Comments - तू ही तू है - Open Books Online2024-03-29T11:22:11Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1009627&xn_auth=noआदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी आपको…tag:openbooks.ning.com,2020-06-13:5170231:Comment:10096782020-06-13T10:07:47.710ZDimple Sharmahttps://openbooks.ning.com/profile/DimpleSharma
<p>आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी आपको और उस्ताद मोहतरम Samar Kabeerसाहब को मेरा नतमस्तक हो कर प्रणाम है स्वीकार करें , आप दोनों गुणी जनों को प्रणाम चरण स्पर्श। आदरणीय उस्ताद मोहतरम को तो धन्यवाद कहने लायक शब्दों का चयन करने में भी मुझे वर्षों लग जाएंगे और फिर भी सही शब्द नहीं मिल पाएंगे, आशीर्वाद बनाए रखें।</p>
<p>आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी आपको और उस्ताद मोहतरम Samar Kabeerसाहब को मेरा नतमस्तक हो कर प्रणाम है स्वीकार करें , आप दोनों गुणी जनों को प्रणाम चरण स्पर्श। आदरणीय उस्ताद मोहतरम को तो धन्यवाद कहने लायक शब्दों का चयन करने में भी मुझे वर्षों लग जाएंगे और फिर भी सही शब्द नहीं मिल पाएंगे, आशीर्वाद बनाए रखें।</p> आदरणीया Dimple Sharma जी, नमस…tag:openbooks.ning.com,2020-06-13:5170231:Comment:10097942020-06-13T05:17:01.147Zरवि भसीन 'शाहिद'https://openbooks.ning.com/profile/RaviBhasin
<p>आदरणीया<span> </span><a class="fn url" href="http://www.openbooksonline.com/profile/DimpleSharma">Dimple Sharma</a><span> जी, नमस्कार। जी मुझे शे'र-ओ-शाइरी का जो भी थोड़ा-बहुत इल्म है वो उस्ताद-ए-मुहतरम समर कबीर साहिब की इनायत से ही हासिल हुआ है, इसलिए प्रणाम के हक़दार वो ही हैं, मैं नहीं। जहाँ तक समर्पण की भावना का सवाल है, वो भी उस्ताद जी की ही प्रेरणा से मिलती है, जब देखते हैं कि कमज़ोर नज़र और कई कठिनाइयों के बावजूद वो रोज़ाना कितनी ही ग़ज़लों और अशआर की इस्लाह करते हैं और हर एक को अपना ज्ञान…</span></p>
<p>आदरणीया<span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/DimpleSharma" class="fn url">Dimple Sharma</a><span> जी, नमस्कार। जी मुझे शे'र-ओ-शाइरी का जो भी थोड़ा-बहुत इल्म है वो उस्ताद-ए-मुहतरम समर कबीर साहिब की इनायत से ही हासिल हुआ है, इसलिए प्रणाम के हक़दार वो ही हैं, मैं नहीं। जहाँ तक समर्पण की भावना का सवाल है, वो भी उस्ताद जी की ही प्रेरणा से मिलती है, जब देखते हैं कि कमज़ोर नज़र और कई कठिनाइयों के बावजूद वो रोज़ाना कितनी ही ग़ज़लों और अशआर की इस्लाह करते हैं और हर एक को अपना ज्ञान बाँटते हैं। हम लोग तो उनके मुक़ाबले में बहुत सुस्त और कामचोर हैं आदरणीया, पढ़ने में भी, लिखने में भी, और दूसरों की मदद करने में भी। आपकी ज़र्रा-नवाज़ी के लिए हार्दिक आभार।</span></p> आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी नतमस…tag:openbooks.ning.com,2020-06-12:5170231:Comment:10097872020-06-12T14:11:06.621ZDimple Sharmahttps://openbooks.ning.com/profile/DimpleSharma
