Comments - मजदूर अपने गाँव के सस्ते नहीं गये -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' - Open Books Online2024-03-28T19:36:41Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1007489&xn_auth=noआ. भाई समर जी, सादर अभिवादन ।…tag:openbooks.ning.com,2020-05-21:5170231:Comment:10077312020-05-21T11:36:52.684Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार ।</p>
<p>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार ।</p> जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' ज…tag:openbooks.ning.com,2020-05-21:5170231:Comment:10076442020-05-21T08:49:57.921ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।</p> आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवाद…tag:openbooks.ning.com,2020-05-21:5170231:Comment:10074012020-05-21T01:20:08.467Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व सराहना के लिए आभार ।</p>
<p>आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व सराहना के लिए आभार ।</p> हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण ध…tag:openbooks.ning.com,2020-05-20:5170231:Comment:10073002020-05-20T06:26:15.232ZTEJ VEER SINGHhttps://openbooks.ning.com/profile/TEJVEERSINGH
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय <span>लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'</span>जी। बेहतरीन गज़ल।</p>
<p><span>किस्मत गरीब की रही झोपड़ ही घास की</span><br/><span>आँगन में जिसके फूल के डाले नहीं गये।५।</span></p>
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय <span>लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'</span>जी। बेहतरीन गज़ल।</p>
<p><span>किस्मत गरीब की रही झोपड़ ही घास की</span><br/><span>आँगन में जिसके फूल के डाले नहीं गये।५।</span></p> आप ठीक फरमा रहे हैं इन दिनों…tag:openbooks.ning.com,2020-05-19:5170231:Comment:10075032020-05-19T15:55:24.794ZRam Awadh VIshwakarmahttps://openbooks.ning.com/profile/RamAwadhVIshwakarma
<p>आप ठीक फरमा रहे हैं इन दिनों मैं फेस बुक पर था। लेकिन इस साइट पर मैं यदा-कदा आता था। इस साइट पर बेबाकी से ग़ज़लों पर टीका टिप्पणी की जाती है जिसके कारण कमियां मालूम होती हैं। मुझे ए साइट बहुत प्रिय है</p>
<p>आप ठीक फरमा रहे हैं इन दिनों मैं फेस बुक पर था। लेकिन इस साइट पर मैं यदा-कदा आता था। इस साइट पर बेबाकी से ग़ज़लों पर टीका टिप्पणी की जाती है जिसके कारण कमियां मालूम होती हैं। मुझे ए साइट बहुत प्रिय है</p> आ. भाई राम अवध जी, सादर अभिवा…tag:openbooks.ning.com,2020-05-19:5170231:Comment:10073802020-05-19T10:22:45.569Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई राम अवध जी, सादर अभिवादन । लम्बे समय बाद आपकी उपस्थित से हर्ष हुआ । गजल को मान देने के लिए मन से आभार ।</p>
<p>आ. भाई राम अवध जी, सादर अभिवादन । लम्बे समय बाद आपकी उपस्थित से हर्ष हुआ । गजल को मान देने के लिए मन से आभार ।</p> दसकों गुजर गये हैं ये नारा दि…tag:openbooks.ning.com,2020-05-19:5170231:Comment:10075912020-05-19T09:43:03.811ZRam Awadh VIshwakarmahttps://openbooks.ning.com/profile/RamAwadhVIshwakarma
<p>दसकों गुजर गये हैं ये नारा दिये मगर</p>
<p>होगी गरीबी दूर के वादे नहीं गये</p>
<p>वाह वाह हर सरकार यही वादा करके सत्ता में आती है और फिर पांच साल तक भूल जाती है</p>
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<p>दसकों गुजर गये हैं ये नारा दिये मगर</p>
<p>होगी गरीबी दूर के वादे नहीं गये</p>
<p>वाह वाह हर सरकार यही वादा करके सत्ता में आती है और फिर पांच साल तक भूल जाती है</p>
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