ning.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार करें।</p>
<p>/शेरों की माँद में भी कभी बेहिचक गए</p>
<p>इस दौर में चूहों से भी डरना पड़ा हमें/ जनाब इस शैर के सानी मिसरे की तक़तीअ दोबारा देख लीजियेगा या/और अगर चाहें तो इसे यूँ भी कर सकते हैं : "दौर-ए-रवाँ में चूहों से डरना पड़ा हमें" </p>
<p>/मंज़िल भी होती पाँव के नीचे मगर सुनो</p>
<p>उसके लिए रस्ते में ठहरना पड़ा हमें/ इस शैर के सानी मिसरे में लफ़्ज़ "रस्ते" को 12 पर लेना मुनासिब नहीं इसे 22 या 21 मात्रा पर लेना ही दुरुुस्त होगा,…</p>
<p>जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार करें।</p>
<p>/शेरों की माँद में भी कभी बेहिचक गए</p>
<p>इस दौर में चूहों से भी डरना पड़ा हमें/ जनाब इस शैर के सानी मिसरे की तक़तीअ दोबारा देख लीजियेगा या/और अगर चाहें तो इसे यूँ भी कर सकते हैं : "दौर-ए-रवाँ में चूहों से डरना पड़ा हमें" </p>
<p>/मंज़िल भी होती पाँव के नीचे मगर सुनो</p>
<p>उसके लिए रस्ते में ठहरना पड़ा हमें/ इस शैर के सानी मिसरे में लफ़्ज़ "रस्ते" को 12 पर लेना मुनासिब नहीं इसे 22 या 21 मात्रा पर लेना ही दुरुुस्त होगा, मिसरा चाहें तो यूँ कर सकते हैं : "रस्ते में उसके वास्ते रुकना पड़ा हमें"। सादर। </p>
<p></p>
<p></p> भाई सुरेंद्र नाथ सिंह 'कुशक्ष…tag:openbooks.ning.com,2020-07-20:5170231:Comment:10127082020-07-20T10:47:06.128Zसालिक गणवीरhttps://openbooks.ning.com/profile/SalikGanvir
<p>भाई सुरेंद्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'</p>
<p>सादर अभिवादन</p>
<p>ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और सराहना के लिए मश्कूर-ओ-ममनून हूँ.</p>
<p>भाई सुरेंद्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'</p>
<p>सादर अभिवादन</p>
<p>ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और सराहना के लिए मश्कूर-ओ-ममनून हूँ.</p> आद0 सलीक गणवीर जी सादर अभिवाद…tag:openbooks.ning.com,2020-07-19:5170231:Comment:10125492020-07-19T12:05:25.141Zनाथ सोनांचलीhttps://openbooks.ning.com/profile/SurendraNathSingh
<p>आद0 सलीक गणवीर जी सादर अभिवादन। अच्छे अशआर हुए है। बधाई स्वीकार कीजिये</p>
<p>आद0 सलीक गणवीर जी सादर अभिवादन। अच्छे अशआर हुए है। बधाई स्वीकार कीजिये</p>