<p>आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी नतमस्तक हो कर प्रणाम करती हूँ आपके ज्ञान को और उससे भी ऊपर इतने सहज ढंग से जो आप मुझे सीखा रहे हो उस भाव को भी,आपकी ये विनम्रता दर्शाती है कि ग़ज़ल और शायरी के प्रति आपका समर्पण भाव कितना अधिक है , आपके इस समर्पण भाव को दंडवत प्रणाम है आदरणीय , आपकी ये सलाह मैं निःसंदेह ध्यान रखूंगी और आगे इसका उपयोग करने के पहले इसके बारे में अच्छे से समझने की कोशिश करुंगी। <br/> बहुत बहुत धन्यवाद आभार आपका आदरणीय, आपने इतना वक्त दिया ।</p>
<p>आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी नतमस्तक हो कर प्रणाम करती हूँ आपके ज्ञान को और उससे भी ऊपर इतने सहज ढंग से जो आप मुझे सीखा रहे हो उस भाव को भी,आपकी ये विनम्रता दर्शाती है कि ग़ज़ल और शायरी के प्रति आपका समर्पण भाव कितना अधिक है , आपके इस समर्पण भाव को दंडवत प्रणाम है आदरणीय , आपकी ये सलाह मैं निःसंदेह ध्यान रखूंगी और आगे इसका उपयोग करने के पहले इसके बारे में अच्छे से समझने की कोशिश करुंगी। <br/> बहुत बहुत धन्यवाद आभार आपका आदरणीय, आपने इतना वक्त दिया ।</p> आदरणीय Dimple Sharma जी, एक औ…tag:openbooks.ning.com,2020-06-12:5170231:Comment:10097792020-06-12T12:20:54.666Zरवि भसीन 'शाहिद'https://openbooks.ning.com/profile/RaviBhasin
<p><span>आदरणीय</span><span> </span><a class="fn url" href="http://www.openbooksonline.com/profile/DimpleSharma" rel="nofollow">Dimple Sharma</a><span> </span><span>जी, एक और वज़ाहत करना चाहता हूँ।</span></p>
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<p>/यदि इक को एक करती हूं तो मात्रा २१ हो जाती है फिर आगे का जो शब्द मैंने लिया है वो लहर है तो वहाँ गड़बड़ लग रही है/<br></br>आदरणीया, 'लहर' का वज़्न 21 होता है, 12 नहीं। ये देखिए:<br></br>2122 / 1212 / 112<br></br>दिल में इक लहर से उठी है अभी<br></br>कोई ताज़ा हवा चली है अभी<br></br>(नासिर…</p>
<p><span>आदरणीय</span><span> </span><a rel="nofollow" href="http://www.openbooksonline.com/profile/DimpleSharma" class="fn url">Dimple Sharma</a><span> </span><span>जी, एक और वज़ाहत करना चाहता हूँ।</span></p>
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<p>/यदि इक को एक करती हूं तो मात्रा २१ हो जाती है फिर आगे का जो शब्द मैंने लिया है वो लहर है तो वहाँ गड़बड़ लग रही है/<br/>आदरणीया, 'लहर' का वज़्न 21 होता है, 12 नहीं। ये देखिए:<br/>2122 / 1212 / 112<br/>दिल में इक लहर से उठी है अभी<br/>कोई ताज़ा हवा चली है अभी<br/>(नासिर काज़मी)<br/>आप 'लह्र' लिखने की आदत डाल लेंगी तो ग़लती होने के इमकानात कम हो जाएँगे।</p>
<p></p>
<p>और एक लम्हे के लिए मान भी लिया जाए कि वहाँ 12 वज़्न का कोई शब्द होता, तो इज़ाफ़त इस्तेमाल करने से उसका वज़्न बदल जाता। अब देखिए 'सहर' का वज़्न 12 होता है, लेकिन इज़ाफ़त इस्तेमाल करने से कैसे बदल जाता है: <br/>11212 / 11212 / 11212 / 11212<br/>पिला साक़िया मय-ए-जाँ पिला कि मैं लाऊँ फिर ख़बर-ए-जुनूँ <br/>ये ख़िरद की रात छटे कहीं नज़र आए फिर सहर-ए-जुनूँ <br/>(नून मीम राशिद)<br/>इस शे'र में 'सहर-ए-जुनूँ' का वज़्न 11212 है, मतलब स 1 ह 1 रे 2</p>
<p></p>
<p>अब एक उदाहरण देखिये कि वाव-ए-अत्फ़ का इस्तेमाल करने से लफ़्ज़ों का वज़न कैसे बदल जाता है:<br/>शब = 2 रोज़ = 21 माह = 21 साल = 21<br/>2122 / 1212 / 112<br/>वो फ़िराक और वो विसाल कहाँ<br/>वो शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल कहाँ<br/>(मिर्ज़ा ग़ालिब)<br/>शबो = 12<br/>रोज़ो = 21 (मात्रा पतन किया है, इसे 22 भी ले सकते हैं)<br/>माहो = 21 (मात्रा पतन किया है, इसे 22 भी ले सकते हैं)</p>
<p><br/>आपको ये सुझाव देना चाहूँगा कि इज़ाफ़त का इस्तेमाल समझने के लिए उस्ताद शोअरा की ग़ज़लों की तक़्तीअ करें, और उन्हें ऊँचा बोलकर बह्र की लय में पढ़ें। और जब तक इज़ाफ़त का इस्तेमाल अच्छे से पकड़ में ना आये तब तक इसे अपनी शाइरी में इस्तेमाल करने से परहेज़ करें।</p> आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी नमस्…tag:openbooks.ning.com,2020-06-12:5170231:Comment:10097782020-06-12T12:17:38.686ZDimple Sharmahttps://openbooks.ning.com/profile/DimpleSharma
<p>आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी नमस्ते , जी सही कहा आपने , ये शेर बस यूं ही ज़हन में आ गया था आपके दिए उदाहरण को पढ़ते हुए तो लिख डाला , परन्तु यह भी गलत नहीं हुआ देखा जाए तो कुछ और नया सीखा दिया आपने इस गलती को देखते हुए।<br/> बहुत बहुत धन्यवाद आभार।</p>
<p>आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी नमस्ते , जी सही कहा आपने , ये शेर बस यूं ही ज़हन में आ गया था आपके दिए उदाहरण को पढ़ते हुए तो लिख डाला , परन्तु यह भी गलत नहीं हुआ देखा जाए तो कुछ और नया सीखा दिया आपने इस गलती को देखते हुए।<br/> बहुत बहुत धन्यवाद आभार।</p> आदरणीय Dimple Sharma जी, नमस्…tag:openbooks.ning.com,2020-06-12:5170231:Comment:10098812020-06-12T12:12:40.817Zरवि भसीन 'शाहिद'https://openbooks.ning.com/profile/RaviBhasin
<p><span>आदरणीय</span> <a class="fn url" href="http://www.openbooksonline.com/profile/DimpleSharma">Dimple Sharma</a> <span>जी, नमस्ते। </span>जी शे'र बह्र में नहीं है मुहतरमा।</p>
<p></p>
<p>अज़मत = 22<br></br>लेकिन इज़ाफ़त इस्तेमाल करने से:<br></br>अज़ म ते<br></br> 2 1 1/2</p>
<p></p>
<p>इसी तरह हुनर = 12<br></br>लेकिन इज़ाफ़त इस्तेमाल करने से:<br></br>हु न रे<br></br>1 1 1/2</p>
<p></p>
<p>आदरणीया, इज़ाफ़त और वाव अत्फ़ के इस्तेमाल में जल्दबाज़ी न करें। पहले इनका शब्दों के वज़्न पर प्रभाव समझ लें और…</p>
<p><span>आदरणीय</span> <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/DimpleSharma" class="fn url">Dimple Sharma</a> <span>जी, नमस्ते। </span>जी शे'र बह्र में नहीं है मुहतरमा।</p>
<p></p>
<p>अज़मत = 22<br/>लेकिन इज़ाफ़त इस्तेमाल करने से:<br/>अज़ म ते<br/> 2 1 1/2</p>
<p></p>
<p>इसी तरह हुनर = 12<br/>लेकिन इज़ाफ़त इस्तेमाल करने से:<br/>हु न रे<br/>1 1 1/2</p>
<p></p>
<p>आदरणीया, इज़ाफ़त और वाव अत्फ़ के इस्तेमाल में जल्दबाज़ी न करें। पहले इनका शब्दों के वज़्न पर प्रभाव समझ लें और फिर इस्तेमाल करना शुरू करें।</p> आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी नमस्…tag:openbooks.ning.com,2020-06-12:5170231:Comment:10097772020-06-12T11:29:54.126ZDimple Sharmahttps://openbooks.ning.com/profile/DimpleSharma
<p>आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी नमस्ते आपने जो उदाहरण दिए हैं उनमें से एक शेर बन पड़ा है मुक्कमल हुआ की नहीं , नहीं जानती पर आपकी खिदमत में पेश है शेर जो कुछ यूं हुआ है..<br/> 2212, 2212, 2212<br/> अज़्मत बहर-ए-बे-कराँ की देख ले<br/>
उसके हुनर ए ताब में तू ही तो है</p>
<p>अज़्मत - महिमा<br/> ताब - सहन-शक्ति, बरदाश्त<br/> बहर-ए-बे-कराँ = समंदर जो बिना किनारे का है</p>
<p>आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी नमस्ते आपने जो उदाहरण दिए हैं उनमें से एक शेर बन पड़ा है मुक्कमल हुआ की नहीं , नहीं जानती पर आपकी खिदमत में पेश है शेर जो कुछ यूं हुआ है..<br/> 2212, 2212, 2212<br/> अज़्मत बहर-ए-बे-कराँ की देख ले<br/>
उसके हुनर ए ताब में तू ही तो है</p>
<p>अज़्मत - महिमा<br/> ताब - सहन-शक्ति, बरदाश्त<br/> बहर-ए-बे-कराँ = समंदर जो बिना किनारे का है</p> आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी आदाब…tag:openbooks.ning.com,2020-06-12:5170231:Comment:10097742020-06-12T10:04:52.580ZDimple Sharmahttps://openbooks.ning.com/profile/DimpleSharma
<p>आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी आदाब , आपके सुझावों के लिए हृदय तल से धन्यवाद और आपने जो नई नई जानकारियां दि हैं वो बहुत ही कारगर साबित होगी मेरे लिए भविष्य में आप सभी गुणी जनों ने अपना अनमोल समय देकर जो कृपा की है उसके लिए आभार व्यक्त करने को शब्द नहीं हैं मेरे पास , आदरणीय निचे एक शेर के उल्ला में "देखा" शब्द के कारण तक़तीअ बिगड़ रही थी तो उस शेर को मैंने कुछ यूं बदल दिया है आप एक बार देख लें तो कृपा होगी .. <br/> 2212, 2212, 2212<br/> मौसम शगुफ़्ता है इशारा ख़ूब है</p>
<p>धन्यवाद आदरणीय।</p>
<p>आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी आदाब , आपके सुझावों के लिए हृदय तल से धन्यवाद और आपने जो नई नई जानकारियां दि हैं वो बहुत ही कारगर साबित होगी मेरे लिए भविष्य में आप सभी गुणी जनों ने अपना अनमोल समय देकर जो कृपा की है उसके लिए आभार व्यक्त करने को शब्द नहीं हैं मेरे पास , आदरणीय निचे एक शेर के उल्ला में "देखा" शब्द के कारण तक़तीअ बिगड़ रही थी तो उस शेर को मैंने कुछ यूं बदल दिया है आप एक बार देख लें तो कृपा होगी .. <br/> 2212, 2212, 2212<br/> मौसम शगुफ़्ता है इशारा ख़ूब है</p>
<p>धन्यवाद आदरणीय।</p> आदरणीया Dimple Sharma जी,
/म…tag:openbooks.ning.com,2020-06-12:5170231:Comment:10097732020-06-12T08:55:42.408Zरवि भसीन 'शाहिद'https://openbooks.ning.com/profile/RaviBhasin
<p><span>आदरणीया <a class="fn url" href="http://www.openbooksonline.com/profile/DimpleSharma">Dimple Sharma</a> जी, </span></p>
<p><span>/मैं देखती हूँ रात दिन ऊपर वहाँ<br></br>ख़ुर्शीद में महताब में तू ही तो है/</span></p>
<p><span>जी, अब रब्त स्पष्ट है।</span></p>
<p></p>
<div align="left"><p dir="ltr">आदरणीया, आपको इज़ाफ़त के संबंध में वज़ाहत करना चाहूँगा। इज़ाफ़त दो तरह से इस्तेमाल की जाती है। एक तो ऐसे:<br></br> दर्दे-दिल = दिल का दर्द (शब्द समूह को उल्टी दिशा से पढ़ें)<br></br> दाग़-ए-हसरत-ए-हस्ती = ज़िन्दगी…</p>
</div>
<p><span>आदरणीया <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/DimpleSharma" class="fn url">Dimple Sharma</a> जी, </span></p>
<p><span>/मैं देखती हूँ रात दिन ऊपर वहाँ<br/>ख़ुर्शीद में महताब में तू ही तो है/</span></p>
<p><span>जी, अब रब्त स्पष्ट है।</span></p>
<p></p>
<div align="left"><p dir="ltr">आदरणीया, आपको इज़ाफ़त के संबंध में वज़ाहत करना चाहूँगा। इज़ाफ़त दो तरह से इस्तेमाल की जाती है। एक तो ऐसे:<br/> दर्दे-दिल = दिल का दर्द (शब्द समूह को उल्टी दिशा से पढ़ें)<br/> दाग़-ए-हसरत-ए-हस्ती = ज़िन्दगी की हसरत के दाग़<br/> चराग़-ए-दर-ए-मयख़ाना = मयख़ाने के दर का चराग़<br/> रहीन-ए-सितम-हा-ए-रोज़गार = रोज़गार के ज़ुल्मों के नीचे</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">इज़ाफ़त का दूसरा इस्तेमाल है पहले लफ़्ज़ की विशेषता बताना, जैसे:<br/> दिल-ए-नादाँ = दिल जो नादान है</p>
</div>
<div align="left"><p dir="ltr">बहर-ए-बे-कराँ = समंदर जो बिना किनारे का है<br/> नग़मा-ए-पुरदर्द = नग़मा जो दर्द से भरा है<br/> लहर-ए-नाब = लहर जो पवित्र है</p>
</div> आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत'तुर…tag:openbooks.ning.com,2020-06-11:5170231:Comment:10097682020-06-11T18:08:07.287ZDimple Sharmahttps://openbooks.ning.com/profile/DimpleSharma
<p>आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत'तुरंत' जी हृदय तल से आभारी हूं आपकी के आपने मुझे और मेरी बेकार सी ग़ज़ल को अपना इतना वक्त दिया और इस लिंक को शेयर करने के लिए भी विशेष धन्यवाद , ये मेरा सौभाग्य है कि मुझे आप सभी गुणी जनों से इतना कुछ सीखने को मिल रहा है आशीर्वाद और दया दृष्टि बनाए रखें।</p>
<p>2212, 2212, 2212 <br/> मौसम शगुफ़्ता है इशारा ख़ूब है</p>
<p>इस शेर में यूं परिवर्तन कर दिया जाए तो कैसा रहेगा, क्षमा चाहुंगी आपको परेशान कर रही हूं, कृप्या मार्गदर्शन करें।</p>
<p>आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत'तुरंत' जी हृदय तल से आभारी हूं आपकी के आपने मुझे और मेरी बेकार सी ग़ज़ल को अपना इतना वक्त दिया और इस लिंक को शेयर करने के लिए भी विशेष धन्यवाद , ये मेरा सौभाग्य है कि मुझे आप सभी गुणी जनों से इतना कुछ सीखने को मिल रहा है आशीर्वाद और दया दृष्टि बनाए रखें।</p>
<p>2212, 2212, 2212 <br/> मौसम शगुफ़्ता है इशारा ख़ूब है</p>
<p>इस शेर में यूं परिवर्तन कर दिया जाए तो कैसा रहेगा, क्षमा चाहुंगी आपको परेशान कर रही हूं, कृप्या मार्गदर्शन करें।</p>